7 अक्टूबर 2001, यह वह दिन था जब गुजरात विधानसभा के प्रांगण में एक साधारण स्वयंसेवक ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। नरेंद्र मोदी का राजनीतिक सफर वहीं से प्रारंभ हुआ जो आज 25 वर्ष बाद भारतीय राजनीति के सबसे निर्णायक, सबसे प्रभावशाली नेतृत्व की कहानी बन चुका है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर अपने सोशल मीडिया संदेश में न केवल अतीत को याद किया, बल्कि "विकसित भारत" के अपने सपने को दोहराया। उन्होंने लिखा— “जनता के आशीर्वाद से मैं सरकार के मुखिया के रूप में सेवा के अपने 25वें वर्ष में प्रवेश कर रहा हूं। मेरा हर प्रयास देश के अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाने के लिए रहा है।”
देखा जाये तो 2001 में गुजरात का नेतृत्व संभालने वाले मोदी ने उस राज्य को उद्योग, इंफ्रास्ट्रक्चर और प्रशासनिक सुधारों का मॉडल बनाया। 2002 के बाद गुजरात ने जिस तीव्र गति से विकास किया, उसने पूरे देश में “गुजरात मॉडल” की चर्चा शुरू की। बिजली, जल प्रबंधन, कृषि उत्पादन और निवेश में राज्य ने नए आयाम स्थापित किए। यही मॉडल आगे चलकर 2014 में नरेंद्र मोदी को देश की सर्वोच्च जिम्मेदारी तक लेकर आया।
जब उन्होंने 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, तब देश आर्थिक ठहराव, भ्रष्टाचार और वैश्विक अविश्वास से घिरा था। मोदी ने इस ठहराव को तोड़ते हुए ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के मंत्र के साथ नई ऊर्जा भरी। उनके नेतृत्व में भारत ने न केवल आर्थिक मोर्चे पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी आत्मविश्वास की नई परिभाषा गढ़ी।
प्रधानमंत्री मोदी का 25 वर्षों का यह सफर सिर्फ सत्ता में बने रहने की कहानी नहीं है; यह संकल्प से सिद्धि की कहानी है। पिछले दशक में भारत ने अनेक ऐतिहासिक परिवर्तन देखे। डिजिटल इंडिया ने शासन और नागरिकों के बीच पारदर्शिता और गति सुनिश्चित की। स्वच्छ भारत मिशन ने सामाजिक आंदोलन का रूप लिया। उज्ज्वला योजना से करोड़ों गरीब परिवारों की रसोई में धुआंमुक्त जीवन पहुंचा। मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और आत्मनिर्भर भारत ने अर्थव्यवस्था को नवाचार और आत्मविश्वास की दिशा दी। चंद्रयान-3 और गगनयान मिशन ने विज्ञान में भारत की साख को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। आज भारत दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और विश्व बैंक, IMF, तथा विश्व आर्थिक मंच तक इसे “ग्लोबल ब्राइट स्पॉट” कह रहे हैं।
इसके अलावा, मोदी युग की एक सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि भारत की आक्रामक लेकिन संतुलित विदेश नीति रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की आवाज़ को नई प्रतिष्ठा दिलाई। G20 शिखर सम्मेलन की सफल मेजबानी ने भारत को ‘विश्व के विश्वास’ के केंद्र में ला खड़ा किया। इंडो-पैसिफिक रणनीति और क्वॉड गठबंधन में भारत की भूमिका अब निर्णायक है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच मोदी का “यह युद्ध का युग नहीं है” वाला संदेश आज वैश्विक कूटनीति की मिसाल बन चुका है। इसके अलावा, अफ्रीका, खाड़ी देशों और दक्षिण एशिया में भारत ने न केवल व्यापारिक बल्कि सांस्कृतिक और मानवीय संबंधों को भी मजबूत किया है। मोदी की विदेश नीति की खासियत यह है कि उन्होंने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के दर्शन को आधुनिक कूटनीति में ढाल दिया— जहां भारत न किसी के सामने झुकता है, न किसी को झुकाता है।
आज, प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संदेश में अपनी माँ की सलाह का उल्लेख करते हुए कहा— “उन्होंने कहा था, दो बातें कभी मत भूलना— गरीबों के लिए काम करना और कभी रिश्वत मत लेना।” यही मूल्य आज उनके राजनीतिक जीवन की धुरी हैं। उनकी ‘गरीब कल्याण’ नीतियों से लेकर ‘न्यू इंडिया’ की दृष्टि तक— हर कदम जनता के सशक्तिकरण की दिशा में रहा है। आज मोदी 25 वर्षों के इस सार्वजनिक जीवन में उस दौर के नेता हैं जिन्होंने न केवल सत्ता को सेवा का माध्यम बनाया, बल्कि भारतीय राजनीति में ‘गवर्नेंस का धर्म’ स्थापित किया।
देखा जाये तो 25 वर्षों की यात्रा में नरेंद्र मोदी केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचार बन चुके हैं— आत्मनिर्भरता, राष्ट्रगौरव और जनता के सशक्तिकरण का विचार। उनकी प्रतिबद्धता, वैश्विक दृष्टि और अडिग राष्ट्रवाद ने भारत को एक ऐसी राह पर डाल दिया है जहाँ “विकसित भारत” अब सपना नहीं, लक्ष्य बन चुका है। जैसे-जैसे देश 2047 की ओर बढ़ रहा है, प्रधानमंत्री मोदी का यह संदेश और प्रासंगिक हो उठता है— “सेवा ही सम्मान है, और भारत का उत्थान ही मेरा धर्म।”
-नीरज कुमार दुबे