अमेरिका की भारत को धमकी, नहीं मानोगे तो अच्छा नहीं होगा
America threat to India: अमेरिकी राष्ट्रपति के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो भारत पर निशाना साधने का कोई भी मौका नहीं चूक रहे हैं। ट्रंप का रुख बदलने के बाद भी नवारो भारत को लेकर आक्रामक बने हुए हैं। नवारो ने भारत को धमकी भरे अंदाज में कहा है कि भारत ...
 
                                
			 
	
	
	America threat to India: अमेरिकी राष्ट्रपति के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो भारत पर निशाना साधने का कोई भी मौका नहीं चूक रहे हैं। ट्रंप का रुख बदलने के बाद भी नवारो भारत को लेकर आक्रामक बने हुए हैं। नवारो ने भारत को धमकी भरे अंदाज में कहा है कि भारत को अमेरिका की बात माननी ही होगी, यदि ऐसा नहीं हुआ तो भारत के लिए यह अच्छा नहीं होगा। उल्लेखनीय है कि हाल ही में ट्रंप से भारत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अच्छे संबंध होने की बात कही थी। 
यह अच्छा नहीं है : ट्रंप के करीबी नवारो ने रियल अमेरिकाज वॉयस कार्यक्रम में कहा कि भारत को किसी न किसी समय अमेरिका के साथ व्यापार वार्ताओं पर सहमत होना ही पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा नहीं होता है, तो भारत रूस और चीन के साथ खड़ा नजर आएगा, जो कि उसके लिए अच्छा नहीं होगा। नवारो ने कहा कि भारत सरकार इस बात से आहत हुई है कि उन्होंने भारत को टैरिफ किंग कहा था।
ब्रिक्स देशों पर निशाना : नवारो ने BRICS देशों पर तीखा निशाना साधते हुए कहा कि असल बात यह है कि इस समूह का कोई भी देश तब तक जिंदा नहीं रह सकता जब तक वे अमेरिका को अपना माल नहीं बेचते। जब वे अमेरिका को निर्यात करते हैं, तो वे अपनी अनुचित व्यापार नीतियों से वैम्पायर की तरह हमारा खून चूसते हैं।
खिसियाहट भरे अंदाज में नवारो ने कहा कि भारत दशकों से चीन के साथ युद्ध लड़ रहा है। मुझे अभी याद आया कि पाकिस्तान को परमाणु बम चीन ने ही दिया था। अब आपके पास हिंद महासागर में चीनी झंडे लिए हवाई जहाज घूम रहे हैं। अब देखिए, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इनसे कैसे निपटते हैं।
भारत लगाता है सबसे ऊंचा शुल्क : नवारो ने कहा कि अमेरिका के खिलाफ दुनिया के किसी भी बड़े देश में सबसे ऊंचे शुल्क भारत ही लगाता है। नवारो ने दावा कि रूस के यूक्रेन पर आक्रमण से पहले भारत मॉस्को से बहुत कम तेल खरीदता था। इसके बाद भारत ने मुनाफाखोरी का रुख अपना लिया, जहां रूसी रिफाइनर भारत की जमीन पर आकर लाभ कमा रहे हैं और अमेरिकी करदाताओं को इस संघर्ष के लिए और अधिक पैसा भेजना पड़ता है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 


 
                                                                                                                                             
                                                                                                                                             
                                                                                                                                            

 
                                             
                                             
                                             
                                            