आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के खिलाफ रचे गए कांग्रेसी षड्यंत्रों से उपजते सवाल

मालेगांव बम विस्फोट कांड (2008) के बारे में हाल ही में जो महत्वपूर्ण खुलासे हुए हैं, वो किसी भी सजग भारतीय का दिल दहलाने वाले हैं। साथ ही भारत के एक प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस के सार्वजनिक चरित्र के बारे में जो खुलासे हुए हैं, वह उस पर एक गम्भीर लांछन के रूप भी दिखाई दे रहे हैं। यह भारत के उन कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों की मनोदशा पर भी प्रकाश डाल रहे हैं, जिन्हें राजनीतिक नाफरमानी की स्थिति में भारी कीमत चुकानी पड़ती है। इसलिए हमारी संसद को चाहिए कि वह भविष्य में ऐसी किसी भी अप्रत्याशित स्थिति से निपटने के लिए हमारे प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों को सक्षम बनाने के लिए कानून बनाए और उनके पाकसाफ हाथ को मजबूत करे। ऐसा इसलिए कि कांग्रेस के जड़विहीन व खुराफाती रणनीतिकारों यथा- तत्कालीन गृह मंत्री पी.चिदम्बरम, महाराष्ट्र के पार्टी नेता सुशील कुमार शिंदे और तत्कालीन गृह सचिव आर के सिंह आदि ने यूपीए संयोजिका और कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमती सोनिया गांधी, जो इटालियन ईसाई मूल की भारतीय भारतीय बहू हैं, को प्रसन्न करने के लिए जिस हिन्दू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद की अवधारणा दी और इसी बहाने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करवाने की जो घृणित चाल चली, वही 5 साल बाद कांग्रेसी सत्ता की ताबूत के लिए अंतिम कील साबित हुई। लिहाजा, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के खिलाफ रचे गए कांग्रेसी षड्यंत्रों से कुछ महत्वपूर्ण सवाल उपजते हैं, जिसका समुचित जवाब तलाशे जाने की जरूरत है। वहीं, यदि इस मामले के षडयंत्रकारियों को न्याय के कठघड़े में लाया जा सका, तो यह बहुत बड़ी बात होगी।वहीं, राजनीतिक परिदृश्य इस बात की चुगली करता है कि मालेगांव बम विस्फोट कांड की भटकाई गई जांच के बाद से कांग्रेस कभी केंद्रीय सत्ता में नहीं लौट पाई। साल 2014, 2019 और 2024 के आम चुनाव में कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाले पहले यूपीए और अब इंडिया गठबंधन को भारतीय हिन्दुओं ने लगभग खारिज कर दिया। समझा जाता है कि तब सुरसा मुख की भांति फैलते जा रहे "इस्लामिक आतंकवाद" से देशवासियों का ध्यान भटकाने के लिये कांग्रेसियों ने यह सियासी षड्यंत्र रचा था। लेकिन इस भगवा आतंकवाद या हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा के लगभग डेढ़ दशक बाद जो महत्वपूर्ण खुलासे हुए हैं, वो बेहद चौंकाने वाले। इससे कांग्रेस की बची हुई सियासी साख भी मिट्टी में मिल सकती है।इसे भी पढ़ें: मालेगांव विस्फोट एवं भगवा पर कलंक की साजिशदरअसल, इस विस्फोट की जांच करने वाली एटीएस टीम का हिस्सा रहे पुलिस इंस्पेक्टर महबूब मुजावर ने एक सनसनीखेज दावा किया है कि साल 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में जांच के दौरान महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया था। यही नहीं, मालेगांव बम विस्फोट जांच को "गलत दिशा" में ले जाने का सियासी प्रयास किया गया और इस घृणित योजना पर आपत्ति जताने पर उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज किए गए। देखा जाए तो यह बहुत ही गम्भीर आरोप है और इसके दोषियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए।बता दें कि पूर्व एटीएस अधिकारी की तजव टिप्पणी मुंबई की एक विशेष अदालत द्वारा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को इस आधार पर बरी करने के एक दिन बाद आई है कि उनके खिलाफ "कोई विश्वसनीय और ठोस" सबूत नहीं है। सवाल है कि सबूत आखिर हो भी कैसे, क्योंकि यह एक पूर्वनियोजित षड्यंत्र प्रतीत होता है और इसके प्रायोजकों ने पहले ही सबूत नष्ट कर दिए, ताकि लक्षित लोगों या उनके समूह को फंसाया जा सके। कहने का तातपर्य भाजपा नेताओं और आरएसएस कार्यकर्ताओं को, जैसा कि बाद के प्रकरणों से साबित भी हुआ।उल्लेखनीय है कि 29 सितम्बर 2008 को मुम्बई से लगभग 300 किलोमीटर दूर मालेगांव के एक व्यस्त बाजार में मोटरसाइकिल में रखे बम के फटने से छह लोग मारे गए थे। प्रारम्भ में महाराष्ट्र एटीएस ने इस विस्फोट की जांच की, जिसके बाद इसे देश की शीर्ष आतंकवाद-रोधी संस्था राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया गया। इसी सिलसिले में शामिल रहे मुजावर ने बताया कि, "वरिष्ठों ने आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत की गिरफ़्तारी का आदेश दिया था।" बता दें कि श्री भागवत मार्च 2009 में ही आरएसएस प्रमुख बने थे। उन्होंने आगे यह भी कहा कि, "मालेगांव विस्फोट के तत्कालीन मुख्य जाँच अधिकारी परमबीर सिंह ने मुझे आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया था।" उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा है कि, "मोहन भागवत को इस मामले में शामिल किया जा रहा था ताकि इसे भगवा आतंकवाद का मामला बनाया जा सके।" बताते चलें कि भाजपा ने पहले भी आरोप लगाया है कि इस मामले की जाँच दक्षिणपंथी नेताओं को बदनाम करने और फंसाने तथा हिंदू समुदाय को निशाना बनाने के इरादे से की गई थी। वहीं, मुजावर ने यहां तक कहा कि, "मालेगांव बम विस्फोट की फर्जी जांच की कोशिश की गई थी, लेकिन मैं इसके लिए तैयार नहीं था। लिहाजा इस मामले में मेरे खिलाफ झूठे मामले दर्ज किए गए थे, लेकिन बाद में मेरा नाम साफ हो गया।" उन्होंने यहां तक कहा कि राज्य की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस मामले में तत्कालीन अधिकारियों पर दबाव डाला होगा। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इस मामले की गोपनीय जानकारी की थी। उन्होंने कहा, "मैं अपनी सेवा कर रहा था। मुझे पता था कि ये बातें झूठी हैं, इसलिए मेरे खिलाफ मामले दर्ज किए गए।" गौरतलब है कि राजनीतिक नाफरमानी की वजह से मनगढ़ंत आरोप लगाकर श्री मुजावर को तत्कालीन राज्य सरकार ने निलंबित कर दिया था।इधर, उनकी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ठीक ही कहा है कि, "2008 की मालेगांव साजिश का पर्दाफाश हो गया है। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हिंदू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद जैसे शब्द गढ़े थे। ऐसे समय में जब इस्लामी आतंकवाद पर बात हो रही थी, सरकार द्वारा उसको व

