एक ऐसा साम्राज्य जिसने जर्मन तानाशाह हिटलर को परास्त कर दिया। अमेरिका के साथ शीत युद्ध किया। परमाणु से लेकर अंतरिक्ष तक में अपनी क्षमता का लोहा मनवाया। क्यूबा से लेकर वियतनाम की क्रांति में भी भूमिका निभाई। जिसकी भौगोलिक ताकत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि उसके पास पृथ्वी का छठा भाग था। अर्थव्यवस्था हो तकनीक हो या फिर विचारधारा हर क्षेत्र को प्रभावित किया। लेकिन 1991 के साल में ऐसा क्या हुआ कि वो 15 अलग-अलग देशों में विभाजित हो गया। एक ही रात में सोवियत के विघटित होने वाली घटना भी चकित करने वाली थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोरोना महामारी के दौरान एक मूल मंत्र आपदा में अवसर दिया गया था। लेकिन इसे आज से तीन दशक पहले चीन ने अपनाने की ठान ली थी। सोवियत के विघटन के बाद दुनिया एक ध्रविए दिशा में आगे बड़ रहा था। सोवियत बिखर चुका था और अमेरिका के लीडरशिप में पश्चिम प्रभाव में लगातार इजाफा हो रहा था। लेकिन इन सब में चीन को अपने लिए अवसर लगा।
आंकड़े बताते हैं कि चीन 1990 तक अमेरिका के मुकाबले कहीं नहीं था लेकिन उसके बाद उसने जो रफ्तार पकड़ी है, उसने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। चीन 1990 में केवल आठ देशों में लिए टॉप एक्सपोर्टर था और आज यह संख्या 125 पहुंच चुकी है। यानी दुनिया का 125 देश अपना सबसे ज्यादा सामान चीन से मंगाते हैं। दूसरी तरफ 1990 में अमेरिका 175 देशों के लिए टॉप एक्सपोर्टर था जबकि आज यह संख्या महज 35 रह गई है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि चीन में अमेरिका को किस कदर दर्द दिया है। चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को बाजार के भरोसे छोड़ने के बजाय घरेलू अर्थव्यवस्था में भी लगातार सुधार किए। आर्थिक सुधारों के तहत खराब प्रदर्शन कर रहीं सरकारी इंटरप्राइजेज को या तो बंद कर दिया गया या फिर उन्हें पुर्नगठित किया गया।
चीन के लिए 1980 के दशक में सोवियत संघ सबसे बड़ा ख़तरा था और इसने चीन को अमेरिका-जापान के साथ मिलकर सहयोग करने के लिए प्रेरित किया। लेकिन 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिर से फेरबदल देखने को मिला। साल 2001 में, रूस और चीन ने अच्छे पड़ोसी और मैत्रीपूर्ण सहयोग से जुड़ी संधि पर हस्ताक्षर किए। चीन लगातार अलग-अलग शक्तियों के बीच संतुलन खोजने की कोशिश करता रहा है और उस जगह को अमेरिका, रूस और जापान ही नहीं बल्कि भारत या यूरोप के बीच भी नेविगेट करता है। चीन का दुनिया में केवल एक औपचारिक गठबंधन है और वह उत्तर कोरिया के साथ है। हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि सहयोगी रहें या न रहें लेकिन चीन के लिए रूस अत्यंत उपयोगी है।