झुंझुनूं में डिजिटल क्रॉप सर्वे (ई-गिरदावरी) अधर में:प्रशासनिक सुस्ती और तकनीकी बाधाओं ने 5 लाख किसानों की उम्मीदों पर फेरा पानी
सरकार की महत्वाकांक्षी योजना डिजिटल क्रॉप सर्वे (ई-गिरदावरी) एक बार फिर झुंझुनूं जिले में प्रशासनिक सुस्ती और विभागीय निष्क्रियता की भेंट चढ़ गई है। कृषि और राजस्व विभाग की संयुक्त पहल के तहत किसानों की फसल संबंधी जानकारी ऑनलाइन दर्ज कर कृषि योजनाओं में पारदर्शिता लाने का लक्ष्य था, लेकिन कमजोर मॉनिटरिंग और मैदानी स्तर पर प्रचार-प्रसार की कमी के कारण यह अभियान बुरी तरह से पिछड़ गया है। जिले के पांच लाख से अधिक पंजीकृत किसानों में से अब तक महज 20 हजार किसानों ने ही ई-गिरदावरी पूरी की है, जो कुल लक्ष्य का चार प्रतिशत भी नहीं है। खरीफ सीजन की गिरदावरी 5 अक्टूबर तक पूरी करने के सख्त निर्देश के बावजूद आधे से ज्यादा तहसीलों में सर्वे अधूरा है, जिससे फसल बीमा, आपदा राहत और अन्य कृषि योजनाओं के लिए जरूरी डेटा पोर्टल पर समय पर अपलोड होना संदिग्ध हो गया है। राज्य सरकार ने खरीफ सीजन की ई-गिरदावरी 5 अक्टूबर तक पूरी करने के सख्त निर्देश दिए थे, ताकि समय पर डेटा पोर्टल पर अपलोड हो सके। लेकिन झुंझुनूं की अधिकांश तहसीलों में सर्वे अधूरा है। विभागीय अधिकारी केवल आदेश जारी कर फाइलों में खानापूर्ति करते रहे, जबकि ज़मीन पर इसका क्रियान्वयन नहीं हुआ। स्थिति यह है कि गुढ़ा, चिड़ावा, नवलगढ़, सूरजगढ़ और खेतड़ी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में किसान पूरी प्रक्रिया से अनभिज्ञ हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि पर्यवेक्षकों और पटवारियों की निष्क्रियता साफ झलक रही है। कई ग्राम पंचायतों में न तो प्रशिक्षण शिविर लगाए गए और न ही तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई गई। किसान बोले—किसी ने नहीं बताया कैसे करें सर्वे मैदानी स्तर पर प्रचार-प्रसार और जागरूकता की कमी ने अभियान को सबसे बड़ा झटका दिया है। किसानों का कहना है कि उन्हें इस प्रक्रिया की जानकारी ही नहीं है। किसान धर्मपाल ने बताया, "हमें बस इतना कहा गया कि मोबाइल एप से गिरदावरी करनी है, पर कैसे करनी है, यह कोई नहीं बताता। एप खुलता ही नहीं या डेटा सेव नहीं होता।” किसान जगदीश कुमार ने कहा कि ई-गिरदावरी का फायदा उन्हें समझाया ही नहीं गया। उन्होंने सवाल उठाया, “जब हमें पता ही नहीं कि इससे क्या लाभ होगा, तो करने की प्रेरणा कहां से आएगी?” किसानों को उनके आधार, खसरा-खतौनी और खेती के दस्तावेजों के साथ गिरदावरी एप से खुद अपनी फसल दर्ज करनी थी, लेकिन इस प्रक्रिया से अधिकांश किसान अनभिज्ञ हैं। इंटरनेट और तकनीकी दिक्कतें भी बनी बाधा प्रशासनिक सुस्ती के साथ ही तकनीकी ढाँचे की कमियाँ भी अभियान की असफलता का कारण बनी हैं। झुंझुनूं के कई ग्रामीण इलाकों में अभी भी इंटरनेट नेटवर्क कमजोर है। किसानों ने शिकायत की कि मोबाइल एप बार-बार हैंग हो जाता है या डेटा अपलोड नहीं होता। इससे परेशान होकर किसान आधा-अधूरा सर्वे छोड़ देते हैं। राजस्व विभाग के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि गिरदावरी एप में बार-बार तकनीकी गड़बड़ी आती है—"डेटा सेव नहीं होता, कभी सर्वर डाउन रहता है, तो कभी लोकेशन नहीं पकड़ता।" कई किसानों के पास एंड्रॉइड मोबाइल न होने और बिजली की समस्या भी भाग लेने में बाधा बन रही है। पारदर्शिता