Aug 6, 2025 - 23:13
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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के खिलाफ रचे गए कांग्रेसी षड्यंत्रों से उपजते सवाल
मालेगांव बम विस्फोट कांड (2008) के बारे में हाल ही में जो महत्वपूर्ण खुलासे हुए हैं, वो किसी भी सजग भारतीय का दिल दहलाने वाले हैं। साथ ही भारत के एक प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस के सार्वजनिक चरित्र के बारे में जो खुलासे हुए हैं, वह उस पर एक गम्भीर लांछन के रूप भी दिखाई दे रहे हैं। यह भारत के उन कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों की मनोदशा पर भी प्रकाश डाल रहे हैं, जिन्हें राजनीतिक नाफरमानी की स्थिति में भारी कीमत चुकानी पड़ती है। इसलिए हमारी संसद को चाहिए कि वह भविष्य में ऐसी किसी भी अप्रत्याशित स्थिति से निपटने के लिए हमारे प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों को सक्षम बनाने के लिए कानून बनाए और उनके पाकसाफ हाथ को मजबूत करे। 

ऐसा इसलिए कि कांग्रेस के जड़विहीन व खुराफाती रणनीतिकारों यथा- तत्कालीन गृह मंत्री पी.चिदम्बरम, महाराष्ट्र के पार्टी नेता सुशील कुमार शिंदे और तत्कालीन गृह सचिव आर के सिंह आदि ने यूपीए संयोजिका और कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमती सोनिया गांधी, जो इटालियन ईसाई मूल की भारतीय भारतीय बहू हैं, को प्रसन्न करने के लिए जिस हिन्दू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद की अवधारणा दी और इसी बहाने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करवाने की जो घृणित चाल चली, वही 5 साल बाद कांग्रेसी सत्ता की ताबूत के लिए अंतिम कील साबित हुई। लिहाजा, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के खिलाफ रचे गए कांग्रेसी षड्यंत्रों से कुछ महत्वपूर्ण सवाल उपजते हैं, जिसका समुचित जवाब तलाशे जाने की जरूरत है। वहीं, यदि इस मामले के षडयंत्रकारियों को न्याय के कठघड़े में लाया जा सका, तो यह बहुत बड़ी बात होगी।

वहीं, राजनीतिक परिदृश्य इस बात की चुगली करता है कि मालेगांव बम विस्फोट कांड की भटकाई गई जांच के बाद से कांग्रेस कभी केंद्रीय सत्ता में नहीं लौट पाई। साल 2014, 2019 और 2024 के आम चुनाव में कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाले पहले यूपीए और अब इंडिया गठबंधन को भारतीय हिन्दुओं ने लगभग खारिज कर दिया। समझा जाता है कि तब सुरसा मुख की भांति फैलते जा रहे "इस्लामिक आतंकवाद" से देशवासियों का ध्यान भटकाने के लिये कांग्रेसियों ने यह सियासी षड्यंत्र रचा था। लेकिन इस भगवा आतंकवाद या हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा के लगभग डेढ़ दशक बाद जो महत्वपूर्ण खुलासे हुए हैं, वो बेहद चौंकाने वाले। इससे कांग्रेस की बची हुई सियासी साख भी मिट्टी में मिल सकती है।

इसे भी पढ़ें: मालेगांव विस्फोट एवं भगवा पर कलंक की साजिश

दरअसल, इस विस्फोट की जांच करने वाली एटीएस टीम का हिस्सा रहे पुलिस इंस्पेक्टर महबूब मुजावर ने एक सनसनीखेज दावा किया है कि साल 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में जांच के दौरान महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया था। यही नहीं, मालेगांव बम विस्फोट जांच को "गलत दिशा" में ले जाने का सियासी प्रयास किया गया और इस घृणित योजना पर आपत्ति जताने पर उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज किए गए। देखा जाए तो यह बहुत ही गम्भीर आरोप है और इसके दोषियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए।

बता दें कि पूर्व एटीएस अधिकारी की तजव टिप्पणी मुंबई की एक विशेष अदालत द्वारा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को इस आधार पर बरी करने के एक दिन बाद आई है कि उनके खिलाफ "कोई विश्वसनीय और ठोस" सबूत नहीं है। सवाल है कि सबूत आखिर हो भी कैसे, क्योंकि यह एक पूर्वनियोजित षड्यंत्र प्रतीत होता है और इसके प्रायोजकों ने पहले ही सबूत नष्ट कर दिए, ताकि लक्षित लोगों या उनके समूह को फंसाया जा सके। कहने का तातपर्य भाजपा नेताओं और आरएसएस कार्यकर्ताओं को, जैसा कि बाद के प्रकरणों से साबित भी हुआ।

