वोट बैंक के कारण होते हैं धार्मिक आयोजनों में हादसे

आंध्र प्रदेश में काशीबुग्गा शहर के वेंकटेश्वर मंदिर में भगदड़ मचने से 10 लोगों की मौत हो गई। मंदिर एक निजी तीर्थस्थल था, जो धर्मस्व विभाग के तहत पंजीकृत नहीं था। कार्यक्रम आयोजकों ने इतनी बड़ी भीड़ के लिए कोई अनुमति नहीं ली थी। राज्य सरकार को इस कार्यक्रम के बारे में पहले से सूचित नहीं किया गया था। देश में होने वाले धार्मिक आयोजनों में लापरवाही और कानून के उल्लंघन की सत्तारुढ़ दल और नेता अनदेखी करते रहे हैं। इसकी प्रमुख वजह कि कहीं उनका वोट बैंक हाथ से नहीं खिसक नहीं जाए। इसलिए वे कानून उल्लंघन से होने वाले संभावित हादसों की अनदेखी करते हैं। अन्यथा यह संभव नहीं है कि धार्मिक स्थलों पर किसी एक हादसे के बाद ऐसे हादसों की देश में पुनरावृत्ति होती रहे। वेकंटेश्वर मंदिर में हुआ हादसा इसका नया प्रमाण है।  ये पहली बार नहीं है, जब किसी मंदिर में ऐसा हुआ हो, इससे पहले भी हजारों लोगों की ऐसी घटनाओं में दर्दनाक मौत हो चुकी है। साल 2005 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में मंधारदेवी मंदिर में 350 से अधिक भक्तों की कुचलकर मौत हो गई। हिमाचल प्रदेश में साल 2008 में नैना देवी मंदिर मची भगदड़ में 162 की जान गई थी। 30 सितम्बर 2008 को राजस्थान के जोधपुर शहर में चामुंडा देवी मंदिर में बम की अफवाह से मची में 250 श्रद्धालु मारे गए। 27 अगस्त 2003 को महाराष्ट्र के नासिक जिले में कुंभ मेले में पवित्र स्नान के दौरान भगदड़ मचने से 39 लोग मारे गए। 13 अक्टूबर 2013 को मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 115 लोग मारे गए । भगदड़ की शुरुआत इस अफ़वाह से हुई कि जिस नदी के पुल को श्रद्धालु पार कर रहे थे, वह टूटने वाला है। इसे भी पढ़ें: आंध्र प्रदेश में मंदिर भगदड़: वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर हादसे में 9 की मौत, भीड़ प्रबंधन में लापरवाही31 मार्च, 2023 को इंदौर शहर के एक मंदिर में हवन कार्यक्रम के दौरान एक प्राचीन 'बावड़ी' या कुएं के ऊपर बनी स्लैब के ढह जाने से कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई। 14 जनवरी, 2011 को केरल के इडुक्की जिले के सबरीमाला में पुलमेदु में एक जीप से लौट रहे तीर्थ यात्रियों से टकरा गई, जिससे भगदड़ मच गई जिसमें कम से कम 104 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। 3 अक्टूबर 2014 को दशहरा समारोह में पटना के गांधी मैदान में भगदड़ से 32 लोगों की मौत हो गई। इसी तरह 19 नवंबर 2012 को पटना में गंगा नदी के तट पर छठ पूजा के दौरान एक अस्थायी पुल टूटने से लगभग 20 लोग मारे गए। 1 जनवरी, 2022 को जम्मू-कश्मीर में माता वैष्णो देवी मंदिर में भगदड़ से 12 लोगों की मौत हो गई। 14 जुलाई 2015 को आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में 'पुष्करम' त्योहार के उद्घाटन के दिन गोदावरी नदी के तट पर एक प्रमुख स्नान स्थल पर भगदड़ मचने से 27 तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो गई। 8 नवंबर 2011 को हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर हर-की-पौड़ी घाट पर मची भगदड़ में कम से कम 20 लोग मारे गए थे। 4 मार्च 2010 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में भगदड़ मचने से लगभग 63 लोगों की मौत हो गई थी। लोग स्वयंभू बाबा से मुफ्त कपड़े और भोजन लेने के लिए एकत्र हुए थे। हरिद्वार मनसा देवी मंदिर में 27 जुलाई 2025 को करंट फैलने की अफवाह के बाद भगदड़ मची, जिसमें 6 लोगों की मौत हुई। 3 मई, 2025 को गोवा के शिरगांव गांव में श्री लाईराई देवी मंदिर के वार्षिक उत्सव के दौरान अचानक भगदड़ मचने से छह श्रद्धालुओं की मौत हो गई। 29 जनवरी 2025 को प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ के दौरान भगदड़ मचने से  30 लोगों की मौत हो गई। हालांकि बाकी रिपोर्ट्स में आंकड़े काफी ज्यादा बताए गए। इन हादसों में घायलों की संख्या भी हजारों में रही। इन सभी हादसों में एक बात समान है कि भीड़ जमा हुई थी और लोगों ने अपनी जान गंवाई। लेकिन ऐसी घटनाएं बार-बार लौट कर पुराने हादसों के जख्म हरे कर देती हैं। बड़ा आयोजन, बड़ी भीड़ और बड़े हादसे। लेकिन सवाल यह है कि आखिर धार्मिक आयोजन में क्यों मचती है भगदड़ और कैसे मरते हैं लोग? अक्सर जब हादसे होते है, जांच रिपोर्ट सामने आती हैं तो प्रशासनिक गलती सामने आती है। आस्था, नाकाफी इंतजाम, कम जगह में ज्यादा श्रद्धालु और मौसम को दोषी ठहराया जाता है। कई हादसों की जांच रिपोर्ट में कहा गया कि जब भगदड़ मची तो लोग एक दूसरे पर गिरने लगे, लोग एक दूसरे को कुचलते हुए आगे बढ़ते गए। रिपोर्ट में कई बार तो कहा गया कि अफरातफरी के बीच लोगों की मौत दम घुटने को लेकर हुई।एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 से लेकर 2019 के बीच देश दुनिया में भगदड़ की बड़ी घटनाएं हुए उनमें करीब 79 फीसदी मामले धार्मिक आयोजन के दौरान हुए थे। रिपोर्ट के अध्ययन के अनुसार भारत में धार्मिक आयोजनों में भगदड़ के प्रमुख कारणों में भौगोलिक स्थान का विशेष महत्व है। भगदड़ की वजह पहाड़ी क्षेत्रों जैसे ढाल, दलदली इलाका, कीचड़ युक्त मैदान, खड़ी ढलान और बारिश से बचाव के इंतजाम न होने के चलते होता है। जबकि विदेशों में म्यूजिक कंसर्ट, स्टेडियम और नाइट क्लबों में होता है। आयोजन स्थल पर भीड़ कितनी आएगी, स्थान विशेष पर कितना लोगों का दबाव होगा, इसकी सटीक जानकारी और बेहतर इंतजाम हो तो हादसे को कंट्रोल किया जा सकता है। कई तरीके हैं जिन्हें अपनाकर भीड़ काबू में की जा सकती है। इन हादसों को रोका जा सकता है, अगर क्राउड मैनेजमेंट को कंट्रोल कर लें। भीड़ को दबाव को लाइन में लगाकर कम कर लें। भगदड़ की स्थिति में वैकल्पिक मार्ग का इंतजाम रखें और वीवीआईपी मेहमानों के लिए सही तरीके से आगमन का इंतजाम रखें। बैरिकेड लगाकर, स्नेक लाइन एप्रोच बनाकर भीड़ को काबू में किया जा सकता है। ये वो तरीके हैं जिन्हें अपनाकर भगदड़ के प्रभाव को न्यूट्रल किया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि घटनास्थल वाले जिले का प्रशासन इन उपायों से वाकिफ नहीं हो, किन्तु लापरवाही और धार्मिक आयोजनों में हस्तक्षेप से नेताओं के वोट बैंक बिगड़ने का भय इसमें आड़े आता है।

