हरियाणा राज्य खेलों को लेकर नया विवाद:इनेलो नेता मोर बोले- दावों के उलट है वास्तविकता, ग्रुप-डी में नौकरी का झूठा प्रचार
हरियाणा में 2 से 8 नवंबर तक होने वाले राज्य खेलों को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। हरियाणा ओलिंपिक संघ के पूर्व सह सचिव एवं इनेलो के खेल एवं युवा कल्याण प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह मोर ने इन खेलों को लेकर किए जा रहे कई दावों को गलत बताया है। उन्होंने कहा कि राज्य खेलों में मिलने वाले प्रमाणपत्रों से ग्रुप डी की नौकरी मिलने का दावा और इन खेलों को 27वें बताना, दोनों ही तथ्यात्मक रूप से गलत हैं। नरेंद्र सिंह मोर ने कहा कि मौजूदा खेल नीति साल 2018 में लागू हुई थी, जिसमें हरियाणा ओलिंपिक संघ के प्रमाणपत्रों या हरियाणा ओलिंपिक संघ से मान्य खेल संघों से जुड़े वाक्यांश हटा दिए गए थे। यह बदलाव उस समय संघ में चले विवादों और बड़े पैमाने पर हुए फर्जीवाड़े के चलते किया गया था। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस शासन के दौरान गैर मान्यता प्राप्त हरियाणा ओलिंपिक संघ और अन्य राज्य खेल संघों के जरिए खेल प्रमाणपत्रों का भारी फर्जीवाड़ा हुआ था। विशेष रूप से कराटे खेल में सबसे ज्यादा गड़बड़ी हुई थी, जहां एक समूह ने गैर मान्यता प्राप्त संघ को मान्यता देकर खिलाड़ियों को गलत प्रमाणपत्र जारी किए थे। दावों के उलट है वास्तविकता मोर ने कहा कि अब वही गैर मान्यता प्राप्त संघ फिर से मौजूदा हरियाणा ओलिंपिक संघ से मान्यता प्राप्त करने में सफल हो गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि “हरियाणा ओलिंपिक संघ के अध्यक्ष पारदर्शिता और फर्जीवाड़े पर नियंत्रण के दावे तो करते हैं, लेकिन वास्तविकता इसके उलट है। वे भारतीय खेल मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक चार्टर के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि कुछ खेल संघ खिलाड़ियों को नौकरी में प्रमाणपत्र मान्य होने के नाम पर प्रमाणपत्र बेचने का काम कर रहे हैं। इसका नुकसान असली और प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को उठाना पड़ता है। उनके अनुसार, “ग्रुप डी में नौकरी का झूठा प्रचार फर्जीवाड़ा बढ़ाने की कोशिश है, जबकि सच्चे खिलाड़ी बिना किसी प्रचार के भी खेलों में भाग लेते हैं।” सिरसा में 2007 में हुए थे आखिरी मान्यता प्राप्त खेल नरेंद्र सिंह मोर के अनुसार, मौजूदा राज्य खेलों को 27वां बताना भी गलत है। उन्होंने कहा कि “पिछले यानी 22वें हरियाणा राज्य (ओलिंपिक) खेल वर्ष 2007 में सिरसा में तत्कालीन अध्यक्ष अभय सिंह चौटाला की अगुआई में आयोजित हुए थे।” उन्होंने कहा कि “इसके बाद जो भी खेल ‘हरियाणा राज्य खेल’ के नाम से कराए गए, वे सब गैर मान्यता प्राप्त थे, क्योंकि उन्हें भारतीय ओलिंपिक संघ की स्वीकृति कभी नहीं मिली। यह बात विभिन्न कोर्ट मामलों में भी साबित हो चुकी है।” चयन प्रक्रिया पर भी उठाए सवाल मोर ने कहा कि खेल विभाग के प्रधान सचिव नवदीप विर्क का पत्र यदि पहले जारी हुआ होता, तो कई खिलाड़ी धोखाधड़ी का शिकार होने से बच जाते। उन्होंने कहा कि कई खेल संघों ने इन खेलों के लिए खिलाड़ियों का चयन गुपचुप तरीके से किया है — न तो किसी अखबार में विज्ञापन निकाला गया और न ही चयन प्रक्रिया सार्वजनिक की गई। उनके अनुसार, “खेलों का आयोजन गैर-पेशेवर तरीके से हो रहा है, और सभी खेल संघों के लिए समान मापदंड भी नहीं हैं।”
हरियाणा में 2 से 8 नवंबर तक होने वाले राज्य खेलों को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। हरियाणा ओलिंपिक संघ के पूर्व सह सचिव एवं इनेलो के खेल एवं युवा कल्याण प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह मोर ने इन खेलों को लेकर किए जा रहे कई दावों को गलत बताया है। उन्होंने कहा कि राज्य खेलों में मिलने वाले प्रमाणपत्रों से ग्रुप डी की नौकरी मिलने का दावा और इन खेलों को 27वें बताना, दोनों ही तथ्यात्मक रूप से गलत हैं। नरेंद्र सिंह मोर ने कहा कि मौजूदा खेल नीति साल 2018 में लागू हुई थी, जिसमें हरियाणा ओलिंपिक संघ के प्रमाणपत्रों या हरियाणा ओलिंपिक संघ से मान्य खेल संघों से जुड़े वाक्यांश हटा दिए गए थे। यह बदलाव उस समय संघ में चले विवादों और बड़े पैमाने पर हुए फर्जीवाड़े के चलते किया गया था। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस शासन के दौरान गैर मान्यता प्राप्त हरियाणा ओलिंपिक संघ और अन्य राज्य खेल संघों के जरिए खेल प्रमाणपत्रों का भारी फर्जीवाड़ा हुआ था। विशेष रूप से कराटे खेल में सबसे ज्यादा गड़बड़ी हुई थी, जहां एक समूह ने गैर मान्यता प्राप्त संघ को मान्यता देकर खिलाड़ियों को गलत प्रमाणपत्र जारी किए थे। दावों के उलट है वास्तविकता मोर ने कहा कि अब वही गैर मान्यता प्राप्त संघ फिर से मौजूदा हरियाणा ओलिंपिक संघ से मान्यता प्राप्त करने में सफल हो गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि “हरियाणा ओलिंपिक संघ के अध्यक्ष पारदर्शिता और फर्जीवाड़े पर नियंत्रण के दावे तो करते हैं, लेकिन वास्तविकता इसके उलट है। वे भारतीय खेल मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक चार्टर के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि कुछ खेल संघ खिलाड़ियों को नौकरी में प्रमाणपत्र मान्य होने के नाम पर प्रमाणपत्र बेचने का काम कर रहे हैं। इसका नुकसान असली और प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को उठाना पड़ता है। उनके अनुसार, “ग्रुप डी में नौकरी का झूठा प्रचार फर्जीवाड़ा बढ़ाने की कोशिश है, जबकि सच्चे खिलाड़ी बिना किसी प्रचार के भी खेलों में भाग लेते हैं।” सिरसा में 2007 में हुए थे आखिरी मान्यता प्राप्त खेल नरेंद्र सिंह मोर के अनुसार, मौजूदा राज्य खेलों को 27वां बताना भी गलत है। उन्होंने कहा कि “पिछले यानी 22वें हरियाणा राज्य (ओलिंपिक) खेल वर्ष 2007 में सिरसा में तत्कालीन अध्यक्ष अभय सिंह चौटाला की अगुआई में आयोजित हुए थे।” उन्होंने कहा कि “इसके बाद जो भी खेल ‘हरियाणा राज्य खेल’ के नाम से कराए गए, वे सब गैर मान्यता प्राप्त थे, क्योंकि उन्हें भारतीय ओलिंपिक संघ की स्वीकृति कभी नहीं मिली। यह बात विभिन्न कोर्ट मामलों में भी साबित हो चुकी है।” चयन प्रक्रिया पर भी उठाए सवाल मोर ने कहा कि खेल विभाग के प्रधान सचिव नवदीप विर्क का पत्र यदि पहले जारी हुआ होता, तो कई खिलाड़ी धोखाधड़ी का शिकार होने से बच जाते। उन्होंने कहा कि कई खेल संघों ने इन खेलों के लिए खिलाड़ियों का चयन गुपचुप तरीके से किया है — न तो किसी अखबार में विज्ञापन निकाला गया और न ही चयन प्रक्रिया सार्वजनिक की गई। उनके अनुसार, “खेलों का आयोजन गैर-पेशेवर तरीके से हो रहा है, और सभी खेल संघों के लिए समान मापदंड भी नहीं हैं।”