तरनतारन रिजल्ट, AAP ने विरोधियों को 2027 का ट्रेलर दिखाया:अकाली दल के कमबैक ने चौंकाया; कांग्रेस को प्रधान वड़िंग की बयानबाजी-हरकतें ले डूबीं

पंजाब में तरनतारन उपचुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) की जीत ने साबित कर दिया कि विपक्षी दलों के लिए 2027 की लड़ाई आसान नहीं है। AAP की जीत में यहां सबसे बड़ा फैक्टर प्रदेश की सत्ता का रहा। हालांकि 9 साल से पंजाब के राजनीतिक हाशिए पर पड़ी अकाली दल की चुनौती AAP को चौकन्ना करने वाली है। अकाली दल ने दूसरे नंबर पर आकर पंजाब में कमबैक का अलार्म बजा दिया है। हालांकि खालिस्तान समर्थक सांसद अमृतपाल की पार्टी अकाली दल-वारिस पंजाब दे की वजह से उनकी हार मानी जा रही है। अमृतपाल की पार्टी के लिए भी यह संकेत है कि 2027 का विधानसभा चुनाव उनके लिए आसान राह नहीं होगी। सबसे बड़ी चिंता कांग्रेस के लिए है, जो 2 अकाली दल होने के बावजूद भी चौथे नंबर पर रहा। इसकी बड़ी वजह कांग्रेस प्रधान अमरिंदर राजा वड़िंग का बड़बोलापन माना जा रहा है। इससे यह भी सवाल है कि 2027 में AAP का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस कितनी तैयार है और उसकी अगुआई कौन करेगा?। तरनतारन में AAP की जीत क्यों हुई? इसकी सबसे बड़ी वजह AAP का सत्ता में रहना है। 2027 के विधानसभा चुनाव में अभी लगभग एक साल का समय बाकी है। ऐसे में लोग नहीं चाहते थे कि विपक्षी दल को चुनकर वह अपने यहां के विकास को ठप कराएं। इसके अलावा AAP सरकार की 300 यूनिट तक फ्री बिजली और आटा दाल स्कीम ने गरीब व अनुसूचित जातियों के वोटरों को अपने साथ जोड़ा है। इसके अलावा चुनाव में AAP को 3 बार MLA रह चुके हरमीत सिंह संधू को उम्मीदवार बनाना भी एक रणनीतिक कदम था। किसी नए नेता को टिकट देने के बजाय AAP ने संधू के जनाधार को भी कैश कर लिया। अकाली दल में बिखराव का भी AAP को फायदा मिला। अगर अकाली दल और अकाली दल-वारिस पंजाब दे के वोट जोड़ लिए जाएं तो वह AAP से ज्यादा बनती हैं। अगर ये इकट्‌ठा होते तो AAP चुनाव हार सकती थी। 2027 के पंजाब विधानसभा चुनावों के लिहाज से AAP के लिए यह जीत अहम है। इस जीत के जरिए AAP कह सकती है कि विपक्षी भले ही उनका विरोध करते हों लेकिन जनता का बहुमत अभी भी उनके साथ में है। उनकी नीतियों को पसंद किया जा रहा है। खासकर, अगले साल AAP महिलाओं को हर महीने 1 हजार रुपए महीने वाली स्कीम लॉन्च करने वाली है, ऐसे में AAP फिर से सत्ता में आने का भरोसा रख सकती है। अकाली दल की हार हुई, लेकिन दूसरे नंबर पर आने के क्या संकेत हैं? 2007 से लेकर 2017 तक पंजाब में लगातार 10 साल सरकार चलाने के बाद अकाली दल राजनीतिक हाशिए पर चला गया था। इसकी बड़ी वजह डेरा सच्चा सौदा मुखी राम रहीम को माफी और उनकी सरकार में हुए बेअदबी के मामले रहे। इसके बाद हुए 2 विधानसभा चुनाव में अकाली दल दहाई के आंकड़े तक भी सीटें नहीं जीत सकी। इसके बाद अकाली दल में बिखराव भी हो गया। इसके बाद 4 उपचुनाव तो अकाली दल ने लड़े ही नहीं। मगर, यहां अकाली दल कमबैक करते हुए नजर आ रहा है। इसकी बड़ी वजह कैंडिडेट का सिलेक्शन भी है। अकाली दल ने उम्मीदवार के तौर पर प्रिंसिपल सुखविंदर कौर को मैदान में उतारा। उनकी अपनी छवि काफी मजबूत थी। जिससे अकाली दल मुकाबले में दिखा। हालांकि अभी ऐसा नहीं लगता कि पार्टी लेवल पर अकाली दल अभी भी लोग में अपना खोया हुआ विश्वास वापस पा पाया है। अकाली दल की हार की बड़ी वजह अमृतपाल की पार्टी भी रही। जिसके कैंडिडेट को अकाली दल के दूसरे ग्रुप ने भी