Vakratunda Sankashti Chaturthi 2025: वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत से जीवन को मिलती है नई ऊर्जा

आज वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत है, हिंदू धर्म में कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन न सिर्फ करवा चौथ बल्कि वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी तिथि के लिए भी जानी जाती है। वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी एक अत्यंत पावन अवसर है जो भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ माध्यम बनता है। वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत जीवन को नई ऊर्जा, विश्वास और संतुलन प्रदान करता है तो आइए हम आपको वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। जानें वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी के बारे में संपूर्ण सनातन धर्म में कार्तिक माह का अत्यंत पावन स्थान है। इस महीने भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, और इसी शुभ अवसर को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इसके अगले दिन तुलसी विवाह होता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को दो महत्वपूर्ण पर्व एक साथ मनाए जाते हैं करवा चौथ और वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत भगवान गणेश के पूजन से ही की जाती है। उन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि, समृद्धि के देवता माना जाता है। पंडितों के अनुसार भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और सुख, सौभाग्य तथा धन-धान्य की वृद्धि होती है। यह दिन शुद्धि, बाधाओं से मुक्ति और मानसिक बल प्राप्त करने का भी प्रतीक है। शास्त्रों के अनुसार गणेश जी के भक्त इस दिन उपवास करते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं, लड्डू व दूर्वा अर्पित करते हैं और रात्रि में चंद्र दर्शन के साथ व्रत पूर्ण करते हैं।इसे भी पढ़ें: Karwa Chauth Vrat 2025: करवा चौथ पर ऐसे करें चंद्र पूजन, जानें शुभ मुहूर्त और व्रत की संपूर्ण विधिवक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी के साथ करवा चौथ का भी होगा व्रतहिंदू धर्म में कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व माना गया है क्योंकि यह न सिर्फ करवा चौथ व्रत के लिए जानी जाती है, बल्कि इसे वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना लिए हुए प्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश जी की विशेष पूजा की जाती है। वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत में भगवान श्री गणेश जी के साथ चंद्र देवता की पूजा का विधान है।करवा चौथ व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना के लिए रखा जाता है। यह व्रत करवा माता को समर्पित होता है और इसका विशेष सामाजिक एवं पारिवारिक महत्व है। इसी दिन वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का पर्व भी मनाया जाता है, जो पूरी तरह से भगवान गणेश को समर्पित होता है। वक्रतुंड गणेश जी का एक विशेष रूप है, जो विघ्नों को दूर करने वाला और बाधाओं से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है। इस दिन गणेश जी का उपवास और पूजा करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।विशेष योग में मनाया जा रहा है वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। आसान शब्दों में कहें तो सूर्योदय होने के बाद तिथि की गणना की जाती है। वहीं, संकष्टी चतुर्थी पर चंद्र दर्शन किया जाता है। इसके लिए चतुर्थी तिथि का बारीकी से अवलोकन किया जाता है। इस साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का व्रत शुक्रवार 10 अक्टूबर को रखा जाएगा। इस शुभ अवसर पर चंद्र दर्शन का शुभ योग शाम 08 बजकर 13 मिनट पर है।जानें वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्तपंचांग के आधार पर देखा जाए तो वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी यानि कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तिथि 9 अक्टूबर दिन गुरुवार को रात में 10 बजकर 54 मिनट से शुरू होगी। इस तिथि का समापन 10 अक्टूबर दिन शुक्रवार को शाम 7 बजकर 38 मिनट पर होगा। उदयातिथि को देखते हुए वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी 10 अक्टूबर शुक्रवार को है।वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी का धार्मिक महत्व हिंदू मान्यता के अनुसर वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी व्रत वाले दिन रिद्धि-सिद्धि के दाता भगवान श्री गणेश जी के वक्रतुण्ड स्वरूप की पूजा की जाती है। पंडितों के अनुसार इस दिन टेढ़ी सूंड़ वाली गणपति की पूजा करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है। अष्टविनायक में गणपति का पहला स्वरूप वक्रतुण्ड ही माना जाता है। भगवान श्री गणेश जी ने अपना यह स्वरूप मत्सरासुर नामक दैत्य का वध करने के लिए धारण किया था। हालांकि इस युद्ध में मत्सरासुर राक्षस गणपति से माफी मांग अपने प्राणों को बचा लिया था।वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी पर ऐसे करें पूजा पंडितों के अनुसार वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी का दिन खास होता है इसलिए इस दिन विशेष पूजा करें। वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी पर गणपति का आशीर्वाद पाने के लिए स्नान-ध्यान करने के बाद उनकी मूर्ति या चित्र को जल से पवित्र करें। इसके बाद रोली, चंदन, हल्दी आदि से तिलक करने के बाद पुष्प, फल, मोदक, लड्डू, नारियल, आदि अर्पित करें। इसके बाद वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी की कथा का पाठ और गणपति के मंत्र का जप करें। पूजा के अंत में श्रद्धा और विश्वास के साथ आरती करें। फिर रात के समय चंद्र देवता का दर्शन करने के बाद उन्हें अर्घ्य देकर व्रत को पूर्ण करें।वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथाएं भी हैं खास हिन्दू धर्म में वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी की दो मुख्य पौराणिक कथाएं हैं: पहली कहानी चंद्रदेव के श्राप से जुड़ी है, जिन्होंने गणेश जी के रूप का उपहास किया था, जिससे उन्हें भक्तों पर झूठे आरोप लगने का श्राप मिला, और चतुर्थी व्रत से ही उन्हें मुक्ति मिली। दूसरी कहानी में, भगवान शिव और देवी पार्वती के द्वारा बनाए गए मिट्टी के एक बालक को शिवजी के पक्ष में परिणाम बताने के कारण क्रोधित पार्वती ने उसे लंगड़ा होने का श्राप दिया था, और बाद में गणेश जी के व्रत से बालक को मुक्ति मिली।  प्राचीन काल में चंद्रदेव ने गणेश जी के रूप का उपहास किया, जिससे गणेश जी क्रोधित हुए और चंद्रदेव को श्राप दिया। श्राप यह था कि जो भी चंद्रदेव का दर्शन करेगा, वह झूठे आरोप में फंस जाएगा

Oct 10, 2025 - 22:02
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Vakratunda Sankashti Chaturthi 2025: वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत से जीवन को मिलती है नई ऊर्जा
आज वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत है, हिंदू धर्म में कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन न सिर्फ करवा चौथ बल्कि वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी तिथि के लिए भी जानी जाती है। वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी एक अत्यंत पावन अवसर है जो भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ माध्यम बनता है। वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत जीवन को नई ऊर्जा, विश्वास और संतुलन प्रदान करता है तो आइए हम आपको वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 

जानें वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी के बारे में 

संपूर्ण सनातन धर्म में कार्तिक माह का अत्यंत पावन स्थान है। इस महीने भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, और इसी शुभ अवसर को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इसके अगले दिन तुलसी विवाह होता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को दो महत्वपूर्ण पर्व एक साथ मनाए जाते हैं करवा चौथ और वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत भगवान गणेश के पूजन से ही की जाती है। उन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि, समृद्धि के देवता माना जाता है। पंडितों के अनुसार भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और सुख, सौभाग्य तथा धन-धान्य की वृद्धि होती है। यह दिन शुद्धि, बाधाओं से मुक्ति और मानसिक बल प्राप्त करने का भी प्रतीक है। शास्त्रों के अनुसार गणेश जी के भक्त इस दिन उपवास करते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं, लड्डू व दूर्वा अर्पित करते हैं और रात्रि में चंद्र दर्शन के साथ व्रत पूर्ण करते हैं।

इसे भी पढ़ें: Karwa Chauth Vrat 2025: करवा चौथ पर ऐसे करें चंद्र पूजन, जानें शुभ मुहूर्त और व्रत की संपूर्ण विधि

वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी के साथ करवा चौथ का भी होगा व्रत

हिंदू धर्म में कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व माना गया है क्योंकि यह न सिर्फ करवा चौथ व्रत के लिए जानी जाती है, बल्कि इसे वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना लिए हुए प्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश जी की विशेष पूजा की जाती है। वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत में भगवान श्री गणेश जी के साथ चंद्र देवता की पूजा का विधान है।

करवा चौथ व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना के लिए रखा जाता है। यह व्रत करवा माता को समर्पित होता है और इसका विशेष सामाजिक एवं पारिवारिक महत्व है। इसी दिन वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का पर्व भी मनाया जाता है, जो पूरी तरह से भगवान गणेश को समर्पित होता है। वक्रतुंड गणेश जी का एक विशेष रूप है, जो विघ्नों को दूर करने वाला और बाधाओं से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है। इस दिन गणेश जी का उपवास और पूजा करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।

विशेष योग में मनाया जा रहा है वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी 

सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। आसान शब्दों में कहें तो सूर्योदय होने के बाद तिथि की गणना की जाती है। वहीं, संकष्टी चतुर्थी पर चंद्र दर्शन किया जाता है। इसके लिए चतुर्थी तिथि का बारीकी से अवलोकन किया जाता है। इस साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का व्रत शुक्रवार 10 अक्टूबर को रखा जाएगा। इस शुभ अवसर पर चंद्र दर्शन का शुभ योग शाम 08 बजकर 13 मिनट पर है।

जानें वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त

पंचांग के आधार पर देखा जाए तो वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी यानि कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तिथि 9 अक्टूबर दिन गुरुवार को रात में 10 बजकर 54 मिनट से शुरू होगी। इस तिथि का समापन 10 अक्टूबर दिन शुक्रवार को शाम 7 बजकर 38 मिनट पर होगा। उदयातिथि को देखते हुए वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी 10 अक्टूबर शुक्रवार को है।

वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी का धार्मिक महत्व 

हिंदू मान्यता के अनुसर वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी व्रत वाले दिन रिद्धि-सिद्धि के दाता भगवान श्री गणेश जी के वक्रतुण्ड स्वरूप की पूजा की जाती है। पंडितों के अनुसार इस दिन टेढ़ी सूंड़ वाली गणपति की पूजा करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है। अष्टविनायक में गणपति का पहला स्वरूप वक्रतुण्ड ही माना जाता है। भगवान श्री गणेश जी ने अपना यह स्वरूप मत्सरासुर नामक दैत्य का वध करने के लिए धारण किया था। हालांकि इस युद्ध में मत्सरासुर राक्षस गणपति से माफी मांग अपने प्राणों को बचा लिया था।

वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी पर ऐसे करें पूजा 

पंडितों के अनुसार वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी का दिन खास होता है इसलिए इस दिन विशेष पूजा करें। वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी पर गणपति का आशीर्वाद पाने के लिए स्नान-ध्यान करने के बाद उनकी मूर्ति या चित्र को जल से पवित्र करें। इसके बाद रोली, चंदन, हल्दी आदि से तिलक करने के बाद पुष्प, फल, मोदक, लड्डू, नारियल, आदि अर्पित करें। इसके बाद वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी की कथा का पाठ और गणपति के मंत्र का जप करें। पूजा के अंत में श्रद्धा और विश्वास के साथ आरती करें। फिर रात के समय चंद्र देवता का दर्शन करने के बाद उन्हें अर्घ्य देकर व्रत को पूर्ण करें।

वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथाएं भी हैं खास 

हिन्दू धर्म में वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी की दो मुख्य पौराणिक कथाएं हैं: पहली कहानी चंद्रदेव के श्राप से जुड़ी है, जिन्होंने गणेश जी के रूप का उपहास किया था, जिससे उन्हें भक्तों पर झूठे आरोप लगने का श्राप मिला, और चतुर्थी व्रत से ही उन्हें मुक्ति मिली। दूसरी कहानी में, भगवान शिव और देवी पार्वती के द्वारा बनाए गए मिट्टी के एक बालक को शिवजी के पक्ष में परिणाम बताने के कारण क्रोधित पार्वती ने उसे लंगड़ा होने का श्राप दिया था, और बाद में गणेश जी के व्रत से बालक को मुक्ति मिली।  

प्राचीन काल में चंद्रदेव ने गणेश जी के रूप का उपहास किया, जिससे गणेश जी क्रोधित हुए और चंद्रदेव को श्राप दिया। श्राप यह था कि जो भी चंद्रदेव का दर्शन करेगा, वह झूठे आरोप में फंस जाएगा। पश्चाताप करने पर गणेश जी ने कहा कि भाद्रपद मास की चतुर्थी को व्रत रखने वाले भक्तों को संकटों से मुक्ति मिलेगी। इसी घटना से संकष्टी चतुर्थी की परंपरा शुरू हुई, और वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी में भक्त गणेश जी के वक्रतुंड रूप की पूजा करते हैं।

- प्रज्ञा पाण्डेय