भ्रष्ट व्यवस्था से कब तक होती रहेंगी निर्दोषों की मौत

राजनीतिक दलों और सरकारों की निगाहों में देश में आम लोगों के जीवन की कोई कीमत नहीं रह गई है। इसका नया प्रमाण मध्यप्रदेश और राजस्थान में दूषित खांसी की सीरिप से होने वाली मौतें हैं। मघ्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में मिलावटी सीरिप पीने से 11 और राजस्थान में तीन बच्चो की मौत हो गई। यह पहली बार नहीं है जब देश में स्वास्थ्य सेवाओं से खिलवाड़ का मामला सामने आया है। इससे पहले भी विदेश में निर्यात की जाने वाली खांसी की सीरिप से मौतों के मामले सामने आ चुके हैं। उस वक्त यदि देश के औषिधी विभाग ने सख्त कदम उठाए होते तो जहरीली सीरप पीने से बच्चों की होने वाली मौतों को रोका जा सकता था। आश्चर्य की बात यह कि राजस्थान और मध्यप्रदेश की सरकारें मानने से ही इंकार करती रही कि बच्चों की मौतें विषाक्त सीरप पीने से हुई है, जब मृतकों की संख्या बढ़ने लगी तब कहीं जाकर सरकार में बेमन से इस हादसे को स्वीकार किया। छिंदवाड़ा में जहरीले कफ सिरप से 11 बच्चों की मौत के बाद प्रशासन ने डॉक्टर प्रवीण सोनी को गिरफ्तार किया गया।  कंपनी और डॉक्टर पर मामला दर्ज कर सरकार ने सिरप व श्रेसन फार्मा की सभी दवाओं पर प्रतिबंध लगाया। इसके बावजूद राजस्थान की सरकार नहीं चेती। राजस्थान में भाजपा सरकार बच्चों की मौतों के मामलों में लीपपोती ही करती नजर आई।इसे भी पढ़ें: ताकि दवा जहर बन फिर से मासूमों की मौत न बनेतमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमेंट की लैब जांच में कोल्ड्रिफ सिरप में 46.2% डायएथिलीन ग्लाइकॉल की पुष्टि हुई। यह जहरीला केमिकल किडनी फेलियर का कारण बनता है। वहीं, नेक्स्ट्रो-डीएस और मेफटॉल पी सिरप की रिपोर्ट सुरक्षित आई। केंद्र सरकार ने बच्चों को कफ सिरप देने में सावधानी बरतने की सलाह दी है। इस मामले की गहराई से जांच करने के लिए केंद्र और राज्य की एजेंसियों ने मिलकर एक बड़ी पड़ताल की। जांचकर्ताओं ने पुष्टि की है कि जिन कफ सिरप पर संदेह था, उनमें कोई भी जहरीला रसायन नहीं मिला है। जांच अभी पूरी नहीं हुई है और अन्य संभावित कारणों की पड़ताल जारी है।यह पहला मामला नहीं जब कफ सीरप से मौतों को लेकर बवाल मचा है। साल 2022-23 में गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में भी भारतीय कफ सिरप्स से बच्चों की मौत हुई थी। गाम्बिया में 70 बच्चों की मौत हो गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन मौतों को सिरप से जोड़ते हुए कहा था कि दवाओं में विषाक्त पदार्थों का स्तर अस्वीकार्य पाया गया है। इसका मेडेन फार्मास्युटिकल्स और भारत सरकार दोनों ने इसका खंडन किया था। भारत ने कहा था कि घरेलू स्तर पर परीक्षण के दौरान सिरप गुणवत्ता मानकों के अनुरूप पाए गए।