डोनाल्ड ट्रंप की मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (मागा) नीति में एक बड़ा मुद्दा एच1बी वीजा हमेशा से रहा है। वो वीजा जो हर साल 85 हजार विदेशियों को अमेरिका में स्किल्स के आधार पर काम करने की इजाजत देता है। लेकिन ट्रंप को ये वीजा बिल्कुल पसंद नहीं है। अपने राजनीतिक इतिहास में ट्रंप इस वीजा का विरोध करते आए हैं क्योंकि उनका मानना है कि ये वीजा अमेरिकियों की नौकरी खा रहा है। इसी कड़ी में ट्रंप ने एच1बी वीजा की कीमत अचानक 1 लाख डॉलर कर दी। भारतीय रुपए के हिसाब से 88 लाख रुपए। अमेरिका में आईटी सेक्टर में काम करने का सपना रखने वाले भारतीयों के लिए अब ये वीजा मुसीबत बन गया है। इसी मौके का फायदा चीन उठा रहा है। चीन 1 अक्टूबर से के वीजा शुरू कर रहा है। जिसे दुनियाभर के प्रोफेशनल्स को चीन जाकर काम करने का मौका मिलेगा। क्या है के वीजा, अमेरिका के एच1बी वीजा से कैसे अलग है। इसके लिए अप्लाई कैसे करना होगा तमाम सवालों के जवाब आपको बताते हैं।
एच1बी पर ट्रंप ने क्या नया फैसला लिया है
ट्रम्प प्रशासन ने एच-1बी वीसा चयन प्रक्रिया में बड़ा बदलाव प्रस्तावित किया है। अब वीजा पाने का मौका केवल लॉटरी पर नहीं होगा। चयन उम्मीदवार के कौशल स्तर और नौकरी में मिलने वाले वेतन पर निर्भर करेगा। नए नियम के तहत सभी उम्मीदवारों को श्रम विभाग की रिपोर्ट के आधार पर चार वेतन श्रेणियों में रखा जाएगा। सबसे ऊंची श्रेणी वाले, जिन्हें लगभग $1,62,500 (करीब 1.44 करोड़ रुपए) सालाना वेतन मिलता है, वे लॉटरी में चार बार शामिल होंगे। सबसे निचली श्रेणी वाले सिर्फ एक बार शामिल होंगे। इसका मकसद है कि अधिक कुशल और ज्यादा वेतन पाने वाले कर्मचारियों को प्राथमिकता मिले। सरकार ने 22 सितंबर से नए एच-1बी आवेदन पर $100.000 (करीब ₹88 लाख) फीस की है।
क्या है के वीजा
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, यह वीजा साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजिनियरिंग और मैथमेटिक्स (STEM) क्षेत्रों के ग्रेजुएट्स और शुरुआती स्तर के शोधकर्ताओं को लक्षित करता है। इसकी खासियत यह है कि इसके लिए स्थानीय नियोक्ता की जरूरत नहीं होगी। धारक सीधे रिसर्च, शिक्षा, स्टार्टअप और बिजनेस गतिविधियों में हिस्सा ले सकते हैं। यह लचीलापन चीन को वैश्विक टैलेंट आकर्षित करने का नया हथियार बना सकता है। चीन के-वीजा के माध्यम से दुनियाभ दुनियाभर के टैलेंट को अपनी और आकर्षित कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका जहां वीजा पॉलिसी सख्त कर रहा है, वहीं चीन युवा वैज्ञानिकों और तकनीकी पेशेवरों को खुला आमंत्रण दे रहा है।
जॉब ऑफर जरूरी नहीं, ज्यादा स्टे कर सकेंगे
के-वीजा के लिए कंपनी से जॉब ऑफर की अनिवार्यता नहीं रखी गई है। इस वीसा से चीन में जाकर जॉब सर्च कर सकते हैं। ये वीसा मल्टीपल एंट्री और 10 साल की विस्तारित अवधि तक चीन में रहने की सुविधा देगा। स्टेम सब्जेक्ट यानी साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथेमैटिक्स में पास आउट को इस वीसा में वरीयता दी जाएगी। यंग टैलेंट यानी 45 साल तक के प्रोफेशनल्स को इस कैटेगरी में वीसा जारी करने का लक्ष्य है।
के वीसा से क्या बदलाव होगा
अमेरिका में एच-1 बी फीस वृद्धि के बाद भारत के एंट्री-मिड लेवल के प्रोफेशनल्स चीन का रुख कर सकते हैं। अब एच-1 बी के लिए फीस चुकाने को कुछ अमेरिकी कंपनियां ही आगे आएंगी। ये वीसा कैसे अलग है एच-1 बी से इसका सबसे बड़ा अंतर है कि इसे पाने के लिए किसी भी कंपनी या यूनिवर्सिटी से जॉब ऑफर जरूरी नहीं है। एच1बी वीजा पर नई शर्त के कारण अमेरिका में पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में बेशक कमी होगी लेकिन भारत समेत दूसरे कई देशों में छात्रों के पास अवसरों की कमी नहीं होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि QS रैंकिंग में 54 भारतीय संस्थान अपनी जगह बना चुके हैं। इसके अलावा इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर समेत कई देशों की यूनिवर्सिटीज QS रैंकिंग में अच्छे पायदान पर है।