क्या है iOS 26 के साथ लॉन्च होने वाला Apple का लिक्विड ग्लास डिज़ाइन ?

Apple शुरू से ही टेक्नोलॉजी और डिज़ाइन को साथ लेकर चलने में यकीन करता है। यही सोच उसे दूसरों से अलग बनाती है। 2007 में जब पहला iPhone लॉन्च हुआ, तभी से उसका खास डिज़ाइन स्टाइल उसकी पहचान का बड़ा हिस्सा बन गया है।Apple सिर्फ एक स्मार्टफोन नहीं बनाता—वो कोशिश करता है कि जब भी कोई उसका डिवाइस इस्तेमाल करे, हर बार का अनुभव आसान, सुंदर और सोच-समझकर बनाया हुआ लगे।iOS में अब तक कई डिज़ाइन बदलाव हुए हैं, लेकिन लिक्विड ग्लास डिज़ाइन सबसे अलग और खास रहा है। इसमें पारदर्शिता (transparency), गहराई (depth), और रियल जैसा लुक मिलाकर ऐसा अहसास दिया जाता है जैसे आप स्क्रीन के पार देख रहे हों। इससे यूज़र को ऐसा लगता है जैसे स्क्रीन और असली दुनिया के बीच कोई फर्क ही नहीं। सब कुछ ज्यादा नेचुरल और आरामदायक लगता है। यही वजह है कि iPhone का इंटरफ़ेस न सिर्फ खूबसूरत दिखता है, बल्कि चलाने में भी बेहद आसान और मज़ेदार लगता है—और यही बात Apple को दुनिया में सबसे खास बनाती है।लिक्विड ग्लास डिज़ाइन क्या है?Apple का “लिक्विड ग्लास” डिज़ाइन क्या है और ये क्यों खास है?Apple का “लिक्विड ग्लास” डिज़ाइन एक ऐसा तरीका है जिससे मोबाइल और डिवाइस का इंटरफेस (UI) दिखने में बेहद साफ, हल्का और असली जैसा लगता है। इसका मकसद है कि जब आप स्क्रीन इस्तेमाल करें तो सब कुछ ऐसा महसूस हो जैसे वो काँच की पारदर्शी, पिघली हुई परतों जैसा हो — जो आपके छूने या स्क्रॉल करने पर तुरंत और बहुत स्मूद तरीके से रिएक्ट करे।इस खास डिज़ाइन को बनाने में कुछ तकनीकें काम आती हैं:पारदर्शिता (Translucency): इससे स्क्रीन पर मौजूद चीज़ें थोड़ी पारदर्शी लगती हैं — यानी आप उनके पीछे की चीज़ों को हल्का-सा देख सकते हैं। इससे स्क्रीन को देखने में गहराई और जुड़ाव महसूस होता है, जैसे सब कुछ आपस में कनेक्टेड हो।इसे भी पढ़ें: Gaming App: Apple ला रहा है गेमिंग में क्रांति, नए एप से बदल जाएगा अनुभवगॉसियन ब्लर (Gaussian Blur): यह एक हल्का धुंधलापन होता है जो पारदर्शी हिस्सों पर लगाया जाता है ताकि पीछे की चीज़ें साफ न दिखें और ध्यान भटकाए बिना सिर्फ ज़रूरी चीज़ें ही साफ दिखें। इससे स्क्रीन पर एक “फ्रॉस्टेड ग्लास” जैसा इफेक्ट आता है।पैरालैक्स इफेक्ट (Parallax): जब आप फोन को हिलाते हैं या स्क्रीन पर स्क्रॉल करते हैं, तो पीछे और आगे के एलिमेंट्स थोड़ी अलग रफ्तार से हिलते हैं। इससे ऐसा लगता है कि स्क्रीन में गहराई है और सब कुछ अलग-अलग लेयर पर रखा हुआ है — जैसे कोई असली चीज़।Apple का यह डिज़ाइन सिर्फ सुंदरता के लिए नहीं है — इसका असली मकसद है ऐसा अनुभव देना जो न सिर्फ देखने में अच्छा लगे, बल्कि इस्तेमाल करने में आसान और मज़ेदार भी हो। ऐसा लगे जैसे स्क्रीन पर दिख रहे एलिमेंट्स असली हैं और आपके टच पर ज़िंदा हो जाते हैं।