Pakistan in 4 Front War | खैबर के पश्तून की कहानी | Teh Tak Chapter 1

एक वक्त था जब पाकिस्तान खुद को साउथ एशिया का स्ट्रैटजिन पिवट कहता था। आज वही पाकिस्तान चार फ्रंट पर अलग अलग वॉर लड़ रहा है। ये एक डिप्लोमैटिक बिट्रेल है जो पाकिस्तान ने अपनी मिलिट्री को फंड करके खुद ही खड़ा कर लिया है। चाहे वो खैबर पख्तूनवा के पहाड़ हो या बलूचिस्तान की रेत, चाहे वो अफगानिस्तान से भारत का हाथ मिलाना हो या पाकिस्तान के अंदर लगी हुई आग और अपना खुद का पाक अधिकृत कश्मीर में फैलाया हुआ अशांति का माहौल हो। पाकिस्तान हर फ्रंट पर एक नई लड़ाई लड़ रहा है। जिसमें उसका हारना तय है। आज आपको बताते हैं कि क्यों पाकिस्तान फोर फ्रंट वॉ़र में फंस जाता है। ये तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री भारत का दौरा करते हैं और नई दिल्ली की तरफ से काबुल में दूतावास खोलने का ऐलान कर दिया जाता है। आज आपको पाकिस्तान के अंदरूनी कलह की कहानी के तह तक सिलसिलेवार ढंग से लिए चलते हैं और शुरुआत पाकिस्तान के खैबर पख्तूनवा और पश्तूनों से करते हैं। ब्रिटिश सेना को कब्रगाह में किया तब्दीलबात शुरू करते हैं भारत और पाकिस्तान की आजादी से पहले की एक घटना से करते हैं। काबुल से पेशावर के रास्ते में जलालाबाद नाम की जगह पड़ती है। 1842 में जब अफगान से लड़ाई में ब्रिटिश फौज की बुरी हार हुई। चार से पांच हजार सैनिकों समेत 16 हजार ब्रिटिशर्स के लौटने का इंतेजार करती रेसक्यू पार्टी जलालाबाद के मुहाने पर खड़ी थी। दूर से एक घायल खच्चड़ पर सवार एक थका-हारा सा नौजवान आता नजर आता है। चोटों से बेहाल और खून से सनी वर्दी में वो अकेला चला जाता है। उससे ब्रिटिश फौज के नौजवान ने पूछा कि वेयर इज द आर्मी तो जवाब मिलता है आई एम द आर्मी यानी उन 16 हजार ब्रिटिश सैनिकों में से एक केवल यही एकलौता बच पाया था। पहले ब्रिटिश अफगान वॉर में अफगान लड़ाकों ने इतनी ही बेरहमी से पूरी ब्रिटिश सेना को कब्रगाह में तब्दील कर दिया था। कौन होते हैं पश्तूनउत्तर पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा और दूसरे सिरे में अफगानिस्तान का काबुलिस्तान मैदान। दोनों के बीच में हिंदू कुश पर्वत श्रंखला में स्थित है एक दर्रा खैबर दर्रा। सिल्क रूट के जमाने से यह दर्रा व्यापार के लिए जमकर इस्तेमाल होता रहा है। बाद में यह मध्य एशिया के और ग्रीक लड़ाकों के सिंधु तक पहुंचने का एक माध्यम भी बना। इसी रास्ते तुर्क और मंगोल भी आए। इतना महत्वपूर्ण रहा है दर्रे खैबर। और पख्तून ख्वा। पख्तून ख्वा की बात यह है कि इंडो यूरोपियन समूह की पश्तून भाषा बोलने वाले लोगों और पख्तान यानी पठान की सरजमी। इस तरह से आप इसे पहचान सकते हैं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में रहने वालों को मिलाकर पश्तून दुनिया की सबसे बड़ी ट्राइबल एथेनिक कम्युनिटी बनाते हैं। खैबर पख्तूनखा मतलब खैबर के तरफ की पश्तूनों की जमीन। पहले अफगान फिर आगे चलकर पश्तून, पठान के नाम से इन्हें जाना जाने लगा। पाकिस्तान से लड़ रहे जंग1950 के बाद पश्तून दो देशों का हिस्सा बने। लेकिन शीत युद्ध फिर सोवियत अफ़गान वॉर और उसके बाद अमेरिका के वॉर ऑन टेररिज्म के दरमियान इन कबायली लोगों को प्यादे की तरह इस्तेमाल किया गया। आज के वक्त में पाकिस्तान जैसे देश में खैबर पख्तून ख्वा के लोग अपनी पहचान को लेकर अभी भी प्रयासरत हैं। खैबर पख्तून ख्वाह, बलूचिस्तान और ये तमाम आसपास की जगहें बड़े अंतर्द्वंद, बड़े संघर्ष का सामना कर रही हैं। अपनी-अपनी इनकी मांगे हैं। जिन मांगों को लेकर लगातार इनकी पाकिस्तान सरकार से भी टकराव भी चल रहा है। इसे भी पढ़ें: Pakistan in 4 Front War | ब्लूचिस्तान के बग़ावत,हिंसा -मानवाधिकार हनन की कहानी | Teh Tak Chapter 2 

