Revival of Troika Chapter 2 | क्यों और कैसे हुआ एससीओ का गठन | Teh Tak

एससीओ मुख्य रूप से एक भू-राजनीतिक और सुरक्षा संगठन है जिसमें आर्थिक एकीकरण को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासों पर बल दिया जाता है। समूह देशों का दुनिया की लगभग एक तिहाई भूमि पर नियंत्रण है और सालाना खरबों डॉलर का निर्यात करता है। एससीओ को नाटो के खिलाफ एक पूर्वी देशों के समूह के तौर पर देखा जाता है। शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना 26 अप्रैल 1996 को चीन के शंघाई शहर में एक बैठक के दौरान हुई थी। दरअसल, चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और तजाकिस्तान आपस में एक दूसरे के नस्लीय और धार्मिक तनावों से निपटने के लिए सहयोग करने पर सहमत हुए थे। इसे शंघाई फाइव के नाम से जाना गया। जिसके बाद जून 2001 में कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, रूस और चीन के नेताओं ने मिलकर शंघाई सहयोग संगठन की शुरुआत की।रूस ने भारत, चीन ने पाकिस्तान का नाम आगे बढ़ायाभारत एससीओ में पर्यवेक्षक देश था। भारत ने सितंबर 2014 में एससीओ की सदस्यता के लिए आवेदन किया था। रूस भारत को स्थायी सदस्य के तौर पर जुड़ने के लिए प्रेरित करता रहा। वहीं चीन ने पाकिस्तान की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया। रूस के उफ़ा में आयोजित सम्मेलन में 2015 में भारत और पाकिस्तान को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की पूर्ण सदस्यता मिली। एससीओ में चार देश हैं जिन्हें ऑब्जर्वर का दर्जा प्राप्त है। ये हैं: इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान, द रिपब्लिक ऑफ बेलारूस, द इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान और मंगोलिया। इसके छह डायलॉग पार्टनर भी हैं: अजरबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, नेपाल, तुर्की और श्रीलंका। ईरान पहले तक ऑब्ज़र्वर देशों में शामिल था। लेकिन 2021 में ब्लॉक के स्थायी सदस्यों द्वारा उसे अनुमोदित किया गया। अमेरिका के खिलाफ बना था गठबंधन2001 में गठित इस संगठन को शुरुआत में मध्य एशिया में अमेरिकी प्रभाव के चैलेंज देने के तौर पर देखा गया था। इस ग्रुप में अलग-अलग प्राथमिकताओं वाला देश शामिल है। इस ग्रुप के सादस्य ईरान और बेलारूस यूरोपीय देशों के प्रतिबंध का सामना कर रहे हैं। पाकिस्तान सैन्य और आर्थिक सहायता के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर है। यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस को पश्चिमी देशों और खासकर अमेरिका से अलगाव का सामना करना पड़ रहा है। इस सब के बीच भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जिसने अधिक स्वतंत्र रुख अपनाया हुआ है। एससीओ के साथ जुड़ते हुए भी भारत अमेरिका और क्वाड में अपने सहयोगियों के साथ संबंध बनाए हुए है।भारत के लिए क्या हैं एसीसीओ समिट के मायनेएससीओ आमतौर पर सिक्योरिटी, काउंटर-टेररिज्म, ट्रेड और एनर्जी को ऑपरेशन पर फोकस करता है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत रूसी तेल का एक महत्वपूर्ण खरीदार बन गया है, जिससे अमेरिका साथ तनाव पैदा हो गया है। एससीओ का सदस्य होने के बाद भी कुछ ऐसे विषय हैं, जिस पर भारत खुलकर चीन और रूस के साथ खड़ा नहीं हो सकता है। इसे भी पढ़ें: Revival of Troika Chapter 3 | भारत, रूस, चीन की तिकड़ी कितनी ताकतवर| Teh Tak  

