भारत ने चीन के इस दावे पर कड़ी आपत्ति जताई कि बीजिंग को दलाई लामा के अगले अवतार को मंजूरी देनी होगी, तथा कहा कि केवल तिब्बती आध्यात्मिक नेता को ही अपने उत्तराधिकारी के बारे में निर्णय लेने का अधिकार है। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि दलाई लामा न केवल तिब्बतियों के लिए बल्कि दुनिया भर में उनके लाखों अनुयायियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनके उत्तराधिकारी के बारे में निर्णय पूरी तरह से दलाई लामा के हाथ में है। रिजिजू, जनता दल (यूनाइटेड) के नेता लल्लन सिंह के साथ, वर्तमान में दलाई लामा के 90वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रमों में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए धर्मशाला में हैं। रिजिजू ने कहा कि यह पूरी तरह से एक धार्मिक अवसर है।
चीन सरकार ने कहा कि उत्तराधिकारी को लेकर चीन की सरकार से अनुमोदन कराना होगा। चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि उत्तराधिकारी का चुनाव चीन की सालों पुरानी परंपरा के मुताबिक होगा। ऐसे में तिब्बती धर्मगुरु के हालिया ऐलान और उसके बाद चीन ने जिस तरह की प्रतिक्रिया सामने रखी है, उससे साफ है कि इस मसले पर अभी काफी विवाद देखने को मिलेगा। दरअसल तिब्बती समुदाय में दलाई लामा को चुनने की प्रक्रिया में पंचेन लामा अहम भूमिका निभाते हैं, परंपरा के मुताबिक दलाई लामा के कहने पर पंचेन लामा ही दलाई लामा की तलाश पूरी करते हैं।
भारत के धर्मशाला में की गई इस प्रतीक्षित घोषणा में दलाई लामा ने कहा कि मैं पुष्टि करता हूं कि दलाई लामा की संस्था जारी रहेगी। इस दौरान उन्होंने 2011 में दिए अपने एक बयान का भी जिक्र किया और कहा कि इसमें इस प्रक्रिया को लेकर पहले से ही साफ है कि गडेन फोडरंग ट्रस्ट, दलाई लामा का ऑफिस के साथ मिलकर इस तलाश को पूरा करेंगे। उन्होंने कहा कि इस काम को तिब्बती बौद्ध परपराओं के प्रमुखों और धार्मिक सरक्षको की सलाह से पूरा किया जाएगा। उन्होंने ये साफ किया कि ट्रस्ट के पास इस सबंध में मान्यता देने का एकमात्र अधिकार है। किसी दूसरे को इसमें दखल देने का अधिकार नहीं है। दरअसल इसमें खास बात ये है कि नए दलाई लामा की पहचान की प्रक्रिया मौजूदा दलाई लामा की मौत के बाद शुरू होती है। ये पहचान पुनर्जन्म की खोज के बाद बाल्यावस्था में होती है।