हिन्दू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु के वामन अवतार का जन्मोत्सव वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिन धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश का प्रतीक है। वामन जयंती विशेष रूप से उत्तर भारत में और वैष्णव मतावलंबियों के बीच बड़े श्रद्धा और उत्साह से मनाई जाती है।
वामन अवतार की पौराणिक कथा
त्रेतायुग में महाबली राजा बलि अपने पराक्रम और दानशीलता के कारण प्रसिद्ध थे। उन्होंने इंद्रलोक तक पर विजय प्राप्त कर ली थी, जिससे देवता भयभीत हो गए। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार, अर्थात् एक बौने ब्राह्मण बालक का रूप धारण किया। वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। पहले पग में उन्होंने पृथ्वी को नापा। दूसरे पग में आकाश को। तीसरे पग के लिए स्थान न बचा, तो बलि ने अपना सिर अर्पित कर दिया। इस प्रकार भगवान ने बलि को पाताल लोक भेजकर देवताओं को उनका अधिकार वापस दिलाया।
वामन जयंती का धार्मिक महत्व
यह दिन विष्णु भगवान की भक्ति और धर्म की पुनः स्थापना का प्रतीक है। वामन अवतार सिखाता है कि अहंकार का पतन निश्चित है और विनम्रता से ही व्यक्ति महान बनता है। बलि का चरित्र यह संदेश देता है कि दान और वचनबद्धता व्यक्ति को अमर बना देते हैं।
वामन जयंती व्रत और पूजा विधि
प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
पीले पुष्प, तुलसीदल, पंचामृत, चंदन, धूप, दीप और फल अर्पित करें।
विष्णु सहस्रनाम और वामन अवतार की कथा का पाठ करें।
व्रतधारी इस दिन उपवास रखकर संध्या के समय दान-पुण्य करके व्रत का समापन करते हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
वामन जयंती हमें संयम, भक्ति और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। यह पर्व यह भी सिखाता है कि सत्ता या बल से अधिक महत्वपूर्ण है धर्म और विनम्रता। समाज में दान और वचन की महत्ता का यह उत्कृष्ट उदाहरण है।
वामन जयंती केवल भगवान विष्णु की आराधना का दिन ही नहीं, बल्कि यह हमें विनम्रता, सत्य और धर्म के महत्व को समझाने वाला पर्व है। यह दिन याद दिलाता है कि चाहे कोई कितना भी बलशाली क्यों न हो, अंततः धर्म ही सर्वोपरि होता है।
- शुभा दुबे