Nov 14, 2025 - 13:29
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वोट बैंक के कारण होते हैं धार्मिक आयोजनों में हादसे
आंध्र प्रदेश में काशीबुग्गा शहर के वेंकटेश्वर मंदिर में भगदड़ मचने से 10 लोगों की मौत हो गई। मंदिर एक निजी तीर्थस्थल था, जो धर्मस्व विभाग के तहत पंजीकृत नहीं था। कार्यक्रम आयोजकों ने इतनी बड़ी भीड़ के लिए कोई अनुमति नहीं ली थी। राज्य सरकार को इस कार्यक्रम के बारे में पहले से सूचित नहीं किया गया था। देश में होने वाले धार्मिक आयोजनों में लापरवाही और कानून के उल्लंघन की सत्तारुढ़ दल और नेता अनदेखी करते रहे हैं। इसकी प्रमुख वजह कि कहीं उनका वोट बैंक हाथ से नहीं खिसक नहीं जाए। इसलिए वे कानून उल्लंघन से होने वाले संभावित हादसों की अनदेखी करते हैं। अन्यथा यह संभव नहीं है कि धार्मिक स्थलों पर किसी एक हादसे के बाद ऐसे हादसों की देश में पुनरावृत्ति होती रहे। वेकंटेश्वर मंदिर में हुआ हादसा इसका नया प्रमाण है। 
 
