दवा कंपनियों के अनैतिक तौर तरीकों पर कैसे लगेगी लगाम, FMRAI की याचिका पर SC ने केंद्र से मांगा जवाब

Pharmaceutical companies case : उच्चतम न्यायालय ने दवाओं के प्रचार के किसी भी अनैतिक तौर तरीके पर नियंत्रण संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वास्तविक कठिनाई मौजूदा मानदंडों के क्रियान्वयन में है। याचिका में दवा कंपनियों के विपणन तौर तरीकों को ...

Sep 4, 2025 - 22:42
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दवा कंपनियों के अनैतिक तौर तरीकों पर कैसे लगेगी लगाम, FMRAI की याचिका पर SC ने केंद्र से मांगा जवाब

Pharmaceutical companies case : उच्चतम न्यायालय ने दवाओं के प्रचार के किसी भी अनैतिक तौर तरीके पर नियंत्रण संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वास्तविक कठिनाई मौजूदा मानदंडों के क्रियान्वयन में है। याचिका में दवा कंपनियों के विपणन तौर तरीकों को लेकर एक समान संहिता का अनुरोध किया गया। याचिका में कहा गया है कि भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम 2002 में दवा कंपनियों और संबद्ध स्वास्थ्य क्षेत्र उद्योग के साथ डॉक्टरों के संबंध में आचार संहिता निर्धारित की गई है तथा दवा कंपनियों से उपहार और यात्रा सुविधाएं, आतिथ्य या मौद्रिक लाभ स्वीकार करने पर रोक लगाई गई है।

 

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने यह टिप्पणी तब की जब केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिका में की गई प्रार्थना व्यर्थ हो गई है क्योंकि वैधानिक व्यवस्था पहले से ही लागू है। न्यायमूर्ति नाथ ने कहा, मुश्किल यह है कि व्यवस्था तो मौजूद है, लेकिन यह तय नहीं है कि उसका वास्तव में पालन होता है या नहीं।

 

इस मामले में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि पिछले साल एक नई व्यवस्था लागू की गई थी। न्यायमूर्ति मेहता ने कहा, यही तो न्यायाधीशों की चिंता है कि अगर यह एक दंतहीन बाघ है...तो इसका उद्देश्य क्या है? हालांकि मेहता ने जवाब दिया, यह ऐसा बाघ है जिसके हाथ में सारी शक्ति है। दवाओं के विपणन के तौर तरीकों पर समान संहिता (यूसीपीएमपी) 2024 पिछले साल लागू हुई थी।

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मेहता ने मामले की सुनवाई किसी अन्य दिन पर करने का अनुरोध किया क्योंकि सुनवाई में कुछ समय लग सकता है। उन्होंने कहा, यह प्रार्थना व्यर्थ हो गई है। लेकिन यह दिखाने के लिए कि पहले से ही एक वैधानिक व्यवस्था मौजूद है, इसमें कुछ समय लगेगा। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई सात अक्टूबर के लिए निर्धारित की है। मार्च 2022 में शीर्ष अदालत ने याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की और केंद्र को नोटिस जारी कर इस मुद्दे पर जवाब मांगा।

 

'फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया' द्वारा दायर याचिका में यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया कि जब तक प्रभावी कानून नहीं बन जाता, तब तक शीर्ष अदालत दवा कंपनियों के अनैतिक विपणन तौर तरीकों को नियंत्रित और विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित कर सकती है या वैकल्पिक रूप से मौजूदा संहिता को उचित और उचित संशोधनों/परिवर्धन के साथ बाध्यकारी बना सकती है।

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याचिका में कहा गया है कि भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम 2002 में दवा कंपनियों और संबद्ध स्वास्थ्य क्षेत्र उद्योग के साथ डॉक्टरों के संबंध में आचार संहिता निर्धारित की गई है तथा दवा कंपनियों से उपहार और यात्रा सुविधाएं, आतिथ्य या मौद्रिक लाभ स्वीकार करने पर रोक लगाई गई है।

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इसमें दावा किया गया है, यह संहिता डॉक्टरों के खिलाफ लागू की जा सकती है, लेकिन दवा कंपनियों पर लागू नहीं होती, जिससे असामान्य स्थिति पैदा होती है। डॉक्टरों के लाइसेंस कदाचार के लिए रद्द कर दिए जाते हैं। दवा कंपनियों द्वारा ही इस तरह के कदाचार को बढ़ावा दिया जाता है लेकिन वे इसके दायरे से बाहर रह जाती हैं। (इनपुट एजेंसी)
Edited By : Chetan Gour