उल्लेखनीय है कि 29 सितम्बर 2008 को मुम्बई से लगभग 300 किलोमीटर दूर मालेगांव के एक व्यस्त बाजार में मोटरसाइकिल में रखे बम के फटने से छह लोग मारे गए थे। प्रारम्भ में महाराष्ट्र एटीएस ने इस विस्फोट की जांच की, जिसके बाद इसे देश की शीर्ष आतंकवाद-रोधी संस्था राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया गया। इसी सिलसिले में शामिल रहे मुजावर ने बताया कि, "वरिष्ठों ने आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत की गिरफ़्तारी का आदेश दिया था।" बता दें कि श्री भागवत मार्च 2009 में ही आरएसएस प्रमुख बने थे। उन्होंने आगे यह भी कहा कि, "मालेगांव विस्फोट के तत्कालीन मुख्य जाँच अधिकारी परमबीर सिंह ने मुझे आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया था।" 

उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा है कि, "मोहन भागवत को इस मामले में शामिल किया जा रहा था ताकि इसे भगवा आतंकवाद का मामला बनाया जा सके।" बताते चलें कि भाजपा ने पहले भी आरोप लगाया है कि इस मामले की जाँच दक्षिणपंथी नेताओं को बदनाम करने और फंसाने तथा हिंदू समुदाय को निशाना बनाने के इरादे से की गई थी। वहीं, मुजावर ने यहां तक कहा कि, "मालेगांव बम विस्फोट की फर्जी जांच की कोशिश की गई थी, लेकिन मैं इसके लिए तैयार नहीं था। लिहाजा इस मामले में मेरे खिलाफ झूठे मामले दर्ज किए गए थे, लेकिन बाद में मेरा नाम साफ हो गया।" 

उन्होंने यहां तक कहा कि राज्य की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस मामले में तत्कालीन अधिकारियों पर दबाव डाला होगा। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इस मामले की गोपनीय जानकारी की थी। उन्होंने कहा, "मैं अपनी सेवा कर रहा था। मुझे पता था कि ये बातें झूठी हैं, इसलिए मेरे खिलाफ मामले दर्ज किए गए।" गौरतलब है कि राजनीतिक नाफरमानी की वजह से मनगढ़ंत आरोप लगाकर श्री मुजावर को तत्कालीन राज्य सरकार ने निलंबित कर दिया था।

इधर, उनकी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ठीक ही कहा है कि, "2008 की मालेगांव साजिश का पर्दाफाश हो गया है। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हिंदू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद जैसे शब्द गढ़े थे। ऐसे समय में जब इस्लामी आतंकवाद पर बात हो रही थी, सरकार द्वारा उसको वोट देने वालों को नाराज़ नहीं किया जा सकता था, यही वजह है कि हिंदू आतंकवाद का सिद्धांत गढ़ा गया।" यह गम्भीर सरकारी पहल थी, जिसकी कांग्रेस ने भारी सियासी कीमत भी चुकाई। इस नए खुलासे के नकारात्मक असर भी बिहार विधानसभा चुनाव पर पड़ने की उम्मीद जताई जा रही है।

उल्लेखनीय है कि उद्योगपति मुकेश अंबानी के मुंबई स्थित आवास एंटीलिया के बाहर कथित तौर पर विस्फोटक मिलने के बाद, मुंबई पुलिस आयुक्त के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कदाचार के आरोपों के बीच, श्री सिंह को दिसंबर 2021 में निलंबित कर दिया गया था। इसके बाद, उन्होंने महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख पर जबरन वसूली और हस्तक्षेप का आरोप लगाया। श्री देशमुख को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन श्री सिंह पर राज्य सरकार ने जबरन वसूली और इसी तरह के आरोपों में मामला दर्ज किया। ये आईपीएस अधिकारी 2022 में सेवानिवृत्त हुए। हालांकि, एक साल बाद, एकनाथ शिंदे सरकार ने भाजपा को चिढ़ाने के लिए। उनके खिलाफ सभी आरोप हटा दिए। इससे भाजपा मनमसोस कर रह गई।

जैसा कि एनआईए ने बताया, मालेगांव में विस्फोट रमज़ान के पवित्र महीने में, नवरात्रि से ठीक पहले हुआ था। एनआईए ने दावा किया कि आरोपियों का इरादा मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग में दहशत फैलाना था। 2018 में शुरू हुआ यह मुकदमा इसी साल 19 अप्रैल को पूरा हुआ। अभियोजन पक्ष ने 323 गवाह पेश किए, जिनमें से 37 अपने बयानों से मुकर गए। लिहाजा, विशेष अदालत ने गुरुवार को कहा कि अभियोजन पक्ष ने यह तो साबित कर दिया कि बम विस्फोट हुआ था, लेकिन वह यह साबित करने में विफल रहा कि विस्फोटक मोटरसाइकिल पर लगाया गया था। इसलिए कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया।

