आज जब देश पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 109वीं जयंती मना रहा है, तो यह केवल एक औपचारिक श्रद्धांजलि का अवसर नहीं, बल्कि उनके विचारों और जीवन-दर्शन पर चलने का मौका भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें नमन करते हुए एकदम सही कहा है कि राष्ट्रवाद और गरीबों के कल्याण के उनके विचार आज भी भारत के विकास पथ को दिशा दे रहे हैं। यह बात सतही प्रशंसा नहीं, बल्कि एक सच्चाई है जिसे भारतीय राजनीति और समाज में बार-बार अनुभव किया गया है।
देखा जाये तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय का सबसे बड़ा योगदान भारतीय चिंतन को ‘एकात्म मानववाद’ जैसा मार्गदर्शक दर्शन देना रहा। पश्चिम से आयातित पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच उन्होंने भारतीय समाज की आत्मा से जुड़ा तीसरा रास्ता सुझाया। उनका मानना था कि मनुष्य न केवल आर्थिक प्राणी है और न ही केवल सामाजिक या आध्यात्मिक सत्ता; बल्कि यह सब मिलकर उसकी पूर्णता गढ़ते हैं। इसी सोच से जन्मा था उनका ‘अंत्योदय’ का सिद्धांत यानि सबसे आख़िरी पायदान पर खड़े व्यक्ति का उत्थान ही वास्तविक विकास है।
आज प्रधानमंत्री मोदी भी जब ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ की बात करते हैं, तो उसमें दीनदयाल जी के अंत्योदय की झलक साफ़ मिलती है। मोदी ने उत्तर प्रदेश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रदर्शनी-2025 के मंच से इस बात पर ज़ोर दिया कि अंत्योदय ही सामाजिक न्याय की असली कुंजी है। दरअसल, यह दर्शन भारत के विकास मॉडल को पश्चिमी अवधारणाओं से अलग और अद्वितीय बनाता है।
हम आपको यह भी बता दें कि दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के अवसर पर भारतीय जनता पार्टी ने देशभर में विविध कार्यक्रम आयोजित किए। दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। इन आयोजनों का स्वरूप केवल औपचारिक न होकर सेवा और जनसंपर्क पर आधारित रहा। पार्टी इन दिनों ‘सेवा पखवाड़ा’ मना रही है, जिसके अंतर्गत स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने, गरीबों की सहायता करने और स्वच्छता अभियान चलाने जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। स्वयं भाजपा अध्यक्ष ने राजधानी में स्वच्छता अभियान में भाग लेकर इस अभियान की प्रासंगिकता को रेखांकित किया।
विशेष रूप से स्वच्छता अभियान का संबंध भी दीनदयाल जी की विचारधारा से जोड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा था कि समाज का उत्थान केवल नीतिगत घोषणाओं से नहीं, बल्कि हर नागरिक की सक्रिय भागीदारी से संभव है। स्वच्छ भारत अभियान इसी भाव को जीता है— जहां नागरिक स्वयं जिम्मेदारी लेकर समाज और राष्ट्र की सेवा करते हैं।
देखा जाये तो आज की राजनीति में दीनदयाल उपाध्याय की प्रासंगिकता इसलिए और बढ़ जाती है क्योंकि वह सत्ता प्राप्ति की बजाय विचार और मूल्य-आधारित राजनीति के पक्षधर थे। उनका मानना था कि भारत की राजनीति केवल चुनावी गणित तक सीमित न रहकर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, आत्मनिर्भरता और सामाजिक न्याय की धुरी पर टिकी होनी चाहिए। यह दृष्टिकोण आज भी उतना ही आवश्यक है, जब दुनिया तेज़ी से बदल रही है और भारत अपनी स्वतंत्र पहचान के साथ वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है।
उनके जीवन की सरलता, संगठन के प्रति समर्पण और राष्ट्र के लिए त्याग नई पीढ़ी के लिए भी प्रेरणा है। वह मानते थे कि सच्चा राष्ट्रवाद किसी संकीर्णता में नहीं, बल्कि हर व्यक्ति को जोड़ने और सबको साथ लेकर चलने में है। यही वह विचार है जो आज की राजनीति को दिशा देने के साथ-साथ समाज में समरसता और एकता की भावना को सुदृढ़ कर सकता है। इसलिए, पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती केवल स्मरण का दिन नहीं, बल्कि आत्ममंथन का भी अवसर है। क्या हम उनके अंत्योदय के विचार को सच में जीवन में उतार पा रहे हैं? क्या विकास की दौड़ में सबसे निचले पायदान का व्यक्ति वास्तव में लाभान्वित हो रहा है? ये सवाल आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके जीवनकाल में थे।
बहरहाल, एकात्म मानववाद का दर्शन हमें याद दिलाता है कि विकास केवल आर्थिक सूचकांकों की चमक नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग के जीवन में आई वास्तविक खुशहाली से मापा जाना चाहिए। यही दीनदयाल उपाध्याय का संदेश था और यही भारत की विकास यात्रा का स्थायी मार्गदर्शन भी होना चाहिए।
-नीरज कुमार दुबे