BRICS की सदस्यता के लिए आवेदन करने के बाद Palestine बोला- भारत के दरवाजे हमारे लिये 24 घंटे खुले रहते हैं

एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम के तहत फ़िलस्तीन ने BRICS समूह में सदस्यता के लिए आवेदन प्रस्तुत किया है। यह कदम उस समय सामने आया है जब लगातार कई देश फ़िलस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्रदान कर रहे हैं। रूस में फ़िलस्तीन के राजदूत अब्देल हाफ़िज़ नोफ़ल ने पुष्टि की है कि आवेदन दायर किया जा चुका है और अब उत्तर की प्रतीक्षा की जा रही है। उनका कहना है कि जब तक परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं होतीं, फ़िलस्तीन अतिथि सदस्य के रूप में भागीदारी कर सकता है।हम आपको बता दें कि BRICS, जो मूलतः ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका की सदस्यता के साथ शुरू हुआ था, वह हाल के वर्षों में तेज़ी से विस्तारित हुआ है। वर्ष 2024 में मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात इस मंच से जुड़े, वहीं 2025 में इंडोनेशिया इसका हिस्सा बना। चीन ने इस विस्तार का स्वागत करते हुए संकेत दिया है कि "समान विचारधारा वाले साझेदार" BRICS के लिए उपयुक्त हैं। बीजिंग का स्पष्ट संदेश है कि यह संगठन ग्लोबल साउथ के देशों को सशक्त आवाज़ देने और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था स्थापित करने का मंच बन चुका है।इसे भी पढ़ें: वैश्विक कूटनीति के 'मोदी मॉडल' से मचे अंतरराष्ट्रीय धमाल के मायनेदेखा जाये तो फ़िलस्तीन की इस पहल का समय बेहद महत्वपूर्ण है। एक ओर पश्चिमी देशों की स्थिति वर्षों से इज़राइल-समर्थक रही है, वहीं हाल के सप्ताहों में कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, पुर्तगाल और ब्रिटेन जैसे देशों ने फ़िलस्तीन को औपचारिक मान्यता प्रदान कर दी है। यह इस बात का संकेत है कि पश्चिमी राजनीतिक परिदृश्य में भी बदलाव आ रहा है। फ़िलस्तीन यदि BRICS से जुड़ता है तो यह न केवल प्रतीकात्मक होगा बल्कि उसकी कूटनीतिक स्थिति को भी मज़बूती देगा।हम आपको बता दें कि भारत ने ऐतिहासिक रूप से फ़िलस्तीन के आत्मनिर्णय और स्वतंत्र राष्ट्र की आकांक्षा का समर्थन किया है। महात्मा गांधी से लेकर जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी तक की नीतियों में फ़िलस्तीन के प्रति सहानुभूति और समर्थन स्पष्ट रहा। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में भी फ़िलस्तीन के पक्ष में मतदान किया है और उसकी विकासात्मक सहायता में योगदान दिया है। हालांकि, पिछले दो दशकों में भारत-इज़राइल संबंधों में उल्लेखनीय निकटता आई है। रक्षा, प्रौद्योगिकी और कृषि जैसे क्षेत्रों में सहयोग ने नई दिशा दी है। इसके बावजूद भारत ने संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखा है— एक ओर इज़राइल के साथ रणनीतिक साझेदारी, दूसरी ओर फ़िलस्तीन के राष्ट्र की मान्यता और सहायता।हम आपको बता दें कि BRICS का उद्देश्य वैश्विक वित्तीय व राजनीतिक संस्थाओं में सुधार लाना और विकासशील देशों को मज़बूत आवाज़ देना है। यदि फ़िलस्तीन इस संगठन का हिस्सा बनता है तो भारत के सामने संतुलन साधने की चुनौती होगी। एक ओर भारत को ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं और ऐतिहासिक रुख का समर्थन करना होगा, वहीं दूसरी ओर इज़राइल के साथ उसके घनिष्ठ संबंधों को भी ध्यान में रखना पड़ेगा। भारत के लिए यह अवसर भी है कि वह मध्य-पूर्व में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने वाला मध्यस्थ बनकर उभरे। भारत "रणनीतिक स्वायत्तता" की अपनी नीति के तहत यह साबित कर सकता है कि वह पश्चिम और पूर्व के बीच संतुलन साधने में सक्षम है।