Pakistan in 4 Front War | पाकिस्तान ने आर्मी हेडक्वार्टर के लिए रावलपिंडी को ही क्यों चुना? | Teh Tak Chapter 3

पाकिस्तान की कहानी अक्सर दो शहरों - लाहौर और कराची  की गलियों से गुज़रती है। लाहौर (पंजाब) और कराची (सिंध) पाकिस्तान के दो सबसे प्रभावशाली शहर हैं। फिर भी वे दो पॉवर सेंटर के रूप में जाने जाते हैं। लाहौर सैन्य और राजनीतिक रसूख वाला शहर है जबकि कराची मुल्क का ग्रोथ इंजन है। अगर कहे कि लाहौर पाकिस्तान का दिल है तो कराची आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक राजधानी कही जाती है। हालांकि इन दोनों शहरों के बीच संघर्ष पाकिस्तान के बड़े असंतुलन को दर्शाता है। जहां राजनीति और सत्ता पंजाब में केंद्रीकृत है, जबकि आर्थिक उत्पादकता सिंध और कराची से आती है।लाहौर-रावलपिंडी कैसे बना सत्ता का केंद्र 1947 में आज़ादी के समय, कराची पाकिस्तान की पहली राजधानी थी। इसकी पहचान एक महानगरीय बंदरगाह शहर के रूप में होती थी जो अपनी आधुनिकता के लिए जानी जाती थी। लेकिन 1967 तक, राजधानी उत्तर में इस्लामाबाद स्थानांतरित हो गई थी। ये इलाका रावलपिंडी स्थित सैन्य मुख्यालय के करीब था और राजनीतिक रूप से लाहौर के पंजाबी अभिजात वर्ग के साथ जुड़ा हुआ था। यह बदलाव सिर्फ़ भौगोलिक नहीं था बल्कि इसके मायने भी बेहद गहरे थे।  देश के प्रमुख फ़ैसले - रक्षा से लेकर कूटनीति तक यही से होकर निकलती है। इस वजह से कई लोग लाहौर-रावलपिंडी स्टैबलिशमेंट बेल्ट भी कहा करते हैं। लाहौर को क्यों कहा जाता है राजनीतिक राजधानीलाहौर आज पाकिस्तान में राजनीतिक वैधता का प्रतीक है। यह शरीफ परिवार का गृहनगर, पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) का गढ़ और प्रमुख पंजाबी पहचान की सांस्कृतिक राजधानी है। पाकिस्तानी सेना का रावलपिंडी स्थित हेडक्वार्टर से इसकी नजदीकी लाहौर की अहमियत में चार चांद लगाते हैं। सैन्य नियुक्तियों से लेकर बजट प्राथमिकताओं तक, पंजाब के नेता और नौकरशाह सत्ता प्रतिष्ठान के केंद्र में रहते हैं। देश के बाकी हिस्सों के लिए, लाहौर पंजाब के राजनीतिक एकाधिकार का प्रतीक है। एक ऐसा क्षेत्र जहाँ आधी से भी कम आबादी रहती है, लेकिन राज्य की अधिकांश मशीनरी पर इसका नियंत्रण है।पाकिस्तान का ग्रोथ इंजन कराचीकराची पाकिस्तान की व्यावसायिक राजधानी है, जो अपने बंदरगाहों, बैंकिंग क्षेत्र और उद्योगों के माध्यम से राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में आधे से ज़्यादा और संघीय राजस्व में लगभग 90 प्रतिशत का योगदान देता है। फिर भी, अपनी आर्थिक ताकत के बावजूद, कराची दशकों से राजनीतिक रूप से हाशिये पर रहा है। शहर की जनसांख्यिकीय विविधता - सिंधी, मुहाजिर, पश्तून और बलूच - इसे जीवंत तो बनाती है, लेकिन राजनीतिक रूप से खंडित भी। 1980 के दशक में एमक्यूएम (मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट) के उदय ने शहरी मुहाजिर आबादी को एक आवाज़ दी, लेकिन साथ ही दशकों तक चली ज़मीनी जंग, सैन्य दमन और गुटीय राजनीति को भी जन्म दिया। कराची का शासन आज एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र में व्याप्त असमानता के कारण पंगु है - नगर सरकार, सिंध प्रांतीय सरकार और संघीय अधिकारी, सभी नियंत्रण के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि नागरिक बुनियादी ढाँचा चरमरा रहा है। इसे भी पढ़ें: Pakistan in 4 Front War | पाकिस्तान के 'GEN Z' की नजर अब शहबाज-मुनीर पर | Teh Tak Chapter 4 

