PM Modi Bhutan Visit ने लिख दिया हिमालयी मित्रता का नया अध्याय, China देखता रह गया मोदी ने खेल कर दिया

थिम्फू की शांत वादियों में आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूटान के राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक के 70वें जन्मदिवस पर भारतीय जनता की ओर से शुभकामनाएँ दीं, तो यह केवल एक राजनयिक औपचारिकता नहीं थी— यह हिमालयी सभ्यता की आत्मीयता, साझा मूल्यों और सामरिक साझेदारी की नई अभिव्यक्ति थी। प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर जहाँ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के शाश्वत भारतीय आदर्श की पुनः स्मृति कराई, वहीं उन्होंने भूटान के वैश्विक योगदान यानि ‘सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता’ (Gross National Happiness) की संकल्पना को मानव विकास के नए प्रतिमान के रूप में रेखांकित किया। परंतु यह भाषण केवल आध्यात्मिक या सांस्कृतिक विमर्श तक सीमित नहीं था। इसके भीतर भारत की सुरक्षा नीति, पर्यावरणीय साझेदारी, और पड़ोसी-प्रथम नीति की गहरी रणनीतिक परतें भी स्पष्ट झलकती हैं।देखा जाये तो भारत और भूटान का संबंध केवल सीमा-रेखाओं तक सीमित नहीं, बल्कि यह संस्कृतियों, धर्मों और भावनाओं का सेतु है। गुरु पद्मसंभव की परंपरा से लेकर आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों तक, दोनों देशों की जीवन-दृष्टि में शांति और मानव कल्याण की समान धारा बहती है। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं उल्लेख किया कि गुजरात के वडनगर से लेकर वाराणसी तक भारत की बौद्ध परंपरा और भूटानी आध्यात्मिकता में समानता है। आज जब विश्व वैचारिक विभाजन, जलवायु संकट और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से जूझ रहा है, भारत-भूटान का यह “शांतिपूर्ण विकास मॉडल” एशिया के लिए प्रेरक उदाहरण बन रहा है।इसे भी पढ़ें: दिल्ली ब्लास्ट पर भूटान से PM मोदी ने दिया दो टूक मैसेज, षड्यंत्रकारियों को बख्शा नहीं जाएगाहम आपको बता दें कि भारत-भूटान साझेदारी की रीढ़ ‘जलविद्युत’ है। चौथे राजा के दूरदर्शी नेतृत्व में शुरू हुई यह साझेदारी आज एक निर्णायक मोड़ पर है। प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा के अनुसार, नया 1000 मेगावाट का पनबिजली प्रकल्प भूटान की क्षमता में 40% वृद्धि करेगा, यह न केवल ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक कदम है, बल्कि भारत की “ग्रीन एनर्जी ग्रिड” रणनीति का भी सशक्त आधार बनेगा।भूटान का ‘कार्बन-नेगेटिव’ दर्जा—विश्व में अद्वितीय—भारत-भूटान पर्यावरणीय साझेदारी की नैतिक ऊँचाई को दर्शाता है। यह सहयोग चीन की तीव्र औद्योगिक विस्तार नीति के बरक्स एक वैकल्पिक “सतत विकास” मॉडल प्रस्तुत करता है।इसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी के शब्द— “Connectivity creates opportunity, and opportunity creates prosperity”, केन्द्रीय एशिया से लेकर उत्तर-पूर्व भारत तक भारत की सामरिक सोच का मूल सूत्र बन चुके हैं। गेलफू और सामत्से को भारत की रेल-परिवहन प्रणाली से जोड़ने की पहल, न केवल व्यापारिक लाभ बल्कि सामरिक पहुँच के लिहाज से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। चीन जिस प्रकार भूटान की उत्तरी सीमाओं पर दबाव बना रहा है, उस संदर्भ में भारत-भूटान के बीच सड़क, रेल और डिजिटल संपर्क को मजबूत करना रक्षा-नीति की दृष्टि से अनिवार्य कदम है।साथ ही प्रधानमंत्री ने जिस प्रकार भारत और भूटान के युवाओं द्वारा संयुक्त रूप से उपग्रह निर्माण की बात कही, वह हिमालयी साझेदारी को अंतरिक्ष तक ले जाने की प्रतीकात्मक पराकाष्ठा है। यह पहल ‘सॉफ्ट पावर’ और ‘साइंटिफिक डिप्लोमेसी’ दोनों की मिसाल है। शिक्षा, नवाचार, खेल और संस्कृति में यह सहयोग आने वाले दशक में दोनों देशों की साझी समृद्धि का आधार बनेगा।देखा जाये तो राजगीर में भूटानी मंदिर का उद्घाटन और वाराणसी में भूटानी अतिथि गृह के लिए भूमि उपलब्ध कराने की घोषणा, केवल धार्मिक प्रतीक नहीं हैं, यह भारतीय कूटनीति के उस पहलू का प्रतिनिधित्व करती हैं जो संबंधों में भावनात्मक गहराई जोड़ती है। साथ ही भूटान का भारत के प्रति ‘दिल्ली विस्फोट’ की घटना के बाद दिखाया गया मानवीय संवेदना-भरा समर्थन और पीड़ितों के लिए विशेष प्रार्थना, दोनों देशों के बीच भावनात्मक एकात्मता का ज्वलंत प्रमाण है।हम आपको बता दें कि भूटान की भौगोलिक स्थिति भारत की उत्तर-पूर्व सुरक्षा रणनीति का अनिवार्य हिस्सा है। डोकलाम क्षेत्र में 2017 की झड़पों ने यह स्पष्ट कर दिया था कि भूटान की स्थिरता प्रत्यक्ष रूप से भारत की सीमा-सुरक्षा से जुड़ी है। इस परिप्रेक्ष्य में मोदी का यह दौरा चीन को एक स्पष्ट संकेत देता है कि भारत अपने मित्रों के साथ खड़ा है और हिमालय की रक्षा केवल सीमाओं की नहीं, सभ्यताओं की रक्षा है।बहरहाल, भारत और भूटान का संबंध अब केवल परंपरा का प्रतीक नहीं, बल्कि आधुनिक भू-राजनीतिक यथार्थ का सशक्त उपकरण बन चुका है। यह वह साझेदारी है जिसमें आध्यात्मिकता और रणनीति, संस्कृति और सुरक्षा, ऊर्जा और पर्यावरण, सब एक दूसरे के पूरक हैं। आज जब एशिया की शक्तियाँ नए संतुलन की खोज में हैं, भारत-भूटान का यह सहयोग “विश्वास की ऊँचाई” पर खड़ा दिखाई देता है। यह संबंध बताता है कि विकास का मार्ग केवल आर्थिक शक्ति से नहीं, बल्कि मूल्य, मित्रता और साझा मानवता से प्रशस्त होता है।-नीरज कुमार दुबे