ये पहली बार नहीं है, जब किसी मंदिर में ऐसा हुआ हो, इससे पहले भी हजारों लोगों की ऐसी घटनाओं में दर्दनाक मौत हो चुकी है। साल 2005 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में मंधारदेवी मंदिर में 350 से अधिक भक्तों की कुचलकर मौत हो गई। हिमाचल प्रदेश में साल 2008 में नैना देवी मंदिर मची भगदड़ में 162 की जान गई थी। 30 सितम्बर 2008 को राजस्थान के जोधपुर शहर में चामुंडा देवी मंदिर में बम की अफवाह से मची में 250 श्रद्धालु मारे गए। 27 अगस्त 2003 को महाराष्ट्र के नासिक जिले में कुंभ मेले में पवित्र स्नान के दौरान भगदड़ मचने से 39 लोग मारे गए। 13 अक्टूबर 2013 को मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 115 लोग मारे गए । भगदड़ की शुरुआत इस अफ़वाह से हुई कि जिस नदी के पुल को श्रद्धालु पार कर रहे थे, वह टूटने वाला है। 

इसे भी पढ़ें: आंध्र प्रदेश में मंदिर भगदड़: वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर हादसे में 9 की मौत, भीड़ प्रबंधन में लापरवाही

31 मार्च, 2023 को इंदौर शहर के एक मंदिर में हवन कार्यक्रम के दौरान एक प्राचीन 'बावड़ी' या कुएं के ऊपर बनी स्लैब के ढह जाने से कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई। 14 जनवरी, 2011 को केरल के इडुक्की जिले के सबरीमाला में पुलमेदु में एक जीप से लौट रहे तीर्थ यात्रियों से टकरा गई, जिससे भगदड़ मच गई जिसमें कम से कम 104 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। 3 अक्टूबर 2014 को दशहरा समारोह में पटना के गांधी मैदान में भगदड़ से 32 लोगों की मौत हो गई। इसी तरह 19 नवंबर 2012 को पटना में गंगा नदी के तट पर छठ पूजा के दौरान एक अस्थायी पुल टूटने से लगभग 20 लोग मारे गए। 1 जनवरी, 2022 को जम्मू-कश्मीर में माता वैष्णो देवी मंदिर में भगदड़ से 12 लोगों की मौत हो गई। 

