चीन के लिए रणनीतिक हथियार बन गए हैं रेयर अर्थ
इलेक्ट्रॉनिक, ऑटोमोटिव और रक्षा प्रणालियों के लिए रेयर अर्थ खनिज काफी जरूरी हैं। चीन ने इस पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली है। यही पकड़ उसे व्यापार से जुड़ी बातचीत के दौरान अमेरिका पर काफी ज्यादा दबाव बनाने की स्थिति में बनाए हुए है।

निक मार्टिन
इलेक्ट्रॉनिक, ऑटोमोटिव और रक्षा प्रणालियों के लिए रेयर अर्थ खनिज काफी जरूरी हैं। चीन ने इस पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली है। यही पकड़ उसे व्यापार से जुड़ी बातचीत के दौरान अमेरिका पर काफी ज्यादा दबाव बनाने की स्थिति में बनाए हुए है। वैश्विक स्तर पर रेयर अर्थ के 60 फीसदी उत्पादन और 90 फीसदी रिफाइनिंग पर चीन का नियंत्रण है। इस वजह से, वह रेयर अर्थ खनिजों और परमानेंट मैग्नेट के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर अपनी पकड़ को और मजबूत कर रहा है।
चीनी निर्यात पर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ओर से लगाए गए ज्यादा शुल्कों के जवाब में चीन ने इन खनिजों के निर्यात पर जो प्रतिबंध लगाए थे, उनमें बाद में थोड़ी ढील दी गई थी। ऐसा इसलिए किया गया था, ताकि अमेरिका के साथ व्यापार से जुड़ी बातचीत को आगे बढ़ाया जा सके।
हालांकि, गुरुवार को चीन ने एक बार फिर से रेयर अर्थ खनिजों पर बड़े स्तर पर नए निर्यात प्रतिबंधों को लागू करने की घोषणा की। इसमें प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी पर लगे प्रतिबंधों का दायरा बढ़ाया गया। साथ ही, विदेशी रक्षा एवं सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनियों को किए जाने वाले निर्यात को स्पष्ट रूप से सीमित कर दिया गया। यह कदम अमेरिकी विदेश प्रत्यक्ष उत्पाद नियम पर बीजिंग का पलटवार माना जा रहा है। दरअसल, अमेरिका ने अपने विदेश प्रत्यक्ष नियम के तहत तीसरे देशों से चीन को होने वाले चिप निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था।
शी और ट्रंप की मुलाकात के पहले चीन का मास्टरस्ट्रोक?
इसने एक बार फिर से अमेरिका की कमजोरियों को उजागर कर दिया। इसकी मुख्य वजह यह है कि अमेरिका के पास इन रेयर अर्थ खनिजों को अपने देश में रिफाइन करने की पर्याप्त क्षमता नहीं है।
बर्लिन स्थित सिनोलिटिक्स रिसर्च हाउस चीन की अर्थव्यवस्था और औद्योगिक नीतियों पर काम करती है। इसके मैनेजिंग पार्टनर योस्ट वुब्बेके ने डीडब्ल्यू को बताया, "पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था चीन से आने वाले इन चुम्बकों पर निर्भर करती है। अगर आप इनका निर्यात बंद कर देंगे, तो इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा।”
जब इससे पहले चीन ने इन खनिजों के निर्यात को लेकर प्रतिबंध लगाए थे, तो आपूर्ति श्रृंखला बुरी तरह चरमरा गई थी। अमेरिकी उद्योगों पर इसका गंभीर असर देखने को मिला था। जैसे, कार निर्माता कंपनी फोर्ड ने मई में घोषणा की थी कि रेयर अर्थ की आपूर्ति में कमी की वजह से उसे शिकागो में एसयूवी उत्पादन में कटौती करनी पड़ी है। ऑटो पार्ट्स आपूर्तिकर्ता एप्टिव और बोर्गवार्नर ने घोषणा की थी कि वे आपूर्ति की कमी से निपटने के लिए कम या बिना रेयर अर्थ वाले मोटर विकसित कर रहे हैं। चीनी गतिविधियों पर नजर रखने वाले ऑटोमोटिव सलाहकार माइकल ड्यूने ने जून में द न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया था कि चीन के प्रतिबंधों से ‘अमेरिका के ऑटोमोटिव असेंबली प्लांट ठप हो सकते हैं।'
अमेरिका में कम हो रहा रेयर अर्थ का भंडार
चीन स्थित अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स ने मई में एक सर्वे किया था। इसमें पाया गया कि 75 फीसदी अमेरिकी कंपनियों को आशंका है कि उनके रेयर अर्थ भंडार कुछ ही महीनों में खत्म हो जाएंगे। अमेरिकी उत्पादकों ने वाशिंगटन से प्रतिबंधों को समाप्त करने के लिए बातचीत करने का आग्रह किया। जून में लंदन में व्यापार वार्ता के दौरान चीन ने निर्यात लाइसेंस को तेजी से मंजूरी देने पर सहमति जताई। हालांकि, लंबित मामलों की संख्या अभी भी बहुत ज्यादा है। ऐसे में चीन की ओर से फिर से लगाए गए इन प्रतिबंधों से हाल के राहत प्रयासों पर पानी फिरने का खतरा है।
दरअसल, इससे ऐसा लग रहा है कि चीन रेयर अर्थ का इस्तेमाल भू-राजनीतिक हथियार के तौर पर कर रहा है और ऐसा उसने पहली बार नहीं किया है। 2010 में क्षेत्रीय विवाद होने पर, बीजिंग ने दो महीने के लिए जापान को इन खनिजों का निर्यात रोक दिया था। इस कदम से कीमतें अचानक बढ़ गई थीं और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में मौजूद खतरे उजागर हो गए थे।
न्यूयॉर्क स्थित सीईओ एडवाइजरी फर्म ‘टेनेओ' के प्रबंध निदेशक गैब्रियल विल्डाऊ ने चेतावनी दी कि चीन की निर्यात लाइसेंसिंग व्यवस्था स्थायी है। ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ ट्रंप के टैरिफ के जवाब में लगाया गया है। जून में अपने क्लाइंट को लिखे एक नोट में उन्होंने कहा था कि ‘आपूर्ति में कटौती का खतरा हमेशा बना रहेगा', जिससे अमेरिका पर दबाव बनाए रखने की चीन की मंशा का पता चलता है।
चीनी प्रतिबंधों से यूरोपीय उद्योग भी प्रभावित
सिर्फ अमेरिका ही रेयर अर्थ की कमी से प्रभावित नहीं हो रहा है, बल्कि यूरोपीय संघ भी अपने 98 फीसदी रेयर अर्थ मैग्नेट के लिए चीन पर निर्भर है। ये मैग्नेट गाड़ियों के पुर्जे, फाइटर जेट और मेडिकल इमेजिंग डिवाइस जैसे महत्वपूर्ण उपकरणों के लिए काफी जरूरी होते हैं।
यूरोपियन एसोसिएशन ऑफ ऑटोमोटिव सप्लायर्स ने जून में चेतावनी दी थी कि चीन के निर्यात प्रतिबंधों के कारण यह क्षेत्र ‘पहले से ही काफी रुकावटों का सामना कर रहा है। साथ ही, उसने आगे कहा कि इसके कारण ‘पूरे यूरोप में कई उत्पादन इकाइयां और संयंत्र बंद हो गए हैं। आने वाले हफ्तों में भंडार कम होने के कारण और भी ज्यादा असर पड़ने की आशंका है।'
इटैलियन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल पॉलिटिकल स्टडीज (आईएसपीआई) के रिसर्च फेलो अल्बर्टो प्रिना सेराई ने डीडब्ल्यू को बताया कि ब्रसेल्स को तुरंत ‘समय खरीदने' की जरूरत है, यानी जल्दबाजी से बचने और तैयारी के लिए समय लेने की जरूरत है।
उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा, "उत्पादन के बड़े पैमाने को देखते हुए हम पश्चिमी देश, चीन की बराबरी नहीं कर सकते। उनके पास खनन से लेकर अंतिम उत्पाद (चुंबक) तक की एक ऐसी सप्लाई चेन है जिसकी नकल करना बहुत मुश्किल है। कम समय में चीन से पूरी तरह अलग होना या संबंध तोड़ना ‘अकल्पनीय' है, लेकिन यूरोपीय संघ को बेहतर औद्योगिक रणनीति बनाकर इस आपसी निर्भरता को संभालना चाहिए।”
यूरोपीय आयोग ने क्रिटिकल रॉ मैटेरियल्स एक्ट के तहत एक बड़ा लक्ष्य रखा है। 2030 तक यूरोपीय संघ के सदस्य देश घरेलू स्तर पर 7,000 टन चुम्बक का उत्पादन करेंगे। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कई खनन, रिफाइनिंग और रीसाइक्लिंग परियोजनाएं शुरू की गई हैं। इसी दिशा में, इस साल एस्टोनिया में एक विशाल रेयर अर्थ प्रोसेसिंग प्लांट शुरू हो गया है। दक्षिण-पश्चिमी फ्रांस में एक और बड़ी इकाई 2026 में चालू हो जाएगी।
मई में अपने चीनी समकक्ष के साथ बैठक के बाद, यूरोपीय संघ के व्यापार आयुक्त मारोस सेफकोविक ने चीन के प्रतिबंधों को यूरोप के ऑटो और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए ‘बेहद विनाशकारी' बताया था। इसके बाद, चीन ने यूरोपीय संघ की कंपनियों को लाइसेंस देने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए एक ‘ग्रीन चैनल' का प्रस्ताव रखा था, लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अनुमति में अभी भी 45 दिन तक का समय लग सकता है।
भारत ने घरेलू आपूर्ति बढ़ाने के लिए निर्यात में कटौती की
भारत के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रेयर अर्थ भंडार है। यह करीब 69 लाख मीट्रिक टन है। इसके बावजूद, यह वैश्विक आपूर्ति में 1 फीसदी से भी कम योगदान दे पाता है। दरअसल, भारत के पास इन खनिजों को उच्च तकनीक के क्षेत्र में इस्तेमाल लायक बनाने के लिए रिफाइनिंग की पर्याप्त क्षमता नहीं है। नतीजतन, भारत को भी चीनी निर्यात पर निर्भर रहना पड़ता है और उस पर भी प्रतिबंधों का असर पड़ा है।
हालांकि, भारत ने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और मध्य एशियाई देशों के साथ समझौते किए हैं, ताकि वह आपूर्ति के लिए किसी एक देश पर निर्भर न रहे। लेकिन अब तक इस दिशा में काफी कम प्रगति हुई है।
जून में, नई दिल्ली ने सरकारी खनन कंपनी आईआरईएल को घरेलू स्तर पर निकाले गए खनिजों के निर्यात पर रोक लगाने का निर्देश दिया, जिसमें जापान को होने वाली आपूर्ति भी शामिल थी। यह फैसला भारत के उत्पादकों के लिए इन खनिजों की आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए लिया गया। 2024 में, आईआरईएल ने अपने द्वारा खनन किए गए कुल 2,900 मीट्रिक टन रेयर अर्थ का एक-तिहाई हिस्सा जापानी प्रोसेसिंग फर्म के जरिए जापान को दिया था।
चीन के प्रतिबंधों से निपटने की तैयारी कर रहा जी7
चूंकि चीन के एकाधिकार को फिलहाल कोई चुनौती मिलने की संभावना नहीं है। इसलिए, जून में कनाडा में हुई जी7 नेताओं की बैठक में यह तय किया गया कि अगर भविष्य में रेयर अर्थ की कमी होती है, तो वे मिलकर उसका सामना करेंगे। उन्होंने यह भी वादा किया कि चीन जैसे जानबूझकर बाजार को प्रभावित करने वाले कदमों के खिलाफ संयुक्त रूप से कार्रवाई करेंगे। इन खनिजों के उत्पादन व आपूर्ति के स्रोतों को विविध बनाने की दिशा में काम करेंगे। वे आपूर्ति के लिए किसी एक देश पर निर्भर नहीं रहेंगे।