Nov 12, 2025 - 19:25
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PM Modi Bhutan Visit ने लिख दिया हिमालयी मित्रता का नया अध्याय, China देखता रह गया मोदी ने खेल कर दिया
थिम्फू की शांत वादियों में आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूटान के राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक के 70वें जन्मदिवस पर भारतीय जनता की ओर से शुभकामनाएँ दीं, तो यह केवल एक राजनयिक औपचारिकता नहीं थी— यह हिमालयी सभ्यता की आत्मीयता, साझा मूल्यों और सामरिक साझेदारी की नई अभिव्यक्ति थी। प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर जहाँ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के शाश्वत भारतीय आदर्श की पुनः स्मृति कराई, वहीं उन्होंने भूटान के वैश्विक योगदान यानि ‘सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता’ (Gross National Happiness) की संकल्पना को मानव विकास के नए प्रतिमान के रूप में रेखांकित किया। परंतु यह भाषण केवल आध्यात्मिक या सांस्कृतिक विमर्श तक सीमित नहीं था। इसके भीतर भारत की सुरक्षा नीति, पर्यावरणीय साझेदारी, और पड़ोसी-प्रथम नीति की गहरी रणनीतिक परतें भी स्पष्ट झलकती हैं।

देखा जाये तो भारत और भूटान का संबंध केवल सीमा-रेखाओं तक सीमित नहीं, बल्कि यह संस्कृतियों, धर्मों और भावनाओं का सेतु है। गुरु पद्मसंभव की परंपरा से लेकर आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों तक, दोनों देशों की जीवन-दृष्टि में शांति और मानव कल्याण की समान धारा बहती है। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं उल्लेख किया कि गुजरात के वडनगर से लेकर वाराणसी तक भारत की बौद्ध परंपरा और भूटानी आध्यात्मिकता में समानता है। आज जब विश्व वैचारिक विभाजन, जलवायु संकट और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से जूझ रहा है, भारत-भूटान का यह “शांतिपूर्ण विकास मॉडल” एशिया के लिए प्रेरक उदाहरण बन रहा है।