14 जुलाई 2015 को आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में 'पुष्करम' त्योहार के उद्घाटन के दिन गोदावरी नदी के तट पर एक प्रमुख स्नान स्थल पर भगदड़ मचने से 27 तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो गई। 8 नवंबर 2011 को हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर हर-की-पौड़ी घाट पर मची भगदड़ में कम से कम 20 लोग मारे गए थे। 4 मार्च 2010 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में भगदड़ मचने से लगभग 63 लोगों की मौत हो गई थी। लोग स्वयंभू बाबा से मुफ्त कपड़े और भोजन लेने के लिए एकत्र हुए थे। हरिद्वार मनसा देवी मंदिर में 27 जुलाई 2025 को करंट फैलने की अफवाह के बाद भगदड़ मची, जिसमें 6 लोगों की मौत हुई। 3 मई, 2025 को गोवा के शिरगांव गांव में श्री लाईराई देवी मंदिर के वार्षिक उत्सव के दौरान अचानक भगदड़ मचने से छह श्रद्धालुओं की मौत हो गई। 29 जनवरी 2025 को प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ के दौरान भगदड़ मचने से  30 लोगों की मौत हो गई। हालांकि बाकी रिपोर्ट्स में आंकड़े काफी ज्यादा बताए गए। इन हादसों में घायलों की संख्या भी हजारों में रही। 

इन सभी हादसों में एक बात समान है कि भीड़ जमा हुई थी और लोगों ने अपनी जान गंवाई। लेकिन ऐसी घटनाएं बार-बार लौट कर पुराने हादसों के जख्म हरे कर देती हैं। बड़ा आयोजन, बड़ी भीड़ और बड़े हादसे। लेकिन सवाल यह है कि आखिर धार्मिक आयोजन में क्यों मचती है भगदड़ और कैसे मरते हैं लोग? अक्सर जब हादसे होते है, जांच रिपोर्ट सामने आती हैं तो प्रशासनिक गलती सामने आती है। आस्था, नाकाफी इंतजाम, कम जगह में ज्यादा श्रद्धालु और मौसम को दोषी ठहराया जाता है। कई हादसों की जांच रिपोर्ट में कहा गया कि जब भगदड़ मची तो लोग एक दूसरे पर गिरने लगे, लोग एक दूसरे को कुचलते हुए आगे बढ़ते गए। रिपोर्ट में कई बार तो कहा गया कि अफरातफरी के बीच लोगों की मौत दम घुटने को लेकर हुई।

एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 से लेकर 2019 के बीच देश दुनिया में भगदड़ की बड़ी घटनाएं हुए उनमें करीब 79 फीसदी मामले धार्मिक आयोजन के दौरान हुए थे। रिपोर्ट के अध्ययन के अनुसार भारत में धार्मिक आयोजनों में भगदड़ के प्रमुख कारणों में भौगोलिक स्थान का विशेष महत्व है। भगदड़ की वजह पहाड़ी क्षेत्रों जैसे ढाल, दलदली इलाका, कीचड़ युक्त मैदान, खड़ी ढलान और बारिश से बचाव के इंतजाम न होने के चलते होता है। जबकि विदेशों में म्यूजिक कंसर्ट, स्टेडियम और नाइट क्लबों में होता है। आयोजन स्थल पर भीड़ कितनी आएगी, स्थान विशेष पर कितना लोगों का दबाव होगा, इसकी सटीक जानकारी और बेहतर इंतजाम हो तो हादसे को कंट्रोल किया जा सकता है। कई तरीके हैं जिन्हें अपनाकर भीड़ काबू में की जा सकती है। 

इन हादसों को रोका जा सकता है, अगर क्राउड मैनेजमेंट को कंट्रोल कर लें। भीड़ को दबाव को लाइन में लगाकर कम कर लें। भगदड़ की स्थिति में वैकल्पिक मार्ग का इंतजाम रखें और वीवीआईपी मेहमानों के लिए सही तरीके से आगमन का इंतजाम रखें। बैरिकेड लगाकर, स्नेक लाइन एप्रोच बनाकर भीड़ को काबू में किया जा सकता है। ये वो तरीके हैं जिन्हें अपनाकर भगदड़ के प्रभाव को न्यूट्रल किया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि घटनास्थल वाले जिले का प्रशासन इन उपायों से वाकिफ नहीं हो, किन्तु लापरवाही और धार्मिक आयोजनों में हस्तक्षेप से नेताओं के वोट बैंक बिगड़ने का भय इसमें आड़े आता है। जब तक यह संकीर्ण सोच बनी रहेगी, तब तक ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति होती रहेंगी।

- योगेन्द्र योगी