BJP में शामिल होंगी लोक गायिका मैथिली ठाकुर:दरभंगा की अलीनगर सीट से लड़ सकती हैं चुनाव; तावड़े ने शेयर की मुलाकात की तस्वीर

लोक गायिका मैथिली ठाकुर बीजेपी जॉइन करने जा रही हैं। बताया जा रहा है कि वो दरभंगा की अलीनगर सीट से चुनाव लड़ सकती हैं। इससे पहले मैथिली ठाकुर ने बिहार प्रभारी विनोद तावड़े और केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय से मुलाकात भी की थी। विनोद तावड़े ने मैथिली से मुलाकात के बाद X पर लिखा- 'साल 1995 में बिहार में लालू राज आने पर जो परिवार बिहार छोड़कर चले गए, उस परिवार की बिटिया सुप्रसिद्ध गायिका मैथिली ठाकुर जी बदलते बिहार की रफ्तार को देखकर फिर से बिहार आना चाहती हैं। आज गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय जी और मैंने उनसे आग्रह किया कि बिहार की जनता के लिए और बिहार के विकास के लिए उनका योगदान बिहार का सामान्य आदमी अपेक्षित करता है और वे उनकी अपेक्षाओं को पूरा करें।' मधुबनी जिले के बेनीपट्टी की रहने वाली मैथिली ठाकुर इसी साल जुलाई में 25 साल की हुई हैं। 2011 में महज 11 साल की रहीं मैथिली जीटीवी के कार्यक्रम सारेगामापा लिटिल चैंप्स से गीत-संगीत के मैदान में छाईं और तब से लगातार फिल्म, भजन और लोक गीतों को गा रही हैं। अब पढ़िए मैथिली ठाकुर की पूरी कहानी... सीधे 5वीं में लिया था एडमिशन भास्कर से कुछ दिन पहले बातचीत में मैथिली ठाकुर मे अपनी कहानी शेयर की थी। उन्होंने बताया था कि, म्यूजिक क्लासेस से पापा को महीने के कुछ 6-7 हजार रुपए मिलते थे। इतने में ही घर का रेंट, राशन और जरूरत की सारी चीजें आती थीं। हम उस समय दिल्ली के नजफगढ़ के एक छोटे से कमरे में रहते थे। हालांकि, मुझे स्कूल न भेजने का पापा का एक और कारण भी था। वो ये कि जब वो दिल्ली आए तो मास्टर्स की डिग्री होने के बावजूद उन्हें काम मिलने में काफी परेशानी हुई। आखिर में संगीत ही उनके काम आया। इसलिए वो चाहते थे कि उनके बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय संगीत को दें और हमारा ध्यान न भटके। आर्थिक तंगी और घर बदलने के कारण 2 बार हुआ 5वीं में एडमिशन मैंने शुरुआती पढ़ाई घर पर ही की है। इसके अलावा पापा जिन बच्चों को म्यूजिक सिखाते थे, उनके पेरेंट्स मुझे बहुत मानते थे, कई बार वे भी मुझे पढ़ाया करते थे। यहां तक कि वे अपने बच्चों की पिछली क्लास की किताबें भी मुझे पढ़ने के लिए दे देते थे। प्रैक्टिस से जब भी समय मिलते मैं घर में उन किताबों से पढ़ती थी। थोड़े बड़े होने पर पापा ने मेरा एडमिशन नगर निगम के स्कूल में करवा दिया। उस समय मेरी उम्र 7-8 वर्ष रही होगी, लेकिन मैं चौथी-पांचवी के मैथ्स सम सॉल्व कर लेती थी। टेस्ट हुआ तो वहां के टीचर्स ने मेरिट देखते हुए मुझे 5वीं क्लास में एडमिशन दे दिया। मैं अपने से बड़ी उम्र के बच्चों के साथ पढ़ने लगी। मगर, थोड़े दिनों के बाद मेरा स्कूल जाना बंद हो गया। एक बार फिर मैं संगीत की दुनिया में खो गई। हालांकि, बच्ची होने की वजह से कई बार एक ही चीज को बार-बार कर के