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हम आपको बता दें कि भारत-भूटान साझेदारी की रीढ़ ‘जलविद्युत’ है। चौथे राजा के दूरदर्शी नेतृत्व में शुरू हुई यह साझेदारी आज एक निर्णायक मोड़ पर है। प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा के अनुसार, नया 1000 मेगावाट का पनबिजली प्रकल्प भूटान की क्षमता में 40% वृद्धि करेगा, यह न केवल ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक कदम है, बल्कि भारत की “ग्रीन एनर्जी ग्रिड” रणनीति का भी सशक्त आधार बनेगा।
भूटान का ‘कार्बन-नेगेटिव’ दर्जा—विश्व में अद्वितीय—भारत-भूटान पर्यावरणीय साझेदारी की नैतिक ऊँचाई को दर्शाता है। यह सहयोग चीन की तीव्र औद्योगिक विस्तार नीति के बरक्स एक वैकल्पिक “सतत विकास” मॉडल प्रस्तुत करता है।

इसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी के शब्द— “Connectivity creates opportunity, and opportunity creates prosperity”, केन्द्रीय एशिया से लेकर उत्तर-पूर्व भारत तक भारत की सामरिक सोच का मूल सूत्र बन चुके हैं। गेलफू और सामत्से को भारत की रेल-परिवहन प्रणाली से जोड़ने की पहल, न केवल व्यापारिक लाभ बल्कि सामरिक पहुँच के लिहाज से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। चीन जिस प्रकार भूटान की उत्तरी सीमाओं पर दबाव बना रहा है, उस संदर्भ में भारत-भूटान के बीच सड़क, रेल और डिजिटल संपर्क को मजबूत करना रक्षा-नीति की दृष्टि से अनिवार्य कदम है।

साथ ही प्रधानमंत्री ने जिस प्रकार भारत और भूटान के युवाओं द्वारा संयुक्त रूप से उपग्रह निर्माण की बात कही, वह हिमालयी साझेदारी को अंतरिक्ष तक ले जाने की प्रतीकात्मक पराकाष्ठा है। यह पहल ‘सॉफ्ट पावर’ और ‘साइंटिफिक डिप्लोमेसी’ दोनों की मिसाल है। शिक्षा, नवाचार, खेल और संस्कृति में यह सहयोग आने वाले दशक में दोनों देशों की साझी समृद्धि का आधार बनेगा।

देखा जाये तो राजगीर में भूटानी मंदिर का उद्घाटन और वाराणसी में भूटानी अतिथि गृह के लिए भूमि उपलब्ध कराने की घोषणा, केवल धार्मिक प्रतीक नहीं हैं, यह भारतीय कूटनीति के उस पहलू का प्रतिनिधित्व करती हैं जो संबंधों में भावनात्मक गहराई जोड़ती है। साथ ही भूटान का भारत के प्रति ‘दिल्ली विस्फोट’ की घटना के बाद दिखाया गया मानवीय संवेदना-भरा समर्थन और पीड़ितों के लिए विशेष प्रार्थना, दोनों देशों के बीच भावनात्मक एकात्मता का ज्वलंत प्रमाण है।

हम आपको बता दें कि भूटान की भौगोलिक स्थिति भारत की उत्तर-पूर्व सुरक्षा रणनीति का अनिवार्य हिस्सा है। डोकलाम क्षेत्र में 2017 की झड़पों ने यह स्पष्ट कर दिया था कि भूटान की स्थिरता प्रत्यक्ष रूप से भारत की सीमा-सुरक्षा से जुड़ी है। इस परिप्रेक्ष्य में मोदी का यह दौरा चीन को एक स्पष्ट संकेत देता है कि भारत अपने मित्रों के साथ खड़ा है और हिमालय की रक्षा केवल सीमाओं की नहीं, सभ्यताओं की रक्षा है।

बहरहाल, भारत और भूटान का संबंध अब केवल परंपरा का प्रतीक नहीं, बल्कि आधुनिक भू-राजनीतिक यथार्थ का सशक्त उपकरण बन चुका है। यह वह साझेदारी है जिसमें आध्यात्मिकता और रणनीति, संस्कृति और सुरक्षा, ऊर्जा और पर्यावरण, सब एक दूसरे के पूरक हैं। आज जब एशिया की शक्तियाँ नए संतुलन की खोज में हैं, भारत-भूटान का यह सहयोग “विश्वास की ऊँचाई” पर खड़ा दिखाई देता है। यह संबंध बताता है कि विकास का मार्ग केवल आर्थिक शक्ति से नहीं, बल्कि मूल्य, मित्रता और साझा मानवता से प्रशस्त होता है।

-नीरज कुमार दुबे