आज शुक्र प्रदोष व्रत है, इस व्रत में शिवजी की पूजा होती है। शुक्रवार के दिन पड़ने के कारण यह शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। शुक्र प्रदोष व्रत के दिन व्रत रखकर प्रदोष काल में षोडशोपचार विधि से अगर भगवान शिव माता पार्वती की पूजा आराधना करने से मनोकामनाएं पूरी होती है, तो आइए हम आपको शुक्र प्रदोष व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जानें शुक्र प्रदोष व्रत के बारे में
शुक्र प्रदोष व्रत आश्विन शुक्ल त्रयोदशी तिथि को है। पितृपक्ष में आने के कारण इस दिन अल्पायु पितरों और मृत बच्चों का श्राद्ध किया जाता है। इसी के साथ इस दिन शिव कृपा पाने का शुभ योग भी बन रहा है। शिव जी से जुड़े दो व्रत इस दिन रखे जाएंगे। हर महीने 2 बार त्रयोदशी तारीख आती हैं जिसमें प्रदोष व्रत रखा जाता है। यह प्रदोष व्रत भगवान शिव को बेहद प्रिय है, इस दिन व्रत रखकर अगर प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा आराधना की जाए तो भगवान शिव माता पार्वती बेहद प्रसन्न होती हैं। वहीं अश्विन महीने की शुरुआत हो चुकी है और अश्विन माह का प्रदोष बेहद खास है, क्योंकि इस दिन प्रदोष के साथ मास शिव शिवरात्रि भी है जो अत्यंत शुभ है। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए समर्पित है। पंडितों के अनुसार प्रदोष व्रत को विधि-विधान से करने पर महादेव अपने भक्त के सभी कष्टों को हर लेते हैं और उसे सुख-सौभाग्य प्रदान करते हैं।
शुक्र प्रदोष व्रत विशेष रूप से सौंदर्य, सुख, धन और वैवाहिक जीवन की सुख-शांति के लिए किया जाता है। यह व्रत महिलाओं के लिए विशेष कल्याणकारी माना जाता है और इससे घर में लक्ष्मी का वास होता है। भगवान शिव की पूजा से सभी ग्रहों के दोष दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। नियमपूर्वक व्रत करने से प्रणय जीवन में सुख और धन-वैभव की प्राप्ति होती है। इस दिन मासिक शिवरात्रि का योग भी है, यह हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव की पूजा और व्रत करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। मासिक शिवरात्रि पर भगवान शिव की विशेष पूजा करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
जानें शुक्र प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार, शुक्र प्रदोष व्रत के लिए आश्विन शुक्ल त्रयोदशी तिथि 18 सितंबर गुरुवार को रात 11 बजकर 24 मिनट से प्रारंभ होगी। यह तिथि 19 सितंबर दिन शुक्रवार को रात 11 बजकर 36 मिनट पर खत्म होगी। ऐसे में प्रदोष पूजा मुहूर्त और उदयातिथि के आधार पर शुक्र प्रदोष व्रत 19 सितंबर को है।
सिद्ध योग में पड़ रहा है शुक्र प्रदोष व्रत
इस बार शुक्र प्रदोष व्रत के दिन सिद्ध योग और साध्य योग बन रहे हैं। सिद्ध योग शुक्र प्रदोष व्रत को प्रात:काल से लेकर रात 8 बजकर 41 मिनट तक रहेगा। उसके बाद साध्य योग बनेगा, जो अगले दिन तक रहेगा। प्रदोष वाले दिन अश्लेषा नक्षत्र प्रात:काल से सुबह 07:05 ए एम तक है, उसके बाद मघा नक्षत्र है।
शुक्र प्रदोष व्रत का महत्व
