बच्चों की मानसिक सेहत पर सोशल मीडिया का असर, जानिए किन देशों में लगा प्रतिबंध, बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर नए नियम

डिजिटल युग में सोशल मीडिया बच्चों और युवाओं के जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म्स ने जहां संवाद और रचनात्मकता को बढ़ावा दिया है, वहीं बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर बड़ी चिंताएं भी पैदा की हैं। खासतौर पर कम उम्र के बच्चों पर इसका असर और भी ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है। कई शोध बताते हैं कि सोशल मीडिया की लत बच्चों में तनाव, आत्मग्लानि और अवसाद जैसे गंभीर मानसिक रोगों को जन्म दे रही है।दुनिया में क्यों उठाए जा रहे सख्त कदम?कई देशों ने बच्चों को सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। कहीं आयु सीमा तय की गई है, तो कहीं पैरेंट्स की सहमति अनिवार्य की गई है। दरअसल, बच्चों में ‘फियर ऑफ मिसिंग आउट’ (FOMO) की मानसिकता तेजी से बढ़ रही है, जहां वे दूसरों के पोस्ट और जीवनशैली देखकर खुद को पीछे समझने लगते हैं। यह स्थिति धीरे-धीरे उनके आत्मविश्वास को तोड़ रही है और मानसिक दबाव बढ़ा रही है। इसी वजह से विश्व स्तर पर सरकारें बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर सतर्क हो गई हैं।ऑस्ट्रेलिया का ऐतिहासिक फैसलाऑस्ट्रेलिया ने बच्चों की सुरक्षा को लेकर बड़ा कदम उठाया है। वहां 16 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया अकाउंट बनाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है। सोशल मीडिया कंपनियों को कानूनन यह सुनिश्चित करना होगा कि 16 साल से कम उम्र का बच्चा उनके प्लेटफॉर्म पर मौजूद न हो। अगर कंपनियां इस नियम का पालन नहीं करतीं, तो उन पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाएगा। यह कदम बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए उठाया गया है।इसे भी पढ़ें: अगर नहीं कराया रिचार्ज तो कितने दिन बाद बंद हो जाएगी सिम? यहां जानें पूरी जानकारीफ्रांस का एज वेरिफिकेशन कानूनफ्रांस में 15 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया अकाउंट बनाने के लिए माता-पिता की अनुमति अनिवार्य कर दी गई है। सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों को आदेश दिया है कि वे सख्त एज वेरिफिकेशन सिस्टम लागू करें। इसका उद्देश्य बच्चों के स्क्रीन टाइम को सीमित करना और उन्हें साइबरबुलिंग जैसे खतरों से बचाना है।यूनाइटेड किंगडम का “ऑनलाइन सेफ्टी एक्ट”ब्रिटेन ने सीधे तौर पर बैन नहीं लगाया, लेकिन “ऑनलाइन सेफ्टी एक्ट” के जरिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को बच्चों की सुरक्षा के लिए सख्त मानक तय करने को बाध्य किया है। इसमें बच्चों के लिए सुरक्षित सामग्री, प्राइवेसी की सुरक्षा और उनकी उम्र के अनुसार कंटेंट उपलब्ध कराना शामिल है।जर्मनी का पैरेंटल कंसेंट नियमजर्मनी ने भी बच्चों की सुरक्षा को गंभीरता से लिया है। वहां 16 साल से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया का उपयोग तभी कर सकते हैं जब उनके माता-पिता इसकी अनुमति दें। इस कानून का उद्देश्य ऑनलाइन धोखाधड़ी और शोषण से बच्चों को बचाना है।नॉर्वे की नई योजनानॉर्वे ने भी बच्चों की सुरक्षा की दिशा में कदम उठाए हैं। यहां सोशल मीडिया की न्यूनतम आयु सीमा 13 साल से बढ़ाकर 15 साल करने की योजना बनाई जा रही है। सरकार का मानना है कि इस बदलाव से बच्चे हानिकारक सामग्री और डिजिटल लत से बच पाएंगे।चीन का सख्त नियमचीन बच्चों की डिजिटल सुरक्षा के मामले में सबसे ज्यादा सख्त माना जाता है। वहां 18 साल से कम उम्र के बच्चों को ऑनलाइन गेम खेलने का समय प्रति सप्ताह केवल तीन घंटे तक सीमित कर दिया गया है। इतना ही नहीं, सरकार बच्चों के ऑनलाइन कंटेंट की निगरानी भी करती है ताकि वे अनुचित सामग्री से दूर रह सकें।यूरोपीय संघ (EU) की नीतियूरोपीय संघ के देशों ने डेटा सुरक्षा कानून (GDPR) लागू किया है। इसके तहत 16 साल से कम उम्र के बच्चों के व्यक्तिगत डेटा को प्रोसेस करने के लिए माता-पिता की सहमति जरूरी है। हालांकि, सदस्य देशों को इसमें बदलाव करने का अधिकार है। उदाहरण के लिए बेल्जियम में यह सीमा 13 साल तय की गई है।क्या चुनौतियां हैं लागू करने में?हालांकि ये कानून बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं, लेकिन इन्हें लागू करना आसान नहीं है। सोशल मीडिया कंपनियों के लिए सटीक एज वेरिफिकेशन सिस्टम तैयार करना एक तकनीकी चुनौती है। कई बार बच्चे गलत जानकारी देकर अकाउंट बना लेते हैं। इसके बावजूद, सरकारें बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देती हुई लगातार नियमों को और कड़ा बना रही हैं।स्पष्ट है कि सोशल मीडिया बच्चों के लिए जितना अवसरों का मंच है, उतना ही खतरे का जाल भी। ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, नॉर्वे, चीन और यूरोपीय संघ जैसे देशों ने जिस तरह बच्चों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए हैं, वह बाकी देशों के लिए भी प्रेरणादायक है। भारत जैसे देश में भी इस दिशा में ठोस और कड़े कानून बनाना समय की मांग है, ताकि आने वाली पीढ़ी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल सुरक्षित और जिम्मेदारी के साथ कर सके।- डॉ. अनिमेष शर्मा

