नेपाल और भारत एक देश होने वाले थे, राजा त्रिभुवन के ऑफर और नेहरू के NO की कहानी क्या है?

नेपाल में सरकार विरोधी प्रदर्शन के बीच पीएम केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया। सोशल मीडिया पर बैन और कथित भ्रष्टाचार के विरोध में काठमांडू के कई हिस्सों में भी प्रदर्शन जारी रहा। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल सहित कई बड़े राजनीतिक नेताओं के निजी घर पर हमला किया। संसद भवन और सुप्रीम कोर्ट में भी तोड़फोड़ की। राष्ट्रपति ने सभी पक्षों से संयम बरतने को कहा। संकट के हल के लिए बातचीत की अपील की। नेपाल की आर्मी ने शांति की अपील की। ओली के इस्तीफे से कुछ घंटे पहले प्रदर्शनकारियों ने बालकोट में मौजूद उनके घर में आग लगा दी। पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल 'प्रचंड', संचार मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग, पूर्व गृह मंत्री रमेश लेखक आदि के घरों पर भी हमला किया। उन्होंने काठमांडू में पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के घर में भी तोड़फोड़ की। नेपाल की सड़कों पर भड़की हिंसा पूरी दुनिया का ध्यान खींच रही है। पड़ोसी मुल्क में लगी आग को देखते हुए भारत भी चिंतित है। भारत ने पहले ही नेपाल में मौजूद अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी कर दी है। भारत सरकार भी इस पूरे मामले को लेकर बहुत करीब से नजर रखे हुए है। नेपाल भारत का पड़ोसी राज्य है और इसलिए बी पड़ोस में फैली अराजकता ने उसके भी कान खड़े कर दिए हैं। लेकिन आपको पता है कि नेपाल भी आज भारत का ही राज्य होता, अगर पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह का ऑफर स्वीकार कर लेते।इसे भी पढ़ें: काठमांडू हवाई अड्डा आज से फिर से खुलेगा, नेपाल नागरिक उड्डयन प्राधिकरण ने दी जानकारीनेपाल की कहानी इतिहास की जुबानीकहते हैं  इंसान गलतियों का पुतला है। लेकिन एक सफल इंसान वहीं है जो वक्त-वक्त पे अपनी गलतियों से सीख लेता रहे और उन्हें सुधारता भी रहे। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वैसे तो कई गलतियां की। इतिहास के हवाले से जवाहर लाल नेहरू पर निशाना साधने के आरोप भी कई बार वर्तमान सरकार पर लगते रहे हैं। चाहे वो कश्मीर को लेकर नेहरू की नीतियों की बात हो या नेहरू की विदेशी नीति का मुद्दा। संयुक्त राष्ट् सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए चीन की पैरवी करना हो या फिर तिब्बत पर चीन के कब्जे का समर्थन। कभी नेहरू हिंदी चीनी भाई-भाई के झांस में फंसे तो कभी शेख अब्दुल्ला पर भरोसा करना पड़ा भारी। यहां तक की संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में कश्मीर में जनमत संग्रह करवाने की भी कर ली थी तैयारी। इतिहास के ही आइने में देखेंगे तो नजर आयेगा की सामाजिक परिदृश्यों की चाह में देश टूटते रहे हैं। भारत से टूटकर पाकिस्तान बना और फिर पाकिस्तान से बांग्लादेश। लेकिन आज की कहानी दो देशों के मिलने की मंशा और इससे होने वाले नफा-नुकसान की है। इसे भी पढ़ें: Nepal Protest: यूपी में हाई अलर्ट घोषित, नेपाल से जुड़ी हर सोशल मीडिया पोस्ट की हो रही निगरानीप्रणब मुखर्जी ने राजा त्रिभुवन के ऑफर, नेहरू के बारे में क्या लिखा है?भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी ऑटोबायोग्राफी 'द प्रेसिडेंशियल ईयर्स' में एक बड़ा खुलासा किया था। बकौल मुखर्जी, नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम सिंह ने नेपाल को भारत का प्रांत बनाने की पेशकश की थी, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस ऑफर को ठुकरा दिया था। प्रणब मुखर्जी की ऑटोबायोग्राफी 'द प्रेसिडेंशियल ईयर्स' में बताया गया है कि विलय का प्रस्ताव नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम सिंह शाह द्वारा पंडित नेहरू को दिया गया था। लेकिन उस वक्त नेहरू ने इस ऑफर को ठुकरा दिया था। नेहरू का कहना था कि नेपाल स्वतंत्र राष्ट्र है और इसे स्वतंत्र ही रहना चाहिए। उन्होंने नेपाल के साथ संबंधों को बेहद ही कूटनीतिक रखा। किताब के 11वें अध्याय 'माई प्राइम मिनिस्टर डिफ्रेंट स्टाइल, डिफ्रेंट टेम्परामेंट में प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि अगर नेहरू की जगह इंदिरा होतीं तो सिक्किम की तरह शायद इस मौके को भी हाथ से नहीं जाने देती। किताब में मुखर्जी ने लाल बहादुर शास्त्री का भी जिक्र करते हुए लिखा है कि उनका तरीका नेहरू से बिल्कुल अलग था।अगर भारत में होता नेपाल तो...सामरिक दृष्टि के लिहाजे से देखा जाए तो नेपाल भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। चीन अक्सर भारत पर दवाब बनाने के लिए नेपाल पर अपनी पकड़ मजबूत करता रहता है। लेकिन नेपाल अगर भारत का हिस्सा होता तो ऐसी कभी नौबत ही नहीं आती। इसके अलावा चीन के खिलाफ हमें एक मजबूत सामरिक स्थान भी मिल जाता। 

Sep 10, 2025 - 21:39
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नेपाल और भारत एक देश होने वाले थे, राजा त्रिभुवन के ऑफर और नेहरू के NO की कहानी क्या है?
नेपाल में सरकार विरोधी प्रदर्शन के बीच पीएम केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया। सोशल मीडिया पर बैन और कथित भ्रष्टाचार के विरोध में काठमांडू के कई हिस्सों में भी प्रदर्शन जारी रहा। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल सहित कई बड़े राजनीतिक नेताओं के निजी घर पर हमला किया। संसद भवन और सुप्रीम कोर्ट में भी तोड़फोड़ की। राष्ट्रपति ने सभी पक्षों से संयम बरतने को कहा। संकट के हल के लिए बातचीत की अपील की। नेपाल की आर्मी ने शांति की अपील की। ओली के इस्तीफे से कुछ घंटे पहले प्रदर्शनकारियों ने बालकोट में मौजूद उनके घर में आग लगा दी। पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल 'प्रचंड', संचार मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग, पूर्व गृह मंत्री रमेश लेखक आदि के घरों पर भी हमला किया। उन्होंने काठमांडू में पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के घर में भी तोड़फोड़ की। नेपाल की सड़कों पर भड़की हिंसा पूरी दुनिया का ध्यान खींच रही है। पड़ोसी मुल्क में लगी आग को देखते हुए भारत भी चिंतित है। भारत ने पहले ही नेपाल में मौजूद अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी कर दी है। भारत सरकार भी इस पूरे मामले को लेकर बहुत करीब से नजर रखे हुए है। नेपाल भारत का पड़ोसी राज्य है और इसलिए बी पड़ोस में फैली अराजकता ने उसके भी कान खड़े कर दिए हैं। लेकिन आपको पता है कि नेपाल भी आज भारत का ही राज्य होता, अगर पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह का ऑफर स्वीकार कर लेते।

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नेपाल की कहानी इतिहास की जुबानी

कहते हैं  इंसान गलतियों का पुतला है। लेकिन एक सफल इंसान वहीं है जो वक्त-वक्त पे अपनी गलतियों से सीख लेता रहे और उन्हें सुधारता भी रहे। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वैसे तो कई गलतियां की। इतिहास के हवाले से जवाहर लाल नेहरू पर निशाना साधने के आरोप भी कई बार वर्तमान सरकार पर लगते रहे हैं। चाहे वो कश्मीर को लेकर नेहरू की नीतियों की बात हो या नेहरू की विदेशी नीति का मुद्दा। संयुक्त राष्ट् सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए चीन की पैरवी करना हो या फिर तिब्बत पर चीन के कब्जे का समर्थन। कभी नेहरू हिंदी चीनी भाई-भाई के झांस में फंसे तो कभी शेख अब्दुल्ला पर भरोसा करना पड़ा भारी। यहां तक की संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में कश्मीर में जनमत संग्रह करवाने की भी कर ली थी तैयारी। इतिहास के ही आइने में देखेंगे तो नजर आयेगा की सामाजिक परिदृश्यों की चाह में देश टूटते रहे हैं। भारत से टूटकर पाकिस्तान बना और फिर पाकिस्तान से बांग्लादेश। लेकिन आज की कहानी दो देशों के मिलने की मंशा और इससे होने वाले नफा-नुकसान की है। 

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प्रणब मुखर्जी ने राजा त्रिभुवन के ऑफर, नेहरू के बारे में क्या लिखा है?

भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी ऑटोबायोग्राफी 'द प्रेसिडेंशियल ईयर्स' में एक बड़ा खुलासा किया था। बकौल मुखर्जी, नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम सिंह ने नेपाल को भारत का प्रांत बनाने की पेशकश की थी, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस ऑफर को ठुकरा दिया था। प्रणब मुखर्जी की ऑटोबायोग्राफी 'द प्रेसिडेंशियल ईयर्स' में बताया गया है कि विलय का प्रस्ताव नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम सिंह शाह द्वारा पंडित नेहरू को दिया गया था। लेकिन उस वक्त नेहरू ने इस ऑफर को ठुकरा दिया था। नेहरू का कहना था कि नेपाल स्वतंत्र राष्ट्र है और इसे स्वतंत्र ही रहना चाहिए। उन्होंने नेपाल के साथ संबंधों को बेहद ही कूटनीतिक रखा। किताब के 11वें अध्याय 'माई प्राइम मिनिस्टर डिफ्रेंट स्टाइल, डिफ्रेंट टेम्परामेंट में प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि अगर नेहरू की जगह इंदिरा होतीं तो सिक्किम की तरह शायद इस मौके को भी हाथ से नहीं जाने देती। किताब में मुखर्जी ने लाल बहादुर शास्त्री का भी जिक्र करते हुए लिखा है कि उनका तरीका नेहरू से बिल्कुल अलग था।

अगर भारत में होता नेपाल तो...

सामरिक दृष्टि के लिहाजे से देखा जाए तो नेपाल भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। चीन अक्सर भारत पर दवाब बनाने के लिए नेपाल पर अपनी पकड़ मजबूत करता रहता है। लेकिन नेपाल अगर भारत का हिस्सा होता तो ऐसी कभी नौबत ही नहीं आती। इसके अलावा चीन के खिलाफ हमें एक मजबूत सामरिक स्थान भी मिल जाता।