समर्थन किया था। हालांकि 2027 के लिए अकाली दल को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद जरूर जागेगी। वह तरनतारन के बहाने पूरे पंजाब को भरोसा दिलाने की कोशिश करेंगे कि अब उनके प्रति नाराजगी दूर हो रही है। अमृतपाल यहां से सांसद, पार्टी विधानसभा चुनाव क्यों हारी? तरनतारन उप-चुनाव में खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह की पार्टी अकाली दल वारिस पंजाब दे के हार के मुख्य कारण 4 पॉइंट्स में समझे जा सकते हैं। पहला... अमृतपाल सिंह की पार्टी की खालिस्तान समर्थक नीतियों ने वोट बैंक को अत्यधिक सीमित कर दिया। जिससे आम वोटर अमृतपाल से दूर हो गए। दूसरा.. लोगों ने 2024 में अमृतपाल को सांसद का चुनाव तो जिता दिया लेकिन अमृतपाल के जेल में रहने की वजह से उनके काम नहीं हुए। अगर फिर से इसी पार्टी को चुनते तो उन्हें विकास न होने का डर सता रहा था। तीसरा... अकाली दल ने मजबूत उम्मीदवार उतारा, इस वजह से पंथक वोटर ने अकाली उम्मीदवार सुखविंदर कौर को ज्यादा तरजीह दे दी, जिस वजह से वोट बंट गए। चौथा... अमृतपाल की पार्टी अकाली दल-वारिस पंजाब दे ने स्थानीय विकास, बुनियादी सुविधाओं और जनता के आम मुद्दों पर स्पष्ट और प्रभावी रुख नहीं दिखाया, जिसकी वजह से चुनावी सभा और प्रचार अभियान कमजोर पड़े। कांग्रेस की हार के विलेन बने पंजाब प्रधान राजा वड़िंग... कांग्रेस पंजाब में AAP के बाद खुद को सेकेंड विकल्प मान रही थी लेकिन तरनतारन उपचुनाव में यह गलत साबित हुआ। इसकी बड़ी वजह पार्टी के पंजाब प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग की बयानबाजी और हरकतें रहीं। राजा वड़िंग ने चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री स्व. बेटा सिंह पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। उन्हें काले रंग का बंदा से लेकर मजबी सिखों के प्रति भी निरादर जैसा रवैया दिखाया। इससे अनुसूचित जाति के वोटरों में नाराजगी बढ़ गई। कांग्रेस का यही कोर वोट बैंक माना जाता है। इसके बाद राजा वड़िंग ने 2 सिख बच्चों के केश से छेड़खानी करते हुए नजर आए। इसे सिखों के प्रति अपमान के भाव से देखा गया। चूंकि केश सिख गुरुओं के दिए 5 ककारों में से एक हैं। राजा वड़िंग सिख होने के नाते इसे जानते हैं, फिर भी उनकी इस हरकत ने सिखों का नाराज किया। यही नहीं, कांग्रेस ने इस दौरान सिख गुरू श्री गुरू तेग बहादुर जी और भाई जैता जी का भी अपमान कर दिया। उन्होंने पार्टी रैली के मंच पर श्री गुरु तेग बहादुर जी के ऊपर अपने नेशनल नेताओं की फोटो लगा दी। इन तीनों मुद्दों ने तूल पकड़ा और कांग्रेस को इसका नुकसान हुआ। कांग्रेस के उम्मीदवार सिलेक्शन को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस के उम्मीदवार करणबीर सिंह बुर्ज को कमजोर उम्मीदवार के तौर पर देखा गया। करणबीर सि

Nov 14, 2025 - 13:29
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तरनतारन रिजल्ट, AAP ने विरोधियों को 2027 का ट्रेलर दिखाया:अकाली दल के कमबैक ने चौंकाया; कांग्रेस को प्रधान वड़िंग की बयानबाजी-हरकतें ले डूबीं