Sep 21, 2025 - 19:10
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बच्चों की मानसिक सेहत पर सोशल मीडिया का असर, जानिए किन देशों में लगा प्रतिबंध, बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर नए नियम
डिजिटल युग में सोशल मीडिया बच्चों और युवाओं के जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म्स ने जहां संवाद और रचनात्मकता को बढ़ावा दिया है, वहीं बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर बड़ी चिंताएं भी पैदा की हैं। खासतौर पर कम उम्र के बच्चों पर इसका असर और भी ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है। कई शोध बताते हैं कि सोशल मीडिया की लत बच्चों में तनाव, आत्मग्लानि और अवसाद जैसे गंभीर मानसिक रोगों को जन्म दे रही है।

दुनिया में क्यों उठाए जा रहे सख्त कदम?

कई देशों ने बच्चों को सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। कहीं आयु सीमा तय की गई है, तो कहीं पैरेंट्स की सहमति अनिवार्य की गई है। दरअसल, बच्चों में ‘फियर ऑफ मिसिंग आउट’ (FOMO) की मानसिकता तेजी से बढ़ रही है, जहां वे दूसरों के पोस्ट और जीवनशैली देखकर खुद को पीछे समझने लगते हैं। यह स्थिति धीरे-धीरे उनके आत्मविश्वास को तोड़ रही है और मानसिक दबाव बढ़ा रही है। इसी वजह से विश्व स्तर पर सरकारें बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर सतर्क हो गई हैं।

ऑस्ट्रेलिया का ऐतिहासिक फैसला

ऑस्ट्रेलिया ने बच्चों की सुरक्षा को लेकर बड़ा कदम उठाया है। वहां 16 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया अकाउंट बनाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है। सोशल मीडिया कंपनियों को कानूनन यह सुनिश्चित करना होगा कि 16 साल से कम उम्र का बच्चा उनके प्लेटफॉर्म पर मौजूद न हो। अगर कंपनियां इस नियम का पालन नहीं करतीं, तो उन पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाएगा। यह कदम बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए उठाया गया है।

इसे भी पढ़ें: अगर नहीं कराया रिचार्ज तो कितने दिन बाद बंद हो जाएगी सिम? यहां जानें पूरी जानकारी

फ्रांस का एज वेरिफिकेशन कानून

फ्रांस में 15 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया अकाउंट बनाने के लिए माता-पिता की अनुमति अनिवार्य कर दी गई है। सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों को आदेश दिया है कि वे सख्त एज वेरिफिकेशन सिस्टम लागू करें। इसका उद्देश्य बच्चों के स्क्रीन टाइम को सीमित करना और उन्हें साइबरबुलिंग जैसे खतरों से बचाना है।

यूनाइटेड किंगडम का “ऑनलाइन सेफ्टी एक्ट”

ब्रिटेन ने सीधे तौर पर बैन नहीं लगाया, लेकिन “ऑनलाइन सेफ्टी एक्ट” के जरिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को बच्चों की सुरक्षा के लिए सख्त मानक तय करने को बाध्य किया है। इसमें बच्चों के लिए सुरक्षित सामग्री, प्राइवेसी की सुरक्षा और उनकी उम्र के अनुसार कंटेंट उपलब्ध कराना शामिल है।

जर्मनी का पैरेंटल कंसेंट नियम

जर्मनी ने भी बच्चों की सुरक्षा को गंभीरता से लिया है। वहां 16 साल से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया का उपयोग तभी कर सकते हैं जब उनके माता-पिता इसकी अनुमति दें। इस कानून का उद्देश्य ऑनलाइन धोखाधड़ी और शोषण से बच्चों को बचाना है।

नॉर्वे की नई योजना

नॉर्वे ने भी बच्चों की सुरक्षा की दिशा में कदम उठाए हैं। यहां सोशल मीडिया की न्यूनतम आयु सीमा 13 साल से बढ़ाकर 15 साल करने की योजना बनाई जा रही है। सरकार का मानना है कि इस बदलाव से बच्चे हानिकारक सामग्री और डिजिटल लत से बच पाएंगे।

चीन का सख्त नियम

चीन बच्चों की डिजिटल सुरक्षा के मामले में सबसे ज्यादा सख्त माना जाता है। वहां 18 साल से कम उम्र के बच्चों को ऑनलाइन गेम खेलने का समय प्रति सप्ताह केवल तीन घंटे तक सीमित कर दिया गया है। इतना ही नहीं, सरकार बच्चों के ऑनलाइन कंटेंट की निगरानी भी करती है ताकि वे अनुचित सामग्री से दूर रह सकें।

यूरोपीय संघ (EU) की नीति

यूरोपीय संघ के देशों ने डेटा सुरक्षा कानून (GDPR) लागू किया है। इसके तहत 16 साल से कम उम्र के बच्चों के व्यक्तिगत डेटा को प्रोसेस करने के लिए माता-पिता की सहमति जरूरी है। हालांकि, सदस्य देशों को इसमें बदलाव करने का अधिकार है। उदाहरण के लिए बेल्जियम में यह सीमा 13 साल तय की गई है।

क्या चुनौतियां हैं लागू करने में?

हालांकि ये कानून बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं, लेकिन इन्हें लागू करना आसान नहीं है। सोशल मीडिया कंपनियों के लिए सटीक एज वेरिफिकेशन सिस्टम तैयार करना एक तकनीकी चुनौती है। कई बार बच्चे गलत जानकारी देकर अकाउंट बना लेते हैं। इसके बावजूद, सरकारें बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देती हुई लगातार नियमों को और कड़ा बना रही हैं।

स्पष्ट है कि सोशल मीडिया बच्चों के लिए जितना अवसरों का मंच है, उतना ही खतरे का जाल भी। ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, नॉर्वे, चीन और यूरोपीय संघ जैसे देशों ने जिस तरह बच्चों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए हैं, वह बाकी देशों के लिए भी प्रेरणादायक है। भारत जैसे देश में भी इस दिशा में ठोस और कड़े कानून बनाना समय की मांग है, ताकि आने वाली पीढ़ी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल सुरक्षित और जिम्मेदारी के साथ कर सके।

- डॉ. अनिमेष शर्मा