एक ऐसी डील जिसने पूरे एशिया की जियोपॉलिटिक्स को हिला कर रख दिया है। चीन के सबसे बड़े दुश्मन ताइवान ने भारत के सामने एक ऐसा ऑफर रख दिया है जो आने वाले समय में ऊर्जा से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा निर्माण तक भारत को पूरी तरह से बदल सकता है। रेयर अर्थ मिनिरल्स यानी दुर्लभ खनिजों के जरिए भारत को एक तरफ सेमीकंडक्टर बनाने की ताकत मिल रही है। वहीं दूसरी तरफ चीन का एकाधिकार भी टूट रहा है। भारत और ताइवान की ये दोस्ती सिर्फ आर्थिक सौदा नहीं बल्कि एक रणनीतिक गेमचेंजर भी साबित होगा।
चीन परमानेंट मैगनेट, और रेयर अर्थ मिनिरल्स में पूरी दुनिया का सबसे बड़ा खिलाड़ी है। इलेक्ट्रॉनिक, डिफेंस और ऊर्जा सेक्टर हर जगह इसकी जरूरत है। इस साल की शुरुआत में चीन ने सप्लाई चेन रोक दी थी। दुनिया में हड़कंप मच गया। अमेरिका से यूरोप तक सभी देश बैकअप तलाशने लगे। चीन के पास सबसे ज्यादा भंडार है और टेक्नोलॉजी भी वहीं है। भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा भंडार है। 6.9 मिलियन टन रेयर अर्थ मिनिरल्स का आंकड़ा हालाकिं चीन औऱ ब्राजील से कम है। लेकिन रूस, अमेरिका, वियतमान, ग्रीनलैंड से बहुत ज्यादा है।
रेयर अर्थ मिनिरल्स क्यों महत्वपूर्ण हैं
रेयर अर्थ मिनिरल्स स्थायी चुम्बकों की रीढ़ हैं, जो उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। चीन ने इस वर्ष की शुरुआत में दुर्लभ मृदा चुम्बकों की आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करके वैश्विक चिंता पैदा कर दी थी। बीजिंग दुनिया के अधिकांश भंडारों को नियंत्रित करता है और शोधन एवं उत्पादन तकनीक पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर चुका है। रत में अनुमानित 6.9 मिलियन मीट्रिक टन दुर्लभ मृदा भंडार है। यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा भंडार है, जो केवल चीन और ब्राज़ील से पीछे है। महत्वपूर्ण भंडार वाले अन्य देशों में ऑस्ट्रेलिया, रूस, वियतनाम, संयुक्त राज्य अमेरिका और ग्रीनलैंड शामिल हैं। स संसाधन के बावजूद, भारत ने अभी तक खनिजों को चुम्बकों में संसाधित करने के लिए बड़े पैमाने पर तकनीक विकसित नहीं की है, जिससे आपूर्ति श्रृंखला असुरक्षित बनी हुई है।
महत्वपूर्ण खनिजों पर भारत का बढ़ता दबदबा
नई दिल्ली अब इस कमी को पूरा करने के लिए कदम उठा रही है। खान मंत्रालय के माध्यम से, यह महत्वपूर्ण खनिजों के लिए एक सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखला बनाने के लिए काम कर रहा है। रत ने खुद को खनिज सुरक्षा साझेदारी, हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचे और महत्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल जैसे अंतर्राष्ट्रीय ढाँचों के साथ जोड़ा है। रेलू कंपनियों को भी भारत में स्थायी चुंबक उत्पादन का विस्तार करने के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
दोनों पक्षों के लिए जीत
विश्लेषकों का कहना है कि यह समझौता दीर्घकालिक रणनीतिक जीत का संकेत देता है। भारत अपनी खनिज संपदा का लाभ उठाकर वैश्विक सेमीकंडक्टर दौड़ में आगे बढ़ सकता है। ताइवान को अपनी आपूर्ति श्रृंखला में स्थिरता मिलेगी और दक्षिण एशिया में एक विश्वसनीय साझेदार मिलेगा। यह परिणाम दोनों देशों के लिए प्रौद्योगिकी, व्यापार और सुरक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।