300 की सैंडल 2 लाख में बेच रहा इटालियन ब्रांड PRADA, ट्रोलिंग के बाद स्वीकार की कोल्हापुरी चप्पलों की नकल की बात

इतालवी लक्जरी फैशन ब्रांड प्रादा ने स्वीकार किया है कि उसके स्प्रिंग/समर 2026 मेन्सवियर लाइन में कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित फुटवियर शामिल हैं। यह बयान भारत में ब्रांड द्वारा अपनी जड़ों को स्वीकार किए बिना पारंपरिक डिजाइन के उपयोग को लेकर बढ़ती आलोचना के बीच आया है।फैशन शो में प्रदर्शित फुटवियर कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित हैं कोल्हापुरी चप्पलों से मिलती-जुलती चप्पलें बनाने को लेकर आलोचनाओं के बाद इतालवी फैशन हाउस प्राडा ने स्वीकार किया है कि उसने कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित होकर ये चप्पलें बनाई हैं। प्राडा समूह के कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व विभाग के प्रमुख लोरेंजो बर्टेली ने ‘महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर’ के अध्यक्ष ललित गांधी को लिखे पत्र में कहा, “हम स्वीकार करते हैं कि हाल में आयोजित प्राडा मेन्स 2026 फैशन शो में प्रदर्शित सैंडल सदियों पुरानी विरासत वाली पारंपरिक भारतीय हस्तनिर्मित चप्पलों से प्रेरित हैं। हम इस तरह के भारतीय शिल्प कौशल के सांस्कृतिक महत्व को गहराई से पहचानते हैं।” कोल्हापुरी चप्पल के डिजाइन की ‘नकल’ का आरोप लगायाइससे पहले, गांधी ने इस सप्ताह स्प्रिंग-समर 2026 संग्रह के तहत प्राडा की चप्पलों को प्रदर्शित किए जाने पर उत्पन्न आक्रोश के बाद बर्टेली को पत्र लिखा था। प्राडा ने अपने शो के नोट्स में चप्पलों को ‘‘चमड़े के सैंडल’’ बताया, जिसमें भारतीय संबंध का कोई संदर्भ नहीं था। इससे भारत के फैशन समुदाय के साथ-साथ पश्चिमी महाराष्ट्र में कोल्हापुरी चप्पल के पारंपरिक निर्माताओं में भी नाराजगी पैदा हुई। गांधी ने अपने पत्र में कहा, “मैं हाल में पेश पुरुषों के स्प्रिंग/समर 2026 संग्रह से संबंधित मामले की ओर आदरपूर्वक आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए यह पत्र लिख रहा हूं, जिसे 23 जून 2025 को मिलान में प्रदर्शित किया गया था।”300 की सैंडल 2 लाख में बेच रहा इटैलियन ब्रैंड  उन्होंने कहा, “यह बात लोगों के ध्यान में आई है कि संग्रह में ऐसे फुटवियर डिजाइन शामिल हैं जो कोल्हापुरी चप्पलों (फुटवियर) से काफी मिलते-जुलते हैं। कोल्हापुरी चप्पल एक पारंपरिक हस्तनिर्मित चमड़े का सैंडल है जिसे 2019 में भारत सरकार ने भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा दिया था।” गांधी ने लिखा, कोल्हापुरी चप्पलें महाराष्ट्र और भारत में सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक रही हैं। ये उत्पाद न केवल क्षेत्रीय पहचान के प्रतीक हैं, बल्कि वे कोल्हापुर क्षेत्र और आसपास के जिलों के हजारों कारीगरों व परिवारों की आजीविका का सहारा भी हैं। उन्होंने कहा, एक ओर हम इस बात की सराहना करते हैं कि वैश्विक फैशन घराने विविध संस्कृतियों से प्रेरणा ले रहे हैं, दूसरी ओर हम इस बात से चिंतित हैं कि इस विशेष डिजाइन का व्यवसायीकरण बिना किसी मंजूरी, श्रेय या कारीगर समुदायों के साथ सहयोग के किया गया है, जिन्होंने पीढ़ियों से इस विरासत को संरक्षित रखा है।” उन्होंने लिखा, हमें विश्वास है कि प्राडा इस चिंता को सही भावना से देखेगा और उचित प्रतिक्रिया देगा।” अपने जवाब में, बर्टेली ने लिखा, कृपया ध्यान दें कि फिलहाल पूरा संग्रह डिजाइन और विकास के शुरुआती चरण में है और किसी भी चीज के उत्पादन या व्यावसायीकरण की पुष्टि नहीं हुई है।” उन्होंने कहा, हम जिम्मेदारीपूर्वक उत्पादन, सांस्कृतिक जुड़ाव को बढ़ावा देने और स्थानीय भारतीय कारीगरों के साथ बातचीत के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमने पूर्व में अन्य संग्रहों में भी ऐसा किया है ताकि उनके (कारीगरों के) शिल्प की सही पहचान सुनिश्चित की जा सके।