देखा जाये तो फ़िलस्तीन का BRICS में आवेदन केवल एक कूटनीतिक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक नए वैश्विक समीकरण का संकेत है। BRICS अब केवल आर्थिक सहयोग का मंच नहीं रहा, बल्कि यह विश्व राजनीति में शक्ति संतुलन का प्रतीक बन चुका है। भारत के लिए यह समय है कि वह फ़िलस्तीन की आकांक्षाओं का समर्थन करते हुए शांति, न्याय और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के अपने संकल्प को मज़बूती से रेखांकित करे।हम आपको यह भी बता दें कि भारत और फ़िलस्तीन के बीच संबंध ऐतिहासिक रूप से भावनात्मक और कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहे हैं। भारत में फ़िलिस्तीनी राजदूत के बयान ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि नई दिल्ली और रामल्लाह के बीच संबंध विश्वास और सहयोग की मज़बूत नींव पर टिके हुए हैं। फिलस्तीनी राजदूत ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत फ़िलिस्तीनी जनता के लिए ठोस और महत्त्वपूर्ण काम कर रहा है। उन्होंने कहा है कि भारत फिलिस्तीन में कई विकास परियोजनाओं में कार्यरत है, जिनमें एक मिलियन डॉलर का अस्पताल भी शामिल है। इसके अलावा भारत संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए (UNRWA) का भी समर्थन करता है, जो फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों की देखभाल करती है।फ़िलिस्तीनी राजदूत ने भारत के प्रति गहरी संतुष्टि व्यक्त करते हुए कहा कि यदि कभी किसी मुद्दे पर चर्चा की आवश्यकता होती है, तो भारतीय विदेश मंत्रालय “24 घंटे खुला रहता है।” यह बयान केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं, बल्कि गहरे भरोसे और सहयोग की गवाही है। जब उनसे पूछा गया कि भारत के अन्य देशों, विशेषकर इज़राइल के साथ बढ़ते संबंधों का क्या असर फ़िलिस्तीन पर पड़ता है, तो उन्होंने स्पष्ट कहा— “हम भारत को वृहद स्तर पर देखते हैं।” संयुक्त राष्ट्र, सुरक्षा परिषद, महासभा, मानवाधिकार परिषद और ज़मीन पर लागू की जा रही परियोजनाओं में भारत की सक्रियता, भारत-फ़िलिस्तीन संबंधों का वास्तविक पैमाना है।इस बयान से यह साफ़ है कि फ़िलिस्तीन भारत की नीति में कोई विचलन नहीं मानता। राजदूत ने स्वीकार किया कि भारत अपने द्विपक्षीय संबंध किसी भी देश के साथ बनाए रख सकता है और फ़िलिस्तीन इसमें हस्तक्षेप नहीं करता। हम आपको बता दें कि भारत ने हमेशा फ़िलिस्तीन के आत्मनिर्णय और राष्ट्र निर्माण के अधिकार का समर्थन किया है। फ़िलिस्तीनी राजदूत के शब्द इस नीति की सफलता को दर्शाते हैं। भारत ने एक तरफ़ फ़िलिस्तीन को आर्थिक और मानवीय सहायता दी है, तो दूसरी तरफ़ पश्चिम एशिया में अपने रणनीतिक हितों का भी ध्यान रखा है।बहरहाल, फ़िलिस्तीनी राजदूत का यह बयान भारत की कूटनीतिक साख को और मज़बूती देता है। यह दर्शाता है कि नई दिल्ली को मध्य-पूर्व में एक 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Sep 29, 2025 - 12:18
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BRICS की सदस्यता के लिए आवेदन करने के बाद Palestine बोला- भारत के दरवाजे हमारे लिये 24 घंटे खुले रहते हैं
एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम के तहत फ़िलस्तीन ने BRICS समूह में सदस्यता के लिए आवेदन प्रस्तुत किया है। यह कदम उस समय सामने आया है जब लगातार कई देश फ़िलस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्रदान कर रहे हैं। रूस में फ़िलस्तीन के राजदूत अब्देल हाफ़िज़ नोफ़ल ने पुष्टि की है कि आवेदन दायर किया जा चुका है और अब उत्तर की प्रतीक्षा की जा रही है। उनका कहना है कि जब तक परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं होतीं, फ़िलस्तीन अतिथि सदस्य के रूप में भागीदारी कर सकता है।