मेरा मन उचट जाता था, लेकिन इस दौरान मम्मी मुझे प्यार करके, डांट कर जैसे भी होता था समझातीं और प्रैक्टिस को लेकर मुझे कोई कोताही न बरतने देतीं। वो हमेशा इस बात का ध्यान रखतीं कि जो भी टास्क मुझे पापा ने दिया है उसे मैं दिन ढलते के साथ पूरा कर लूं। म्यूजिक से मिली प्राइवेट स्कूल में स्कॉलरशिप जब मैं 12-13 साल की हो गई तो पापा ने एक बार फिर मेरा एडमिशन एमसीडी के स्कूल में करवा दिया। इस बार फिर मेरा नामांकन 5वीं क्लास में ही करवाया था। इसके बाद से मैं रेगुलर पढ़ाई करने लगी। इस दौरान मैंने एक साइंस फेयर में हिस्सा लिया, जिसमें दिल्ली के द्वारका के सभी स्कूल के बच्चों ने हिस्सा लिया था। अपने नगर निगम के स्कूल से मैं चुनी गई थी। 5वीं क्लास में होने के बावजूद मुझे पूरी टीम को रेडी करने का मौका मिला था। इसी कॉम्पटीशन में मुझे सोलो गाने का भी मौका मिला। इसी दौरान शशि काला सर ने मेरा गाना सुना और उन्हें वो इतना पसंद आया कि उन्होंने अपने दोस्त कुणाल गुप्ता, जो बाल भवन इंटरनेशनल स्कूल के प्रिंसिपल हैं, उन्हें मेरे बारे में बताया और इस तरह मुझे पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिली। इस स्कॉलरशिप के तहत मुझे किताब से लेकर ड्रेस तक हर एक चीज स्कूल की तरफ से फ्री में मुहैया करवाई गई। दो साल बाद मेरे दोनों भाइयों को भी इसी स्कॉलरशिप के तहत एडमिशन मिला। स्कूल में जाने के बाद मुझे वहां के बच्चे बिहारी-बिहारी कह कर चिढ़ाते थे। शायद पिछले सालों में घर में रहने और बाहर के लोगों से संपर्क नहीं होने के कारण मैं थोड़ी इंट्रोवर्ट थी इसलिए ऐसा हुआ। लेकिन जब मेरे मार्क्स अच्छे आने लगे और मैं हर साल स्कूल के लिए सिंगिंग में स्टेट लेवल कॉम्पटीशंस में प्राइज जीतने लगी तो बच्चों की राय मेरे लिए बदल गई और मैं उनके लिए बिहारन से मैथिली ठाकुर बन गई। 5 बार फेल होने के बाद हुई थी 'द राइजिंग स्टार' के लिए सिलेक्ट मुझे दुनिया ने तब पहचानना शुरू किया जब मैं 'द राइजिंग स्टार' शो के जरिए टीवी पर दिखने लगी। लोगों ने मेरी सफलता देखी है, लेकिन कम लोगों को पता है कि राइजिंग स्टार से पहले मैं 5 बार फेल हुई थी। बुरी तरह फेल होने का मतलब 'सारेगामापा लिटिल चैम्प' और 'इंडियन आइडल जूनियर' जैसे शो में सिलेक्शन नहीं होने से है। हालांकि, मैं उसके पहले भी बिहार और झारखंड में भाइयों के साथ शोज किया करती थी। मैं पहली बार 2011 में 'सारेगामापा लिटिल चैम्प' में गई, जहां मेरा सिलेक्शन नहीं हो पाया। इसके बाद भी 3 बार 'लिटिल चैम्प्स' के लिए ट्राई किया, लेकिन सिलेक्शन नहीं होने के बाद 2015 में मैंने 'इंडियन आइडल जूनियर' के लिए ट्राई किया, मगर वहां भी मुझे निराशा ही हाथ लगी। फिर भी मैंने हार नहीं मानी और आखिर में 2017 में मेरा सिलेक्शन 'द राइजिंग स्टार' के लिए हो गया। उस समय मैं 11वीं क्लास में थी। लोगों ने मेरी गायिकी को शो में बहुत पसंद किया और मैं शो की फर्स्ट रनर अप बनी। शो के जरिए सोशल मीडिया को समझा और बन गई यूट्यूब स्टार 'द राइजिंग स्टार' शो में जाने के बाद मैंने सोशल मीडिया को समझा और जाना। वहां जाने से पहले ही लोगों से संपर्क बना रहे इसलिए मैंने अपना फेसबुक और यूट्यूब अकाउ

