मार्निंग कंसल्ट की वैश्विक मंच पर लोकप्रियता के ताजातरीन सर्वे में एक बार फिर 75 वर्षीय नरेन्द्र दामोदर दास मोदी की लोकप्रियता या यों कहें कि एप्रूवल रेट 75 प्रतिशत रही है। यह विश्व के अन्य नेताओं की तुलना में कहीं अधिक है तो दूसरी और पिछले दिनों प्यू रिसर्च की रिपोर्ट में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर भरोसा जताने वाले केवल 40 प्रतिशत लोग ही रह गए और इनमें भी केवल मात्र 15 फीसदी ही ऐसे लोग है जो पूरी तरह से ट्रंप पर भरोसा कर रहे हैं। चुनाव के समय 81 प्रतिषत भरोसे लायक नेता पर 40 प्रतिशत अमेरिकीयों का भरोसा और इनमें से भी 25 प्रतिशत का थोड़ा भरोसा तो केवल 15 प्रतिशत अमेरिकी ही ट्रंप पर पूरी तरह से भरोसा जता रहे हैं। 59 प्रतिशत अमेरिकीयों को तो ट्रंप पर अब बिलकुल भी भरोसा नहीं रहा है। एक बात और साफ हो जानी चाहिए कि मार्निंग कंसल्ट के इस सर्वें में दूसरे पायदान पर रहने वाले दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति लीजे म्युंग को 59 प्रतिशत और अर्जेटिना के राष्ट्रपति जेवियर मिलेई को 57 प्रतिशत का एप्रूवल मिला है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एप्रूवल देश में ही नहीं विदेशों में भी एक दंबग नेता और साफ सुथरी छवि के कारण है। इसके साथ ही कूटनीति, तकनीक, रक्षा, अर्थव्यवस्था और किसी के सामने नई झुकने की जीद ने और अधिक लोकप्रियता बढ़ा दी है। सबसे खासबात यह है कि विरोधी चाहे कितना भी शोर मचाये इसमें कोई दो राय नहीं और इससे भी बढ़कर कि आपरेशन सिन्दुर को लेकर देशवासियों और विदेशियों किसी को भी नरेन्द्र मोदी और सेना के कथन पर किसी तरह का कोई संदेह नहीं है। देर सबेर और गाहे बेगाहे पाकिस्तान तक ऑपरेशन सिन्दुर की टीस को व्यक्त कर ही देता है। ऐसे में विरोधियों द्वारा ऑपरेशन सिन्दुर पर जिस तरह से नकारात्मकता व्यक्त की जाती हैं वह कहीं ना कहीं मोदी और मोदी सरकार की विश्वसनीयता को और अधिक बढ़ाने में ही सहायक है। यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि नरेन्द्र मोदी अपनी जीवन की अमृतवेला मना रहे है। 75 साल के नरेन्द्र मोदी जिस अदम्य साहस और दृढ़ता का परिचय दे रहे हैं और खासतौर से जिस तरह से अमेरिका और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ के आगे झुकने से पूरी तरह नकार कर लगता है अब तो ट्रंप को ही झुकने को मजबूर होने जैसे हालात कर दिए हैं। ट्रंप शायद भूल गए कि यह आज का और मोदी का हिन्दुस्तान है।
आज मोदी के भारत को दुनिया का कोई देश या दुनिया का कोई नेता हल्के में नहीं ले सकता। इसका कारण भी है भारत आज आंख में आंख डाल कर बात करने की हैसियत रखता है। ट्रंप की बौखलाहट से इसे आसानी से समझा जा सकता है। दरअसल आज के दौर में वैश्विक नेता के रुप में बोल्ड होने, एग्रेसिव होने, कठोर व त्वरित निर्णय लेने वाले नेता लोगों की पसंद बनते जा रहे हैं। अच्छे बुरे परिणाम की चिंता कर निर्णय की उहापोह में फंसे नेता आज के लोगों की पसंद हो ही नहीं सकते। इसका बड़ा कारण दुनिया में वैश्विक संकटों का दौर चलना है। पर यह भी समझ लेना होगा कि दुनिया के लोग ट्रंप जैसे अंहकारी, तुगलकी निर्णय करने वाले, गली मौहल्ले के दादाओं जैसे व्यवहार करने वाले और अपने नासमझी भरे निर्णयों और फिर उन निर्णयों पर मुहं की खाने वाले नेताओ को भी पसंद नहीं करते। संकटों के दौर में लोगों का यह मानना रहता है कि हमें आलोचना प्रत्यालोचना या आगा पीछा सोच कर निर्णय लेने वाला नहीं अपितु त्वरित और कठोर निर्णय लेने वाला नेता चाहिए। और इसमें कोई दो राय नहीं कि नरेन्द्र मोदी इस पर खरे उतरे हैं।
