केंद्र बोला- JK के 99.9% लोग सरकार के साथ:सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के दर्जे पर 4 हफ्ते में जवाब मांगा; 6 साल पहले हटी थी धारा-370
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जम्मू-कश्मीर को दोबारा राज्य का दर्जा देने से जुड़ी याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए 4 हफ्तों का समय दिया है। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के बीच बातचीत चल रही है। उन्होंने कहा, कुछ लोग झूठी बातें फैला रहे हैं और जम्मू-कश्मीर की भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं। राज्य के हालात सामान्य हैं, विकास हो रहा है और 99.9% लोग सरकार के साथ हैं। मेहता ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में कई बातें हैं जिन पर विचार करने की जरूरत है। इससे पहले 14 अगस्त को हुई सुनवाई में कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से आठ हफ्तों के अंदर लिखित जवाब मांगा था। दरअसल, 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने के बाद केंद्र सरकार ने केंद्र शासित प्रदेश बनाया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में केंद्र के फैसले को चुनौती दी गई। दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य से आर्टिकल 370 हटाने और विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करने को सही माना था। कोर्टरूम लाइव- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (केंद्र सरकार की ओर से)- पिछले साल शांतिपूर्ण चुनाव हुए हैं, लेकिन हाल की सुरक्षा चिंताओं और पहलगाम आतंकी हमले को देखते हुए केंद्र को और समय चाहिए। राज्य का दर्जा बहाल करने को लेकर केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के बीच बातचीत चल रही है। वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन (याचिकाकर्ता की ओर से)- पहलगाम हमला केंद्र के शासन में हुआ। अगर सब कुछ ठीक है, तो राज्य का दर्जा क्यों नहीं बहाल किया गया?” सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता- यह हमारी सरकार है, किसी और की नहीं। वरिष्ठ वकील मानेका गुरुस्वामी (याचिकाकर्ता की ओर से)- किसी राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में बदलना संघीय ढांचे के खिलाफ है। अगर यह अनुमति दी गई तो भविष्य में किसी भी राज्य को यूटी बनाया जा सकता है।”
वरिष्ठ वकील एनके भारद्वाज(याचिकाकर्ता की ओर से)- अगर केंद्र चाहे तो कल यूपी या तमिलनाडु को भी यूटी बना सकता है, जो बेहद खतरनाक मिसाल होगी। जम्मू की ओर से वकील- क्षेत्र में विकास कार्य ठप हैं, रोजगार की कमी है और फंड्स नहीं मिल रहे। लोगों को उम्मीद थी कि राज्य बनने के बाद हालात सुधरेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता- जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य हैं, विकास हो रहा है और 99.9% लोग सरकार के साथ हैं। सुप्रीम कोर्ट- मामला अब चार हफ्तों बाद फिर सुना जाएगा। 14 अगस्त: कोर्ट ने कहा- जमीनी हकीकत को देखा जाएगा पिछली सुनवाई में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने अप्रैल में हुए पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र करते हुए कहा था कि जम्मू-कश्मीर की जमीनी हकीकत और पहलगाम जैसी आतंकी घटनाओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता। तब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर का राज्य दर्जा बहाल करेगी। सरकार चुनावों के बाद राज्य का दर्जा बहाल करने के वादे पर काम कर रही है। CJI ने कहा था- कोर्ट सरकार के जवाब के बिना आगे नहीं बढ़ेगी। फैसला लेते समय सुरक्षा हालात और जमीनी स्थिति भी देखी जाएगी, सिर्फ संविधान की बहस पर फैसला नहीं होगा। कोर्ट ने सरकार को 8 हफ्तों में जवाब देने का समय दिया है। सीनियर एडवोकेट शंकर नारायणन ने कहा कि 11 दिसंबर 2023 के फैसले में कोर्ट ने निर्देश दिया था कि जम्मू-कश्मीर में सितंबर 2024 तक चुनाव कराए जाएं और फिर राज्य का दर्जा बहाल किया जाए। लेकिन 21 महीने बीतने के बाद भी कोई प्रगति नहीं हुई है। याचिकाकर्ता बोले- राज्य में हालात सामान्य ये याचिकाएं प्रोफेसर जहूर अहमद भट और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक ने दायर की थीं। उन्होंने दलील दी कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव शांतिपूर्वक हो गए हैं। इससे स्पष्ट है कि राज्य की सुरक्षा व लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं सुचारू रूप से चल रही हैं। लेकिन राज्य का दर्जा वापस न मिलने से वहां निर्वाचित सरकार का महत्व कम रहा है और यह संघीय ढांचे के तानाबाना को भी कमजोर कर रहा है। धारा 370 क्यों हटाई गई थी भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को धारा 370 को हटाने का फैसला लिया। सरकार का तर्क था कि यह कदम राष्ट्रीय एकता, विकास और आतंकवाद पर लगाम के लिए जरूरी था। धारा 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देती थी, जिसके तहत वहां का अपना संविधान और अलग कानून थे। इससे भारत के बाकी हिस्सों के लोग वहां जमीन नहीं खरीद सकते थे और न ही स्थायी नागरिक बन सकते थे। केंद्र सरकार के अनुसार, इस धारा ने राज्य को मुख्यधारा से अलग कर रखा था और विकास बाधित हुआ। गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि यह प्रावधान आतंकवाद को बढ़ावा देता था और कश्मीर घाटी में अलगाववाद की सोच को जन्म देता था। धारा 370 हटाकर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया। पूर्ण राज्य का दर्जा कैसे मिलेगा, 3 पॉइंट्स में समझे सितंबर, 2024ः अनुच्छेद 370 हटने के बाद राज्य में पहला विधानसभा चुनाव हुआ सितंबर 2024 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद राज्य में पहला विधानसभा चुनाव हुआ अनुच्छेद 370 हटने के बाद पिछले महीन राज्य में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे। तीन फेज में हुए चुनाव का रिजल्ट 8 अक्टूबर को आया था। इसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। पार्टी को 42 सीटें मिली थीं। NC की सहयोगी कांग्रेस को 6 और CPI(M) ने एक सीट जीती थी। भाजपा 29 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। वहीं, 2014 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी PDP को सिर्फ 3 सीट मिलीं। पार्टी प्रमुख महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती भी बिजबेहरा सीट से हार गईं। पिछले चुनाव में पार्टी ने 28 सीटें जीती थीं। ------------------------------------------- ये खबर भी पढ़ें... धारा 370 हटने के बाद आतंकी घाटी से जम्मू शिफ्ट हुए, पत्थरबाजी 99% कम; एक भी कश्मीरी पंडित की वापसी नहीं 5 अगस्त 201
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जम्मू-कश्मीर को दोबारा राज्य का दर्जा देने से जुड़ी याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए 4 हफ्तों का समय दिया है। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के बीच बातचीत चल रही है। उन्होंने कहा, कुछ लोग झूठी बातें फैला रहे हैं और जम्मू-कश्मीर की भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं। राज्य के हालात सामान्य हैं, विकास हो रहा है और 99.9% लोग सरकार के साथ हैं। मेहता ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में कई बातें हैं जिन पर विचार करने की जरूरत है। इससे पहले 14 अगस्त को हुई सुनवाई में कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से आठ हफ्तों के अंदर लिखित जवाब मांगा था। दरअसल, 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने के बाद केंद्र सरकार ने केंद्र शासित प्रदेश बनाया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में केंद्र के फैसले को चुनौती दी गई। दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य से आर्टिकल 370 हटाने और विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करने को सही माना था। कोर्टरूम लाइव- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (केंद्र सरकार की ओर से)- पिछले साल शांतिपूर्ण चुनाव हुए हैं, लेकिन हाल की सुरक्षा चिंताओं और पहलगाम आतंकी हमले को देखते हुए केंद्र को और समय चाहिए। राज्य का दर्जा बहाल करने को लेकर केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के बीच बातचीत चल रही है। वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन (याचिकाकर्ता की ओर से)- पहलगाम हमला केंद्र के शासन में हुआ। अगर सब कुछ ठीक है, तो राज्य का दर्जा क्यों नहीं बहाल किया गया?” सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता- यह हमारी सरकार है, किसी और की नहीं। वरिष्ठ वकील मानेका गुरुस्वामी (याचिकाकर्ता की ओर से)- किसी राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में बदलना संघीय ढांचे के खिलाफ है। अगर यह अनुमति दी गई तो भविष्य में किसी भी राज्य को यूटी बनाया जा सकता है।”
वरिष्ठ वकील एनके भारद्वाज(याचिकाकर्ता की ओर से)- अगर केंद्र चाहे तो कल यूपी या तमिलनाडु को भी यूटी बना सकता है, जो बेहद खतरनाक मिसाल होगी। जम्मू की ओर से वकील- क्षेत्र में विकास कार्य ठप हैं, रोजगार की कमी है और फंड्स नहीं मिल रहे। लोगों को उम्मीद थी कि राज्य बनने के बाद हालात सुधरेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता- जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य हैं, विकास हो रहा है और 99.9% लोग सरकार के साथ हैं। सुप्रीम कोर्ट- मामला अब चार हफ्तों बाद फिर सुना जाएगा। 14 अगस्त: कोर्ट ने कहा- जमीनी हकीकत को देखा जाएगा पिछली सुनवाई में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने अप्रैल में हुए पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र करते हुए कहा था कि जम्मू-कश्मीर की जमीनी हकीकत और पहलगाम जैसी आतंकी घटनाओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता। तब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर का राज्य दर्जा बहाल करेगी। सरकार चुनावों के बाद राज्य का दर्जा बहाल करने के वादे पर काम कर रही है। CJI ने कहा था- कोर्ट सरकार के जवाब के बिना आगे नहीं बढ़ेगी। फैसला लेते समय सुरक्षा हालात और जमीनी स्थिति भी देखी जाएगी, सिर्फ संविधान की बहस पर फैसला नहीं होगा। कोर्ट ने सरकार को 8 हफ्तों में जवाब देने का समय दिया है। सीनियर एडवोकेट शंकर नारायणन ने कहा कि 11 दिसंबर 2023 के फैसले में कोर्ट ने निर्देश दिया था कि जम्मू-कश्मीर में सितंबर 2024 तक चुनाव कराए जाएं और फिर राज्य का दर्जा बहाल किया जाए। लेकिन 21 महीने बीतने के बाद भी कोई प्रगति नहीं हुई है। याचिकाकर्ता बोले- राज्य में हालात सामान्य ये याचिकाएं प्रोफेसर जहूर अहमद भट और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक ने दायर की थीं। उन्होंने दलील दी कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव शांतिपूर्वक हो गए हैं। इससे स्पष्ट है कि राज्य की सुरक्षा व लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं सुचारू रूप से चल रही हैं। लेकिन राज्य का दर्जा वापस न मिलने से वहां निर्वाचित सरकार का महत्व कम रहा है और यह संघीय ढांचे के तानाबाना को भी कमजोर कर रहा है। धारा 370 क्यों हटाई गई थी भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को धारा 370 को हटाने का फैसला लिया। सरकार का तर्क था कि यह कदम राष्ट्रीय एकता, विकास और आतंकवाद पर लगाम के लिए जरूरी था। धारा 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देती थी, जिसके तहत वहां का अपना संविधान और अलग कानून थे। इससे भारत के बाकी हिस्सों के लोग वहां जमीन नहीं खरीद सकते थे और न ही स्थायी नागरिक बन सकते थे। केंद्र सरकार के अनुसार, इस धारा ने राज्य को मुख्यधारा से अलग कर रखा था और विकास बाधित हुआ। गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि यह प्रावधान आतंकवाद को बढ़ावा देता था और कश्मीर घाटी में अलगाववाद की सोच को जन्म देता था। धारा 370 हटाकर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया। पूर्ण राज्य का दर्जा कैसे मिलेगा, 3 पॉइंट्स में समझे सितंबर, 2024ः अनुच्छेद 370 हटने के बाद राज्य में पहला विधानसभा चुनाव हुआ सितंबर 2024 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद राज्य में पहला विधानसभा चुनाव हुआ अनुच्छेद 370 हटने के बाद पिछले महीन राज्य में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे। तीन फेज में हुए चुनाव का रिजल्ट 8 अक्टूबर को आया था। इसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। पार्टी को 42 सीटें मिली थीं। NC की सहयोगी कांग्रेस को 6 और CPI(M) ने एक सीट जीती थी। भाजपा 29 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। वहीं, 2014 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी PDP को सिर्फ 3 सीट मिलीं। पार्टी प्रमुख महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती भी बिजबेहरा सीट से हार गईं। पिछले चुनाव में पार्टी ने 28 सीटें जीती थीं। ------------------------------------------- ये खबर भी पढ़ें... धारा 370 हटने के बाद आतंकी घाटी से जम्मू शिफ्ट हुए, पत्थरबाजी 99% कम; एक भी कश्मीरी पंडित की वापसी नहीं 5 अगस्त 2019 को संसद में आर्टिकल 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर का स्पेशल स्टेटस खत्म हो गया था। साथ ही राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया था। सरकार ने दावा किया था कि इस कदम से जम्मू-कश्मीर में शांति और खुशहाली आएगी। पूरी खबर पढ़ें...