स्क्यूओमॉर्फ़िज़्म से मिनिमलिज़्म तक (iOS 1–6)iOS डिज़ाइन की शुरुआत कैसी थी?iOS ऑपरेटिंग सिस्टम के शुरूआती समय में इसका डिज़ाइन ऐसा बनाया गया था कि मोबाइल में जो चीज़ें दिखती थीं, वो असली दुनिया की चीज़ों जैसी लगें। इसे कहते हैं Skeuomorphism (स्क्यूओमॉर्फ़िज़्म)। जैसे कि कैलकुलेटर का आइकन सिर्फ एक सिंबल नहीं था, वो दिखने में एक असली कैलकुलेटर जैसा लगता था — जिसमें बटन और स्क्रीन भी दिखते थे।कैलेंडर ऐप में ऐसा डिज़ाइन था जैसे वो किसी असली लेदर डायरी का हिस्सा हो। और नोटपैड ऐप को पीले पन्नों और हल्की लाइनों के साथ ऐसे बनाया गया था कि वो एक असली नोटबुक जैसा लगे।ये डिज़ाइन उस वक्त के लोगों को बहुत पसंद आया, खासकर उन लोगों को जो पहली बार स्मार्टफोन इस्तेमाल कर रहे थे। उन्हें चीज़ें समझने और इस्तेमाल करने में आसानी होती थी। लेकिन जैसे-जैसे लोग टेक्नोलॉजी में ज़्यादा एडवांस हो गए, ये पुराना डिज़ाइन भारी और थोड़ा आउटडेटेड लगने लगा।शुरुआत में स्कियूमॉर्फिक डिज़ाइन (यानि असली चीज़ों जैसी दिखने वाली डिज़ाइन) लोगों को नया और दिलचस्प लगा। लेकिन जैसे-जैसे मोबाइल और कंप्यूटर के स्क्रीन बेहतर हुए और प्रोसेसर तेज़ हुए, वैसे-वैसे ये भारी और सजावटी डिज़ाइन उलझाने वाले लगने लगे।जो चीज़ पहले अच्छी लगती थी, वो अब थोड़ी बेमतलब और ध्यान भटकाने वाली लगने लगी।इस वजह से लोग ऐसी डिज़ाइन से थकने लगे और ज़रूरत महसूस हुई कुछ नया और आसान अपनाने की। यहीं से Apple ने अपने इंटरफेस को बदलने की शुरुआत की — अब डिज़ाइन ज़्यादा साफ, सीधी और इस्तेमाल करने में आसान हो गई।अब ध्यान इस बात पर था कि यूज़र को चीज़ें जल्दी समझ आएं और सब कुछ स्मूथ चले — न कि हर आइकन या बटन असली चीज़ की कॉपी लगे।यही सोच आगे चलकर आज के मोबाइल ऐप्स और ऑपरेटिंग सिस्टम्स में दिखने वाले साधे और साफ डिज़ाइन (minimal design) का बड़ा कारण बनी।iOS 7: फ्रॉस्टेड UI का जन्म 2013 में Apple ने iOS 7 लॉन्च किया, जो iPhone के डिज़ाइन में एक बड़ा बदलाव लेकर आया।जॉनाथन इव की टीम ने इसमें एक नया “फ्लैट डिज़ाइन” लाया, जिसमें साधारण फॉन्ट्स और बहुत ही सिंपल आइकन इस्तेमाल किए गए थे।इसमें एक खास चीज़ थी — “फ्रॉस्टेड ग्लास इफेक्ट”, यानी ऐसा डिज़ाइन जो थोड़ा पारदर्शी और धुंधला लगता था। यही आगे चलकर Apple के नए लिक्विड ग्लास लुक की शुरुआत बना।इस इफेक्ट ने स्क्रीन के अंदर गहराई जैसा अहसास दिया, जिससे चीज़ों को देखना और समझना आसान हो गया — और ये सब बहुत सादगी से किया गया।ये एक ऐसा बदलाव था, जिसने आज के ज़माने के स्मार्टफोन डिज़ाइन की दिशा तय की।लिक्विड एस्थेटिक (iOS 10–12)iOS 10 से iOS 12 तक, एप्पल ने अपने मोबाइल इंटरफेस को और बेहतर बनाया। उन्होंने स्क्रीन पर हल्की पारदर्शी परतें और स्मूद कलर ग्रेडिएंट्स इस्तेमाल किए। कंट्रोल सेंटर, नोटिफिकेशन और ऐप्स के पीछे का बैकग्राउंड अब ऐसा लगने लगा जैसे कांच जैसा हो — जिसे हम “ग्लासमॉर्फ़िज़्म” कहते हैं।ये डिज़ाइन सिर्फ दिखने में अच्छा नहीं था, बल्कि काम का भी था। यह इंटरफेस अपने आप बदल जाता था — जैसे अगर आप लाइट थीम लगाएं या वॉलपेपर बदले

Jul 4, 2025 - 10:48
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क्या है iOS 26 के साथ लॉन्च होने वाला Apple का लिक्विड ग्लास डिज़ाइन ?
Apple शुरू से ही टेक्नोलॉजी और डिज़ाइन को साथ लेकर चलने में यकीन करता है। यही सोच उसे दूसरों से अलग बनाती है। 2007 में जब पहला iPhone लॉन्च हुआ, तभी से उसका खास डिज़ाइन स्टाइल उसकी पहचान का बड़ा हिस्सा बन गया है।

Apple सिर्फ एक स्मार्टफोन नहीं बनाता—वो कोशिश करता है कि जब भी कोई उसका डिवाइस इस्तेमाल करे, हर बार का अनुभव आसान, सुंदर और सोच-समझकर बनाया हुआ लगे।

iOS में अब तक कई डिज़ाइन बदलाव हुए हैं, लेकिन लिक्विड ग्लास डिज़ाइन सबसे अलग और खास रहा है। इसमें पारदर्शिता (transparency), गहराई (depth), और रियल जैसा लुक मिलाकर ऐसा अहसास दिया जाता है जैसे आप स्क्रीन के पार देख रहे हों। इससे यूज़र को ऐसा लगता है जैसे स्क्रीन और असली दुनिया के बीच कोई फर्क ही नहीं। सब कुछ ज्यादा नेचुरल और आरामदायक लगता है। यही वजह है कि iPhone का इंटरफ़ेस न सिर्फ खूबसूरत दिखता है, बल्कि चलाने में भी बेहद आसान और मज़ेदार लगता है—और यही बात Apple को दुनिया में सबसे खास बनाती है।

लिक्विड ग्लास डिज़ाइन क्या है?

Apple का “लिक्विड ग्लास” डिज़ाइन क्या है और ये क्यों खास है?

Apple का “लिक्विड ग्लास” डिज़ाइन एक ऐसा तरीका है जिससे मोबाइल और डिवाइस का इंटरफेस (UI) दिखने में बेहद साफ, हल्का और असली जैसा लगता है। इसका मकसद है कि जब आप स्क्रीन इस्तेमाल करें तो सब कुछ ऐसा महसूस हो जैसे वो काँच की पारदर्शी, पिघली हुई परतों जैसा हो — जो आपके छूने या स्क्रॉल करने पर तुरंत और बहुत स्मूद तरीके से रिएक्ट करे।

इस खास डिज़ाइन को बनाने में कुछ तकनीकें काम आती हैं:

पारदर्शिता (Translucency): इससे स्क्रीन पर मौजूद चीज़ें थोड़ी पारदर्शी लगती हैं — यानी आप उनके पीछे की चीज़ों को हल्का-सा देख सकते हैं। इससे स्क्रीन को देखने में गहराई और जुड़ाव महसूस होता है, जैसे सब कुछ आपस में कनेक्टेड हो।

इसे भी पढ़ें: Gaming App: Apple ला रहा है गेमिंग में क्रांति, नए एप से बदल जाएगा अनुभव