पंजाब में तरनतारन उपचुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) की जीत ने साबित कर दिया कि विपक्षी दलों के लिए 2027 की लड़ाई आसान नहीं है। AAP की जीत में यहां सबसे बड़ा फैक्टर प्रदेश की सत्ता का रहा। हालांकि 9 साल से पंजाब के राजनीतिक हाशिए पर पड़ी अकाली दल की चुनौती AAP को चौकन्ना करने वाली है। अकाली दल ने दूसरे नंबर पर आकर पंजाब में कमबैक का अलार्म बजा दिया है। हालांकि खालिस्तान समर्थक सांसद अमृतपाल की पार्टी अकाली दल-वारिस पंजाब दे की वजह से उनकी हार मानी जा रही है। अमृतपाल की पार्टी के लिए भी यह संकेत है कि 2027 का विधानसभा चुनाव उनके लिए आसान राह नहीं होगी। सबसे बड़ी चिंता कांग्रेस के लिए है, जो 2 अकाली दल होने के बावजूद भी चौथे नंबर पर रहा। इसकी बड़ी वजह कांग्रेस प्रधान अमरिंदर राजा वड़िंग का बड़बोलापन माना जा रहा है। इससे यह भी सवाल है कि 2027 में AAP का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस कितनी तैयार है और उसकी अगुआई कौन करेगा?। तरनतारन में AAP की जीत क्यों हुई? इसकी सबसे बड़ी वजह AAP का सत्ता में रहना है। 2027 के विधानसभा चुनाव में अभी लगभग एक साल का समय बाकी है। ऐसे में लोग नहीं चाहते थे कि विपक्षी दल को चुनकर वह अपने यहां के विकास को ठप कराएं। इसके अलावा AAP सरकार की 300 यूनिट तक फ्री बिजली और आटा दाल स्कीम ने गरीब व अनुसूचित जातियों के वोटरों को अपने साथ जोड़ा है। इसके अलावा चुनाव में AAP को 3 बार MLA रह चुके हरमीत सिंह संधू को उम्मीदवार बनाना भी एक रणनीतिक कदम था। किसी नए नेता को टिकट देने के बजाय AAP ने संधू के जनाधार को भी कैश कर लिया। अकाली दल में बिखराव का भी AAP को फायदा मिला। अगर अकाली दल और अकाली दल-वारिस पंजाब दे के वोट जोड़ लिए जाएं तो वह AAP से ज्यादा बनती हैं। अगर ये इकट्‌ठा होते तो AAP चुनाव हार सकती थी। 2027 के पंजाब विधानसभा चुनावों के लिहाज से AAP के लिए यह जीत अहम है। इस जीत के जरिए AAP कह सकती है कि विपक्षी भले ही उनका विरोध करते हों लेकिन जनता का बहुमत अभी भी उनके साथ में है। उनकी नीतियों को पसंद किया जा रहा है। खासकर, अगले साल AAP महिलाओं को हर महीने 1 हजार रुपए महीने वाली स्कीम लॉन्च करने वाली है, ऐसे में AAP फिर से सत्ता में आने का भरोसा रख सकती है। अकाली दल की हार हुई, लेकिन दूसरे नंबर पर आने के क्या संकेत हैं? 2007 से लेकर 2017 तक पंजाब में लगातार 10 साल सरकार चलाने के बाद अकाली दल राजनीतिक हाशिए पर चला गया था। इसकी बड़ी वजह डेरा सच्चा सौदा मुखी राम रहीम को माफी और उनकी सरकार में हुए बेअदबी के मामले रहे। इसके बाद हुए 2 विधानसभा चुनाव में अकाली दल दहाई के आंकड़े तक भी सीटें नहीं जीत सकी। इसके बाद अकाली दल में बिखराव भी हो गया। इसके बाद 4 उपचुनाव तो अकाली दल ने लड़े ही नहीं। मगर, यहां अकाली दल कमबैक करते हुए नजर आ रहा है। इसकी बड़ी वजह कैंडिडेट का सिलेक्शन भी है। अकाली दल ने उम्मीदवार के तौर पर प्रिंसिपल सुखविंदर कौर को मैदान में उतारा। उनकी अपनी छवि काफी मजबूत थी। जिससे अकाली दल मुकाबले में दिखा। हालांकि अभी ऐसा नहीं लगता कि पार्टी लेवल पर अकाली दल अभी भी लोग में अपना खोया हुआ विश्वास वापस पा पाया है। अकाली दल की हार की बड़ी वजह अमृतपाल की पार्टी भी रही। जिसके कैंडिडेट को अकाली दल के दूसरे ग्रुप ने भी समर्थन किया था। हालांकि 2027 के लिए अकाली दल को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद जरूर जागेगी। वह तरनतारन के बहाने पूरे पंजाब को भरोसा दिलाने की कोशिश करेंगे कि अब उनके प्रति नाराजगी दूर हो रही है। अमृतपाल यहां से सांसद, पार्टी विधानसभा चुनाव क्यों हारी? तरनतारन उप-चुनाव में खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह की पार्टी अकाली दल वारिस पंजाब दे के हार के मुख्य कारण 4 पॉइंट्स में समझे जा सकते हैं। पहला... अमृतपाल सिंह की पार्टी की खालिस्तान समर्थक नीतियों ने