बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए टिकट के बंटवारे के बाद भले ही चुनाव प्रचार अभियान शुरू हो गया है, लेकिन भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए), कांग्रेस नीत इंडिया महागठबंधन और जनसुराज पार्टी ने अपने-अपने मुख्यमंत्री के नाम पर सस्पेंस अभी तलक बरकरार रखा है। इससे मतदाताओं का संशय बढ़ता जा रहा है। इससे नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव को दिन में ही तारे नज़र आ रहे हैं, क्योंकि गठबंधन सहयोगियों ने इनके पर कतर डाले हैं!
यही वजह है कि एनडीए के घटक दल हिंदुस्तान अवामी मोर्चा (हम) के नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा है कि मुख्यमंत्री का नाम अब स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए। जबकि भाजपा, कांग्रेस और जनसुराज की सुविचारित रणनीति है कि मुख्यमंत्री के नाम का फैसला विधायक दल करेगा। सवाल है कि जीतन राम मांझी ने ऐसा क्यों कहा? क्या नीतीश कुमार के इशारे पर उन्होंने ऐसा कहा, या फिर कोई और बात है।
बताया जाता है कि बिहार में जनता दल यूनाइटेड के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विगत दो दशकों से इस पद पर एन-केन-प्रकारेण काबिज हैं। बीच में उन्होंने कुछ समय के लिए दलित नेता जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनवाया था, लेकिन उनके रंग बदलने के बाद फिर से कमान अपने हाथ में ले लिए। वर्ष 2020 के चुनाव में कम सीटें मिलने के बाद भी भाजपा नेताओं ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाये रखा, जिससे उनके सियासी महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि नीतीश कुमार को बिहार की समाजवादी सियासत का चाणक्य तब से कहा जाता है, जबकि भाजपा के राजनीतिक चाणक्य समझे जाने वाले अमित शाह सिर्फ गुजरात की सियासत तक सीमित थे। ऐसे में नीतीश कुमार और उनके समर्थकों की इच्छा है कि भावी मुख्यमंत्री के लिए नीतीश कुमार के नाम की घोषणा की जाए। जबकि भाजपा सिर्फ इतना कहती है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही राजग चुनाव लड़ रहा है।
समझा जा रहा है कि भाजपा, जदयू, लोजपा आर, हम और रालोमो के बीच टिकट बंटवारे को लेकर जो खींचातानी चली, उससे एनडीए की प्रतिष्ठा और साख दोनों प्रभावित हुई है। इसलिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह फूंक-फूंक कर कोई भी कदम उठा रहे हैं। उन्हें डर है कि उम्रदराज नेता नीतीश कुमार के नाम की घोषणा होते ही युवा वर्ग एनडीए से छिटक सकता है। दूसरा डर यह है कि नीतीश कुमार के नाम की घोषणा होते ही एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर हावी हो सकता है। तीसरा डर यह है कि नीतीश कुमार के विरोधी भीतरघात कर सकते हैं। हालांकि, नीतीश कुमार को एक मौका और दिए जाने की वकालत एनडीए में जारी है।
ठीक इसी प्रकार कांग्रेस भी इंडिया महागठबंधन के भावी मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नाम का ऐलान करने से बचना चाहती है। क्योंकि उसे डर है कि ऐसा करते ही सवर्ण और दलित मतदाता कांग्रेस से छिटक जाएंगे। बता दें कि लोकसभा चुनाव 2024 के पहले या बाद में इस वर्ग का रुझान कांग्रेस की ओर बढ़ा है। वहीं, अल्पसंख्यकों ने भी क्षेत्रीय दलों का साथ छोड़कर कांग्रेस को प्राथमिकता दी है।
कांग्रेस पार्टी का गुप्त तौर पर यह भी मानना है कि राजद सुप्रीमो पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के जंगलराज (2000-2005) को बिहार के लोग नहीं भूले हैं। ये दोनों तेजस्वी यादव के माता-पिता हैं, जिनपर कई तरह के भ्रष्टाचार के मुकदमे चल रहे हैं। आईआरसीटीसी से जुड़े एक घोटाले में पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव का भी नाम शामिल है। खुद तेजस्वी यादव पर भी उपमुख्यमंत्री पद के दुरूपयोग के आरोप लगे हैं।
यही वजह है कि राहुल गांधी उनके नाम के ऐलान से परहेज कर रहे हैं, क्योंकि कांग्रेसी रणनीतिकारों ने भी उन्हें यही सुझाव दिया है। इसी के चलते सीट बंटवारे में भी तेजस्वी यादव, कांग्रेस को उसका वाजिब हिस्सा नहीं दे रहे हैं। जब एक कमजोर कांग्रेस 2020 में 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी तो 2024 के बाद मजबूत हुए कांग्रेस को 100 सीटें नहीं देना गठबंधन न्याय नहीं कहा जा सकता है।
रही बात चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर की नवस्थापित पार्टी जनसुराज की तो वह शुरू से ही बिना मुख्यमंत्री पद के नाम की घोषणा किए ही सभी सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं और एनडीए और इंडिया महागठबंधन को नाको चने चबाने पर मजबूर कर रहे हैं। कहीं उनके उम्मीदवार एनडीए की हार की वजह बनेंगे तो कहीं इंडिया गठबंधन की हार की वजह बनेंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एनडीए और इंडिया गठबंधन की लड़ाई के बीच जनसुराज के उम्मीदवार बाजी भी मार सकते हैं। समझा जाता है कि बिहार के मतदाता टीम लालू प्रसाद और टीम नीतीश कुमार को पिछले 35 सालों से आजमा रहे हैं। इसलिए नए दमखम के साथ चुनाव मैदान में उतरे प्रशांत किशोर के उम्मीदवारों को वह ग्रेस भी दे सकते हैं, क्योंकि राजनीतिक सिरफुटौव्वल के बिहारी मतदाता शुरू से विरोधी रहे हैं। कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, भाजपा, राजद, जदयू, लोजपा को सियासी सबक देने का कारण एक यह भी माना जाता है।
भाजपा-कांग्रेस के राष्ट्रीय सूत्रों का कहना है कि चूंकि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव आपस में भी सांठगांठ करके सत्ता में आ जाते हैं, इसलिए इनकी रणनीति से सावधान रहने में ही राष्ट्रीय दलों की भलाई है। बिहार में क्षेत्रीय दलों की मंशा रहती है कि राष्ट्रीय दल महज उसके पिछलग्गू बने रहें। लेकिन इस बार स्थिति अलग है। राष्ट्रीय दलों के चक्रब्यूह में दोनों नेता बुरी तरह से घिर गए हैं और बार बार पुराने सम्बन्धों की दुहाई देकर अस्तित्व रक्षा की कवायद कर रहे हैं, जो काफी मुश्किल बात है।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक