भारत को रूस से दूर करने के लिए यूरोपीय संघ की नई रणनीति
यूरोपीय संघ ने भारत के सामने एक नया रणनीतिक एजेंडा पेश किया है, जिसका मकसद द्विपक्षीय रिश्तों को बढ़ावा देना है। यह कदम ऐसे समय पर सामने आया है, जब अमेरिका यूरोप से भारत पर भारी टैरिफ लगाने की मांग कर रहा है।

-आंचल वोहरा अनुवादः सोनम मिश्रा
यूरोपीय संघ ने भारत के सामने एक नया रणनीतिक एजेंडा पेश किया है, जिसका मकसद द्विपक्षीय रिश्तों को बढ़ावा देना है। यह कदम ऐसे समय पर सामने आया है, जब अमेरिका यूरोप से भारत पर भारी टैरिफ लगाने की मांग कर रहा है।
हालांकि, यूरोपीय संघ ने जुलाई में खुद एक भारतीय रिफाइनरी पर प्रतिबंध लगाया था, जो रूसी कच्चे तेल को परिष्कृत कर यूरोप को सप्लाई कर रहा था। इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति, डॉनल्ड ट्रंप ने भी भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगा दिया था।
अब जब यूरोपीय संघ और अमेरिका, दोनों ही यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस पर "सेकेंडरी सैंक्शंस” की नीति अपना रहे हैं। तो ऐसे में रिपोर्ट सामने आ रही है कि ट्रंप ने यूरोपीय संघ से भारत पर 100 फीसदी तक टैरिफ लगाने की अपील की है।
हालांकि, यूरोपीय संघ ने अपने नए रणनीतिक एजेंडा में एक अलग रास्ता चुना है। भारत को रूस के प्रभाव से दूर करने के लिए वह व्यापारिक समझौते और बेहतर रणनीतिक रिश्तों को मजबूती दे रहा है।
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन कहती हैं, "अब समय आ गया है कि हम भरोसेमंद साझेदारों को चुने और ऐसी भागीदारियों को मजबूती दें, जो साझा हितों और समान मूल्यों पर आधारित हो।”
उन्होंने आगे कहा, "यूरोपीय संघ और भारत के नई रणनीतिक समझौते के साथ हम अपने रिश्तों को एक नए मुकाम पर ले जाना चाहते है।”
यूरोपीय संघ और भारत कैसे मजबूत कर रहे हैं रिश्ते
यूरोपीय संघ की शीर्ष राजनयिक काया कलास मानती हैं कि भारत और यूरोपीय संघ के बीच कुछ मतभेद जरूर है, जैसे भारत का रूसी तेल खरीदना और बेलारूस में रूस-नेतृत्व वाले जपाड सैन्य अभ्यास में हिस्सा लेना।
हालांकि उनके अनुसार ऐसे "उथल-पुथल भरे समय में” जब यूरोपीय संघ के रिश्ते अमेरिका के साथ तनाव में हैं, ऐसे समय में बेहतर साझेदारों की जरूरत बढ़ जाती है।
उन्होंने कहा, "भारत को रूस की तरफ धकेलने के बजाय उसके साथ रिश्तों को गहरा करना, यूरोपीय संघ के अधिकारियों की सहमति से लिया गया निर्णय है।”
यूरोपीय संघ के एक और अधिकारी ने कहा कि भारत के साथ मजबूत रिश्तों से फायदा भी मिल सकता हैं।
उनके मुताबिक, भारत एक "संयमित देश” है, जिसका दृष्टिकोण पूरी तरह से पश्चिम-विरोधी नहीं है और वह ब्रिक्स और चीन के नेतृत्व वाले शंघाई सहयोग संगठन के मंचों पर भी भागीदारी करता है। जबकि इन मंचों पर यूरोपीय संघ मौजूद नहीं है।
उन्होंने आगे कहा, "भारत लगातार मददगार भूमिका निभाने की कोशिश करता रहा है जैसे [यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर] जेलेंस्की से बातचीत करने में, उन्हें नई दिल्ली आमंत्रित करने में। जिसके जरिये बातचीत की गुंजाइश बढ़ सकती है।”
ब्रसेल्स में जर्मन मार्शल फंड की रिसर्चर गरिमा मोहन ने कहा कि यह नया रणनीतिक एजेंडा पहले से कहीं ज्यादा महत्वाकांक्षी है और इसमें भारत को एक अहम साझेदार और चीन के संतुलन के रूप में पेश किया जा रहा है।
इस दस्तावेज में भारत के अहम सहयोगी भागीदारी का जिक्र किया गया है और सप्लाई चेन को विविध बनाने में भारत की भूमिका पर भी जोर दिया गया है, जो यूरोपीय संघ की चीन पर निर्भरता को कम करने की इच्छा की ओर संकेत देता है।
तेजी से आगे बढ़ रहा यूरोपीय संघ और भारत का रक्षा सहयोग
नए रणनीतिक एजेंडे का एक प्रमुख हिस्सा रक्षा उद्योग में सहयोग को बढ़ावा देना भी है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक है और यूरोपीय संघ उसे एक विशाल बाजार के रूप में देख रहा है। यूरोपीय संघ मानता है कि भारत अब रूस पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है और आयात के स्रोतों में विविधता लाना चाहता है।