उज़्बेकिस्तान सरकार ने दिसंबर 2022 में 65 बच्चों की जान लेने वाले दूषित कफ सिरप वितरित करने वाली कंपनी पर देश के अनिवार्य गुणवत्ता परीक्षण से बचने के लिए स्थानीय अधिकारियों को 33,000 डॉलर की रिश्वत देने का आरोप लगाया था। कंपनी ने आरोपों से इनकार किया था। इसी तरह दिसंबर 2022 में नेपाल ने 16 भारतीय दवा कंपनियों को काली सूची में डाल दिया। काली सूची में डाली गई 16 कंपनियाँ इन दावों का कोई जवाब नहीं दिया है। वर्ष 2013 में रैनबैक्सी ने एक अमेरिकी अदालत में आपराधिक अपराध के सात मामलों में दोषी ठहराया और 50 करोड़ डॉलर (44.5 करोड़ पाउंड) का जुर्माना भरने पर सहमति जताई, तब भारतीय वाणिज्य मंत्रालय ने दावा किया था कि निहित स्वार्थ भारत में विनिर्माण गुणवत्ता को लेकर छिटपुट मुद्दे उठा रहे हैं।भारतीय दवा निर्यात की गुणवत्ता के बारे में शिकायत करने वाले केवल अमेरिकी और यूरोपीय देश ही नहीं थे। 2014 में, वियतनाम ने 45 भारतीय दवा कंपनियों को काली सूची में डाल दिया और उसके बाद 2016 में 39 और कंपनियों को काली सूची में डाल दिया। श्रीलंका, घाना, नाइजीरिया और मोज़ाम्बिक  ने भारतीय दवा निर्यात की गुणवत्ता के बारे में शिकायत की थी। इन मामलों में केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया थी कि प्रतिस्पर्धी भारतीय कंपनियों को बदनाम करने की विदेशी दवा कंपनियों की साज़िश के रूप में चित्रित करने की रही है। हमारे देश में भारतीय सरकारी प्रयोगशालाओं में दवाओं के गुणवत्ता परीक्षण में विफल होने के हज़ारों मामले सामने आए हैं। यह आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज है। भारत सरकार द्वारा संचालित एक डेटाबेस में 8,000 से ज़्यादा ऐसी दवाइयाँ सूचीबद्ध हैं जो गुणवत्ता परीक्षणों में विफल रहीं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा जेनेरिक दवाओं का निर्यातक है, जो विकासशील देशों की अधिकांश चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा करता है। लेकिन यह आरोप कि इसकी दवाओं ने गाम्बिया जैसी त्रासदी पैदा की है और उज़्बेकिस्तान तथा अमेरिका जैसे अन्य देशों में भी विनिर्माण पद्धतियों और गुणवत्ता मानकों पर सवाल खड़े किए गए। तब भारत ने कंपनियों के लिए निर्यात से पहले कफ सिरप के नमूनों की सरकारी अनुमोदित प्रयोगशालाओं में जाँच अनिवार्य करने जैसे कदम उठाए थे। मार्च 2023 में समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में भारत ने 25.4 अरब डॉलर (20 अरब) मूल्य की दवाइयाँ निर्यात कीं। इनमें से 3.6 अरब डॉलर अफ्रीकी देशों को निर्यात की गईं। गाम्बिया विवाद और कथित रूप से विषाक्त या अप्रभावी दवाओं के अन्य मामलों के बावजूद, यह उद्योग फल-फूल रहा है। सवाल यही है कि आखिर राजनीतिक दल और सरकारें कब तक यूं ही लोगों को भ्रष्ट व्यवस्था का शिकार बनते हुए देखती रहेंगी। किसी एक घटना के स्मृति से विलुप्त होने के बाद ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति आखिर कब थमेगी। देश में इतने कानून होने के बावजूद ऐसी घटनाएं कैसे होती हैं। राजनीतिक दलों को निहित स्वार्थों से हट कर इस पर सोचने की जरूरत है कि आम लोगों के जीवन को कब तक इस तरह लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के हवाले कर दाव पर लगाया जाता रहेगा।- योगेन्द्र योगी