गॉसियन ब्लर (Gaussian Blur): यह एक हल्का धुंधलापन होता है जो पारदर्शी हिस्सों पर लगाया जाता है ताकि पीछे की चीज़ें साफ न दिखें और ध्यान भटकाए बिना सिर्फ ज़रूरी चीज़ें ही साफ दिखें। इससे स्क्रीन पर एक “फ्रॉस्टेड ग्लास” जैसा इफेक्ट आता है।

पैरालैक्स इफेक्ट (Parallax): जब आप फोन को हिलाते हैं या स्क्रीन पर स्क्रॉल करते हैं, तो पीछे और आगे के एलिमेंट्स थोड़ी अलग रफ्तार से हिलते हैं। इससे ऐसा लगता है कि स्क्रीन में गहराई है और सब कुछ अलग-अलग लेयर पर रखा हुआ है — जैसे कोई असली चीज़।

Apple का यह डिज़ाइन सिर्फ सुंदरता के लिए नहीं है — इसका असली मकसद है ऐसा अनुभव देना जो न सिर्फ देखने में अच्छा लगे, बल्कि इस्तेमाल करने में आसान और मज़ेदार भी हो। ऐसा लगे जैसे स्क्रीन पर दिख रहे एलिमेंट्स असली हैं और आपके टच पर ज़िंदा हो जाते हैं।

स्क्यूओमॉर्फ़िज़्म से मिनिमलिज़्म तक (iOS 1–6)

iOS डिज़ाइन की शुरुआत कैसी थी?

iOS ऑपरेटिंग सिस्टम के शुरूआती समय में इसका डिज़ाइन ऐसा बनाया गया था कि मोबाइल में जो चीज़ें दिखती थीं, वो असली दुनिया की चीज़ों जैसी लगें। इसे कहते हैं Skeuomorphism (स्क्यूओमॉर्फ़िज़्म)।
 
जैसे कि कैलकुलेटर का आइकन सिर्फ एक सिंबल नहीं था, वो दिखने में एक असली कैलकुलेटर जैसा लगता था — जिसमें बटन और स्क्रीन भी दिखते थे।

कैलेंडर ऐप में ऐसा डिज़ाइन था जैसे वो किसी असली लेदर डायरी का हिस्सा हो। और नोटपैड ऐप को पीले पन्नों और हल्की लाइनों के साथ ऐसे बनाया गया था कि वो एक असली नोटबुक जैसा लगे।

ये डिज़ाइन उस वक्त के लोगों को बहुत पसंद आया, खासकर उन लोगों को जो पहली बार स्मार्टफोन इस्तेमाल कर रहे थे। उन्हें चीज़ें समझने और इस्तेमाल करने में आसानी होती थी।
 
लेकिन जैसे-जैसे लोग टेक्नोलॉजी में ज़्यादा एडवांस हो गए, ये पुराना डिज़ाइन भारी और थोड़ा आउटडेटेड लगने लगा।

शुरुआत में स्कियूमॉर्फिक डिज़ाइन (यानि असली चीज़ों जैसी दिखने वाली डिज़ाइन) लोगों को नया और दिलचस्प लगा। लेकिन जैसे-जैसे मोबाइल और कंप्यूटर के स्क्रीन बेहतर हुए और प्रोसेसर तेज़ हुए, वैसे-वैसे ये भारी और सजावटी डिज़ाइन उलझाने वाले लगने लगे।

जो चीज़ पहले अच्छी लगती थी, वो अब थोड़ी बेमतलब और ध्यान भटकाने वाली लगने लगी।

इस वजह से लोग ऐसी डिज़ाइन से थकने लगे और ज़रूरत महसूस हुई कुछ नया और आसान अपनाने की। यहीं से Apple ने अपने इंटरफेस को बदलने की शुरुआत की — अब डिज़ाइन ज़्यादा साफ, सीधी और इस्तेमाल करने में आसान हो गई।

अब ध्यान इस बात पर था कि यूज़र को चीज़ें जल्दी समझ आएं और सब कुछ स्मूथ चले — न कि हर आइकन या बटन असली चीज़ की कॉपी लगे।

यही सोच आगे चलकर आज के मोबाइल ऐप्स और ऑपरेटिंग सिस्टम्स में दिखने वाले साधे और साफ डिज़ाइन (minimal design) का बड़ा कारण बनी।

iOS 7: फ्रॉस्टेड UI का जन्म

 

2013 में Apple ने iOS 7 लॉन्च किया, जो iPhone के डिज़ाइन में एक बड़ा बदलाव लेकर आया।

जॉनाथन इव की टीम ने इसमें एक नया “फ्लैट डिज़ाइन” लाया, जिसमें साधारण फॉन्ट्स और बहुत ही सिंपल आइकन इस्तेमाल किए गए थे।

इसमें एक खास चीज़ थी — “फ्रॉस्टेड ग्लास इफेक्ट”, यानी ऐसा डिज़ाइन जो थोड़ा पारदर्शी और धुंधला लगता था। यही आगे चलकर Apple के नए लिक्विड ग्लास लुक की शुरुआत बना।

इस इफेक्ट ने स्क्रीन के अंदर गहराई जैसा अहसास दिया, जिससे चीज़ों को देखना और समझना आसान हो गया — और ये सब बहुत सादगी से किया गया।

ये एक ऐसा बदलाव था, जिसने आज के ज़माने के स्मार्टफोन डिज़ाइन की दिशा तय की।

लिक्विड एस्थेटिक (iOS 10–12)

iOS 10 से iOS 12 तक, एप्पल ने अपने मोबाइल इंटरफेस को और बेहतर बनाया। उन्होंने स्क्रीन पर हल्की पारदर्शी परतें और स्मूद कलर ग्रेडिएंट्स इस्तेमाल किए। कंट्रोल सेंटर, नोटिफिकेशन और ऐप्स के पीछे का बैकग्राउंड अब ऐसा लगने लगा जैसे कांच जैसा हो — जिसे हम “ग्लासमॉर्फ़िज़्म” कहते हैं।

ये डिज़ाइन सिर्फ दिखने में अच्छा नहीं था, बल्कि काम का भी था। यह इंटरफेस अपने आप बदल जाता था — जैसे अगर आप लाइट थीम लगाएं या वॉलपेपर बदलें, तो स्क्रीन का लुक उसके मुताबिक एडजस्ट हो जाता था। इससे यूज़र को सब कुछ साफ-सुथरा और आसानी से समझ में आने वाला दिखता था।

iOS 13–15: डार्क मोड और डायनेमिक ग्लास

iOS 13 में Apple ने सिस्टम-व्यापी डार्क मोड पेश किया, जिससे डिज़ाइन के लिए एक नई चुनौती उत्पन्न हुई। अब, ट्रांसलूसेंट पैनल्स को डार्क वातावरण में भी सुंदर और कार्यशील दिखना था। Apple ने हल्की रोशनी के प्रसार और किनारों पर शैडोज़ को बेहतर बनाकर इसका समाधान किया, ताकि चाहे कोई भी मोड हो, सतहों की स्पर्श-संवेदनशील गुणवत्ता बनी रहे। बैकग्राउंड ब्लरिंग अब रीयल-टाइम में बदलती वॉलपेपर और हैप्टिक फीडबैक के साथ तालमेल बिठाने लगी, जिससे यूजर एक तरल और इमर्सिव इंटरफेस का अनुभव कर सकें।
 
 

iOS 16–17: विजेट्स, पर्सनलाइज़ेशन और डेप्थ

iOS 16 और 17 में पर्सनलाइज़ेशन को खास अहमियत दी गई है।

लॉक स्क्रीन पर विजेट्स, लेयर वाले फ़ोटो इफ़ेक्ट और लाइव एक्टिविटीज़ ने इंटरफेस को ज़्यादा इंटरैक्टिव और दिलचस्प बना दिया है।

विजेट्स और नोटिफिकेशन के पीछे जो धुंधले (फ्रॉस्टेड) पैनल होते हैं, वो दिखाते हैं कि Apple अब स्क्रीन पर गहराई (depth) दिखाने में कितना बेहतर हो गया है — ऐसा लगता है जैसे स्क्रीन पर पारदर्शी परतों के ऊपर चीज़ें तैर रही हों और आप उनसे सीधे इंटरैक्ट कर रहे हों।

ये सब सिर्फ़ दिखावे के लिए नहीं हैं — ये डिज़ाइन इस तरह से बनाई गई है कि यूज़र का ध्यान आसानी से सही चीज़ पर जाए, ज़्यादा सोचने की ज़रूरत ना पड़े, और स्क्रीन पर नेविगेट करना आसान हो जाए।
 

VisionOS और iOS 26 का भविष्य: लिक्विड ग्लास के साथ


एप्पल का स्पैशियल कंप्यूटिंग (spatial computing) की दिशा में महत्वाकांक्षी कदम, Vision Pro और इसके visionOS के माध्यम से, “लिक्विड ग्लास” की अवधारणा को पूरी तरह से नया रूप देने जा रहा है। यह सिर्फ एक डिज़ाइन में मामूली सुधार नहीं है, बल्कि यह एक पैराडाइम शिफ्ट है जो इस बात को बदल देगा कि हम डिजिटल जानकारी से कैसे इंटरैक्ट करते हैं और डिजिटल एस्थेटिक  को कैसे अनुभव करते हैं।
 
पारंपरिक रूप से, “लिक्विड ग्लास” शब्द का प्रयोग 2D स्क्रीन की चिकनी, परावर्तित और कभी-कभी पारदर्शी सतहों के लिए रूपक के रूप में किया गया है — जैसे स्मार्टफोन की डिस्प्ले पर प्रकाश का खेल, या टैबलेट इंटरफेस के फ्लूइड एनीमेशन। लेकिन Vision Pro के साथ, Apple इस एस्थेटिक  को सपाट सतह से आगे ले जाकर 3D स्पेस के असीम क्षेत्र में ले जा रहा है।

कल्पना कीजिए पारदर्शी सतहें अब आपके डिवाइस पर स्थिर बैकड्रॉप नहीं होंगी, बल्कि आपके भौतिक वातावरण में तैरती हुई डायनेमिक, इंटरऐक्टिव एलिमेंट्स के रूप में दिखाई देंगी। यूज़र इंटरफेस अब आयताकार विंडो तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह कई स्तरों वाले, पारभासी लेयर्स के रूप में सामने आएगा, जिन्हें आप अपने हाथों या नजरों से नियंत्रित कर सकेंगे। “लिक्विड” गुण अब इनके व्यवहार में भी दिखेगा — ये सतहें छूने पर तरंगों जैसी प्रतिक्रिया देंगी, ऐप्लिकेशन के बीच सहज रूप से बहेंगी, और आपके आसपास की असली रोशनी को हल्के से परावर्तित भी करेंगी।

Apple अपने मिनिमलिस्ट, सहज और एनीमेशन-आधारित डिज़ाइन लैंग्वेज को augmented reality (AR) की immersive क्षमताओं के साथ एकीकृत कर रहा है। इससे “लिक्विड ग्लास” एस्थेटिक  का एक नया, विकसित रूप सामने आएगा — जो 2D की सीमाओं से निकलकर एक वास्तविक 3D स्पैशियल अनुभव में बदल जाएगा।

यह बदलाव केवल यूआई डिज़ाइन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह immersive डिज़ाइन को परिभाषित करने की दिशा में एक कदम है। अब उपयोगकर्ता सिर्फ स्क्रीन को नहीं देखेंगे, बल्कि एक ऐसे डिजिटल वातावरण में प्रवेश करेंगे, जहां जानकारी और ऐप्स उनके वास्तविक वातावरण के साथ पूरी तरह से घुल-मिल जाएंगे। इससे इंटरैक्शन, कोलैबोरेशन और एंटरटेनमेंट के बिल्कुल नए रूप सामने आएंगे — एक ऐसा युग शुरू होगा जहां हमारी डिजिटल दुनिया उतनी ही मूर्त और तरल होगी जितनी कि हमारे आसपास की वास्तविक दुनिया।

