पिछले सप्ताह स्थायी मध्यस्थता न्यायालय द्वारा अपने पक्ष में दिए गए फैसले के बाद, पाकिस्तान अब भारत से द्विपक्षीय जल-बंटवारे संधि के कार्यान्वयन को फिर से शुरू करने का आह्वान कर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि फैसले से इस्लामाबाद की कानूनी स्थिति मजबूत हुई है, लेकिन नई दिल्ली द्वारा संधि का पालन करने की संभावना नहीं है। 65 साल पुरानी सिंधु जल संधि (IWT) पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों के पानी पर अधिकार देती है, जबकि भारत को रावी, सतलुज और ब्यास नदियों पर नियंत्रण प्रदान करती है। अप्रैल के महीने में जम्मू कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमले के जवाब में भारत ने सिंधु जल संधि को निरस्त करने की घोषणा कर दी थी।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर ने गीदड़भभकी देते हुए कहा कि इस्लामाबाद दक्षिण एशिया में किसी भी तरह के भारतीय प्रभुत्व को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करेगा। विश्वविद्यालय के अधिकारियों और शिक्षकों से बात करते हुए मुनीर ने कहा कि भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करना एक बुनियादी सीमा को पार करना है जिसे पाकिस्तान बर्दाश्त नहीं कर सकता। सैन्य नेता की यह टिप्पणी दोनों देशों द्वारा कई दिनों तक चले भीषण सैन्य टकराव के बाद युद्ध विराम लागू करने के कुछ सप्ताह बाद आई है। मुनीर ने इस बात पर जोर दिया कि जल अधिकारों पर पाकिस्तान की स्थिति एक ऐसे सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करती है जो देश के 240 मिलियन नागरिकों की जीवन-यापन संबंधी जरूरतों से सीधे जुड़ा हुआ है।
दूसरी तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा कि पाकिस्तान सरकार ने देश में जल भंडारण क्षमता बढ़ाने का फैसला किया है। ऐसे में उन्होंने संभावित विभागों को वाटर स्टोरेज परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने के निर्देश दिए हैं। शरीफ ने भारत पर झुंझलाहट निकालते हुए कहा कि देश में पानी की सुरक्षा को लेकर फैसला लेना जरूरी है क्योंकि दिल्ली की मंशा पानी को हथियार बनाने की है।