Oct 6, 2025 - 12:52
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BJP में शामिल होंगी लोक गायिका मैथिली ठाकुर:दरभंगा की अलीनगर सीट से लड़ सकती हैं चुनाव; तावड़े ने शेयर की मुलाकात की तस्वीर
लोक गायिका मैथिली ठाकुर बीजेपी जॉइन करने जा रही हैं। बताया जा रहा है कि वो दरभंगा की अलीनगर सीट से चुनाव लड़ सकती हैं। इससे पहले मैथिली ठाकुर ने बिहार प्रभारी विनोद तावड़े और केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय से मुलाकात भी की थी। विनोद तावड़े ने मैथिली से मुलाकात के बाद X पर लिखा- 'साल 1995 में बिहार में लालू राज आने पर जो परिवार बिहार छोड़कर चले गए, उस परिवार की बिटिया सुप्रसिद्ध गायिका मैथिली ठाकुर जी बदलते बिहार की रफ्तार को देखकर फिर से बिहार आना चाहती हैं। आज गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय जी और मैंने उनसे आग्रह किया कि बिहार की जनता के लिए और बिहार के विकास के लिए उनका योगदान बिहार का सामान्य आदमी अपेक्षित करता है और वे उनकी अपेक्षाओं को पूरा करें।' मधुबनी जिले के बेनीपट्टी की रहने वाली मैथिली ठाकुर इसी साल जुलाई में 25 साल की हुई हैं। 2011 में महज 11 साल की रहीं मैथिली जीटीवी के कार्यक्रम सारेगामापा लिटिल चैंप्स से गीत-संगीत के मैदान में छाईं और तब से लगातार फिल्म, भजन और लोक गीतों को गा रही हैं। अब पढ़िए मैथिली ठाकुर की पूरी कहानी... सीधे 5वीं में लिया था एडमिशन भास्कर से कुछ दिन पहले बातचीत में मैथिली ठाकुर मे अपनी कहानी शेयर की थी। उन्होंने बताया था कि, म्यूजिक क्लासेस से पापा को महीने के कुछ 6-7 हजार रुपए मिलते थे। इतने में ही घर का रेंट, राशन और जरूरत की सारी चीजें आती थीं। हम उस समय दिल्ली के नजफगढ़ के एक छोटे से कमरे में रहते थे। हालांकि, मुझे स्कूल न भेजने का पापा का एक और कारण भी था। वो ये कि जब वो दिल्ली आए तो मास्टर्स की डिग्री होने के बावजूद उन्हें काम मिलने में काफी परेशानी हुई। आखिर में संगीत ही उनके काम आया। इसलिए वो चाहते थे कि उनके बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय संगीत को दें और हमारा ध्यान न भटके। आर्थिक तंगी और घर बदलने के कारण 2 बार हुआ 5वीं में एडमिशन मैंने शुरुआती पढ़ाई घर पर ही की है। इसके अलावा पापा जिन बच्चों को म्यूजिक सिखाते थे, उनके पेरेंट्स मुझे बहुत मानते थे, कई बार वे भी मुझे पढ़ाया करते थे। यहां तक कि वे अपने बच्चों की पिछली क्लास की किताबें भी मुझे पढ़ने के लिए दे देते थे। प्रैक्टिस से जब भी समय मिलते मैं घर में उन किताबों से पढ़ती थी। थोड़े बड़े होने पर पापा ने मेरा एडमिशन नगर निगम के स्कूल में करवा दिया। उस समय मेरी उम्र 7-8 वर्ष रही होगी, लेकिन मैं चौथी-पांचवी के मैथ्स सम सॉल्व कर लेती थी। टेस्ट हुआ तो वहां के टीचर्स ने मेरिट देखते हुए मुझे 5वीं क्लास में एडमिशन दे दिया। मैं अपने