क्यों ज़रूरी है: यूज़र अनुभव और ब्रांड की पहचान

एप्पल का लिक्विड ग्लास डिज़ाइन सिर्फ दिखने के लिए नहीं है — इसके पीछे एक गहरी सोच है: आसान और समझदारी से इस्तेमाल करना। इसका डिज़ाइन, जिसमें हल्की पारदर्शिता, गहराई और असली जैसे मूवमेंट होते हैं, ये सब मिलकर ये बदल देते हैं कि हम टेक्नोलॉजी से कैसे जुड़ते हैं और उसे कैसे महसूस करते हैं।

पारदर्शी परतें और संदर्भ की समझ

Apple के “लिक्विड ग्लास” डिज़ाइन में पारदर्शिता (translucency) का इस्तेमाल सिर्फ दिखावे के लिए नहीं, बल्कि यूज़र के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए किया गया है। जहां दूसरे इंटरफेस पूरी तरह से ढंके हुए और सपाट होते हैं, वहीं Apple का डिज़ाइन यूज़र को यह एहसास कराता है कि वे स्क्रीन के नीचे क्या चल रहा है।

जब कोई नोटिफिकेशन आता है, तो पूरी स्क्रीन ब्लॉक नहीं होती। यूज़र को पीछे चल रहा ऐप हल्के से दिखाई देता रहता है, जिससे वे जल्दी यह तय कर सकते हैं कि नोटिफिकेशन को अभी देखना है या बाद में। इससे ध्यान भटकता नहीं और यूज़र अपने काम में “फ्लो” में बने रहते हैं।

रियल जैसे दिखने वाले मूवमेंट और भावनात्मक जुड़ाव

Apple के डिज़ाइन में मूवमेंट (जैसे ऐप्स का खुलना-बंद होना, आइकन का बाउंस करना) सिर्फ दिखाने के लिए नहीं है — ये यूज़र को फील कराते हैं कि वे किसी असली चीज़ को छू रहे हैं।

जब कोई ऐप स्लो और स्मूद तरीके से खुलता है या लिस्ट रियल वर्ल्ड की तरह स्क्रॉल होती है, तो यूज़र को समझ आता है कि उनका एक्शन काम कर रहा है। यह एहसास बहुत नेचुरल लगता है और डिवाइस से एक भावनात्मक जुड़ाव बन जाता है। छोटे-छोटे मूवमेंट्स यूज़र को ये बताते हैं कि उन्होंने क्या किया और अब क्या हो रहा है — बिना उन्हें सोचने की ज़रूरत पड़े।

Apple की पहचान और बाकी इंडस्ट्री पर असर

ये सब बातें — जैसे स्मार्ट इंटरैक्शन, फोकस बनाए रखना और यूज़र से जुड़ाव बनाना — Apple की पहचान बन चुकी हैं। ये सिर्फ डिज़ाइन ट्रेंड्स नहीं हैं, बल्कि उनके प्रोडक्ट्स का बेसिक सोच है।

Apple के इसी सोच ने पूरी टेक इंडस्ट्री को प्रेरित किया है। आज बहुत से एंड्रॉइड ऐप्स, वेबसाइट्स और डिज़ाइनर इन चीज़ों को अपना रहे हैं: क्लीन डिज़ाइन, फ्लुइड ट्रांज़िशन, और आसान इंटरफेस। इससे साफ़ हो जाता है कि अच्छा डिज़ाइन सिर्फ देखने में सुंदर नहीं होता — वो ऐसा होना चाहिए जिससे यूज़र को अच्छा महसूस हो, और वे चीज़ों को आसानी से कर सकें।

एप्पल ने जिस तरह डिज़ाइन को बदलते हुए स्कीयूमॉर्फिज़्म से लिक्विड ग्लास तक का सफर तय किया है, वो यूज़र्स को ध्यान में रखकर की गई डिज़ाइन का बेहतरीन उदाहरण है।

ये सिर्फ़ कोई दिखने वाला ट्रेंड नहीं है — बल्कि ऐसा डिज़ाइन है जो देखने, महसूस करने और इस्तेमाल करने के अनुभव को बेहतर बनाता है।

अब जब एप्पल visionOS के ज़रिए AR और स्पेशियल इंटरफेस की ओर बढ़ रहा है, तो लिक्विड ग्लास डिज़ाइन और भी ज़्यादा रियल और गहराई वाला महसूस होगा।

- हेमेंद्र सिंह तोमर