जहां तक देश और देश में मोदी विरोधियों की बात है तो यह भी अब तक साफ हो गया है कि मोदी के विरोध में जो जो नारे गढ़े गए या अभियानों में जो मोदी विरोध की आवाज बने वह सब विरोधियों पर ही भारी पड़े है। इसकी शुरुआत 2007 में गोदरा कांड के बाद चुनाव के बाद का नारा मौत का सौदागर हो या आज चौकीदार चोर है सभी नारे उल्टे पड़े हैं और देशवासियों ने इन्हें सिरे से नकारा है। चौकीदार चोर है का उत्तर देते हुए स्वयं मोदी ने इसका उपयोग मैं भी चौकीदार का जबावी नारा देकर उत्तर दिया। नारों की यह एक लंबी फेहरिस्त है जिससे देशवासी अवगत है। अब आज वोट चोर गद्दी छोड़ का नारा लगाकर या संविधान बचाओं का नारा देकर मोदी विरोध में हवा बनाने व बिहार आदि के चुनाव जीतने का सपना पाल रहे हैं पर कहीं पहले की तरह सेल्फ गोल ही साबित ना हो जाये इससे नकारा नहीं जा सकता। राममंदिर, कश्मीर में धारा 370 हटाने, कश्मीर युवाओं को मुख्यधारा में लाने, ऑपरेशन सिन्दुर, एयर स्ट्राइक, जनधन खाते, डिजिटल भुगतान, जन औषधी केन्द्र, आयुष्मान योजना, गिग इकोनोमी, रक्षा आयुधों का देश में ही उत्पादन व निर्यात, एमएसएमई सेक्टर, स्टार्टअप, यूनिकोर्न, विदेशी निवेश, सडक परिवहन विकास, आदि आदि सभी क्षेत्रों में विकास का जो दौर दिखाई दे रहा है यह ठोस और त्वरित योजनावद्ध निर्णयों का ही परिणाम है। यह तो केवल बानगी मात्र है। आज आतंकवादी गतिविधियां लगभग समाप्त हो गई, नक्सलवादी गतिविधियां दिखाई नहीं दे रही हैं, सांप्रदायिकता पर रोक लगी है, पत्थरबाजी नहीं दिखती, सपाट यातायात दिखाई दे रहा है यह और इसके अलावा भी बहुत कुछ सामने हैं।
एक बात साफ हो जानी चाहिए कि विश्वसनीयता एक दिन में या एक काम से नहीं बनती। इसके साथ ही केवल व्यक्ति विशेष को निशाना बनाने से भी कोई खास हासिल नहीं हो सकता। अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहने की आदत डाले तो शायद आमजनता में अधिक प्रभावी तरीके से अपनी बात रख कर लोगों को अपने पक्ष में किया जा सकता है। जब राष्ट्रीय अस्मिता पर और सेना के पराक्रम को प्रश्नों में उभारा जाता है तो लाख कमियों के बावजूद सच्चा राष्ट्रप्रेमी नागरिक इसे स्वीकार नहीं पाता। यही कारण है कि मोदी जी को जितना निशाना बनाया जाता है मोदी उस निशाने से और अधिक निखार के साथ उभरते आ रहे हैं। आज जब ट्रंप भारत की अर्थ व्यवस्था को नकारते हैं तो यह देशवासियों के गले उतरने वाली बात नहीं होती। इसी तरह से जब ऑपरेशन सिन्दुर पर प्रश्न चिन्ह उठाया जाता है तो आमजन इसे देश के खिलाफ आवाज और सेना के असम्मान के रुप में देखता है। जब संविधान की प्रति उठाकर संविधान बचाओ की बात करते हैं तो उनकी सरकार के समय ही संसद से पास अधिसूचना को सार्वजनिक रुप से फाड़ने को याद करते हैं। जीएसटी को लेकर प्रश्न उठाते हैं तो आज इससे मिल रही राहत को जनता कैसे नकार सकती है। इसलिए सकारात्मक विरोध के साथ आगे आकर ही मोदी और मोदी की नीतियों का पार पा सकते हैं।
संसद और विधानसभाओं में गतिरोध का दौर चलता है, खुली चर्चाएं हो नहीं पाती, सत्र सालों साल छोटे होते जा रहे हैं। आधी आधी रात तक होने वाली चर्चाएं अब बीते दिनों की बात हो गई है तो ऐसे में केवल आरोप प्रत्यारोप के भरोसे मोदी पर जीत की बात करना बेमानी होगा। दूसरी बात यह कि हम बड़ी लकीर खींच कर ही दूसरी लकीर को छोटी बता सकते हैं हो इसका उल्टा रहा है और प्रयास लकीर से ही छेड़ छोड़ कर छोटी दिखाने के प्रयास किये जाते हैं तो यह गले नहीं उतरती। यह सब समझने वाली बात हो गई है। मोदी जी की अमृत वेला में शतायु होने की कामना के साथ आज देश उनकी और देख रहा है। ऐसे में मोदी जी के नेतृत्व और निवृति की बात करना पूरी तरह से बेमानी होगी। देश को अभी मोदी जी और उनके जैसे नेतृत्व की आवश्यकता है जिससे आजादी के शताब्दी वर्ष तक देश विश्व की सबसे बड़ी ताकत बन कर उभर सके।
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा