Aghor Chaturdashi 2025: अघोर चतुर्दशी व्रत पर विशेष व्रतों का है विधान

आज अघोर चतुर्दशी व्रत है, इस दिन भगवान शिव के अघोर रूप की पूजा होती है। अघोर चतुर्दशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। अघोर चतुर्दशी व्रत से शक्तियों की सिद्धि होती है और पितृ प्रसन्न होते हैं तो आइए हम आपको अघोर चतुर्दशी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। जानें अघोर चतुर्दशी व्रत का महत्व हिन्दू पचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अघोर चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इस व्रत का देश और देश के बाहर विशेष महत्व रहा है। तंत्र शास्त्र से संबंधित कार्यों में भी इस दिन की विशेषता प्रमुख रही है। अपने नाम के स्वरुप ही यह समय कठोर साधना एवं शक्ति सिद्धि प्राप्ति का समय होता है। इस चतुर्दशी को कई जगहों पर ड्गयाली भी कहा जाता है। यह त्यौहार मुख्य रूप से दो दिनों तक मनाया जाता है, पहला दिन छोटी अघोर नाम से पुकारा जाता है और दूसरा दिन बड़ी अघोर चतुर्दशी कहलाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार अघोर चतुर्दशी को अमावस्या भी कहा जाता है।इसे भी पढ़ें: Paryushan 2025: आत्मउन्नयन एवं जीवन-जागृति का पर्व है पर्युषणइस दिन व्रत रखकर, भगवान शिव की पूजा करके, पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण करके अघोर चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव के अघोर रूप की पूजा की जाती है, जो कि तांत्रिकों और अघोरियों के लिए विशेष महत्व रखती है। अघोर चतुर्दशी पर पितृों की पूजा और श्राद्ध करने का भी विधान है। अघोर चतुर्दशी को सिद्धियों की प्राप्ति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन व्रत और पूजा-पाठ करने से सुख-समृद्धि, शांति और कल्याण की प्राप्ति होती है।अघोर चतुर्दशी हिमाचल के अलावा उत्तराखंड, असम, सिक्किम और नेपाल में भी मनाई जाती है। इस दिन कुशा को धरती से उखाड़कर एकत्रित करके रखना शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत, स्नान, दान, जप, होम और पितरों के लिए भोजन, वस्त्र आदि देना उतम रहता है। शास्त्रों के हिसाब से इस दिन प्रात:काल में स्नान करके संकल्प करें और उपवास करना चाहिए। कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भर कर कुशा के पास दक्षिण दिशा कि ओर अपना मुख करके बैठ जाएं तथा अपने सभी पितरों को जल दें, अपने घर परिवार, स्वास्थ आदि की शुभता की प्रार्थना करनी चाहिए।देश के विभिन्न हिस्सों में मनाया जाता है अघोर चतुर्दशी पर्वअघोर चतुर्दशी का पर्व हिमाचल प्रदेश, असम, सिक्किम, उत्तराखंड, बंगाल और नेपाल में मनाया जाता है। इस दिन को अघोर साधकों के लिए विशेष माना जाता है। भगवान शिव को इससे संबंधित माना जाता है। विशेष रूप से इस दिन दुर्वा को विशेष रूप से पृथ्वी से उखाड़कर रखना होता है जो विशेष रुप से बहुत फलदायी माना जाता है। अघोर चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान, ध्यान और पूजा पाठ करने का विधान होता है। इसके साथ ही इस दिन जप करना और पितरों की शांति के लिए दान करना महत्वपूर्ण माना जाता है।ऐसे मनाएं अघोर चतुर्दशी व्रत हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन विशेष रूप से प्रातः स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए और अपने सभी पितरों को जल और कुश दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जल अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में सफलता मिलती है और परिवार में सुख-शांति बढ़ती है। इस दिन शुद्ध मन द्वारा व्रत का पालन किया जाता है और भगवान शिव की पूजा होती है अघोर स्वरुप शिव की पूजा के साथ ही तंत्र कार्यों को करने का समय भी होता है। ये पूजा सात्विक एवं तामसिक दोनों ही रुपों में होती है। इस दिन सिद्धियों को पाने के लिए तप किया जाता है। पितरों से संबंधित कार्य किए जाते हैं। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए व्रत रखना और विधि-विधान से उनकी पूजा करना भी बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।जानें अघोर चतुर्दशी व्रत के बारे में शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक अमावस्या तिथि का स्वामी पितृ हैं, इसलिए इस दिन उनकी पूजा को महत्व दिया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाला पितृ पक्ष अघोर चतुर्दशी के दिन से शुरू होता है, इस कारण से भी इस दिन सभी देवताओं में शिव जी की पूजा करना सबसे अनुकूल समय माना जाता है। अघोर चतुर्दशी अघोर संप्रदाय से जुड़ा एक अनुष्ठान है। 2025 में, अघोर चतुर्दशी 21 अगस्त को मनाई जाएगी। यह एक संप्रदाय है जिसके अनुयायी नेपाल और भारत के मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश राज्यों में हैं। इस संप्रदाय के सबसे प्रमुख गुरुओं में से एक, अघोर आचार्य महाराज किनाराम का जन्म अघोर चतुर्दशी के दिन हुआ था। बाबा किनाराम वाराणसी के प्राचीन अघोर पीठ के संस्थापक हैं।अघोर चतुर्दशी भद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन मनाई जाती है। इसे स्थानीय भाषा में डगयाली भी  कहा जाता है। यह पर्व दो दिन तक चलता है जिसमें प्रथम दिन को छोटी डगयाली और उसके अगले दिन अमावस्या को बड़ी डगयाली कहते हैं। यह अघोर चतुर्दशी भगवान शिव के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।अघोर आचार्य महाराज किनाराम का जन्म उत्तर भारत में प्रचलित पारंपरिक हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ था। ऐसा माना जाता है कि उनका दिव्य जन्म वर्ष 1658 ई. में हुआ था। बाबा किनाराम द्वारा रचित "विवेकसार" को अघोर सिद्धांतों पर सबसे प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। अघोर एक अवधूत या अभयधर होता है। जिसने आत्मा की अमरता (अविनाशी) को जान लिया हो, जो सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त हो और निरंतर "तत्त्वमसि" के चिंतन में लीन रहता हो, उसे अवधूत कहा जाता है।अघोर चतुर्दशी के दिन ऐसे करें तर्पण अघोर चतुरदशी के दिन तर्पण कार्य भी किए जाते हैं, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन शिव के गणों भूत-प्रेत आदि सभी को स्वतंत्रता प्राप्त होती है। सोलन, सिरमौर और शिमला जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में परिजनों को बुरी आत्माओं के प्रभाव से बचाने के लिए लोग घरों के दरवाजे व खिड़कियों पर कांटेदार झाडिय़ों को लगाते हैं यह परंपरा सदियों से चली आ रही