Oct 17, 2025 - 22:53
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भ्रष्ट व्यवस्था से कब तक होती रहेंगी निर्दोषों की मौत
राजनीतिक दलों और सरकारों की निगाहों में देश में आम लोगों के जीवन की कोई कीमत नहीं रह गई है। इसका नया प्रमाण मध्यप्रदेश और राजस्थान में दूषित खांसी की सीरिप से होने वाली मौतें हैं। मघ्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में मिलावटी सीरिप पीने से 11 और राजस्थान में तीन बच्चो की मौत हो गई। यह पहली बार नहीं है जब देश में स्वास्थ्य सेवाओं से खिलवाड़ का मामला सामने आया है। इससे पहले भी विदेश में निर्यात की जाने वाली खांसी की सीरिप से मौतों के मामले सामने आ चुके हैं। उस वक्त यदि देश के औषिधी विभाग ने सख्त कदम उठाए होते तो जहरीली सीरप पीने से बच्चों की होने वाली मौतों को रोका जा सकता था। 

आश्चर्य की बात यह कि राजस्थान और मध्यप्रदेश की सरकारें मानने से ही इंकार करती रही कि बच्चों की मौतें विषाक्त सीरप पीने से हुई है, जब मृतकों की संख्या बढ़ने लगी तब कहीं जाकर सरकार में बेमन से इस हादसे को स्वीकार किया। छिंदवाड़ा में जहरीले कफ सिरप से 11 बच्चों की मौत के बाद प्रशासन ने डॉक्टर प्रवीण सोनी को गिरफ्तार किया गया।  कंपनी और डॉक्टर पर मामला दर्ज कर सरकार ने सिरप व श्रेसन फार्मा की सभी दवाओं पर प्रतिबंध लगाया। इसके बावजूद राजस्थान की सरकार नहीं चेती। राजस्थान में भाजपा सरकार बच्चों की मौतों के मामलों में लीपपोती ही करती नजर आई।

इसे भी पढ़ें: ताकि दवा जहर बन फिर से मासूमों की मौत न बने

तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमेंट की लैब जांच में कोल्ड्रिफ सिरप में 46.2% डायएथिलीन ग्लाइकॉल की पुष्टि हुई। यह जहरीला केमिकल किडनी फेलियर का कारण बनता है। वहीं, नेक्स्ट्रो-डीएस और मेफटॉल पी सिरप की रिपोर्ट सुरक्षित आई। केंद्र सरकार ने बच्चों को कफ सिरप देने में सावधानी बरतने की सलाह दी है। इस मामले की गहराई से जांच करने के लिए केंद्र और राज्य की एजेंसियों ने मिलकर एक बड़ी पड़ताल की। जांचकर्ताओं ने पुष्टि की है कि जिन कफ सिरप पर संदेह था, उनमें कोई भी जहरीला रसायन नहीं मिला है। जांच अभी पूरी नहीं हुई है और अन्य संभावित कारणों की पड़ताल जारी है।

यह पहला मामला नहीं जब कफ सीरप से मौतों को लेकर बवाल मचा है। साल 2022-23 में गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में भी भारतीय कफ सिरप्स से बच्चों की मौत हुई थी। गाम्बिया में 70 बच्चों की मौत हो गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन मौतों को सिरप से जोड़ते हुए कहा था कि दवाओं में विषाक्त पदार्थों का स्तर अस्वीकार्य पाया गया है। इसका मेडेन फार्मास्युटिकल्स और भारत सरकार दोनों ने इसका खंडन किया था। भारत ने कहा था कि घरेलू स्तर पर परीक्षण के दौरान सिरप गुणवत्ता मानकों के अनुरूप पाए गए।

