गोपालगंज का खादी ग्रामोद्योग 1965 से बना रहा तिरंगा:5 राज्यों में सप्लाई होता है राष्ट्रीय ध्वज, 150 कारीगरों को मिला रोजगार

गोपालगंज। कॉलेज रोड स्थित खादी ग्रामोद्योग संघ पिछले 59 वर्षों से राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण कर रहा है। यहां तैयार होने वाले तिरंगे की मांग सिर्फ बिहार में ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश, झारखंड, बंगाल, उड़ीसा और जम्मू-कश्मीर तक है। इस कार्य के मुख्य कारीगर अब्दुल कलाम इसे महज व्यवसाय नहीं, बल्कि राष्ट्र सेवा का माध्यम मानते हैं। उनके लिए तिरंगा बनाना सम्मान और सौभाग्य की बात है। हर साल 5 हजार से ज्यादा तिरंगों का निर्माण संस्थान में प्रतिवर्ष 5 हजार से अधिक तिरंगे बनाए जाते हैं। इस काम में करीब 150 लोग जुड़े हैं— जिनमें 104 महिलाएं सूत कताई में, 40 बुनकर (15 महिलाएं समेत) और आधा दर्जन अनुभवी कारीगर सीधे ध्वज निर्माण में लगे हैं। तिरंगा बनाने वालों को गर्व है कि वे देश के ‘आन, बान और शान’ के प्रतीक के निर्माण में योगदान दे रहे हैं। तीन-चार महीने पहले हो जाती है बुकिंग यहां के तिरंगे पूरी तरह शुद्ध खादी कपड़े से बनते हैं और प्रोटोकॉल के मानकों पर खरे उतरते हैं। यही कारण है कि इनकी मांग इतनी ज्यादा है कि ऑर्डर 3-4 महीने पहले ही बुक हो जाते हैं। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और मई दिवस पर मांग चरम पर पहुंच जाती है। आर्थिक मजबूती और आत्मनिर्भरता की मिसाल खादी ग्रामोद्योग की वार्षिक आमदनी 10 लाख रुपए है, जिसमें से करीब 2 लाख रुपए की बचत होती है। यह उद्योग न केवल आर्थिक रूप से मजबूत हो रहा है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को भी साकार कर रहा है। यहां का तिरंगा अपने उचित मूल्य और गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है। तिरंगे की तय साइज और कीमत

Aug 14, 2025 - 17:25
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गोपालगंज का खादी ग्रामोद्योग 1965 से बना रहा तिरंगा:5 राज्यों में सप्लाई होता है राष्ट्रीय ध्वज, 150 कारीगरों को मिला रोजगार
गोपालगंज। कॉलेज रोड स्थित खादी ग्रामोद्योग संघ पिछले 59 वर्षों से राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण कर रहा है। यहां तैयार होने वाले तिरंगे की मांग सिर्फ बिहार में ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश, झारखंड, बंगाल, उड़ीसा और जम्मू-कश्मीर तक है। इस कार्य के मुख्य कारीगर अब्दुल कलाम इसे महज व्यवसाय नहीं, बल्कि राष्ट्र सेवा का माध्यम मानते हैं। उनके लिए तिरंगा बनाना सम्मान और सौभाग्य की बात है। हर साल 5 हजार से ज्यादा तिरंगों का निर्माण संस्थान में प्रतिवर्ष 5 हजार से अधिक तिरंगे बनाए जाते हैं। इस काम में करीब 150 लोग जुड़े हैं— जिनमें 104 महिलाएं सूत कताई में, 40 बुनकर (15 महिलाएं समेत) और आधा दर्जन अनुभवी कारीगर सीधे ध्वज निर्माण में लगे हैं। तिरंगा बनाने वालों को गर्व है कि वे देश के ‘आन, बान और शान’ के प्रतीक के निर्माण में योगदान दे रहे हैं। तीन-चार महीने पहले हो जाती है बुकिंग यहां के तिरंगे पूरी तरह शुद्ध खादी कपड़े से बनते हैं और प्रोटोकॉल के मानकों पर खरे उतरते हैं। यही कारण है कि इनकी मांग इतनी ज्यादा है कि ऑर्डर 3-4 महीने पहले ही बुक हो जाते हैं। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और मई दिवस पर मांग चरम पर पहुंच जाती है। आर्थिक मजबूती और आत्मनिर्भरता की मिसाल खादी ग्रामोद्योग की वार्षिक आमदनी 10 लाख रुपए है, जिसमें से करीब 2 लाख रुपए की बचत होती है। यह उद्योग न केवल आर्थिक रूप से मजबूत हो रहा है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को भी साकार कर रहा है। यहां का तिरंगा अपने उचित मूल्य और गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है। तिरंगे की तय साइज और कीमत