श्रीरामजन्म का धर्म की पुर्न स्थापना का सूर्योदय:जगद्गुरु रत्नेश प्रपन्नाचार्य बोले- यह पावन क्षण सत्य, मर्यादा और न्याय के युग की शुरुआत

श्रीदशरथ राजमहल में चल रही कथा के तीसरे दिन जगद्गुरु रत्नेश प्रपन्नाचार्य ने कहा कि त्रेतायुग में जब पृथ्वी पर अधर्म का घोर अंधकार फैल चुका था, तब ऋषियों ने भगवान की शरण लेकर मनुज जन्म में अवतरण की प्रार्थना की। प्रजा अन्याय से पीड़ित थी, राक्षसों के अत्याचार चरम पर थे और यज्ञ-धर्म बाधित हो चुका था। तभी देवताओं ने ब्रह्मा जी के नेतृत्व में भगवान विष्णु से विनती की कि वे धर्म की रक्षा हेतु पृथ्वी पर अवतार लें। उन्होंने कहा कि अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के प्रतापी राजा दशरथ मानवता के आदर्श शासक थे, परंतु संतानहीन होने के कारण चिंतित रहते थे। गुरु वशिष्ठ के परामर्श पर उन्होंने ऋषि श्रृंगी के मार्गदर्शन में पुत्र कामना के यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के सम्पन्न होने पर अग्नि देव ने स्वर्ण कलश में दिव्य खीर सौंपकर वरदान दिया— “आपके चार पुत्र होंगे जो यश, तेज और धर्म की रक्षा को अवतरित होंगे।” मंडप में उपस्थित रानियों कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा ने वह प्रसाद श्रद्धापूर्वक ग्रहण किया। जगद्गुरु रत्नेश प्रपन्नाचार्य ने रामकथा को विस्तार दिया। कहा कि समय आने पर चैत शुक्ल नवमी के पावन दिन, मध्याह्न के शुभ मुहूर्त में महारानी कौशल्या के गर्भ से भगवान श्रीराम ने अवतार धारण किया। प्रभु का रूप अलौकिक था—नेत्रों में करुणा, मुख पर तेज और शरीर से दिव्य प्रभा प्रस्फुटित हो रही थी। अयोध्या में मंगल ध्वनियाँ गूँज उठीं, दिशाएँ सुगंधित हो गईं, और देवताओं ने पुष्पवर्षा कर के आनंद व्यक्त किया। क्रमशः कैकेयी से भरत एवं सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ, और नगर उत्सव में डूब गया। रामजन्म केवल राजकुमार का आगमन नहीं, बल्कि सत्य, मर्यादा और न्याय के युग की शुरुआत थी। जैसे सूरज उदय होते ही अंधकार स्वतः मिट जाता है, वैसे ही प्रभु श्रीराम के प्राकट्य ने धर्म के पुनर्जागरण का संदेश दिया। अयोध्या के द्वार आज भी यही उद्घोष करते हैं— “जब-जब धर्म क्षीण होता है, तब-तब राम अवतरित होते हैं।” इससे पहले कथा का आरंभ श्रीरामचरित मानस और कथा व्यास के पूजन से हुआ। दशरथ महल के महंत देवेंद्र प्रसादाचार्य, जगद्गुरु अर्जुन द्वाराचार्य स्वामी कृपालु रामभूषण देवाचार्य,रामशरणदास रामायणी,रामकृष्ण दास और आचार्य वरुण दास ने व्यास पीठ का पूजन किया।

Nov 23, 2025 - 12:10
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श्रीरामजन्म का धर्म की पुर्न स्थापना का सूर्योदय:जगद्गुरु रत्नेश प्रपन्नाचार्य बोले- यह पावन क्षण सत्य, मर्यादा और न्याय के युग की शुरुआत
श्रीदशरथ राजमहल में चल रही कथा के तीसरे दिन जगद्गुरु रत्नेश प्रपन्नाचार्य ने कहा कि त्रेतायुग में जब पृथ्वी पर अधर्म का घोर अंधकार फैल चुका था, तब ऋषियों ने भगवान की शरण लेकर मनुज जन्म में अवतरण की प्रार्थना की। प्रजा अन्याय से पीड़ित थी, राक्षसों के अत्याचार चरम पर थे और यज्ञ-धर्म बाधित हो चुका था। तभी देवताओं ने ब्रह्मा जी के नेतृत्व में भगवान विष्णु से विनती की कि वे धर्म की रक्षा हेतु पृथ्वी पर अवतार लें। उन्होंने कहा कि अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के प्रतापी राजा दशरथ मानवता के आदर्श शासक थे, परंतु संतानहीन होने के कारण चिंतित रहते थे। गुरु वशिष्ठ के परामर्श पर उन्होंने ऋषि श्रृंगी के मार्गदर्शन में पुत्र कामना के यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के सम्पन्न होने पर अग्नि देव ने स्वर्ण कलश में दिव्य खीर सौंपकर वरदान दिया— “आपके चार पुत्र होंगे जो यश, तेज और धर्म की रक्षा को अवतरित होंगे।” मंडप में उपस्थित रानियों कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा ने वह प्रसाद श्रद्धापूर्वक ग्रहण किया। जगद्गुरु रत्नेश प्रपन्नाचार्य ने रामकथा को विस्तार दिया। कहा कि समय आने पर चैत शुक्ल नवमी के पावन दिन, मध्याह्न के शुभ मुहूर्त में महारानी कौशल्या के गर्भ से भगवान श्रीराम ने अवतार धारण किया। प्रभु का रूप अलौकिक था—नेत्रों में करुणा, मुख पर तेज और शरीर से दिव्य प्रभा प्रस्फुटित हो रही थी। अयोध्या में मंगल ध्वनियाँ गूँज उठीं, दिशाएँ सुगंधित हो गईं, और देवताओं ने पुष्पवर्षा कर के आनंद व्यक्त किया। क्रमशः कैकेयी से भरत एवं सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ, और नगर उत्सव में डूब गया। रामजन्म केवल राजकुमार का आगमन नहीं, बल्कि सत्य, मर्यादा और न्याय के युग की शुरुआत थी। जैसे सूरज उदय होते ही अंधकार स्वतः मिट जाता है, वैसे ही प्रभु श्रीराम के प्राकट्य ने धर्म के पुनर्जागरण का संदेश दिया। अयोध्या के द्वार आज भी यही उद्घोष करते हैं— “जब-जब धर्म क्षीण होता है, तब-तब राम अवतरित होते हैं।” इससे पहले कथा का आरंभ श्रीरामचरित मानस और कथा व्यास के पूजन से हुआ। दशरथ महल के महंत देवेंद्र प्रसादाचार्य, जगद्गुरु अर्जुन द्वाराचार्य स्वामी कृपालु रामभूषण देवाचार्य,रामशरणदास रामायणी,रामकृष्ण दास और आचार्य वरुण दास ने व्यास पीठ का पूजन किया।