Jun 28, 2025 - 22:43
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300 की सैंडल 2 लाख में बेच रहा इटालियन ब्रांड PRADA, ट्रोलिंग के बाद स्वीकार की कोल्हापुरी चप्पलों की नकल की बात

इतालवी लक्जरी फैशन ब्रांड प्रादा ने स्वीकार किया है कि उसके स्प्रिंग/समर 2026 मेन्सवियर लाइन में कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित फुटवियर शामिल हैं। यह बयान भारत में ब्रांड द्वारा अपनी जड़ों को स्वीकार किए बिना पारंपरिक डिजाइन के उपयोग को लेकर बढ़ती आलोचना के बीच आया है।

फैशन शो में प्रदर्शित फुटवियर कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित हैं 

कोल्हापुरी चप्पलों से मिलती-जुलती चप्पलें बनाने को लेकर आलोचनाओं के बाद इतालवी फैशन हाउस प्राडा ने स्वीकार किया है कि उसने कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित होकर ये चप्पलें बनाई हैं। प्राडा समूह के कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व विभाग के प्रमुख लोरेंजो बर्टेली ने ‘महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर’ के अध्यक्ष ललित गांधी को लिखे पत्र में कहा, “हम स्वीकार करते हैं कि हाल में आयोजित प्राडा मेन्स 2026 फैशन शो में प्रदर्शित सैंडल सदियों पुरानी विरासत वाली पारंपरिक भारतीय हस्तनिर्मित चप्पलों से प्रेरित हैं। हम इस तरह के भारतीय शिल्प कौशल के सांस्कृतिक महत्व को गहराई से पहचानते हैं।”

कोल्हापुरी चप्पल के डिजाइन की ‘नकल’ का आरोप लगाया

इससे पहले, गांधी ने इस सप्ताह स्प्रिंग-समर 2026 संग्रह के तहत प्राडा की चप्पलों को प्रदर्शित किए जाने पर उत्पन्न आक्रोश के बाद बर्टेली को पत्र लिखा था। प्राडा ने अपने शो के नोट्स में चप्पलों को ‘‘चमड़े के सैंडल’’ बताया, जिसमें भारतीय संबंध का कोई संदर्भ नहीं था। इससे भारत के फैशन समुदाय के साथ-साथ पश्चिमी महाराष्ट्र में कोल्हापुरी चप्पल के पारंपरिक निर्माताओं में भी नाराजगी पैदा हुई। गांधी ने अपने पत्र में कहा, “मैं हाल में पेश पुरुषों के स्प्रिंग/समर 2026 संग्रह से संबंधित मामले की ओर आदरपूर्वक आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए यह पत्र लिख रहा हूं, जिसे 23 जून 2025 को मिलान में प्रदर्शित किया गया था।”

300 की सैंडल 2 लाख में बेच रहा इटैलियन ब्रैंड 

उन्होंने कहा, “यह बात लोगों के ध्यान में आई है कि संग्रह में ऐसे फुटवियर डिजाइन शामिल हैं जो कोल्हापुरी चप्पलों (फुटवियर) से काफी मिलते-जुलते हैं। कोल्हापुरी चप्पल एक पारंपरिक हस्तनिर्मित चमड़े का सैंडल है जिसे 2019 में भारत सरकार ने भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा दिया था।” गांधी ने लिखा, कोल्हापुरी चप्पलें महाराष्ट्र और भारत में सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक रही हैं। ये उत्पाद न केवल क्षेत्रीय पहचान के प्रतीक हैं, बल्कि वे कोल्हापुर क्षेत्र और आसपास के जिलों के हजारों कारीगरों व परिवारों की आजीविका का सहारा भी हैं।

उन्होंने कहा, एक ओर हम इस बात की सराहना करते हैं कि वैश्विक फैशन घराने विविध संस्कृतियों से प्रेरणा ले रहे हैं, दूसरी ओर हम इस बात से चिंतित हैं कि इस विशेष डिजाइन का व्यवसायीकरण बिना किसी मंजूरी, श्रेय या कारीगर समुदायों के साथ सहयोग के किया गया है, जिन्होंने पीढ़ियों से इस विरासत को संरक्षित रखा है।” उन्होंने लिखा, हमें विश्वास है कि प्राडा इस चिंता को सही भावना से देखेगा और उचित प्रतिक्रिया देगा।”

अपने जवाब में, बर्टेली ने लिखा, कृपया ध्यान दें कि फिलहाल पूरा संग्रह डिजाइन और विकास के शुरुआती चरण में है और किसी भी चीज के उत्पादन या व्यावसायीकरण की पुष्टि नहीं हुई है।” उन्होंने कहा, हम जिम्मेदारीपूर्वक उत्पादन, सांस्कृतिक जुड़ाव को बढ़ावा देने और स्थानीय भारतीय कारीगरों के साथ बातचीत के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमने पूर्व में अन्य संग्रहों में भी ऐसा किया है ताकि उनके (कारीगरों के) शिल्प की सही पहचान सुनिश्चित की जा सके।