राजभवन में जलेंगे गोमय दीपक:देसी गाय के गोबर और औषधीय जड़ी-बूटियों से निर्मित

राजस्थान राजभवन इस दीपावली पर पर्यावरण संरक्षण, गोसंवर्धन और स्वदेशी नवाचार का संदेश देगा। इस वर्ष राजभवन में देसी नस्ल की गाय के गोबर और दुर्लभ औषधीय जड़ी-बूटियों से बने गोमय दीपक प्रज्ज्वलित किए जाएंगे। यह पहल प्रदेशभर में प्रकृति और परंपरा के संगम के रूप में पर्व मनाने की प्रेरणा देगी। शुक्रवार को विभिन्न गोसेवा संगठनों के प्रतिनिधियों ने राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े से मुलाकात की। अखिल भारतीय गोशाला सहयोग परिषद के अंतरराष्ट्रीय संयोजक डॉ. अतुल गुप्ता के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल को गोमय दीपक भेंट किए। उन्होंने राज्यपाल से आग्रह किया कि सभी विधायकों के निवास पर भी गोमय दीपक जलाने की व्यवस्था की जाए, जिसके लिए विभिन्न गौ सेवी संगठन दीपक उपलब्ध कराने को तैयार हैं। राज्यपाल बागड़े ने इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा, यह भारत की सांस्कृतिक परंपराओं और आधुनिक पर्यावरणीय चेतना का सुंदर संगम है। उन्होंने कहा कि ऐसे प्रयास समाज को प्रकृति-सम्मत जीवन की ओर प्रेरित करते हैं। जयपुर के टोंक-रोड स्थित पिंजरापोल गोशाला वैदिक पादप अनुसंधान केंद्र में इन गोमय दीपकों का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा रहा है। यहां स्वयं सहायता समूह की महिलाएं दीपक बनाने से लेकर उनकी पैकेजिंग और विपणन तक की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। माता रानी स्वयं सहायता समूह की महिलाएं प्रतिदिन लगभग पांच हजार दीपक तैयार कर रही हैं, जिसमें प्रति दीपक डेढ़ मिनट का समय लगता है। यह कार्य ग्रामीण महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता और सम्मानजनक आजीविका का सशक्त माध्यम बन गया है। हैनिमन चैरिटेबल सोसायटी की सचिव मोनिका गुप्ता ने बताया, ये दीपक साधारण मिट्टी के नहीं, बल्कि देसी नस्ल की गाय के गोबर और औषधीय जड़ी-बूटियों जैसे जटामासी, अश्वगंधा, रीठा, काली हल्दी, नीम, तुलसी, मोरिंगा पाउडर और देसी घी से निर्मित हैं। इन दीपकों के प्रज्ज्वलित होने पर वातावरण में हवन जैसी दिव्य सुगंध फैलती है, जो मन को शांत करने के साथ-साथ वायु को भी शुद्ध करती है। डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि ये गोमय दीपक गिरने पर टूटते नहीं, हल्के होते हैं और कई बार जलाए जा सकते हैं। दीपक के अवशेषों को मिट्टी या पौधों के पास डालने से ये प्राकृतिक खाद का कार्य करते हैं। यह दीपक केवल रोशनी ही नहीं, बल्कि धरती को पोषण भी देते हैं। यह भारतीय परंपरा के पंचगव्य सिद्धांत का आधुनिक और वैज्ञानिक रूप है। अयोध्या जाएंगे 5 लाख गोमय दीपक इस बार श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में आयोजित होने वाले 26 लाख दीपों के दीपोत्सव में जयपुर से पांच लाख गोमय दीपक विशेष आकर्षण का केंद्र होंगे। जब अयोध्या की पवित्र भूमि पर ये स्वदेशी दीपक जलेंगे, तो वह दृश्य भारतीय संस्कृति की वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक बन जाएगा। बाड़मेर जिले में भी महिलाएं बना रही गोबर के दीपक केवल जयपुर ही नहीं, बल्कि पूरे राजस्थान में यह आंदोलन जन-आंदोलन का रूप ले रहा है। बाड़मेर जिले में एक संस्था से जुड़ी महिलाएं भी गाय के गोबर से पर्यावरण-अनुकूल दीपक बनाकर दीपावली की तैयारी में जुटी हैं। इन्होंने गुजरात के मेहसाणा में प्रशिक्षण लेकर यह कार्य प्रारंभ किया। अब बाड़मेर ही नहीं, पूरे प्रदेश से इन दीयों की मांग बढ़ रही है। यह पहल महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी नया आधार दे रही है। ग्रेटर नगर निगम की ओर से प्रत्येक वार्ड में गोमय दीपक जलाने की तैयारी वहीं, जयपुर नगर निगम ग्रेटर की ओर से भी इस बार प्रत्येक वार्ड में गोमय दीपक जलाने की तैयारी की जा रही है। शहर के आधा दर्जन से अधिक सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं भी गांवों और मोहल्लों में ‘गोमय दीपोत्सव’ मनाने की दिशा में जुटी हैं।राजस्थान से लेकर अयोध्या तक इस बार का दीपोत्सव केवल प्रकाश का नहीं, बल्कि प्रकृति, परंपरा और मानवता के आलोक का उत्सव बनेगा। देसी गाय के गोबर से बने ये दीये एक साथ आध्यात्मिकता, पर्यावरण-संरक्षण, स्वदेशी नवाचार और महिला सशक्तिकरण के प्रतीक बन गए हैं — जो यह संदेश देते हैं कि जब दीप जले, तो केवल घर नहीं, धरती भी उजियारी हो।

Oct 17, 2025 - 22:54
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राजभवन में जलेंगे गोमय दीपक:देसी गाय के गोबर और औषधीय जड़ी-बूटियों से निर्मित
राजस्थान राजभवन इस दीपावली पर पर्यावरण संरक्षण, गोसंवर्धन और स्वदेशी नवाचार का संदेश देगा। इस वर्ष राजभवन में देसी नस्ल की गाय के गोबर और दुर्लभ औषधीय जड़ी-बूटियों से बने गोमय दीपक प्रज्ज्वलित किए जाएंगे। यह पहल प्रदेशभर में प्रकृति और परंपरा के संगम के रूप में पर्व मनाने की प्रेरणा देगी। शुक्रवार को विभिन्न गोसेवा संगठनों के प्रतिनिधियों ने राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े से मुलाकात की। अखिल भारतीय गोशाला सहयोग परिषद के अंतरराष्ट्रीय संयोजक डॉ. अतुल गुप्ता के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल को गोमय दीपक भेंट किए। उन्होंने राज्यपाल से आग्रह किया कि सभी विधायकों के निवास पर भी गोमय दीपक जलाने की व्यवस्था की जाए, जिसके लिए विभिन्न गौ सेवी संगठन दीपक उपलब्ध कराने को तैयार हैं। राज्यपाल बागड़े ने इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा, यह भारत की सांस्कृतिक परंपराओं और आधुनिक पर्यावरणीय चेतना का सुंदर संगम है। उन्होंने कहा कि ऐसे प्रयास समाज को प्रकृति-सम्मत जीवन की ओर प्रेरित करते हैं। जयपुर के टोंक-रोड स्थित पिंजरापोल गोशाला वैदिक पादप अनुसंधान केंद्र में इन गोमय दीपकों का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा रहा है। यहां स्वयं सहायता समूह की महिलाएं दीपक बनाने से लेकर उनकी पैकेजिंग और विपणन तक की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। माता रानी स्वयं सहायता समूह की महिलाएं प्रतिदिन लगभग पांच हजार दीपक तैयार कर रही हैं, जिसमें प्रति दीपक डेढ़ मिनट का समय लगता है। यह कार्य ग्रामीण महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता और सम्मानजनक आजीविका का सशक्त माध्यम बन गया है। हैनिमन चैरिटेबल सोसायटी की सचिव मोनिका गुप्ता ने बताया, ये दीपक साधारण मिट्टी के नहीं, बल्कि देसी नस्ल की गाय के गोबर और औषधीय जड़ी-बूटियों जैसे जटामासी, अश्वगंधा, रीठा, काली हल्दी, नीम, तुलसी, मोरिंगा पाउडर और देसी घी से निर्मित हैं। इन दीपकों के प्रज्ज्वलित होने पर वातावरण में हवन जैसी दिव्य सुगंध फैलती है, जो मन को शांत करने के साथ-साथ वायु को भी शुद्ध करती है। डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि ये गोमय दीपक गिरने पर टूटते नहीं, हल्के होते हैं और कई बार जलाए जा सकते हैं। दीपक के अवशेषों को मिट्टी या पौधों के पास डालने से ये प्राकृतिक खाद का कार्य करते हैं। यह दीपक केवल रोशनी ही नहीं, बल्कि धरती को पोषण भी देते हैं। यह भारतीय परंपरा के पंचगव्य सिद्धांत का आधुनिक और वैज्ञानिक रूप है। अयोध्या जाएंगे 5 लाख गोमय दीपक इस बार श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में आयोजित होने वाले 26 लाख दीपों के दीपोत्सव में जयपुर से पांच लाख गोमय दीपक विशेष आकर्षण का केंद्र होंगे। जब अयोध्या की पवित्र भूमि पर ये स्वदेशी दीपक जलेंगे, तो वह दृश्य भारतीय संस्कृति की वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक बन जाएगा। बाड़मेर जिले में भी महिलाएं बना रही गोबर के दीपक केवल जयपुर ही नहीं, बल्कि पूरे राजस्थान में यह आंदोलन जन-आंदोलन का रूप ले रहा है। बाड़मेर जिले में एक संस्था से जुड़ी महिलाएं भी गाय के गोबर से पर्यावरण-अनुकूल दीपक बनाकर दीपावली की तैयारी में जुटी हैं। इन्होंने गुजरात के मेहसाणा में प्रशिक्षण लेकर यह कार्य प्रारंभ किया। अब बाड़मेर ही नहीं, पूरे प्रदेश से इन दीयों की मांग बढ़ रही है। यह पहल महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी नया आधार दे रही है। ग्रेटर नगर निगम की ओर से प्रत्येक वार्ड में गोमय दीपक जलाने की तैयारी वहीं, जयपुर नगर निगम ग्रेटर की ओर से भी इस बार प्रत्येक वार्ड में गोमय दीपक जलाने की तैयारी की जा रही है। शहर के आधा दर्जन से अधिक सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं भी गांवों और मोहल्लों में ‘गोमय दीपोत्सव’ मनाने की दिशा में जुटी हैं।राजस्थान से लेकर अयोध्या तक इस बार का दीपोत्सव केवल प्रकाश का नहीं, बल्कि प्रकृति, परंपरा और मानवता के आलोक का उत्सव बनेगा। देसी गाय के गोबर से बने ये दीये एक साथ आध्यात्मिकता, पर्यावरण-संरक्षण, स्वदेशी नवाचार और महिला सशक्तिकरण के प्रतीक बन गए हैं — जो यह संदेश देते हैं कि जब दीप जले, तो केवल घर नहीं, धरती भी उजियारी हो।