कानून के बावजूद दवा कंपनियों की मनमानी पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा बड़ा सवाल 'बिना दांत का बाघ है' तो इसका उद्देश्य क्या है

सुप्रीम कोर्ट ने फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेज के लिए समान संहिता (यूसीपीएमपी) 2024 के संबंध में गुरुवार को सवाल किया कि अगर यह संहिता एक 'बिना दांत का बाघ है' तो इसका उद्देश्य क्या है? न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की ...

Sep 4, 2025 - 22:42
 0
कानून के बावजूद दवा कंपनियों की मनमानी पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा बड़ा सवाल 'बिना दांत का बाघ है' तो इसका उद्देश्य क्या है

सुप्रीम कोर्ट ने फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेज के लिए समान संहिता (यूसीपीएमपी) 2024 के संबंध में गुरुवार को सवाल किया कि अगर यह संहिता एक 'बिना दांत का बाघ है' तो इसका उद्देश्य क्या है? न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने 'फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया' की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वास्तविक "कठिनाई" मानदंडों के कार्यान्वयन में है।

ALSO READ: 150 साल तक जिंदा रहेगा इंसान, बीजिंग परेड में पुतिन-जिनपिंग की अनजाने में रिकॉर्ड चर्चा से सोशल मीडिया पर क्यों मची हलचल

पीठ ने दवाओं के प्रचार के किसी भी अनैतिक तरीके पर अंकुश लगाने के मद्देनजर दवा कंपनियों की विपणन प्रथाओं के लिए एक समान संहिता की मांग वाली इस याचिका पर सुनवाई के दौरान और भी कई सवाल किए। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिका में की गई गुहार का अब कोई मतलब नहीं रह गया, क्योंकि एक वैधानिक व्यवस्था पहले से ही लागू है।

 

इस पर पीठ ने कहा कि मुश्किल यह है कि व्यवस्था तो मौजूद है, लेकिन क्या उसका वास्तव में पालन होता है या नहीं।" इस मामले में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि पिछले साल एक नई व्यवस्था लाई गई थी। पीठ ने पूछा कि यही चिंता का विषय है कि अगर यह एक बिना दांत का बाघ है... तो इसका उद्देश्य क्या है। 

ALSO READ: पंजाब से जम्मू तक बाढ़ ने मचाई तबाही, LOC पर 110 KM लंबी बाड़ और 90 BSF चौकियां जलमग्न

मेहता ने सरकार की ओर से जवाब देते हुए कहा, “यह एक ऐसा 'बाघ' है जिसके नियंत्रण में सारी शक्ति है। पीठ ने मामले की सुनवाई सात अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी। याचिका में यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि जब तक इस याचिका के मद्देनजर एक प्रभावी कानून नहीं बन जाता, तब तक शीर्ष अदालत दवा कंपनियों द्वारा अनैतिक विपणन प्रथाओं को नियंत्रित और विनियमित करने के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित कर सकती है। इसकी जगह वैकल्पिक रूप से मौजूदा संहिता को उचित संशोधनों/परिवर्धन के साथ बाध्यकारी बना सकती है।

ALSO READ: Car, bikes GST new slabs explained: छोटी कारों पर 60000 रुपए की बचत, Honda Shine, Activa होंगी सस्ती, लग्जरी कारों पर क्या पड़ेगा असर, समझिए पूरा गणित

याचिका में कहा गया है कि भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002, दवा और संबद्ध स्वास्थ्य क्षेत्र उद्योग के साथ डॉक्टरों के संबंधों के लिए एक आचार संहिता निर्धारित करते हैं। इसमें डाक्टरों दवा कंपनियों से उपहार, मनोरंजन, यात्रा सुविधाएं, आतिथ्य या मौद्रिक अनुदान स्वीकार करने पर रोक लगाने का प्रावधान है। गौरतलब है कि यूसीपीएमपी 2024 पिछले साल लागू की गई थी। इनपुट एजेंसियां Edited by : Sudhir Sharma