सिर्फ सरकार नहीं, समाज भी निभाए जिम्मेदारी, कुपोषण मुक्त भारत के लिए एकजुट हों: मगनभाई पटेल

भारत में कई सामाजिक संगठन, NGOs और सरकारें अक्सर रक्तदान शिविरों का आयोजन करती हैं। "रक्तदान महादान" के मूलमंत्र को ध्यान में रखते हुए, हर साल की तरह इस साल भी अहमदाबाद के वटवा इलाके में स्थित जतिन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें जतिन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के कर्मचारि,फार्मा कंपनियों के कर्मचारि,श्रमिकों और महिलाओंने रक्तदान किया। इस रक्तदान शिविर में 178 रक्त यूनिट एकत्रित करनेवाले जतिन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज को हर साल की तरह इस साल भी सर्वाधिक रक्त यूनिट एकत्रित करने का पुरस्कार वटवा इंडस्ट्रीज एसोसिएशन द्वारा  देकर सन्मानित दिया गया। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष भी जतिन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज द्वारा 130 यूनिट रक्त एकत्रित किया गया था और उसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। वटवा जीआईडीसी एसोसिएशन द्वारा आयोजित रक्तदान शिविर में हर वर्ष लगभग 2500 यूनिट रक्त एकत्रित होता है। यहां बताना ज़रूरी है कि इस वर्ष के रक्तदान शिविर में जतिन ग्रुप के अलावा वटवा इलाके की पैकेजिंग उद्योगों में कार्यरत लगभग 100 महिलाओंने रक्तदान के लिए पंजीकरण कराया था, लेकिन उनमें से केवल लगभग 20 महिलाएं ही रक्तदान कर पाईं, जबकि शेष महिलाएं आर्यन एव हीमोग्लोबिन की कमी, कम वज़न और अन्य शारीरिक स्वास्थ्य स्थितियों के कारण रक्तदान नहीं कर पाईं। इसका मुख्य कारण कुपोषण और पौष्टिक भोजन का अभाव था।मगनभाई पटेलने स्वास्थ्य संबंधी अपने एक इंटरव्यू में कहा कि आज भारत में कुपोषण समाज के लिए एक गंभीर चिंता एव चिंतन का विषय है और उसमे भी खासकर कुपोषण का प्रसार पुरुषों की तुलना में महिलाओं में विशेष रूप से अधिक है। और इसके लिए हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी साहब और उनकी टीम,अन्य राज्य सरकारें और देश के विभिन्न NGOs इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं,वह सराहनीय है,लेकिन यह जिम्मेदारी अकेले सरकार की नहीं है,अगर हम सभी इस मामले को गंभीरता से लेंगे, तभी हम प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी साहब के सूत्र "स्वस्थ महिला, विकसित भारत" को सही मायने में क्रियान्वित कर पाएंगे।मगनभाई पटेलने महिला स्वास्थ्य पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि महिलाओं पर अनेक जिम्मेदारियां होती हैं, इसलिए उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। खासकर जब कामकाजी और मध्यम वर्ग की महिलाएं मासिक धर्म के दौर से गुज़रती हैं, तो इन दिनों में उन्हें सबसे ज़्यादा रक्तस्राव होता है, जिससे ऑयन और हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है, जिससे गंभीर शारीरिक कमज़ोरी आ जाती है। इसलिए हिंदू संस्कृति में इसे धर्म से जोड़ दिया गया ताकि लोग धर्म पर विश्वास करें और महिलाएं तीन दिनों तक आराम कर सकें,दिनों तक महिलाओं को छुआ नहीं जाना चाहिए, वरना उन्हें छूना पाप माना जाएगा ऐसी धार्मिक मान्यता के तहत एक व्यवस्था बनाई गई। यह कोई अंधविश्वास नहीं है, बल्कि इसे धर्म से जोड़ा गया ताकि महिलाओं का स्वास्थ्य ठीक रहे,उन्हें घर में एक ही जगह पूरा आराम मिल सके और उन्हें ज़रूरी पौष्टिक आहार देकर उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखा जा सके। साथ ही साथ पुरुषों को भी इस दौरान दूर रखा जाता था ताकि वे शारीरिक संबंध बनाकर पाप न करें। पहले के ज़माने में महिलाएं खेती,पशुपालन और अन्य श्रम करती थीं,जो बहुत थका देनेवाला और शारीरिक कमज़ोरी का कारण बनता था। हालांकि,जब इन महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं उठीं,तो इसे धर्म से जोड़ दिया गया और एक ऐसी व्यवस्था बनाई गई जिससे महिलाएं अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकें।लेकिन आज हमारे देश में खुशहाल घरों की महिलाएं जंकफूड के अत्यधिक सेवन और फिगर खराब होने के डर से प्रसव के बाद केवल एक सप्ताह तक ही अपने बच्चे को स्तनपान कराती हैं और फिर उन्हें बाजारु पाउडरवाला दूध पिलाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप बच्चा कुपोषित हो जाता है।मगनभाई पटेलने आगे कहा कि प्रसव की पीड़ा एक मां के लिए सबसे बड़ी पीड़ा होती है। पहले के समय में प्रसव के बाद पैंतालीस दिनों तक प्रसूति की  महिलाओं को छुआ तक नहीं जाता था क्योंकि धर्म में ऐसी मान्यता थी कि उन्हें छूना पाप होगा। इसलिए प्रसव के बाद महिला के स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए शुद्ध घी,गुड़,खजूर और मक्खन युक्त पौष्टिक आहार दिया जाता है, ताकि वह स्वस्थ रहे और चार महीने तक नवजात शिशु को स्तनपान करा सके।इसी तरह अगर हम गरीब एव मजदूरवर्ग की गर्भवती महिलाओं की बात करें,तो उन्हें प्रसव के बाद पौष्टिक भोजन ही नहीं मिलता। वे सूखी रोटी या सब्जी से अपना पेट भरती हैं,नतीजा उन्हें पर्याप्त दूध नहीं आता और वे अपने बच्चे को अपना पौष्टिक दूध नहीं दे पातीं,जिससे बच्चा कुपोषित रह जाता है।इसलिए धर्मगुरुओंने इसे धर्म से जोड़ दिया ताकि प्रसव के बाद पैंतालीस दिनों तक महिला कोई भारी काम न करे,रसोई में न जाए,उसे पूरा आराम मिले और उसे दूध-घी, मक्खन,शीरा,खजूर और गूंदपाक जैसे पौष्टिक आहार दिए जाएं। लेकिन गरीब परिवारों को ऐसे पौष्टिक आहार न मिलने के कारण बच्चा कुपोषित रह जाता है। साथ ही, महिलाओं को शारीरिक संबंध से भी दूर रखा जाता है, इसीलिए धर्म को प्रसवकाल से जोड़ा गया ताकि महिलाओं का स्वास्थ्य बना रहे।धर्म एक विज्ञान है और विज्ञान का उपयोग केवल विकास के लिए किया जाना चाहिए।एक प्रेस मीडिया की रिपोर्ट अनुसार आज उत्तर गुजरात में नवरात्रि के दिन एक धार्मिक संस्थान में हर साल लगभग 25 से 30 करोड़ रुपये का घी माताजी को चढ़ाया जाता है, जिसमें इस साल 5 लाख लोगों के लिए भोजन का आयोजन किया गया था। हमारी जानकारी के अनुसार इस कार्यक्रम में उच्च अधिकारी एव  व्यापारी भी शामिल होते हैं और इसका खर्च विदेशों में रहनेवाले स्थानीय लोग उठाते हैं और इस कार्यक्रममें विदेशों से भी लोग आते हैं। देश में अधिकांश लोगों का मानना है कि यह अंधविश्वास है जिसे आस्था नहीं कहा जा सकता। यदि यह घी गरीब महिलाए,गर्भवती महिलाए एव कामकाजी महिलाओं में वितरित किया जाए,तो ईश्वर अवश्य प्रसन्न होंगे इसमें कोई संदेह नहीं है। इस