से बड़ी उम्र के बच्चों के साथ पढ़ने लगी। मगर, थोड़े दिनों के बाद मेरा स्कूल जाना बंद हो गया। एक बार फिर मैं संगीत की दुनिया में खो गई। हालांकि, बच्ची होने की वजह से कई बार एक ही चीज को बार-बार कर के मेरा मन उचट जाता था, लेकिन इस दौरान मम्मी मुझे प्यार करके, डांट कर जैसे भी होता था समझातीं और प्रैक्टिस को लेकर मुझे कोई कोताही न बरतने देतीं। वो हमेशा इस बात का ध्यान रखतीं कि जो भी टास्क मुझे पापा ने दिया है उसे मैं दिन ढलते के साथ पूरा कर लूं। म्यूजिक से मिली प्राइवेट स्कूल में स्कॉलरशिप जब मैं 12-13 साल की हो गई तो पापा ने एक बार फिर मेरा एडमिशन एमसीडी के स्कूल में करवा दिया। इस बार फिर मेरा नामांकन 5वीं क्लास में ही करवाया था। इसके बाद से मैं रेगुलर पढ़ाई करने लगी। इस दौरान मैंने एक साइंस फेयर में हिस्सा लिया, जिसमें दिल्ली के द्वारका के सभी स्कूल के बच्चों ने हिस्सा लिया था। अपने नगर निगम के स्कूल से मैं चुनी गई थी। 5वीं क्लास में होने के बावजूद मुझे पूरी टीम को रेडी करने का मौका मिला था। इसी कॉम्पटीशन में मुझे सोलो गाने का भी मौका मिला। इसी दौरान शशि काला सर ने मेरा गाना सुना और उन्हें वो इतना पसंद आया कि उन्होंने अपने दोस्त कुणाल गुप्ता, जो बाल भवन इंटरनेशनल स्कूल के प्रिंसिपल हैं, उन्हें मेरे बारे में बताया और इस तरह मुझे पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिली। इस स्कॉलरशिप के तहत मुझे किताब से लेकर ड्रेस तक हर एक चीज स्कूल की तरफ से फ्री में मुहैया करवाई गई। दो साल बाद मेरे दोनों भाइयों को भी इसी स्कॉलरशिप के तहत एडमिशन मिला। स्कूल में जाने के बाद मुझे वहां के बच्चे बिहारी-बिहारी कह कर चिढ़ाते थे। शायद पिछले सालों में घर में रहने और बाहर के लोगों से संपर्क नहीं होने के कारण मैं थोड़ी इंट्रोवर्ट थी इसलिए ऐसा हुआ। लेकिन जब मेरे मार्क्स अच्छे आने लगे और मैं हर साल स्कूल के लिए सिंगिंग में स्टेट लेवल कॉम्पटीशंस में प्राइज जीतने लगी तो बच्चों की राय मेरे लिए बदल गई और मैं उनके लिए बिहारन से मैथिली ठाकुर बन गई। 5 बार फेल होने के बाद हुई थी 'द राइजिंग स्टार' के लिए सिलेक्ट मुझे दुनिया ने तब पहचानना शुरू किया जब मैं 'द राइजिंग स्टार' शो के जरिए टीवी पर दिखने लगी। लोगों ने मेरी सफलता देखी है, लेकिन कम लोगों को पता है कि राइजिंग स्टार से पहले मैं 5 बार फेल हुई थी। बुरी तरह फेल होने का मतलब 'सारेगामापा लिटिल चैम्प' और 'इंडियन आइडल जूनियर' जैसे शो में सिलेक्शन नहीं होने से है। हालांकि, मैं उसके पहले भी बिहार और झारखंड में भाइयों के साथ शोज किया करती थी। मैं पहली बार 2011 में 'सारेगामापा लिटिल चैम्प' में गई, जहां मेरा सिलेक्शन नहीं हो पाया। इसके बाद भी 3 बार 'लिटिल चैम्प्स' के लिए ट्राई किया, लेकिन सिलेक्शन नहीं होने के बाद 2015 में मैंने 'इंडियन आइडल जूनियर' के लिए ट्राई किया, मगर वहां भी मुझे निराशा ही हाथ लगी। फिर भी मैंने हार नहीं मानी और आखिर में 2017 में मेरा सिलेक्शन 'द राइजिंग स्टार' के लिए