सहरसा के संत बाबा कारू खिरहर मंदिर में भीड़:दूध और भांग का प्रसाद चढ़ाते हैं भक्त, शारदीय नवरात्र पर पहुंचे 2 लाख श्रद्धालु
सहरसा के महिषी प्रखंड के महपुरा गांव स्थित पौराणिक संत बाबा कारू खिरहर मंदिर में शारदीय नवरात्र की सप्तमी पूजा के बाद श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। परंपरा के अनुसार, सप्तमी के बाद भक्त बाबा के दरबार में दूध और भांग का प्रसाद चढ़ाते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने से न केवल मनुष्यों बल्कि पशुओं के गंभीर रोग भी ठीक हो जाते हैं। जिन लोगों के पशु स्वस्थ हो जाते हैं, वे कृतज्ञता स्वरूप उन पशुओं का दूध बाबा को अर्पित करने मंदिर पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं की आस्था इतनी गहरी है कि चढ़ावे में इतना अधिक दूध अर्पित किया जाता है कि मंदिर के बगल से बहने वाली कोसी नदी का पानी भी सफेद दिखाई देने लगता है। संत बाबा कारू महपुरा गांव के थे निवासी मंदिर के पुजारी मिथिलेश खिरहर ने बताया कि संत बाबा कारू महपुरा गांव के ही निवासी थे। लगभग 1800 वर्ष पूर्व उन्होंने पास स्थित महादेव मंदिर में नवरात्र के दौरान कठोर तपस्या की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि जब तक सूर्य, चंद्रमा, धरती और आकाश रहेंगे, तब तक उनकी पूजा और भक्ति होती रहेगी। इसके बाद बाबा मात्र 16 वर्ष की आयु में भगवान के साथ अंतर्ध्यान हो गए। कोसी नदी के तट पर की जाती रही है पूजा तब से ही बाबा कारू खिरहर की पूजा कोसी नदी के तट पर की जाती रही है। विशेषकर नवरात्र के दौरान नेपाल, कोसी सीमांचल और मिथिलांचल से 2 लाख से भी अधिक श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। मंदिर में चढ़ाए गए दूध और अरवा चावल से खीर प्रसाद तैयार किया जाता है, जिसे बाद में भक्तों के बीच वितरित किया जाता है।
सहरसा के महिषी प्रखंड के महपुरा गांव स्थित पौराणिक संत बाबा कारू खिरहर मंदिर में शारदीय नवरात्र की सप्तमी पूजा के बाद श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। परंपरा के अनुसार, सप्तमी के बाद भक्त बाबा के दरबार में दूध और भांग का प्रसाद चढ़ाते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने से न केवल मनुष्यों बल्कि पशुओं के गंभीर रोग भी ठीक हो जाते हैं। जिन लोगों के पशु स्वस्थ हो जाते हैं, वे कृतज्ञता स्वरूप उन पशुओं का दूध बाबा को अर्पित करने मंदिर पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं की आस्था इतनी गहरी है कि चढ़ावे में इतना अधिक दूध अर्पित किया जाता है कि मंदिर के बगल से बहने वाली कोसी नदी का पानी भी सफेद दिखाई देने लगता है। संत बाबा कारू महपुरा गांव के थे निवासी मंदिर के पुजारी मिथिलेश खिरहर ने बताया कि संत बाबा कारू महपुरा गांव के ही निवासी थे। लगभग 1800 वर्ष पूर्व उन्होंने पास स्थित महादेव मंदिर में नवरात्र के दौरान कठोर तपस्या की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि जब तक सूर्य, चंद्रमा, धरती और आकाश रहेंगे, तब तक उनकी पूजा और भक्ति होती रहेगी। इसके बाद बाबा मात्र 16 वर्ष की आयु में भगवान के साथ अंतर्ध्यान हो गए। कोसी नदी के तट पर की जाती रही है पूजा तब से ही बाबा कारू खिरहर की पूजा कोसी नदी के तट पर की जाती रही है। विशेषकर नवरात्र के दौरान नेपाल, कोसी सीमांचल और मिथिलांचल से 2 लाख से भी अधिक श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। मंदिर में चढ़ाए गए दूध और अरवा चावल से खीर प्रसाद तैयार किया जाता है, जिसे बाद में भक्तों के बीच वितरित किया जाता है।