वोट बैंक को अत्यधिक सीमित कर दिया। जिससे आम वोटर अमृतपाल से दूर हो गए। दूसरा.. लोगों ने 2024 में अमृतपाल को सांसद का चुनाव तो जिता दिया लेकिन अमृतपाल के जेल में रहने की वजह से उनके काम नहीं हुए। अगर फिर से इसी पार्टी को चुनते तो उन्हें विकास न होने का डर सता रहा था। तीसरा... अकाली दल ने मजबूत उम्मीदवार उतारा, इस वजह से पंथक वोटर ने अकाली उम्मीदवार सुखविंदर कौर को ज्यादा तरजीह दे दी, जिस वजह से वोट बंट गए। चौथा... अमृतपाल की पार्टी अकाली दल-वारिस पंजाब दे ने स्थानीय विकास, बुनियादी सुविधाओं और जनता के आम मुद्दों पर स्पष्ट और प्रभावी रुख नहीं दिखाया, जिसकी वजह से चुनावी सभा और प्रचार अभियान कमजोर पड़े। कांग्रेस की हार के विलेन बने पंजाब प्रधान राजा वड़िंग... कांग्रेस पंजाब में AAP के बाद खुद को सेकेंड विकल्प मान रही थी लेकिन तरनतारन उपचुनाव में यह गलत साबित हुआ। इसकी बड़ी वजह पार्टी के पंजाब प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग की बयानबाजी और हरकतें रहीं। राजा वड़िंग ने चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री स्व. बेटा सिंह पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। उन्हें काले रंग का बंदा से लेकर मजबी सिखों के प्रति भी निरादर जैसा रवैया दिखाया। इससे अनुसूचित जाति के वोटरों में नाराजगी बढ़ गई। कांग्रेस का यही कोर वोट बैंक माना जाता है। इसके बाद राजा वड़िंग ने 2 सिख बच्चों के केश से छेड़खानी करते हुए नजर आए। इसे सिखों के प्रति अपमान के भाव से देखा गया। चूंकि केश सिख गुरुओं के दिए 5 ककारों में से एक हैं। राजा वड़िंग सिख होने के नाते इसे जानते हैं, फिर भी उनकी इस हरकत ने सिखों का नाराज किया। यही नहीं, कांग्रेस ने इस दौरान सिख गुरू श्री गुरू तेग बहादुर जी और भाई जैता जी का भी अपमान कर दिया। उन्होंने पार्टी रैली के मंच पर श्री गुरु तेग बहादुर जी के ऊपर अपने नेशनल नेताओं की फोटो लगा दी। इन तीनों मुद्दों ने तूल पकड़ा और कांग्रेस को इसका नुकसान हुआ। कांग्रेस के उम्मीदवार सिलेक्शन को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस के उम्मीदवार करणबीर सिंह बुर्ज को कमजोर उम्मीदवार के तौर पर देखा गया। करणबीर सिंह का ये पहला विधानसभा चुनाव था। उनमें अनुभव की कमी दिखी। इसके अलावा कांग्रेस में प्रधान राजा वड़िंग, विधायक दल नेता प्रताप सिंह बाजवा और पूर्व CM चरणजीत चन्नी के बीच भी एकजुटता नजर नहीं आई। ऐसे में यह कांग्रेस हाईकमान के लिए 2027 चुनाव से पहले बड़ा संकेत है कि वह पंजाब विधानसभा चुनाव किसकी अगुआई में लड़ेंगे। भाजपा यह चुनाव भी हारी, लगातार उपचुनाव हारने की वजह क्या? भाजपा के पास तरनतारन में खोने या पाने को ज्यादा कुछ नहीं था। तरनतारन को सिखों की पंथक सीट कहा जाता है। वहीं भाजपा का कोर वोट बैंक शहरों में है। इस वजह से तरनतारन क्षेत्र में भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक वैसे ही कमजोर था। वहीं पार्टी को यहां के वोटरों ने स्वीकार नहीं किया। वहीं प्रचार के दौरान भाजपा ने भाजपा ने स्थानीय विकास, किसान समस्याओं और बुनियादी जरूरतों जैसे मुद्दों को लेकर प्रभावी प्रचार नहीं किया, जिससे स्थानीय मतदाताओं का जुड़ाव कमी रहा। भाजपा ने सिर्फ नेशनल मुद्दों को लेकर यहां प्रचार किया। आम आदमी पार्टी और अकाली दल जैसे क्षेत्रीय दलों की मजबूत स्थिति ने भाजपा को अपेक्षित वोट जुटाने से रोका। भाजपा और अकाली दल, दोनों के अलग-अलग होने का नुकसान यहां भी दिख रहा है।