शुक्र प्रदोष व्रत सभी प्रकार के दोषों को दूर करने वाला होता है, शुक्र प्रदोष व्रत में शिव पूजा करने से व्यक्ति के कष्ट मिटते हैं। शिव कृपा से आरोग्य, धन, सुख, समृद्धि की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार, त्रयोदशी श्राद्ध पितृ पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु त्रयोदशी तिथि को हुई थी या जिनकी तिथि अज्ञात है। इस श्राद्ध में मुख्य रूप से उन अल्पायु पितरों और मृत बच्चों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी आयु दो वर्ष से अधिक हो। त्रयोदशी श्राद्ध में तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोज के साथ पितरों को अन्न-जल का भोग लगाया जाता है।
शुक्र प्रदोष की पूजा के उपाय
पंडितों के अनुसार शुक्र प्रदोष व्रत का पुण्यफल पाने के लिए इस दिन भगवान शिव के मंत्रों का जाप या फिर लिंगाष्टकं या फिर रुद्राष्टकं का विशेष रूप से पाठ करना चाहिए। शुक्र प्रदोष के दिन महादेव के मंत्रों के साथ शुक्र देवता के मंत्रों का जाप करने पर सुख-सौभाग्य और वैभव में वृद्धि होती है। शुक्र प्रदोष व्रत का पुण्यफल पाने के लिए इस दिन भगवान शिव की पूजा में सवा किलो अक्षत यानि बगैर खंडित चावल और उसके साथ गाय का दूध को अर्पित करना चाहिए। इस उपाय को करने से व्यक्ति को धन-धान्य की प्राप्ति होती है और उसकी आर्थिक समस्याएं शीघ्र ही दूर होती हैं। अच्छी सेहत की कामना से शुक्र प्रदोष का व्रत कर रहे हैं तो आपको इस दिन प्रदोष काल में महादेव को विशेष रूप से सूखा नारियल अर्पित करना चाहिए।
शुक्र प्रदोष व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा भी है खास
शुक्र प्रदोष व्रत कथा के अनुसार, जब धनिक पुत्र शुक्रास्त में अपनी पत्नी को विदा कराकर लाया तो उसे अनेक कष्ट हुए, लेकिन ब्राह्मण पुत्र की सलाह पर उसने शुक्र प्रदोष व्रत किया और उसकी पत्नी भी वापस ससुराल गई, जिससे शुक्र प्रदोष के प्रभाव से सभी कष्ट दूर हो गए और वे सुखमय जीवन जीने लगे। प्राचीन काल में एक नगर में तीन मित्र रहते थे - एक राजकुमार, एक ब्राह्मण कुमार और एक धनिक पुत्र। राजकुमार और ब्राह्मण कुमार का विवाह हो चुका था. धनिक पुत्र का विवाह हुआ था, लेकिन उसका गौना बाकी था, एक दिन धनिक पुत्र ने बिना सोचे-समझे अपनी पत्नी को ससुराल से विदा कराने का निर्णय लिया। उसके माता-पिता और ब्राह्मण मित्र ने उसे समझाया कि शुक्र देव अस्त हैं और ऐसे में बहु-बेटियों को विदा कराना शुभ नहीं है। लेकिन धनिक पुत्र नहीं माना और जिद पर अड़ा रहा। ससुराल में भी उसे रोकने की कोशिश की गई, पर वह नहीं माना और अपनी पत्नी को साथ लेकर चला, नगर से निकलते ही उनकी बैलगाड़ी का पहिया टूट गया और बैल घायल हो गया। कुछ दूर जाने पर डाकुओं ने उनका सारा धन लूट लिया, किसी तरह वे घर पहुंचे, तो धनिक पुत्र को सांप ने डंस लिया. वैद्य ने कहा कि वह तीन दिन में मर जाएगा।
शुक्र प्रदोष व्रत के प्रभाव से ब्राह्मण मित्र जब यह सब सुनता है, तो वह सेठ पुत्र से कहता है कि उसे पत्नी सहित वापस ससुराल भेज दिया जाए। चूंकि यह शुक्रास्त में पत्नी को घर लाया गया था, इसलिए यह कष्ट आ रहा है। सेठ पुत्र ने ब्राह्मण मित्र की बात मानकर अपनी पत्नी को वापस ससुराल भेज दिया। वहां पहुंचने पर सेठ पुत्र की हालत ठीक होने लगी, उसने शुक्र प्रदोष व्रत किया और भगवान शिव की कृपा से उसके सारे कष्ट दूर हो गए। इस कथा के अनुसार, शुक्र प्रदोष का व्रत शुक्रवार के दिन पड़ने पर विशेष फलदायी होता है. यह व्रत करने से सुख, सौभाग्य, धन और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं।
- प्रज्ञा पाण्डेय