लखनऊ हाईकोर्ट का फैसला-फरार अभियुक्त पर पुलिस नहीं कर सकती:IPC 174A में सीधे FIR, आरोप पत्र दाखिल करना गलत
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 82 के तहत फरारी की उद्घोषणा के बाद भी, पुलिस हाजिर न होने वाले अभियुक्त के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 174ए के तहत न तो सीधे एफआईआर दर्ज कर सकती है और न ही विवेचना कर आरोप पत्र दाखिल कर सकती है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में संबंधित अधिकारी केवल न्यायालय में परिवाद (शिकायत) दाखिल कर सकता है। यह निर्णय न्यायमूर्ति राजीव सिंह की एकल पीठ ने बजरंग दत्तू तंवर और एक अन्य की याचिका पर पारित किया है। यह मामला अयोध्या जनपद से संबंधित था। याचियों की ओर से अधिवक्ता चंदन श्रीवास्तव ने न्यायालय को बताया कि आपराधिक न्यास भंग के एक मामले में पुलिस ने विवेचना के दौरान याचियों के विरुद्ध गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) और धारा 82 के तहत फरारी की उद्घोषणा का आदेश स्थानीय न्यायालय से प्राप्त कर लिया था। अधिवक्ता ने तर्क दिया कि विवेचना के दौरान ऐसे आदेश जारी नहीं किए जा सकते थे। इसके बाद पुलिस ने याचियों को गैर-हाजिर दिखाते हुए उनके विरुद्ध आईपीसी की धारा 174ए के तहत एफआईआर दर्ज कर ली और विवेचना के उपरांत आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया। याचियों ने दलील दी कि सीआरपीसी की धारा 195 के तहत ऐसे मामलों में केवल परिवाद ही दाखिल किया जा सकता था। सुनवाई के दौरान न्यायालय को यह भी बताया गया कि आपराधिक न्यास भंग का मूल मुकदमा भी सुलह के माध्यम से समाप्त हो चुका है। न्यायालय ने अपने विस्तृत निर्णय में कहा कि संबंधित प्रावधानों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि इस मामले में आरोप पत्र दाखिल किया जाना कानूनी रूप से वैध नहीं था। न्यायालय ने आरोप पत्र और अधीनस्थ अदालत के तलबी आदेश को रद्द कर दिया है।



