ओडिशा के पुरी सहित देश भर में आज भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा पूरे उत्साह के साथ निकाली जा रही है। हिंदू धर्म में इस यात्रा का अत्यधिक महत्व है, और इसी कारण इसमें शामिल हर वस्तु या जीव का सीधा संबंध भगवान जगन्नाथ से माना जाता है, जिससे वे अपने आप में खास बन जाते हैं। इन्हीं में से एक है हाथी, जिसे हिंदू धर्म में गजानन के नाम से जाना जाता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा में गजानन का महत्व
जगन्नाथ रथ यात्रा में गजानन (हाथी) का महत्व कई मायनों में देखा जाता है, जो पौराणिक कथाओं और पारंपरिक रीति-रिवाजों से जुड़ा है
भगवान जगन्नाथ का गजानन वेश: रथ यात्रा से पहले, ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ 'स्नान यात्रा' करते हैं। मान्यता है कि इस स्नान के बाद वे अस्वस्थ हो जाते हैं और 15 दिनों के लिए एकांतवास (अनवसर) में चले जाते हैं। इसी दौरान वे 'गजानन वेश' या 'गणेश वेश' धारण करते हैं। इसके पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं।
1) गणपति भट्ट की भक्ति: एक बार भगवान गणेश के परम भक्त गणपति भट्ट दक्षिण भारत से पुरी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आए। वे भगवान जगन्नाथ में अपने गणेश जी को देखना चाहते थे। भक्तों की इच्छा पूरी करने वाले भगवान जगन्नाथ ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर गजानन वेश धारण किया, जिससे गणपति भट्ट भाव-विभोर हो गए। यह भगवान की भक्तवत्सलता को दर्शाता है।
2) गणेश चतुर्थी से संबंध: कुछ मान्यताओं के अनुसार, एक बार रथ यात्रा की तिथि पर ही गणेश चतुर्थी पड़ गई थी। चूंकि गणेश जी प्रथम पूज्य हैं और सभी विघ्नों को दूर करते हैं, उनकी उपेक्षा से बचने और रथ यात्रा को निर्विघ्न संपन्न करने के लिए भगवान जगन्नाथ ने गजानन वेश धारण किया। पुरी में आज भी इस घटना की स्मृति में भगवान जगन्नाथ का गणेश वेश पर्व मनाया जाता है।
रथ यात्रा में हाथियों की भूमिका
रथ यात्रा के दौरान भव्य जुलूस में हाथी भी शामिल होते हैं। ये हाथी शोभायात्रा का हिस्सा होते हैं और अपनी विशालता व गरिमा से यात्रा को और अधिक भव्य बनाते हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा में गजानन का महत्व न केवल भगवान जगन्नाथ द्वारा धारण किए गए विशेष वेश से है जो उनकी भक्तवत्सलता और विघ्नहर्ता स्वरूप को दर्शाता है, बल्कि रथ यात्रा की शोभा बढ़ाने वाले हाथियों की पारंपरिक उपस्थिति से भी है।