हो गया। उस समय मैं 11वीं क्लास में थी। लोगों ने मेरी गायिकी को शो में बहुत पसंद किया और मैं शो की फर्स्ट रनर अप बनी। शो के जरिए सोशल मीडिया को समझा और बन गई यूट्यूब स्टार 'द राइजिंग स्टार' शो में जाने के बाद मैंने सोशल मीडिया को समझा और जाना। वहां जाने से पहले ही लोगों से संपर्क बना रहे इसलिए मैंने अपना फेसबुक और यूट्यूब अकाउंट बना लिया था। उस दौरान फेसबुक में केवल हजार-दो हजार लोग ही फॉलो करते थे। मगर, वहां जाने के बाद मैं उसके महत्व और उससे जुड़ी तकनीक को सीखने लगी। वहां से आने के कुछ दिनों बाद मैंने यूट्यूब पर वीडियोज डालने शुरू किए। उसके बाद मैंने एडिटिंग करना, धुन कम्पोज करना और म्यूजिक से जुड़ी कई तकनीक को जाना, सीखा और भाइयों के साथ जैसे स्टेज शो में गाती थी वैसे ही घर में वीडियोज बनाकर यूट्यूब पर डालने लगी। धीरे-धीरे लोग हमारे द्वारा गाए गए राम-सीता विवाह गीत, बिहार-यूपी में गाए जाने वाले पारंपरिक लोकगीतों को बहुत पसंद करने लगे। इस तरह लोग हमसे जुड़ते गए और आज मैथिली ठाकुर के नाम से मेरे यूट्यूब चैनल को करीब 3.77 मिलियन (37 लाख 70 हजार) लोग फॉलो करते हैं। वहीं फेसबुक पर करीब 13 मिलियन (1 करोड़ 30 लाख) लोग फॉलो करते हैं। कोरोना के समय में हुई ब्लॉगिंग की शुरुआत गायकी के साथ-साथ 12वीं पास करने के बाद मैंने एक साल का गैप लिया और फिर भारती कॉलेज में एडमिशन लिया। हालांकि इसके बाद ही कोराना आ गया। हमें घर में काफी समय मिलने लगा और हमने ब्लॉगिंग करने की सोची। इसके लिए मैंने पहले से ही सोच रखा था कि बिहार के ट्रेडिशन और खान-पान को भी अपने चैनल के माध्यम से शेयर करूंगी, लेकिन समय नहीं मिलने कारण अपने प्लान को एक्जीक्यूट नहीं कर पा रही थी। लॉकडाउन में मुझे समय मिला और मेरे भाई रिशव ठाकुर ने ब्लॉगिंग की शुरुआत की। लोग उसे और ठाकुर फैमिली को जानने लगे और जो रिशव गायकी में मेरा तबले पर साथ देने के लिए जाना जाता था, वो यूट्यूब पर एक जाना माना ब्लॉगर बन गया। रिशव के बाद मैंने भी डेली ब्लॉग के लिए एक चैनल बनाया, जिसके जरिए मैं लोगों को अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में बताती हूं। -------------------- ये खबर भी पढ़िए... पवन सिंह का तंज-जातिवादियों के दिल पर सांप लोट गया:शाह-कुशवाहा संग फोटो डाली; कहा- मोदी-नीतीश के सपनों का बिहार बनाऊंगा भोजपुरी इंडस्ट्री के सुपर स्टार पवन सिंह की बीजेपी में वापसी हो चुकी है। मंगलवार को बिहार प्रभारी विनोद तावड़े ने कहा है कि, 'पवन सिंह बीजेपी में थे और रहेंगे।' पवन सिंह की दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री मंत्री अमित शाह से 30 मिनट तक मुलाकात की। इस दौरान पवन सिंह ने शाह को गमछा दिया। इसके बाद वे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्‌डा से भी मिलने पहुंचे। उन्होंने नड्‌डा को शॉल भी भेंट की। मुलाकात के बाद पत्रकारों ने पवन सिंह से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। हाथ जोड़कर वो आगे निकल गए। पूरी खबर पढ़िए