हम आपको बता दें कि BRICS, जो मूलतः ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका की सदस्यता के साथ शुरू हुआ था, वह हाल के वर्षों में तेज़ी से विस्तारित हुआ है। वर्ष 2024 में मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात इस मंच से जुड़े, वहीं 2025 में इंडोनेशिया इसका हिस्सा बना। चीन ने इस विस्तार का स्वागत करते हुए संकेत दिया है कि "समान विचारधारा वाले साझेदार" BRICS के लिए उपयुक्त हैं। बीजिंग का स्पष्ट संदेश है कि यह संगठन ग्लोबल साउथ के देशों को सशक्त आवाज़ देने और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था स्थापित करने का मंच बन चुका है।

इसे भी पढ़ें: वैश्विक कूटनीति के 'मोदी मॉडल' से मचे अंतरराष्ट्रीय धमाल के मायने

देखा जाये तो फ़िलस्तीन की इस पहल का समय बेहद महत्वपूर्ण है। एक ओर पश्चिमी देशों की स्थिति वर्षों से इज़राइल-समर्थक रही है, वहीं हाल के सप्ताहों में कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, पुर्तगाल और ब्रिटेन जैसे देशों ने फ़िलस्तीन को औपचारिक मान्यता प्रदान कर दी है। यह इस बात का संकेत है कि पश्चिमी राजनीतिक परिदृश्य में भी बदलाव आ रहा है। फ़िलस्तीन यदि BRICS से जुड़ता है तो यह न केवल प्रतीकात्मक होगा बल्कि उसकी कूटनीतिक स्थिति को भी मज़बूती देगा।

हम आपको बता दें कि भारत ने ऐतिहासिक रूप से फ़िलस्तीन के आत्मनिर्णय और स्वतंत्र राष्ट्र की आकांक्षा का समर्थन किया है। महात्मा गांधी से लेकर जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी तक की नीतियों में फ़िलस्तीन के प्रति सहानुभूति और समर्थन स्पष्ट रहा। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में भी फ़िलस्तीन के पक्ष में मतदान किया है और उसकी विकासात्मक सहायता में योगदान दिया है। हालांकि, पिछले दो दशकों में भारत-इज़राइल संबंधों में उल्लेखनीय निकटता आई है। रक्षा, प्रौद्योगिकी और कृषि जैसे क्षेत्रों में सहयोग ने नई दिशा दी है। इसके बावजूद भारत ने संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखा है— एक ओर इज़राइल के साथ रणनीतिक साझेदारी, दूसरी ओर फ़िलस्तीन के राष्ट्र की मान्यता और सहायता।

हम आपको बता दें कि BRICS का उद्देश्य वैश्विक वित्तीय व राजनीतिक संस्थाओं में सुधार लाना और विकासशील देशों को मज़बूत आवाज़ देना है। यदि फ़िलस्तीन इस संगठन का हिस्सा बनता है तो भारत के सामने संतुलन साधने की चुनौती होगी। एक ओर भारत को ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं और ऐतिहासिक रुख का समर्थन करना होगा, वहीं दूसरी ओर इज़राइल के साथ उसके घनिष्ठ संबंधों को भी ध्यान में रखना पड़ेगा। भारत के लिए यह अवसर भी है कि वह मध्य-पूर्व में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने वाला मध्यस्थ बनकर उभरे। भारत "रणनीतिक स्वायत्तता" की अपनी नीति के तहत यह साबित कर सकता है कि वह पश्चिम और पूर्व के बीच संतुलन साधने में सक्षम है।

