इटली में धूम मचा रही कोल्हापुरी चप्पलों का क्या है इतिहास, इस समय क्यों है सुर्खियों में

History of Kolhapuri slippers: सस्ती व टिकाऊ और आम लोगों की बरसों से पसंदीदा रही कोल्हापुरी चप्पल अब मिलान में धूम मचा रही है। हालांकि हाथ से बनाई जाने वाली चमड़े के इस चप्पल को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है, क्योंकि दिग्गज फैशन डिजाइनर कंपनी ...

Jun 28, 2025 - 22:41
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इटली में धूम मचा रही कोल्हापुरी चप्पलों का क्या है इतिहास, इस समय क्यों है सुर्खियों में

Kolhapuri Chappal
History of Kolhapuri slippers: सस्ती व टिकाऊ और आम लोगों की बरसों से पसंदीदा रही कोल्हापुरी चप्पल अब मिलान में धूम मचा रही है। हालांकि हाथ से बनाई जाने वाली चमड़े के इस चप्पल को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है, क्योंकि दिग्गज फैशन डिजाइनर कंपनी प्राडा यह चप्पल सवा लाख रुपये में बेच रही है। बरसों से भारतीय शिल्प का प्रतीक रही कोल्हापुरी चप्पल की हूबहू नकल कर इटली की बड़ी कंपनी प्राडा ने इसे ‘स्प्रिंग/समर 2026’ शो में प्रदर्शित किया, जिसके बाद इसका श्रेय दिए जाने को लेकर लोगों के बीच बहस छिड़ गई। प्राडा के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया भी जारी है।

 

क्या कहती हैं लैला तैयबजी : दशकों तक शिल्पकारों के साथ काम करने वाली डिजाइनर और कार्यकर्ता लैला तैयबजी ने कहा कि मैं इस बात से बेहद व्यथित और निराश हूं कि जिस तरह से प्राडा ने भारतीय और बेहद पारंपरिक चीज को अपना बनाकर पेश किया है और वे भी शिल्पकारों या उस संस्कृति को कोई बिना श्रेय दिए। यह इस बात को दर्शाता है कि कैसे हम भारत में अक्सर अपनी विरासत को कम आंकते हैं। उन्होंने कहा कि हम लोग इसे मामूली ‘हस्तकला’ के रूप में नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि दुनिया इसे विलासिता के रूप में पेश करती है।

 

‘दस्तकार’ की अध्यक्ष ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम स्वीकार करें कि भारत में असाधारण कौशल और ज्ञान प्रणालियां हैं। हमें उन्हें पहचानना चाहिए, उनकी रक्षा करनी चाहिए और गर्व के साथ दुनिया के सामने पेश करना चाहिए, इससे पहले कि दूसरे हमारी पहचान चुरा लें और हमें बेच दें। कई दिनों बाद जब भारत में इस बात को लेकर विवाद बढ़ गया तो प्राडा ने स्वीकार किया और कहा कि डिजाइन भारतीय हस्तनिर्मित चप्पल से ‘प्रेरित’ है।

 

क्या कहा प्राडा ने : प्राडा ने कहा कि ‘मेन्स 2026 फैशन शो’ में जो सैंडल प्रदर्शित की गई वे अब भी डिजाइन चरण में हैं और रैंप पर मॉडलों द्वारा पहनी गई किसी भी चप्पल के व्यावसायीकरण की पुष्टि नहीं हुई है। प्राडा के कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के ग्रुप हेड लोरेंजो बर्टेली ने ‘महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर’ के एक पत्र के जवाब में कहा कि हम जिम्मेदार डिजाइन तौर तरीकों, सांस्कृतिक जुड़ाव को बढ़ावा देने और स्थानीय भारतीय कारीगर समुदायों के साथ सार्थक आदान-प्रदान के लिए बातचीत शुरू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जैसा कि हमने अतीत में अन्य उत्पादों में किया है ताकि उनके शिल्प की सही पहचान सुनिश्चित हो सके।

 

कोल्हापुरी चप्पलों का इतिहास : कोल्हापुरी चप्पलें आमतौर पर महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर, सांगली, सतारा और सोलापुर के आसपास के जिलों में हस्तनिर्मित की जाती हैं, जहां से इन्हें यह नाम भी मिला है। कोल्हापुरी चप्पलों का निर्माण 12वीं या 13वीं शताब्दी से चला आ रहा है। मूल रूप से इस क्षेत्र के राजघरानों द्वारा संरक्षित कोल्हापुरी चप्पल स्थानीय मोची समुदाय द्वारा वनस्पति-टैन्ड चमड़े का उपयोग करके तैयार की जाती थीं और पूरी तरह से हाथ से बनाई जाती थीं। इसमें किसी कील या सिंथेटिक घटकों का उपयोग नहीं किया जाता है।  

 

चप्पलों के अलग-अलग नाम : माना जाता है कि राजा बिज्जल और उनके प्रधानमंत्री बसवन्ना ने स्थानीय मोचियों को बढ़ावा देने के लिए कोल्हापुरी चप्पल उत्पादन को प्रोत्साहित किया था। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, कोल्हापुरी को पहली बार 13वीं शताब्दी में पहना गया था। उस समय इन्हें 'कपासी', 'पायतान', 'कचकड़ी', 'बक्कलनाली', और 'पुकरि' जैसे नामों से जाना जाता था, जो उस गांव के नाम पर होते थे, जहां वे बनाई जाती थीं। 

 

शुरुआती दौर में इन्हें मराठा योद्धा और ग्रामीण समुदाय पहना करते थे। इनकी बनावट ऐसी होती थी कि ये गर्मियों में पैरों को ठंडा रखती थीं और बारिश में ये टिकाऊ होती थीं। 

 

20वीं शताब्दी में, कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहू महाराज ने इस उद्योग को बहुत बढ़ावा दिया। 1920 के दशक में, कोल्हापुर के सौदागर परिवार ने इन चप्पलों को और अधिक आकर्षक रूप दिया और उनका वजन कम किया, जिससे वे आज की आधिकारिक कोल्हापुरी चप्पल के रूप में पहचानी जाने लगीं। 

 

जीआई टैग मिला : जुलाई 2019 में, कोल्हापुरी चप्पलों को भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिला। महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सांगली, सतारा और सोलापुर जिलों के साथ-साथ कर्नाटक के बागलकोट, बेलगावी, धारवाड़ और बीजापुर जिलों में बनी चप्पलें ही 'कोल्हापुरी चप्पल' का टैग ले सकती हैं। (एजेंसी/वेबदुनिया)

Edited by: Vrijendra Singh Jhala