Sep 23, 2025 - 23:20
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Revival of Troika Chapter 2 | क्यों और कैसे हुआ एससीओ का गठन | Teh Tak
एससीओ मुख्य रूप से एक भू-राजनीतिक और सुरक्षा संगठन है जिसमें आर्थिक एकीकरण को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासों पर बल दिया जाता है। समूह देशों का दुनिया की लगभग एक तिहाई भूमि पर नियंत्रण है और सालाना खरबों डॉलर का निर्यात करता है। एससीओ को नाटो के खिलाफ एक पूर्वी देशों के समूह के तौर पर देखा जाता है। शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना 26 अप्रैल 1996 को चीन के शंघाई शहर में एक बैठक के दौरान हुई थी। दरअसल, चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और तजाकिस्तान आपस में एक दूसरे के नस्लीय और धार्मिक तनावों से निपटने के लिए सहयोग करने पर सहमत हुए थे। इसे शंघाई फाइव के नाम से जाना गया। जिसके बाद जून 2001 में कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, रूस और चीन के नेताओं ने मिलकर शंघाई सहयोग संगठन की शुरुआत की।

रूस ने भारत, चीन ने पाकिस्तान का नाम आगे बढ़ाया

भारत एससीओ में पर्यवेक्षक देश था। भारत ने सितंबर 2014 में एससीओ की सदस्यता के लिए आवेदन किया था। रूस भारत को स्थायी सदस्य के तौर पर जुड़ने के लिए प्रेरित करता रहा। वहीं चीन ने पाकिस्तान की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया। रूस के उफ़ा में आयोजित सम्मेलन में 2015 में भारत और पाकिस्तान को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की पूर्ण सदस्यता मिली। एससीओ में चार देश हैं जिन्हें ऑब्जर्वर का दर्जा प्राप्त है। ये हैं: इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान, द रिपब्लिक ऑफ बेलारूस, द इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान और मंगोलिया। इसके छह डायलॉग पार्टनर भी हैं: अजरबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, नेपाल, तुर्की और श्रीलंका। ईरान पहले तक ऑब्ज़र्वर देशों में शामिल था। लेकिन 2021 में ब्लॉक के स्थायी सदस्यों द्वारा उसे अनुमोदित किया गया। 

अमेरिका के खिलाफ बना था गठबंधन

2001 में गठित इस संगठन को शुरुआत में मध्य एशिया में अमेरिकी प्रभाव के चैलेंज देने के तौर पर देखा गया था। इस ग्रुप में अलग-अलग प्राथमिकताओं वाला देश शामिल है। इस ग्रुप के सादस्य ईरान और बेलारूस यूरोपीय देशों के प्रतिबंध का सामना कर रहे हैं। पाकिस्तान सैन्य और आर्थिक सहायता के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर है। यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस को पश्चिमी देशों और खासकर अमेरिका से अलगाव का सामना करना पड़ रहा है। इस सब के बीच भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जिसने अधिक स्वतंत्र रुख अपनाया हुआ है। एससीओ के साथ जुड़ते हुए भी भारत अमेरिका और क्वाड में अपने सहयोगियों के साथ संबंध बनाए हुए है।

भारत के लिए क्या हैं एसीसीओ समिट के मायने

एससीओ आमतौर पर सिक्योरिटी, काउंटर-टेररिज्म, ट्रेड और एनर्जी को ऑपरेशन पर फोकस करता है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत रूसी तेल का एक महत्वपूर्ण खरीदार बन गया है, जिससे अमेरिका साथ तनाव पैदा हो गया है। एससीओ का सदस्य होने के बाद भी कुछ ऐसे विषय हैं, जिस पर भारत खुलकर चीन और रूस के साथ खड़ा नहीं हो सकता है। 

इसे भी पढ़ें: Revival of Troika Chapter 3 | भारत, रूस, चीन की तिकड़ी कितनी ताकतवर| Teh Tak