दूसरी ओर, भारत भी अपनी नौसेना और वायुसेना को आधुनिक बनाने की तैयारी कर रहा है और 2025–2026 के लिए रक्षा क्षेत्र में 70 अरब यूरो (करीब 83 अरब डॉलर) से अधिक का बजट भी तय कर चुका है।
ब्रसेल्स के थिंक टैंक, ब्रुएगेल के वरिष्ठ शोधकर्ता जैकब फंक किर्कगार्ड ने कहा, "अगर आप भारत से देख रहे हैं कि यूक्रेन युद्ध में रूसी हथियार कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं, तो स्वाभाविक है कि आप अपने विकल्पों को विविध बनाना ही चाहेंगे।”
उन्होंने आगे कहा, "जैसे-जैसे यूरोप अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहा है, वैसे-वैसे यूरोप और यूक्रेन बड़े हथियार उत्पादक बनते जा रहे हैं, तो ऐसे में भारत के लिए हथियार खरीदने के लिए वह एक स्वाभाविक विकल्प बन सकता है।”
जर्मन मार्शल फंड की रिसर्चर गरिमा मोहन का कहना है कि यूरोप भारत को सिर्फ हथियार बेच ही नहीं सकता, बल्कि भारत से खरीद भी सकता है। भारत का लक्ष्य है कि 2029 तक वह कम से कम पांच अरब यूरो का रक्षा निर्यात करे।
उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "यूरोप अपनी रक्षा उत्पादन क्षमता और औद्योगिक परिसरों में निवेश कर रहा है, लेकिन उसे फिर भी भरोसेमंद साझेदारों से उपकरण खरीदने की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि यूरोप में इतनी अधिक मात्रा में तैयार उपकरण उपलब्ध नहीं हैं।”
मोहन ने यह भी बताया कि भारत के रूस-नेतृत्व वाले जपाड सैन्य अभ्यास (बेलारूस) में सैनिक भेजने के फैसले के बावजूद, यूरोपीय संघ और भारत के रिश्तों पर कोई खास असर नहीं पड़ा है।
उन्होंने कहा, "जपाड में हिस्सा लेना भारत की ओर से एक अच्छी योजना नहीं थी। एक तरह से यह रास्ते में आई एक छोटी-सी अड़चन थी, जिससे उन आवाजों को बल मिला जो मानते हैं कि यूरोपीय संघ को भारत के साथ संबंध नहीं बनाने चाहिए।”
जिसके आगे उन्होंने जोड़ा, "फिर भी यह अच्छी बात है कि (रणनीतिक रिश्तों को मजबूत करने पर) एक संयुक्त बयान जारी हुआ और अब चीजें आगे बढ़ रही हैं।”
यूरोपीय संघ के देशों का भारत के रिश्ते मजबूत करने पर समर्थन
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बातचीत के दौरान इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने भारत–इटली संबंधों को "बेहतरीन” बताया और अमेरिका की ओर से भारत पर टैरिफ लगाने की अमेरिका की मांग का भी कोई जिक्र नहीं किया।
बल्कि यूरोपीय देश भारत को ऐसे साझेदार के रूप में देख रहे हैं, जो नियम-आधारित वैश्विक व्यापार व्यवस्था को बनाए रखने में समान रूप से दिलचस्पी रखता है।
इसी महीने की शुरुआत में नई दिल्ली के दौरे पर आए जर्मनी के विदेश मंत्री, योहान वाडेफुल ने कहा कि जहां कुछ देश व्यापार में बाधाएं खड़ी कर रहे हैं, वहीं भारत और जर्मनी को इन्हें कम करने पर काम करना चाहिए।
जर्मनी ने फैसला किया है कि वह भारत के साथ अपने व्यापार को दोगुना करेगा। भारतीय विदेश मंत्री एस। जयशंकर ने कहा कि भारत को उम्मीद है कि ईयू–भारत मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए जर्मनी उसका समर्थन करेगा।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने प्रधानमंत्री मोदी से फोन पर बातचीत में यूक्रेन पर चर्चा की और उन्हें उन सुरक्षा गारंटियों के बारे में बताया, जो यूरोप यूक्रेन के लिए तैयार कर रहा है।
माक्रों ने एक्स पर लिखा है, "भारत और फ्रांस, यूक्रेन में एक न्यायसंगत और स्थायी शांति बनाने के लिए समान संकल्प साझा करते हैं।”
विशेषज्ञों का मानना है कि यह तो निश्चित नहीं है कि मोदी और फॉन डेय लाएन की उम्मीद के मुताबिक भारत और यूरोपीय संघ इस साल के अंत तक अपने सभी मतभेद पूरी तरह सुलझा पाएंगे या नहीं। हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि यूरोपीय संघ और भारत के रिश्ते तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।
हालांकि, ब्रसेल्स में विशेषज्ञ किर्कगार्ड ने कहा, "इसके साथ ही एक राजनीतिक सहमति होना भी जरूरी है, जो निश्चित करे कि भारत का रूसी तेल खरीदना धीरे-धीरे घटने के रास्ते पर हो।”