उज़्बेकिस्तान सरकार ने दिसंबर 2022 में 65 बच्चों की जान लेने वाले दूषित कफ सिरप वितरित करने वाली कंपनी पर देश के अनिवार्य गुणवत्ता परीक्षण से बचने के लिए स्थानीय अधिकारियों को 33,000 डॉलर की रिश्वत देने का आरोप लगाया था। कंपनी ने आरोपों से इनकार किया था। इसी तरह दिसंबर 2022 में नेपाल ने 16 भारतीय दवा कंपनियों को काली सूची में डाल दिया। काली सूची में डाली गई 16 कंपनियाँ इन दावों का कोई जवाब नहीं दिया है। वर्ष 2013 में रैनबैक्सी ने एक अमेरिकी अदालत में आपराधिक अपराध के सात मामलों में दोषी ठहराया और 50 करोड़ डॉलर (44.5 करोड़ पाउंड) का जुर्माना भरने पर सहमति जताई, तब भारतीय वाणिज्य मंत्रालय ने दावा किया था कि निहित स्वार्थ भारत में विनिर्माण गुणवत्ता को लेकर छिटपुट मुद्दे उठा रहे हैं।

भारतीय दवा निर्यात की गुणवत्ता के बारे में शिकायत करने वाले केवल अमेरिकी और यूरोपीय देश ही नहीं थे। 2014 में, वियतनाम ने 45 भारतीय दवा कंपनियों को काली सूची में डाल दिया और उसके बाद 2016 में 39 और कंपनियों को काली सूची में डाल दिया। श्रीलंका, घाना, नाइजीरिया और मोज़ाम्बिक  ने भारतीय दवा निर्यात की गुणवत्ता के बारे में शिकायत की थी। इन मामलों में केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया थी कि प्रतिस्पर्धी भारतीय कंपनियों को बदनाम करने की विदेशी दवा कंपनियों की साज़िश के रूप में चित्रित करने की रही है। हमारे देश में भारतीय सरकारी प्रयोगशालाओं में दवाओं के गुणवत्ता परीक्षण में विफल होने के हज़ारों मामले सामने आए हैं। यह आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज है। भारत सरकार द्वारा संचालित एक डेटाबेस में 8,000 से ज़्यादा ऐसी दवाइयाँ सूचीबद्ध हैं जो गुणवत्ता परीक्षणों में विफल रहीं। 

भारत दुनिया का सबसे बड़ा जेनेरिक दवाओं का निर्यातक है, जो विकासशील देशों की अधिकांश चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा करता है। लेकिन यह आरोप कि इसकी दवाओं ने गाम्बिया जैसी त्रासदी पैदा की है और उज़्बेकिस्तान तथा अमेरिका जैसे अन्य देशों में भी विनिर्माण पद्धतियों और गुणवत्ता मानकों पर सवाल खड़े किए गए। तब भारत ने कंपनियों के लिए निर्यात से पहले कफ सिरप के नमूनों की सरकारी अनुमोदित प्रयोगशालाओं में जाँच अनिवार्य करने जैसे कदम उठाए थे। मार्च 2023 में समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में भारत ने 25.4 अरब डॉलर (20 अरब) मूल्य की दवाइयाँ निर्यात कीं। इनमें से 3.6 अरब डॉलर अफ्रीकी देशों को निर्यात की गईं। 

गाम्बिया विवाद और कथित रूप से विषाक्त या अप्रभावी दवाओं के अन्य मामलों के बावजूद, यह उद्योग फल-फूल रहा है। 

सवाल यही है कि आखिर राजनीतिक दल और सरकारें कब तक यूं ही लोगों को भ्रष्ट व्यवस्था का शिकार बनते हुए देखती रहेंगी। किसी एक घटना के स्मृति से विलुप्त होने के बाद ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति आखिर कब थमेगी। देश में इतने कानून होने के बावजूद ऐसी घटनाएं कैसे होती हैं। राजनीतिक दलों को निहित स्वार्थों से हट कर इस पर सोचने की जरूरत है कि आम लोगों के जीवन को कब तक इस तरह लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के हवाले कर दाव पर लगाया जाता रहेगा।

- योगेन्द्र योगी