ऐतिहासिक अलम नौचंदी और जुलूस-ए-अमारी में उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब:84 साल पुरानी परंपरा, शहर और दूसरे जिलों से आए जायरीन
जौनपुर में ऐतिहासिक अलम नौचंदी जुलूस-ए-अमारी का आयोजन 84वें वर्ष में भी धूमधाम से हुआ। यह जुलूस शहर के बाजार भुआ स्थित इमामबारगाह स्व. मीर बहादुर अली दालान से निकला। कमेटी के अध्यक्ष सैयद अलमदार हुसैन की अध्यक्षता में आयोजित इस जुलूस में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। इस अलम का इतिहास 84 साल पुराना है। इसे पहली बार जौनपुर में फैली प्लेग बीमारी को खत्म करने के लिए उठाया गया था। तब से यह परंपरा निरंतर जारी है। गुरुवार को खराब मौसम के बावजूद न केवल शहर से बल्कि ग्रामीण इलाकों और पूर्वांचल के विभिन्न जिलों से जायरीन ने इसमें हिस्सा लिया। मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन के भाई हजरत अब्बास की याद में यह जुलूस निकाला गया। शिया धर्मगुरु मौलाना मुराद रज़ा ने मजलिस पढ़ी। उन्होंने हजरत अब्बास को दुनिया का अद्वितीय सेनापति बताया। वे इमाम हुसैन के 72 लोगों के छोटे से लश्कर के सेनापति थे। मौलाना ने बताया कि हजरत अब्बास बहादुर थे। उन्हें जंग की अनुमति नहीं मिली थी। जब वे तीन दिन के भूखे-प्यासे बच्चों के लिए बिना तलवार पानी लेने नदी किनारे गए। तब यजीदी फौज ने उन्हें शहीद कर दिया। इस वर्णन से हजारों श्रद्धालु भावुक हो गए। मजलिस के बाद अलम और दुलदुल बरामद हुआ। इससे पहले गौहर अली जैदी और एहतेशाम हुसैन एडवोकेट व उनके साथियों ने सोजखानी की। फिर मगरबैन की नमाज मौलाना सफ़दर हुसैन जैदी ने पढ़ाई। शिया कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल मोहम्मद हसन ने तक़रीर की। अमारियां जुलूस में शामिल हुईं। अंजुमन अजादारिया बारादुअरिया के नेतृत्व में शहर की सभी अंजुमनों ने नौहा मातम किया। जुलूस जब पानदरीबा रोड स्थित मीरघर पहुंचा तो डॉ. क़मर अब्बास ने तकरीर की। हजरत अब्बास के अलम का उनकी भतीजी और इमाम हुसैन की 4 साल की बेटी हजरत सकीना के ताबूत का मिलन हुआ। जुलूस पांचो शिवाला, छतरीघाट होता हुआ बेगमगंज सदर इमामबारगाह पहुंचा। वहां पर आखिरी तकरीर बेलाल हसनैन ने की। इसी के साथ जुलूस संपन्न हुआ।