Aug 22, 2025 - 09:19
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Aghor Chaturdashi 2025: अघोर चतुर्दशी व्रत पर विशेष व्रतों का है विधान
आज अघोर चतुर्दशी व्रत है, इस दिन भगवान शिव के अघोर रूप की पूजा होती है। अघोर चतुर्दशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। अघोर चतुर्दशी व्रत से शक्तियों की सिद्धि होती है और पितृ प्रसन्न होते हैं तो आइए हम आपको अघोर चतुर्दशी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 

जानें अघोर चतुर्दशी व्रत का महत्व 

हिन्दू पचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अघोर चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इस व्रत का देश और देश के बाहर विशेष महत्व रहा है। तंत्र शास्त्र से संबंधित कार्यों में भी इस दिन की विशेषता प्रमुख रही है। अपने नाम के स्वरुप ही यह समय कठोर साधना एवं शक्ति सिद्धि प्राप्ति का समय होता है। इस चतुर्दशी को कई जगहों पर ड्गयाली भी कहा जाता है। यह त्यौहार मुख्य रूप से दो दिनों तक मनाया जाता है, पहला दिन छोटी अघोर नाम से पुकारा जाता है और दूसरा दिन बड़ी अघोर चतुर्दशी कहलाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार अघोर चतुर्दशी को अमावस्या भी कहा जाता है।

इसे भी पढ़ें: Paryushan 2025: आत्मउन्नयन एवं जीवन-जागृति का पर्व है पर्युषण

इस दिन व्रत रखकर, भगवान शिव की पूजा करके, पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण करके अघोर चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव के अघोर रूप की पूजा की जाती है, जो कि तांत्रिकों और अघोरियों के लिए विशेष महत्व रखती है। अघोर चतुर्दशी पर पितृों की पूजा और श्राद्ध करने का भी विधान है। अघोर चतुर्दशी को सिद्धियों की प्राप्ति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन व्रत और पूजा-पाठ करने से सुख-समृद्धि, शांति और कल्याण की प्राप्ति होती है।

अघोर चतुर्दशी हिमाचल के अलावा उत्तराखंड, असम, सिक्किम और नेपाल में भी मनाई जाती है। इस दिन कुशा को धरती से उखाड़कर एकत्रित करके रखना शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत, स्नान, दान, जप, होम और पितरों के लिए भोजन, वस्त्र आदि देना उतम रहता है। शास्त्रों के हिसाब से इस दिन प्रात:काल में स्नान करके संकल्प करें और उपवास करना चाहिए। कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भर कर कुशा के पास दक्षिण दिशा कि ओर अपना मुख करके बैठ जाएं तथा अपने सभी पितरों को जल दें, अपने घर परिवार, स्वास्थ आदि की शुभता की प्रार्थना करनी चाहिए।

देश के विभिन्न हिस्सों में मनाया जाता है अघोर चतुर्दशी पर्व

अघोर चतुर्दशी का पर्व हिमाचल प्रदेश, असम, सिक्किम, उत्तराखंड, बंगाल और नेपाल में मनाया जाता है। इस दिन को अघोर साधकों के लिए विशेष माना जाता है। भगवान शिव को इससे संबंधित माना जाता है। विशेष रूप से इस दिन दुर्वा को विशेष रूप से पृथ्वी से उखाड़कर रखना होता है जो विशेष रुप से बहुत फलदायी माना जाता है। अघोर चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान, ध्यान और पूजा पाठ करने का विधान होता है। इसके साथ ही इस दिन जप करना और पितरों की शांति के लिए दान करना महत्वपूर्ण माना जाता है।

ऐसे मनाएं अघोर चतुर्दशी व्रत 

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन विशेष रूप से प्रातः स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए और अपने सभी पितरों को जल और कुश दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जल अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में सफलता मिलती है और परिवार में सुख-शांति बढ़ती है। इस दिन शुद्ध मन द्वारा व्रत का पालन किया जाता है और भगवान शिव की पूजा होती है अघोर स्वरुप शिव की पूजा के साथ ही तंत्र कार्यों को करने का समय भी होता है। ये पूजा सात्विक एवं तामसिक दोनों ही रुपों में होती है। इस दिन सिद्धियों को पाने के लिए तप किया जाता है। पितरों से संबंधित कार्य किए जाते हैं। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए व्रत रखना और विधि-विधान से उनकी पूजा करना भी बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।

जानें अघोर चतुर्दशी व्रत के बारे में 

शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक अमावस्या तिथि का स्वामी पितृ हैं, इसलिए इस दिन उनकी पूजा को महत्व दिया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाला पितृ पक्ष अघोर चतुर्दशी के दिन से शुरू होता है, इस कारण से भी इस दिन सभी देवताओं में शिव जी की पूजा करना सबसे अनुकूल समय माना जाता है। अघोर चतुर्दशी अघोर संप्रदाय से जुड़ा एक अनुष्ठान है। 2025 में, अघोर चतुर्दशी 21 अगस्त को मनाई जाएगी। यह एक संप्रदाय है जिसके अनुयायी नेपाल और भारत के मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश राज्यों में हैं। इस संप्रदाय के सबसे प्रमुख गुरुओं में से एक, अघोर आचार्य महाराज किनाराम का जन्म अघोर चतुर्दशी के दिन हुआ था। बाबा किनाराम वाराणसी के प्राचीन अघोर पीठ के संस्थापक हैं।

अघोर चतुर्दशी भद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन मनाई जाती है। इसे स्थानीय भाषा में डगयाली भी  कहा जाता है। यह पर्व दो दिन तक चलता है जिसमें प्रथम दिन को छोटी डगयाली और उसके अगले दिन अमावस्या को बड़ी डगयाली कहते हैं। यह अघोर चतुर्दशी भगवान शिव के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

अघोर आचार्य महाराज किनाराम का जन्म उत्तर भारत में प्रचलित पारंपरिक हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ था। ऐसा माना जाता है कि उनका दिव्य जन्म वर्ष 1658 ई. में हुआ था। बाबा किनाराम द्वारा रचित "विवेकसार" को अघोर सिद्धांतों पर सबसे प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। अघोर एक अवधूत या अभयधर होता है। जिसने आत्मा की अमरता (अविनाशी) को जान लिया हो, जो सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त हो और निरंतर "तत्त्वमसि" के चिंतन में लीन रहता हो, उसे अवधूत कहा जाता है।

अघोर चतुर्दशी के दिन ऐसे करें तर्पण 

अघोर चतुरदशी के दिन तर्पण कार्य भी किए जाते हैं, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन शिव के गणों भूत-प्रेत आदि सभी को स्वतंत्रता प्राप्त होती है। सोलन, सिरमौर और शिमला जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में परिजनों को बुरी आत्माओं के प्रभाव से बचाने के लिए लोग घरों के दरवाजे व खिड़कियों पर कांटेदार झाडिय़ों को लगाते हैं यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

अघोर चतुर्दशी व्रत करने से मिलते हैं अच्छे परिणाम

पंडितों के अनुसार अघोर चतुर्दशी के दिन तीर्थ, स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से  छुटकारा मिलता है। इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है। पुराणों में अमावस्या को कुछ विशेष व्रतों का विधान है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है यह व्रत एक वर्ष तक किया जाता है। जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।

- प्रज्ञा पाण्डेय