Oct 25, 2025 - 08:01
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Pakistan in 4 Front War | खैबर के पश्तून की कहानी | Teh Tak Chapter 1
एक वक्त था जब पाकिस्तान खुद को साउथ एशिया का स्ट्रैटजिन पिवट कहता था। आज वही पाकिस्तान चार फ्रंट पर अलग अलग वॉर लड़ रहा है। ये एक डिप्लोमैटिक बिट्रेल है जो पाकिस्तान ने अपनी मिलिट्री को फंड करके खुद ही खड़ा कर लिया है। चाहे वो खैबर पख्तूनवा के पहाड़ हो या बलूचिस्तान की रेत, चाहे वो अफगानिस्तान से भारत का हाथ मिलाना हो या पाकिस्तान के अंदर लगी हुई आग और अपना खुद का पाक अधिकृत कश्मीर में फैलाया हुआ अशांति का माहौल हो। पाकिस्तान हर फ्रंट पर एक नई लड़ाई लड़ रहा है। जिसमें उसका हारना तय है। आज आपको बताते हैं कि क्यों पाकिस्तान फोर फ्रंट वॉ़र में फंस जाता है। ये तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री भारत का दौरा करते हैं और नई दिल्ली की तरफ से काबुल में दूतावास खोलने का ऐलान कर दिया जाता है। आज आपको पाकिस्तान के अंदरूनी कलह की कहानी के तह तक सिलसिलेवार ढंग से लिए चलते हैं और शुरुआत पाकिस्तान के खैबर पख्तूनवा और पश्तूनों से करते हैं। 

ब्रिटिश सेना को कब्रगाह में किया तब्दील

बात शुरू करते हैं भारत और पाकिस्तान की आजादी से पहले की एक घटना से करते हैं। काबुल से पेशावर के रास्ते में जलालाबाद नाम की जगह पड़ती है। 1842 में जब अफगान से लड़ाई में ब्रिटिश फौज की बुरी हार हुई। चार से पांच हजार सैनिकों समेत 16 हजार ब्रिटिशर्स के लौटने का इंतेजार करती रेसक्यू पार्टी जलालाबाद के मुहाने पर खड़ी थी। दूर से एक घायल खच्चड़ पर सवार एक थका-हारा सा नौजवान आता नजर आता है। चोटों से बेहाल और खून से सनी वर्दी में वो अकेला चला जाता है। उससे ब्रिटिश फौज के नौजवान ने पूछा कि वेयर इज द आर्मी तो जवाब मिलता है आई एम द आर्मी यानी उन 16 हजार ब्रिटिश सैनिकों में से एक केवल यही एकलौता बच पाया था। पहले ब्रिटिश अफगान वॉर में अफगान लड़ाकों ने इतनी ही बेरहमी से पूरी ब्रिटिश सेना को कब्रगाह में तब्दील कर दिया था। 

कौन होते हैं पश्तून

उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा और दूसरे सिरे में अफगानिस्तान का काबुलिस्तान मैदान। दोनों के बीच में हिंदू कुश पर्वत श्रंखला में स्थित है एक दर्रा खैबर दर्रा। सिल्क रूट के जमाने से यह दर्रा व्यापार के लिए जमकर इस्तेमाल होता रहा है। बाद में यह मध्य एशिया के और ग्रीक लड़ाकों के सिंधु तक पहुंचने का एक माध्यम भी बना। इसी रास्ते तुर्क और मंगोल भी आए। इतना महत्वपूर्ण रहा है दर्रे खैबर। और पख्तून ख्वा। पख्तून ख्वा की बात यह है कि इंडो यूरोपियन समूह की पश्तून भाषा बोलने वाले लोगों और पख्तान यानी पठान की सरजमी। इस तरह से आप इसे पहचान सकते हैं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में रहने वालों को मिलाकर पश्तून दुनिया की सबसे बड़ी ट्राइबल एथेनिक कम्युनिटी बनाते हैं। खैबर पख्तूनखा मतलब खैबर के तरफ की पश्तूनों की जमीन। पहले अफगान फिर आगे चलकर पश्तून, पठान के नाम से इन्हें जाना जाने लगा। 

पाकिस्तान से लड़ रहे जंग

1950 के बाद पश्तून दो देशों का हिस्सा बने। लेकिन शीत युद्ध फिर सोवियत अफ़गान वॉर और उसके बाद अमेरिका के वॉर ऑन टेररिज्म के दरमियान इन कबायली लोगों को प्यादे की तरह इस्तेमाल किया गया। आज के वक्त में पाकिस्तान जैसे देश में खैबर पख्तून ख्वा के लोग अपनी पहचान को लेकर अभी भी प्रयासरत हैं। खैबर पख्तून ख्वाह, बलूचिस्तान और ये तमाम आसपास की जगहें बड़े अंतर्द्वंद, बड़े संघर्ष का सामना कर रही हैं। अपनी-अपनी इनकी मांगे हैं। जिन मांगों को लेकर लगातार इनकी पाकिस्तान सरकार से भी टकराव भी चल रहा है। 

इसे भी पढ़ें: Pakistan in 4 Front War | ब्लूचिस्तान के बग़ावत,हिंसा -मानवाधिकार हनन की कहानी | Teh Tak Chapter 2