लिहाजा, इस मामले में कुछ सुलगते सवाल उठना लाजिमी है। पहला यह कि कहीं भगवा आतंकवाद के षड्यंत्रकारियों ने ही तो इस बम विस्फोट की घटना को तो रमजान के पाक महीने में अंजाम दिलवाया, ताकि रणनीतिक रूप से हिंदुओं को फंसाया/फँसवाया जा सके। दूसरा, भारतीय संविधान के तहत पद और गोपनीयता की शपथ लेने वाले नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों का चारित्रिक स्तर इतना गिर गया है कि वो अपने सियासी लाभ के लिए प्रशासनिक जांच की दिशा ही भटका दें। यह पक्ष-विपक्ष की राजनीति को स्थायी रूप देने के लिए किया गया एक खतरनाक प्रयास है, जिसकी जितनी भी निंदा की जाए, वह कम है। इससे भारतीय जांच एजेंसियों की साख भी घटेगी।

कहना न होगा कि यदि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को भगवा आतंकवाद की आड़ में गिरफ्तार कर लिया गया होता तो आज भाजपा के अच्छे दिन नहीं आते। बता दें कि भाजपा को 2014 और 2019 में पूर्ण बहुमत दिलवाने में आरएसएस की बहुत बड़ी भूमिका थी और 2024 में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा उसकी भूमिका को कमतर आंकने का ही अभिशाप है कि भाजपा आज अल्पमत में है और एनडीए का गठबंधन सरकार चलाने को अभिशप्त भी। इसलिए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार को लाने और भाजपा को व्यापक सियासी आधार प्रदान करने में मोहन भागवत की शानदार रणनीतिक भूमिका है। 

देखा जाए तो लगभग 75 वर्ष की आयु में भी वो जितने सक्रिय हैं, आरएसएस को समाज के हर वर्ग तक पहुंचाने के लिए प्रयत्नशील हैं, वह बहुत बड़ी बात है। इससे यह महसूस होता है कि कांग्रेस नेताओं का निशाना अचूक था, लेकिन महाराष्ट्र के एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी ने उनके इस महत्वपूर्ण मिशन की हवा निकाल दी। बता दें कि इससे पहले भी कांग्रेस सरकार दो-दो बार आरएसएस पर राष्ट्रीय प्रतिबंध लगा चुकी है। 

राजनीतिक टीकाकार बताते हैं कि जहां 1989 में भागलपुर सांप्रदायिक दंगे को नियंत्रित करने में विफल रही कांग्रेस सरकार ने इसकी पूरी राजनीतिक कीमत चुकाई और हिंदी पट्टी से खत्म हो गई। उसके बाद से केंद्र में भी कभी अपने दम पर सत्ता में नहीं लौटी। इसलिए मुस्लिम परस्त राजनीति करने की आरोपी कांग्रेस और उसके सियासी सहयोगियों को जब भी गठबंधन करके सत्ता मिलती है तो हिंदुओं को कमजोर करने के लिए वह तरह तरह के एकपक्षीय कानून लाने की कोशिश करती है। इससे उसकी सियासी छवि भी प्रभावित हुई है।

वहीं, आरएसएस की सबसे बड़ी खासियत यह है कि अपने विरुद्ध हुए तमाम सियासी व प्रशासनिक षड्यंत्रों के बावजूद वह भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन बना हुआ है जिसका मूल ध्येय राष्ट्र निर्माण, चरित्र निर्माण और विश्व कल्याण है। भाजपा को उसका राजनीतिक मुखौटा करार दिया जाता है। वह 2014 की तरह ही 2029 के पहले भी भाजपा में अमूलचूल परिवर्तन का हिमायती है, ताकि उसकी सत्ता को चिरस्थाई स्वरूप प्रदान किया जा सके।

- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक