मुरलीगंज में दो दिवसीय संतमत सत्संग संपन्न:स्वामी शंभू चेतन ने योग पर सुनाया प्रवचन, सैकड़ों की संख्या में लोग उपस्थित रहे
मधेपुरा के मुरलीगंज प्रखंड के रतनपट्टी गांव में दो दिवसीय संतमत सत्संग का आयोजन किया गया। यह सत्संग 10 नवंबर, सोमवार को शुरू होकर 11 नवंबर, मंगलवार शाम पांच बजे संपन्न हुआ। बनारस (उत्तर प्रदेश) से आए स्वामी शंभू चेतन जी महाराज ने इसमें मुख्य प्रवचन दिए। सत्संग समिति के आयोजक प्रमोद भूषण दास ने बताया कि स्वामी शंभू चेतन जी महाराज के साथ अन्य सहयोगी संतों ने भी प्रवचन दिए। दूर-दराज से आए सैकड़ों श्रद्धालुओं ने संतों के प्रवचनों का लाभ उठाया। स्वामी शंभू चेतन जी महाराज ने अपने प्रवचन में 'सुरत शब्द योग' के महत्व पर विशेष जोर दिया। उन्होंने साधकों से कहा कि इस मार्ग पर चलने के लिए प्रीति और विश्वास के साथ प्रतिदिन अभ्यास करना चाहिए। स्वामी जी के अनुसार, नियमित अभ्यास से ही साधना में प्रगति होती है, जबकि इसमें कमी करने से प्राप्त हुई प्रगति भी प्रभावित होती है। साधना करते समय घबराना नहीं चाहिए- स्वामी जी स्वामी जी ने साधकों को साधना करते समय घबराने से मना किया। उन्होंने समझाया कि 'शब्द' आंतरिक शुद्धता चाहता है और साधक को पवित्र करता है। उन्होंने यह भी बताया कि साधक के भीतर सूक्ष्म माया व्याप्त रहती है, जो मन में विभिन्न इच्छाएं उत्पन्न करती है, जिसकी उन्हें अक्सर जानकारी नहीं होती। उन्होंने उन साधकों की गलतियों की ओर भी ध्यान दिलाया जो स्वयं साधना नहीं करते और सत्संग में नीरस भाव से बैठते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि गुरु तभी जिम्मेदारी लेते हैं जब साधक स्वयं साधना में संलग्न होते हैं। स्वामी जी ने आगे कहा कि कई लोग सुरत शब्द के मार्ग को अपनाते हैं, लेकिन समय के अभाव या मन-इंद्रियों के अन्य साधनों में लगे रहने के कारण साधना में प्रगति नहीं कर पाते। उन्होंने बताया कि जो साधक गुरु का उपदेश लेकर भी डांवाडोल रहते हैं, वे संतों से कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते। संत देने के लिए आते हैं, लेकिन जीव उन्हें ग्रहण नहीं कर पाता। स्वामी जी ने अंत में कहा कि जब जीवों की प्रीति संतों के चरणों में होती है, तभी उन्हें नामदान मिलता है और वे सांसारिक बंधनों से मुक्त हो पाते हैं।
मधेपुरा के मुरलीगंज प्रखंड के रतनपट्टी गांव में दो दिवसीय संतमत सत्संग का आयोजन किया गया। यह सत्संग 10 नवंबर, सोमवार को शुरू होकर 11 नवंबर, मंगलवार शाम पांच बजे संपन्न हुआ। बनारस (उत्तर प्रदेश) से आए स्वामी शंभू चेतन जी महाराज ने इसमें मुख्य प्रवचन दिए। सत्संग समिति के आयोजक प्रमोद भूषण दास ने बताया कि स्वामी शंभू चेतन जी महाराज के साथ अन्य सहयोगी संतों ने भी प्रवचन दिए। दूर-दराज से आए सैकड़ों श्रद्धालुओं ने संतों के प्रवचनों का लाभ उठाया। स्वामी शंभू चेतन जी महाराज ने अपने प्रवचन में 'सुरत शब्द योग' के महत्व पर विशेष जोर दिया। उन्होंने साधकों से कहा कि इस मार्ग पर चलने के लिए प्रीति और विश्वास के साथ प्रतिदिन अभ्यास करना चाहिए। स्वामी जी के अनुसार, नियमित अभ्यास से ही साधना में प्रगति होती है, जबकि इसमें कमी करने से प्राप्त हुई प्रगति भी प्रभावित होती है। साधना करते समय घबराना नहीं चाहिए- स्वामी जी स्वामी जी ने साधकों को साधना करते समय घबराने से मना किया। उन्होंने समझाया कि 'शब्द' आंतरिक शुद्धता चाहता है और साधक को पवित्र करता है। उन्होंने यह भी बताया कि साधक के भीतर सूक्ष्म माया व्याप्त रहती है, जो मन में विभिन्न इच्छाएं उत्पन्न करती है, जिसकी उन्हें अक्सर जानकारी नहीं होती। उन्होंने उन साधकों की गलतियों की ओर भी ध्यान दिलाया जो स्वयं साधना नहीं करते और सत्संग में नीरस भाव से बैठते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि गुरु तभी जिम्मेदारी लेते हैं जब साधक स्वयं साधना में संलग्न होते हैं। स्वामी जी ने आगे कहा कि कई लोग सुरत शब्द के मार्ग को अपनाते हैं, लेकिन समय के अभाव या मन-इंद्रियों के अन्य साधनों में लगे रहने के कारण साधना में प्रगति नहीं कर पाते। उन्होंने बताया कि जो साधक गुरु का उपदेश लेकर भी डांवाडोल रहते हैं, वे संतों से कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते। संत देने के लिए आते हैं, लेकिन जीव उन्हें ग्रहण नहीं कर पाता। स्वामी जी ने अंत में कहा कि जब जीवों की प्रीति संतों के चरणों में होती है, तभी उन्हें नामदान मिलता है और वे सांसारिक बंधनों से मुक्त हो पाते हैं।