Oct 25, 2025 - 08:01
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Pakistan in 4 Front War | पाकिस्तान ने आर्मी हेडक्वार्टर के लिए रावलपिंडी को ही क्यों चुना? | Teh Tak Chapter 3
पाकिस्तान की कहानी अक्सर दो शहरों - लाहौर और कराची  की गलियों से गुज़रती है। लाहौर (पंजाब) और कराची (सिंध) पाकिस्तान के दो सबसे प्रभावशाली शहर हैं। फिर भी वे दो पॉवर सेंटर के रूप में जाने जाते हैं। लाहौर सैन्य और राजनीतिक रसूख वाला शहर है जबकि कराची मुल्क का ग्रोथ इंजन है। अगर कहे कि लाहौर पाकिस्तान का दिल है तो कराची आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक राजधानी कही जाती है। हालांकि इन दोनों शहरों के बीच संघर्ष पाकिस्तान के बड़े असंतुलन को दर्शाता है। जहां राजनीति और सत्ता पंजाब में केंद्रीकृत है, जबकि आर्थिक उत्पादकता सिंध और कराची से आती है।

लाहौर-रावलपिंडी कैसे बना सत्ता का केंद्र 

1947 में आज़ादी के समय, कराची पाकिस्तान की पहली राजधानी थी। इसकी पहचान एक महानगरीय बंदरगाह शहर के रूप में होती थी जो अपनी आधुनिकता के लिए जानी जाती थी। लेकिन 1967 तक, राजधानी उत्तर में इस्लामाबाद स्थानांतरित हो गई थी। ये इलाका रावलपिंडी स्थित सैन्य मुख्यालय के करीब था और राजनीतिक रूप से लाहौर के पंजाबी अभिजात वर्ग के साथ जुड़ा हुआ था। यह बदलाव सिर्फ़ भौगोलिक नहीं था बल्कि इसके मायने भी बेहद गहरे थे।  देश के प्रमुख फ़ैसले - रक्षा से लेकर कूटनीति तक यही से होकर निकलती है। इस वजह से कई लोग लाहौर-रावलपिंडी स्टैबलिशमेंट बेल्ट भी कहा करते हैं। 

लाहौर को क्यों कहा जाता है राजनीतिक राजधानी

लाहौर आज पाकिस्तान में राजनीतिक वैधता का प्रतीक है। यह शरीफ परिवार का गृहनगर, पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) का गढ़ और प्रमुख पंजाबी पहचान की सांस्कृतिक राजधानी है। पाकिस्तानी सेना का रावलपिंडी स्थित हेडक्वार्टर से इसकी नजदीकी लाहौर की अहमियत में चार चांद लगाते हैं। सैन्य नियुक्तियों से लेकर बजट प्राथमिकताओं तक, पंजाब के नेता और नौकरशाह सत्ता प्रतिष्ठान के केंद्र में रहते हैं। देश के बाकी हिस्सों के लिए, लाहौर पंजाब के राजनीतिक एकाधिकार का प्रतीक है। एक ऐसा क्षेत्र जहाँ आधी से भी कम आबादी रहती है, लेकिन राज्य की अधिकांश मशीनरी पर इसका नियंत्रण है।

पाकिस्तान का ग्रोथ इंजन कराची

कराची पाकिस्तान की व्यावसायिक राजधानी है, जो अपने बंदरगाहों, बैंकिंग क्षेत्र और उद्योगों के माध्यम से राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में आधे से ज़्यादा और संघीय राजस्व में लगभग 90 प्रतिशत का योगदान देता है। फिर भी, अपनी आर्थिक ताकत के बावजूद, कराची दशकों से राजनीतिक रूप से हाशिये पर रहा है। शहर की जनसांख्यिकीय विविधता - सिंधी, मुहाजिर, पश्तून और बलूच - इसे जीवंत तो बनाती है, लेकिन राजनीतिक रूप से खंडित भी। 1980 के दशक में एमक्यूएम (मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट) के उदय ने शहरी मुहाजिर आबादी को एक आवाज़ दी, लेकिन साथ ही दशकों तक चली ज़मीनी जंग, सैन्य दमन और गुटीय राजनीति को भी जन्म दिया। कराची का शासन आज एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र में व्याप्त असमानता के कारण पंगु है - नगर सरकार, सिंध प्रांतीय सरकार और संघीय अधिकारी, सभी नियंत्रण के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि नागरिक बुनियादी ढाँचा चरमरा रहा है।
 

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