देखा जाये तो फ़िलस्तीन का BRICS में आवेदन केवल एक कूटनीतिक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक नए वैश्विक समीकरण का संकेत है। BRICS अब केवल आर्थिक सहयोग का मंच नहीं रहा, बल्कि यह विश्व राजनीति में शक्ति संतुलन का प्रतीक बन चुका है। भारत के लिए यह समय है कि वह फ़िलस्तीन की आकांक्षाओं का समर्थन करते हुए शांति, न्याय और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के अपने संकल्प को मज़बूती से रेखांकित करे।

हम आपको यह भी बता दें कि भारत और फ़िलस्तीन के बीच संबंध ऐतिहासिक रूप से भावनात्मक और कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहे हैं। भारत में फ़िलिस्तीनी राजदूत के बयान ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि नई दिल्ली और रामल्लाह के बीच संबंध विश्वास और सहयोग की मज़बूत नींव पर टिके हुए हैं। फिलस्तीनी राजदूत ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत फ़िलिस्तीनी जनता के लिए ठोस और महत्त्वपूर्ण काम कर रहा है। उन्होंने कहा है कि भारत फिलिस्तीन में कई विकास परियोजनाओं में कार्यरत है, जिनमें एक मिलियन डॉलर का अस्पताल भी शामिल है। इसके अलावा भारत संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए (UNRWA) का भी समर्थन करता है, जो फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों की देखभाल करती है।

फ़िलिस्तीनी राजदूत ने भारत के प्रति गहरी संतुष्टि व्यक्त करते हुए कहा कि यदि कभी किसी मुद्दे पर चर्चा की आवश्यकता होती है, तो भारतीय विदेश मंत्रालय “24 घंटे खुला रहता है।” यह बयान केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं, बल्कि गहरे भरोसे और सहयोग की गवाही है। जब उनसे पूछा गया कि भारत के अन्य देशों, विशेषकर इज़राइल के साथ बढ़ते संबंधों का क्या असर फ़िलिस्तीन पर पड़ता है, तो उन्होंने स्पष्ट कहा— “हम भारत को वृहद स्तर पर देखते हैं।” संयुक्त राष्ट्र, सुरक्षा परिषद, महासभा, मानवाधिकार परिषद और ज़मीन पर लागू की जा रही परियोजनाओं में भारत की सक्रियता, भारत-फ़िलिस्तीन संबंधों का वास्तविक पैमाना है।

इस बयान से यह साफ़ है कि फ़िलिस्तीन भारत की नीति में कोई विचलन नहीं मानता। राजदूत ने स्वीकार किया कि भारत अपने द्विपक्षीय संबंध किसी भी देश के साथ बनाए रख सकता है और फ़िलिस्तीन इसमें हस्तक्षेप नहीं करता। हम आपको बता दें कि भारत ने हमेशा फ़िलिस्तीन के आत्मनिर्णय और राष्ट्र निर्माण के अधिकार का समर्थन किया है। फ़िलिस्तीनी राजदूत के शब्द इस नीति की सफलता को दर्शाते हैं। भारत ने एक तरफ़ फ़िलिस्तीन को आर्थिक और मानवीय सहायता दी है, तो दूसरी तरफ़ पश्चिम एशिया में अपने रणनीतिक हितों का भी ध्यान रखा है।

बहरहाल, फ़िलिस्तीनी राजदूत का यह बयान भारत की कूटनीतिक साख को और मज़बूती देता है। यह दर्शाता है कि नई दिल्ली को मध्य-पूर्व में एक विश्वसनीय साझेदार माना जाता है। भारत के लिए यह अवसर है कि वह न केवल विकास परियोजनाओं के माध्यम से बल्कि शांति स्थापना और संवाद की प्रक्रिया में भी केंद्रीय भूमिका निभाए। भारत-फ़िलिस्तीन संबंध इस बात का उदाहरण हैं कि वैश्विक राजनीति में संतुलन और पारदर्शिता से दीर्घकालिक विश्वास कायम किया जा सकता है।