Oct 10, 2025 - 22:00
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सिर्फ सरकार नहीं, समाज भी निभाए जिम्मेदारी, कुपोषण मुक्त भारत के लिए एकजुट हों: मगनभाई पटेल
भारत में कई सामाजिक संगठन, NGOs और सरकारें अक्सर रक्तदान शिविरों का आयोजन करती हैं। "रक्तदान महादान" के मूलमंत्र को ध्यान में रखते हुए, हर साल की तरह इस साल भी अहमदाबाद के वटवा इलाके में स्थित जतिन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें जतिन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के कर्मचारि,फार्मा कंपनियों के कर्मचारि,श्रमिकों और महिलाओंने रक्तदान किया। इस रक्तदान शिविर में 178 रक्त यूनिट एकत्रित करनेवाले जतिन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज को हर साल की तरह इस साल भी सर्वाधिक रक्त यूनिट एकत्रित करने का पुरस्कार वटवा इंडस्ट्रीज एसोसिएशन द्वारा  देकर सन्मानित दिया गया। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष भी जतिन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज द्वारा 130 यूनिट रक्त एकत्रित किया गया था और उसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। वटवा जीआईडीसी एसोसिएशन द्वारा आयोजित रक्तदान शिविर में हर वर्ष लगभग 2500 यूनिट रक्त एकत्रित होता है। यहां बताना ज़रूरी है कि इस वर्ष के रक्तदान शिविर में जतिन ग्रुप के अलावा वटवा इलाके की पैकेजिंग उद्योगों में कार्यरत लगभग 100 महिलाओंने रक्तदान के लिए पंजीकरण कराया था, लेकिन उनमें से केवल लगभग 20 महिलाएं ही रक्तदान कर पाईं, जबकि शेष महिलाएं आर्यन एव हीमोग्लोबिन की कमी, कम वज़न और अन्य शारीरिक स्वास्थ्य स्थितियों के कारण रक्तदान नहीं कर पाईं। इसका मुख्य कारण कुपोषण और पौष्टिक भोजन का अभाव था।

मगनभाई पटेलने स्वास्थ्य संबंधी अपने एक इंटरव्यू में कहा कि आज भारत में कुपोषण समाज के लिए एक गंभीर चिंता एव चिंतन का विषय है और उसमे भी खासकर कुपोषण का प्रसार पुरुषों की तुलना में महिलाओं में विशेष रूप से अधिक है। और इसके लिए हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी साहब और उनकी टीम,अन्य राज्य सरकारें और देश के विभिन्न NGOs इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं,वह सराहनीय है,लेकिन यह जिम्मेदारी अकेले सरकार की नहीं है,अगर हम सभी इस मामले को गंभीरता से लेंगे, तभी हम प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी साहब के सूत्र "स्वस्थ महिला, विकसित भारत" को सही मायने में क्रियान्वित कर पाएंगे।

मगनभाई पटेलने महिला स्वास्थ्य पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि महिलाओं पर अनेक जिम्मेदारियां होती हैं, इसलिए उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। खासकर जब कामकाजी और मध्यम वर्ग की महिलाएं मासिक धर्म के दौर से गुज़रती हैं, तो इन दिनों में उन्हें सबसे ज़्यादा रक्तस्राव होता है, जिससे ऑयन और हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है, जिससे गंभीर शारीरिक कमज़ोरी आ जाती है। इसलिए हिंदू संस्कृति में इसे धर्म से जोड़ दिया गया ताकि लोग धर्म पर विश्वास करें और महिलाएं तीन दिनों तक आराम कर सकें,दिनों तक महिलाओं को छुआ नहीं जाना चाहिए, वरना उन्हें छूना पाप माना जाएगा ऐसी धार्मिक मान्यता के तहत एक व्यवस्था बनाई गई। यह कोई अंधविश्वास नहीं है, बल्कि इसे धर्म से जोड़ा गया ताकि महिलाओं का स्वास्थ्य ठीक रहे,उन्हें घर में एक ही जगह पूरा आराम मिल सके और उन्हें ज़रूरी पौष्टिक आहार देकर उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखा जा सके। साथ ही साथ पुरुषों को भी इस दौरान दूर रखा जाता था ताकि वे शारीरिक संबंध बनाकर पाप न करें। पहले के ज़माने में महिलाएं खेती,पशुपालन और अन्य श्रम करती थीं,जो बहुत थका देनेवाला और शारीरिक कमज़ोरी का कारण बनता था। हालांकि,जब इन महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं उठीं,तो इसे धर्म से जोड़ दिया गया और एक ऐसी व्यवस्था बनाई गई जिससे महिलाएं अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकें।

लेकिन आज हमारे देश में खुशहाल घरों की महिलाएं जंकफूड के अत्यधिक सेवन और फिगर खराब होने के डर से प्रसव के बाद केवल एक सप्ताह तक ही अपने बच्चे को स्तनपान कराती हैं और फिर उन्हें बाजारु पाउडरवाला दूध पिलाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप बच्चा कुपोषित हो जाता है।मगनभाई पटेलने आगे कहा कि प्रसव की पीड़ा एक मां के लिए सबसे बड़ी पीड़ा होती है। पहले के समय में प्रसव के बाद पैंतालीस दिनों तक प्रसूति की  महिलाओं को छुआ तक नहीं जाता था क्योंकि धर्म में ऐसी मान्यता थी कि उन्हें छूना पाप होगा। इसलिए प्रसव के बाद महिला के स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए शुद्ध घी,गुड़,खजूर और मक्खन युक्त पौष्टिक आहार दिया जाता है, ताकि वह स्वस्थ रहे और चार महीने तक नवजात शिशु को स्तनपान करा सके।इसी तरह अगर हम गरीब एव मजदूरवर्ग की गर्भवती महिलाओं की बात करें,तो उन्हें प्रसव के बाद पौष्टिक भोजन ही नहीं मिलता। वे सूखी रोटी या सब्जी से अपना पेट भरती हैं,नतीजा उन्हें पर्याप्त दूध नहीं आता और वे अपने बच्चे को अपना पौष्टिक दूध नहीं दे पातीं,जिससे बच्चा कुपोषित रह जाता है।इसलिए धर्मगुरुओंने इसे धर्म से जोड़ दिया ताकि प्रसव के बाद पैंतालीस दिनों तक महिला कोई भारी काम न करे,रसोई में न जाए,उसे पूरा आराम मिले और उसे दूध-घी, मक्खन,शीरा,खजूर और गूंदपाक जैसे पौष्टिक आहार दिए जाएं। लेकिन गरीब परिवारों को ऐसे पौष्टिक आहार न मिलने के कारण बच्चा कुपोषित रह जाता है। साथ ही, महिलाओं को शारीरिक संबंध से भी दूर रखा जाता है, इसीलिए धर्म को प्रसवकाल से जोड़ा गया ताकि महिलाओं का स्वास्थ्य बना रहे।धर्म एक विज्ञान है और विज्ञान का उपयोग केवल विकास के लिए किया जाना चाहिए।

एक प्रेस मीडिया की रिपोर्ट अनुसार आज उत्तर गुजरात में नवरात्रि के दिन एक धार्मिक संस्थान में हर साल लगभग 25 से 30 करोड़ रुपये का घी माताजी को चढ़ाया जाता है, जिसमें इस साल 5 लाख लोगों के लिए भोजन का आयोजन किया गया था। हमारी जानकारी के अनुसार इस कार्यक्रम में उच्च अधिकारी एव  व्यापारी भी शामिल होते हैं और इसका खर्च विदेशों में रहनेवाले स्थानीय लोग उठाते हैं और इस कार्यक्रममें विदेशों से भी लोग आते हैं। देश में अधिकांश लोगों का मानना है कि यह अंधविश्वास है जिसे आस्था नहीं कहा जा सकता। यदि यह घी गरीब महिलाए,गर्भवती महिलाए एव कामकाजी महिलाओं में वितरित किया जाए,तो ईश्वर अवश्य प्रसन्न होंगे इसमें कोई संदेह नहीं है। इसके लिए देश के विभिन्न NGOs और सामाजिक संगठनों को इस कार्य की उचित व्यवस्था करने की आवश्यकता है। यदि हम इन महिलाओं को घी और दूध जैसे पौष्टिक पदार्थ  उपलब्ध कराएं तो देश में कुपोषण की समस्या ही नहीं रहेगी यह निश्चित है।

मगनभाई पटेलने आगे कहा कि आज प्रकृति के विरुद्ध जो कार्य हो रहे हैं,उनके गंभीर परिणाम आनेवाली पीढ़ियों को भुगतने पड़ेंगे। आज हमारे देश में IVF  पद्धति से बच्चे पैदा होते हैं, जिसमें एक बच्चे का खर्च लगभग 15 से 20 लाख रुपये आता है, ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां मध्यमवर्गीय परिवार कर्ज लेकर भी इस पद्धति को अपना रहे है। यह एक अभिशाप है। यह करोड़ों रुपये कमानेवाला एक तरह का व्यवसाय बन गया है, जो बेहद चौंकानेवाला है। इसके बजाय,अगर किसी अनाथालय से कोई बच्चा गोद लिया जाए,तो इसे ईश्वर की सबसे बड़ी सेवा मानी जाएगी।

मगनभाई पटेलने आगे कहा कि हमारे देश में गाय और बकरी का दूध गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए सबसे अधिक लाभकारी माना जाता है। पहले के समय में हिंदू मंदिर को तभी मंदिर कहा जाता था जब मंदिर में गायें होती थीं, क्योंकि हिंदू संस्कृति में गाय धर्म और आस्था का प्रतीक है। देश आज़ाद होने से पहले गायें बहुत थीं, इसलिए ज़्यादा दूध देने से दूध बर्बाद हो जाता था। इसलिए लोगों ने गायें कम रखनी शुरू कर दीं, जिससे बैलों की संख्या कम हो गई। इसलिए, उस समय के हमारे पूर्वजों एव धर्मगुरुओने गाय के दूध की खपत बढ़ाने और गौपालकों को अच्छे दाम मिल सके इसलिए भगवान को दूध और घी जैसी चीजें अर्पित करने के कार्य को धार्मिक आस्था के साथ जोड़ दिया। इससे दूध की खपत बढ़ने लगी। शास्त्रों के अनुसार भगवान को प्रसाद के रूप में पांच से दस ग्राम दूध और घी चढाकर शेष दूध और घी को प्रसादी के रूप में बड़े बर्तनों या कंटेनरों में भरकर धार्मिक संस्थाओं,NGOs और धार्मिक संगठनों के माध्यम से गरीब, कामकाजी महिलाओं एव जरूरतमंद महिलाओं तक पहुंचाया जाए तो देश में कुपोषण की समस्या ही नहीं रहेगी।

मगनभाई पटेलने आगे कहा कि आज बाज़ार में सब्ज़ियां और फल बहुत ऊंचे दामों पर बिक रहे हैं। उदाहरण के लिए थोक बाज़ार में सेब और अन्य फल 40-50 रुपये प्रति किलो बिकते हैं,जो रिटेल बाज़ार में बढ़कर 150-200 रुपये हो जाते हैं। इसी प्रकार सब्जियां किसानों से लगभग 20 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से आती हैं, वे खुदरा बाजार में 80 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिक रही हैं, जो गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए वहनीय होती नहीं है। सामाजिक संगठनों और NGOs की मदद से, यदि गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले लोगों तक उचित मूल्य पर फल और सब्जियां पहुंचाई जाएं, तो इसे मंदिर निर्माण जैसा पुण्य कार्य माना जाएगा।आज हम सामाजिक आयोजनों या शादियों के लिए 2000 रुपये प्रति प्लेट की लागत पर खानपान की व्यवस्था करते हैं। ऐसे अवसरों पर लोग पूरी प्लेट खाना खा लेते हैं, लेकिन मधुमेह या अन्य बीमारियों के कारण वह पूरी प्लेट का खाना खा नहीं पाता और बचा हुआ खाना छोड़ देता  हैं, जिसके परिणामस्वरूप भारी मात्रा में भोजन बर्बाद हो जाता है। इसलिए ऐसे खाद्य अपव्यय को रोकने के लिए सामाजिक संगठनों, NGOs और सरकार द्वारा जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। देश के धर्मगुरु, और साधु-संतों को भी अपने प्रवचनों में भोजन की बर्बादी न करने का आह्वान करना चाहिए। स्वयंसेवी संगठनों और सरकारी संगठनों को इसका महत्व समझाकर उचित व्यवस्था करनी चाहिए और इन अवसरों पर बचे हुए भोजन को गरीब या मजदूर परिवारों तक पहुंचाना चाहिए। इस प्रकार यदि हम ऐसे अवसरों पर बचा हुआ भोजन तथा मंदिरों में चढ़ाया गया दूध और घी जरूरतमंद महिलाओं एव बच्चों तक पहुंचा दें, तो यह पूरे देश में कोई भी बच्चा कुपोषित नहीं रहेगा। साथ ही साथ यदि इस अवसर पर होनेवाले खर्च का लगभग 20% खर्च गरीबों पर किया जाए तो उन्हें सात्विक भोजन मिल सकेगा और आपका कार्यक्रम सफल माना जाएगा।

जतिन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के डिरेक्टर जतिनभाई पटेल जिनके पास वर्ष 1994 से अमेरिकी नागरिकता होने के बावजूद अमेरिका का मोह त्यागकर अपने पिता मगनभाई पटेल के साथ समाजसेवामे जुड़कर भारत में अपना व्यवसाय कर रहे हैं। उन्होंने कोरोनाकाल में भी अनेक समाज सेवा के कार्य किए हैं। जतिनभाई पटेल अक्सर अपने पिता मगनभाई पटेल के साथ मिलकर स्वास्थ्य शिविर और रक्तदान शिविर जैसी स्वास्थ्य संबंधी गतिविधियों का आयोजन करते हैं तथा गरीब मरीजों को चिकित्सामें वित्तीय सहायता भी प्रदान करते हैं। वटवा जीआईडीसी एसोसिएशन के कार्यकारी सदस्य जतिनभाई पटेलने महिलाओं में कुपोषण जैसे कारकों को दूर करने के लिए एक अध्ययन रिपोर्ट तैयार करने का निर्णय लिया है। इस रक्तदान शिविर में उनके साथ वटवा जीआईडीसी एसोसिएशन के अध्यक्ष एव अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे।

जतिन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के चेयरमैन एवं अग्रणी समाजसेवी मगनभाई पटेल, जो लगभग 35 से 40 सामाजिक संस्थाओं में चेयरमैन, मैनेजिंग ट्रस्टी एवं अध्यक्ष के रूप में कार्य करते आ रहे हैं, वे अनेक शैक्षणिक, रोजगारोन्मुखी एवं स्वास्थ्योन्मुखी कार्यक्रम अपने स्वयंखर्च से संचालित करते रहते हैं।मगनभाई पटेल, जो कि सौराष्ट्र पटेल सेवा समाज के अध्यक्ष हैं, जिनका कार्यालय अहमदाबाद के एलिसब्रिज क्षेत्र में स्थित है, जहां पिछले 30 वर्षों से गेट टू गेधर और रक्तदान शिविर जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें हर साल लगभग 100 से 150 रक्त यूनिट एकत्रित होते हैं। इसके अलावा, इस संस्थान की श्रीमती एन.एम. पडलिया फार्मेसी कॉलेज, जो बावला रोड पर स्थित है, वहा भी उनकी अध्यक्षता में अक्सर रक्तदान शिविरों का आयोजन किया जाता है। इसी प्रकार,वे लायंस क्लब में कैबिनेट कोषाध्यक्ष, रीजन चेयरमैन, जोन चेयरमैन और जिला चेयरमैन रह चुके हैं और उन्होंने कई रक्तदान शिविरों का आयोजन किया है और अब तक हजारों यूनिट रक्त एकत्रित करके समाज की मदद की है। वे इन सभी स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रमों जैसे सर्वरोग निदान शिविर और रक्तदान शिविरों में मुख्य दानदाता रहे हैं और सभी कार्यक्रम उनकी अध्यक्षता में आयोजित किए जाते हैं।

मगनभाई पटेल पिछले 20 वर्षों से अहमदाबाद के वटवा क्षेत्र में यू.एन.मेहता नेत्र चिकित्सालय के संस्थापक प्रबंध ट्रस्टी के रूप में कार्यरत हैं। इस चिकित्सालय की अध्यक्ष स्वर्गीय शारदाबेन यू.एन. मेहता (टोरेंट ग्रुप) थीं। मगनभाई पटेल के मार्गदर्शन में इस चिकित्सालय में अक्सर रक्तदान शिविरों का आयोजन किया जाता है, जिसमें होमगार्ड और पुलिस के जवान भी भाग लेते हैं। इसी प्रकार, एशिया का नंबरवन सिविल अस्पताल,असारवा,अहमदाबाद के सामने स्थित उमा आरोग्य सेवा फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष भी मगनभाई पटेल हैं,इस संस्थानमे 150 बिस्तरों की सुविधा है और कैंसर, किडनी और हृदय के इलाज के लिए सिविल अस्पताल आनेवाले मरीज और उनके रिश्तेदारों को मुफ्त आवास और भोजन की सुविधा प्रदान की जाती है। इस संस्था में भी मगनभाई पटेल की अध्यक्षता में कई बार रक्तदान शिविरों का भी आयोजन किया जाता है।

यहां उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि किडनी रोगियों के लिए आशा की किरण पद्मस्वर्गीय डॉ. एच.एल. त्रिवेदी, जो कनाडा के पहले चालीस करदाताओं में से एक थे, उन्होंने गुजरात के किडनी रोगियों के लिए कनाडा से अपनी अथाह संपत्ति और सब कुछ छोड़कर अकेले ही अहमदाबाद के असारवा स्थित सिविल अस्पताल में एक विश्वस्तरीय किडनी संस्थान की स्थापना की। पद्मस्वर्गीय डॉ. एच.एल. त्रिवेदीने किडनी इंस्टीट्यूट की स्थापना करके मानवता के लिए एक अनूठी और महान सेवा की,जो गर्व की बात है।इस संस्थान के एक कमरे में सादगी से रहते हुए उन्होंने अपने हाथों से 5000 से ज़्यादा किडनी ट्रांसप्लांट और 500 से ज़्यादा लिवर ट्रांसप्लांट करके देश-दुनिया में "विश्व रिकॉर्ड" स्थापित किया जिनके साथ मगनभाई पटेल को कई वर्षों तक काम करने का अवसर मिला। पद्मस्वर्गीय डॉ एच.एल. त्रिवेदी साहब की स्मृति में चाणक्य समस्त ब्राह्मण उत्कर्ष सेवा ट्रस्ट द्वारा संचालित सुनीताबेन त्रिवेदी डायलिसिस सेंटर (निःशुल्क) की स्थापना अहमदाबाद के निकोल क्षेत्र में की गई, जहां मगनभाई पटेलने 21 लाख रुपये का दान दिया,जहां वर्ष 2023-24 में 3000 निःशुल्क डायलिसिस किए गए, जबकि वर्ष 2024-25 में लगभग 4000 निःशुल्क डायलिसिस किए गए। इस संस्था के ट्रस्टी राजेंद्रभाई व्यास कहते हैं कि "मगनभाई पटेल हमारी रीढ़ हैं" और उनके समर्थन, मार्गदर्शन और सबसे महत्वपूर्ण उनके वित्तीय समर्थन के कारण, हम किडनी रोगियों के लिए निःशुल्क डायलिसिस कर रहे हैं और वह नियमित रूप से दान करते है और करवाते रहते हैं। पद्मस्वर्गीय डॉ. एच.एल. त्रिवेदी के निधन के बाद, मगनभाई पटेल अभी भी इस संगठन में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं।

मगनभाई पटेल की इस स्वास्थ्य-उन्मुख यात्रा में उनके पोते शाम जतिनभाई पटेल (उम्र 24) और निधि जतिनभाई पटेल (उम्र 26) भी शामिल हैं, जो दादा मगनभाई पटेल की तरह कई वर्षों से समाज सेवा के कार्यों में शामिल हैं। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि दादा मगनभाई पटेल इन दोनों भाई-बहनों को हर महीने दस हज़ार रुपये पॉकेट मनी के रूप में देते थे, जिसे वे बचाकर अपने जन्मदिन पर मिलनेवाली धनराशि धर्मार्थ कार्यों के लिए दान कर देते हैं। 2014 से 2025 तक पिछले 11 वर्षों में, इन दोनों भाई-बहनोंने अपने दादा से मिली पॉकेट मनी में से 15 लाख रुपये से अधिक की धनराशि शिक्षा एव स्वास्थ्य के क्षेत्र तथा शारीरिक व मानसिक रूप से दिव्यांगों लोगो के लिए दान कर आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत किया है।

अपने भाषण के अंत में मगनभाई पटेलने कहा कि हमारे देश में कुपोषण को दूर करने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अनेक प्रयास कर रही हैं, जिसमें सरकारी स्कूलों में सप्ताह में तीन दिन दूध,चना और प्रोटीन पाउडर वितरित किया जाता है,जो बहुत सराहनीय है,लेकिन उचित प्रबंधन और संवादहीनता के कारण यह जरूरतमंद बच्चों एव महिलाओं तक नहीं पहुंच पाता,जो बड़े दुःख की बात है। इसलिए सामाजिक संगठनों, लायंस क्लब, रोटरी क्लब,फेडरेशन द्वारा इस कार्य में रुचि लेकर जन-जन तक पहुंचाने में सेतु बनकर किया जाये तो देश में कुपोषण की समस्या नहीं रहेगी। कुपोषण भारत के भविष्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है, जिसके लिए हम सभी को सरकार के साथ मिलकर प्रभावी ढंग से काम करने की आवश्यकता है।