बेहतर और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले इस समूह ने ‘जी7 क्रिटिकल मिनरल्स एक्शन प्लान' नामक दस्तावेज में यह घोषणा की। उन्होंने कहा, "हम अपनी अर्थव्यवस्थाओं के लिए इस खतरे के साथ-साथ, महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करने के रास्ते में आने वाले अन्य खतरों की पहचान करेंगे। हम अपनी आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए एक साथ और जी7 से बाहर के साझेदारों के साथ भी काम करेंगे।”
आईएसपीआई की प्रिना सेराई ने डीडब्ल्यू को बताया कि जैसे-जैसे बेहतर तकनीकें सामने आएंगी, पश्चिमी देशों के लिए रेयर अर्थ तक पहुंच और भी अहम होती जाएगी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मध्यम अवधि में ‘रोबोटिक्स और ह्यूमनाइड्स' (यानी मानव रूप वाले रोबोट) एक बड़ा और महत्वपूर्ण बाजार बन सकते हैं।
कई देश बढ़ा रहे हैं रेयर अर्थ का उत्पादन
अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के मुताबिक, चीन के 44 मिलियन टन रेयर अर्थ भंडार के बाद, ब्राजील, भारत और ऑस्ट्रेलिया के पास सबसे ज्यादा भंडार हैं। यह कुल मिलाकर करीब 31।3 मिलियन टन है। हाल ही में कजाकिस्तान में करीब 20 मिलियन टन रेयर अर्थ भंडार की खोज की गई है।
रेयर अर्थ के खनन और प्रोसेसिंग में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सबसे आगे हैं। जबकि, अन्य देशों की योजनाएं अभी भी अपने शुरुआती या मध्य चरणों में हैं। इन योजनाओं को हकीकत में बदलने के लिए पांच से दस साल का समय, पर्यावरण संबंधी चिंताओं को दूर करने और अरबों डॉलर के निवेश की जरूरत होगी।
भविष्य में रेयर अर्थ का एक और स्रोत ग्रीनलैंड हो सकता है। हालांकि, वहां का मौसम बहुत खराब रहता है। अमेरिका और यूरोपीय संघ पहले ही सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। 2023 में दक्षिण ग्रीनलैंड में स्थित टैनब्रीज परियोजना को खनन उद्योग से जुड़े डेटा उपलब्ध कराने वाली कंपनी ‘माइनिंग इंटेलिजेंस' ने टॉप रेयर अर्थ प्रोजेक्ट का दर्जा दिया था, जहां लगभग 28।2 मिलियन टन खनिज होने का अनुमान लगाया गया है।
जब तक रेयर अर्थ की वैकल्पिक आपूर्ति बड़े पैमाने पर बढ़ नहीं जाती, तब तक चीन इस महत्वपूर्ण संसाधन का इस्तेमाल एक शक्तिशाली भू-राजनीतिक हथियार के रूप में करता रहेगा। साथ ही, वैश्विक उद्योगों और अन्य देशों पर अपना दबाव बनाए रखेगा।
वहीं, सिनोलिटिक्स के वुब्बेके को इस बात पर संदेह है कि शायद ही अन्य देश कभी भी रेयर अर्थ पर चीन के मजबूत पकड़ का मुकाबला कर पाएंगे। इसकी वजह यह है कि इस क्षेत्र में आगे होने के कारण चीन को जो भारी लाभ मिलता है, वह दूसरों के लिए एक बड़ी बाधा है।
वुब्बेके ने डीडब्ल्यू को बताया, "एक बार जब चीन निर्यात नियंत्रण हटा लेगा, तो कीमतें कम हो जाएंगी और आपूर्ति की स्थिति सुधर जाएगी। फिर, कोई भी चीन पर अत्यधिक निर्भरता के बारे में कभी बात नहीं करेगा, क्योंकि तब बात कीमतों पर होगी।” उन्होंने आगे कहा, "गैर-चीनी खदानों और रिफाइनरियों को इन कीमतों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है और आमतौर पर वे ऐसा नहीं कर पाते हैं।”