लोकरंग में हुए लंगा गायन में गूंजे थार के स्वर:तमिलनाडु के कलाकारों ने किया रोमांचित, नृत्य से की दुर्गा देवी और काली माता की उपासना
लोक संस्कृति की मनोरम छटा बिखेर रहा 28वां लोकरंग महोत्सव का आठवां दिन भी खास रहा। लोकरंग के अंतर्गत आयोजित राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह में विभिन्न राज्यों के आए लोक कलाकारों की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को भारत के लालित्यपूर्ण लोक संस्कृति की विविधता और जीवंतता का अनुभव कराया। 28वां लोकरंग महोत्सव 17 अक्टूबर तक चलने वाला है, जिसमें देशभर के कलाकार अपनी पारंपरिक कला का जादू बिखेरेंगे। मध्यवर्ती में कार्यक्रम की शुरुआत राजस्थान के भवरु खां लंगा व समूह ने सुरीले गायन के साथ की। उन्होंने सिंधी सारंगी, खड़ताल, अलगोजा, मोरचंग और खड़ताल की तानों पर चरखा गीत ‘हो भला रे, जियो भला रे’ गाकर समां बांधा। इसके बाद उन्होंने ‘सुंदर गोरी’ नामक अलंकृत गीत की प्रस्तुति से माहौल को रुमानियत से भर दिया। हरियाणा से आए कलाकारों ने लोक नृत्य घूमर में ‘ननदी के बीरा’ गीत पर हरियाणवी पोशाक में माथे पर बोरला लगाए और गले में कंठी पहने अपनी हरियाणा की संस्कृति का मनोरम उदाहरण दिया। राजस्थान के डीग से आए कलाकारों ने श्री राधा रमण जी के जन्मोत्सव पर किया जाने वाला पारंपरिक लोक नृत्य चरकुला प्रस्तुत किया। मंच पर ग्वाले, गोपी, संग राधा-कृष्ण का नृत्य और 108 दीपों से सुशोभित चरकुला सिर पर उठाए कलाकारों ने राधा जन्म की महाआरती का दृश्य साकार किया। अमित गमेती व समूह ने गवरी नृत्य में अपनी पौराणिक कथाओं और देव-लोक परंपराओं की झलकियों से दर्शकों को आध्यात्मिक अनुभव कराता रहा। मध्यप्रदेश के कलाकारों ने आकर्षक गणगौर नृत्य से दर्शकों का दिल जीत लिया। इसमें सभी महिला कलाकारों ने भगवान शिव और पार्वती की आराधना करते हुए गणगौर बनाए। यह लोक नृत्य अच्छे वर को पाने के लिए किया जाता है। तमिलनाडु से आए कलाकारों ने मरुद्धम कलाई कजुहू में पूर्वी तमिलनाडु की आदिवासी नृत्य शैली पेश की। इस नृत्य में दुर्गा देवी और काली माता की उपासना का दृश्य साकार किया गया। मध्यप्रदेश के कलाकारों ने करमा नृत्य में ‘रेवा रे नर्मदा माई, रेवा रे नर्मता’ गीतों पर बैगा करमा जनजाति के कलाकारों ने यह नृत्य प्रस्तुत किया। दशहरा चांद की फसल, करमा मध्य प्रदेश में एक लोकप्रिय आदिवासी लोक पर्व और नृत्य है, जो भादों माह में मनाया जाता है। यह पर्व नई फसल की खुशी, अच्छी फसल और समुदायों में समृद्धि लाने के लिए मनाया जाता है। करमा नृत्य में लोग करम वृक्ष की शाखा को स्थापित करके उसके चारों ओर गीत और नृत्य करते हैं। इसके बाद खाटू सपेरा व समूह ने कालबेलिया नृत्य में अपनी अनूठी शैली और गतिशील कदमों से दर्शकों का मन मोह लिया। शाम की आखिरी प्रस्तुति में तमिलनाडु के कलाकारों ने महेश्वरन थपट्टा कलाई नृत्य प्रस्तुत किया। यह नृत्य आराध्य को समर्पित है और 15 कलाकारों के समूह ने इसे मंच पर आखिरी प्रस्तुति में पेश किया।
लोक संस्कृति की मनोरम छटा बिखेर रहा 28वां लोकरंग महोत्सव का आठवां दिन भी खास रहा। लोकरंग के अंतर्गत आयोजित राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह में विभिन्न राज्यों के आए लोक कलाकारों की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को भारत के लालित्यपूर्ण लोक संस्कृति की विविधता और जीवंतता का अनुभव कराया। 28वां लोकरंग महोत्सव 17 अक्टूबर तक चलने वाला है, जिसमें देशभर के कलाकार अपनी पारंपरिक कला का जादू बिखेरेंगे। मध्यवर्ती में कार्यक्रम की शुरुआत राजस्थान के भवरु खां लंगा व समूह ने सुरीले गायन के साथ की। उन्होंने सिंधी सारंगी, खड़ताल, अलगोजा, मोरचंग और खड़ताल की तानों पर चरखा गीत ‘हो भला रे, जियो भला रे’ गाकर समां बांधा। इसके बाद उन्होंने ‘सुंदर गोरी’ नामक अलंकृत गीत की प्रस्तुति से माहौल को रुमानियत से भर दिया। हरियाणा से आए कलाकारों ने लोक नृत्य घूमर में ‘ननदी के बीरा’ गीत पर हरियाणवी पोशाक में माथे पर बोरला लगाए और गले में कंठी पहने अपनी हरियाणा की संस्कृति का मनोरम उदाहरण दिया। राजस्थान के डीग से आए कलाकारों ने श्री राधा रमण जी के जन्मोत्सव पर किया जाने वाला पारंपरिक लोक नृत्य चरकुला प्रस्तुत किया। मंच पर ग्वाले, गोपी, संग राधा-कृष्ण का नृत्य और 108 दीपों से सुशोभित चरकुला सिर पर उठाए कलाकारों ने राधा जन्म की महाआरती का दृश्य साकार किया। अमित गमेती व समूह ने गवरी नृत्य में अपनी पौराणिक कथाओं और देव-लोक परंपराओं की झलकियों से दर्शकों को आध्यात्मिक अनुभव कराता रहा। मध्यप्रदेश के कलाकारों ने आकर्षक गणगौर नृत्य से दर्शकों का दिल जीत लिया। इसमें सभी महिला कलाकारों ने भगवान शिव और पार्वती की आराधना करते हुए गणगौर बनाए। यह लोक नृत्य अच्छे वर को पाने के लिए किया जाता है। तमिलनाडु से आए कलाकारों ने मरुद्धम कलाई कजुहू में पूर्वी तमिलनाडु की आदिवासी नृत्य शैली पेश की। इस नृत्य में दुर्गा देवी और काली माता की उपासना का दृश्य साकार किया गया। मध्यप्रदेश के कलाकारों ने करमा नृत्य में ‘रेवा रे नर्मदा माई, रेवा रे नर्मता’ गीतों पर बैगा करमा जनजाति के कलाकारों ने यह नृत्य प्रस्तुत किया। दशहरा चांद की फसल, करमा मध्य प्रदेश में एक लोकप्रिय आदिवासी लोक पर्व और नृत्य है, जो भादों माह में मनाया जाता है। यह पर्व नई फसल की खुशी, अच्छी फसल और समुदायों में समृद्धि लाने के लिए मनाया जाता है। करमा नृत्य में लोग करम वृक्ष की शाखा को स्थापित करके उसके चारों ओर गीत और नृत्य करते हैं। इसके बाद खाटू सपेरा व समूह ने कालबेलिया नृत्य में अपनी अनूठी शैली और गतिशील कदमों से दर्शकों का मन मोह लिया। शाम की आखिरी प्रस्तुति में तमिलनाडु के कलाकारों ने महेश्वरन थपट्टा कलाई नृत्य प्रस्तुत किया। यह नृत्य आराध्य को समर्पित है और 15 कलाकारों के समूह ने इसे मंच पर आखिरी प्रस्तुति में पेश किया।