का उद्देश्य कागजों तक सीमित ई-गिरदावरी का मुख्य उद्देश्य किसानों की फसल का पूरा रिकॉर्ड ऑनलाइन दर्ज करना था, जिससे फसल बीमा, आपदा राहत और अन्य कृषि योजनाओं में पारदर्शिता लाई जा सके। इन आंकड़ों से यह पता चलता कि किस किसान ने कौन सी फसल बोई है और अनुमानित उत्पादन कितना होगा। लेकिन विभागीय स्तर पर न तो किसानों को पर्याप्त प्रशिक्षण मिला और न ही कोई विशेष मुहिम चलाई गई। नतीजा यह है कि पारदर्शिता का यह उद्देश्य अब तक केवल कागजों तक सीमित है और ई-गिरदावरी का आंकड़ा लगातार पिछड़ रहा है। संयुक्त निदेशक कृषि विभाग डॉ. राजेंद्र लाम्बा ने बताया कि अब तक जिले के लगभग 20 हजार किसानों ने ई-गिरदावरी की है। उन्होंने कहा, “हमारा प्रयास है कि किसान खुद एप के माध्यम से अपनी फसलों की गिरदावरी करें। इसके लिए विभागीय टीमों को सक्रिय किया गया है।”
सरकार की महत्वाकांक्षी योजना डिजिटल क्रॉप सर्वे (ई-गिरदावरी) एक बार फिर झुंझुनूं जिले में प्रशासनिक सुस्ती और विभागीय निष्क्रियता की भेंट चढ़ गई है। कृषि और राजस्व विभाग की संयुक्त पहल के तहत किसानों की फसल संबंधी जानकारी ऑनलाइन दर्ज कर कृषि योजनाओं में पारदर्शिता लाने का लक्ष्य था, लेकिन कमजोर मॉनिटरिंग और मैदानी स्तर पर प्रचार-प्रसार की कमी के कारण यह अभियान बुरी तरह से पिछड़ गया है। जिले के पांच लाख से अधिक पंजीकृत किसानों में से अब तक महज 20 हजार किसानों ने ही ई-गिरदावरी पूरी की है, जो कुल लक्ष्य का चार प्रतिशत भी नहीं है। खरीफ सीजन की गिरदावरी 5 अक्टूबर तक पूरी करने के सख्त निर्देश के बावजूद आधे से ज्यादा तहसीलों में सर्वे अधूरा है, जिससे फसल बीमा, आपदा राहत और अन्य कृषि योजनाओं के लिए जरूरी डेटा पोर्टल पर समय पर अपलोड होना संदिग्ध हो गया है। राज्य सरकार ने खरीफ सीजन की ई-गिरदावरी 5 अक्टूबर तक पूरी करने के सख्त निर्देश दिए थे, ताकि समय पर डेटा पोर्टल पर अपलोड हो सके। लेकिन झुंझुनूं की अधिकांश तहसीलों में सर्वे अधूरा है। विभागीय अधिकारी केवल आदेश जारी कर फाइलों में खानापूर्ति करते रहे, जबकि ज़मीन पर इसका क्रियान्वयन नहीं हुआ। स्थिति यह है कि गुढ़ा, चिड़ावा, नवलगढ़, सूरजगढ़ और खेतड़ी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में किसान पूरी प्रक्रिया से अनभिज्ञ हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि पर्यवेक्षकों और पटवारियों की निष्क्रियता साफ झलक रही है। कई ग्राम पंचायतों में न तो प्रशिक्षण शिविर लगाए गए और न ही तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई गई। किसान बोले—किसी ने नहीं बताया कैसे करें सर्वे मैदानी स्तर पर प्रचार-प्रसार और जागरूकता की कमी ने अभियान को सबसे बड़ा झटका दिया है। किसानों का कहना है कि उन्हें इस प्रक्रिया की जानकारी ही नहीं है। किसान धर्मपाल ने बताया, "हमें बस इतना कहा गया कि मोबाइल एप से गिरदावरी करनी है, पर कैसे करनी है, यह कोई नहीं बताता। एप खुलता ही नहीं या डेटा सेव नहीं होता।” किसान जगदीश कुमार ने कहा कि ई-गिरदावरी का फायदा उन्हें समझाया ही नहीं गया। उन्होंने सवाल उठाया, “जब हमें पता ही नहीं कि इससे क्या लाभ होगा, तो करने की प्रेरणा कहां से आएगी?” किसानों को उनके आधार, खसरा-खतौनी और खेती के दस्तावेजों के साथ गिरदावरी एप से खुद अपनी फसल दर्ज करनी थी, लेकिन इस प्रक्रिया से अधिकांश किसान अनभिज्ञ हैं। इंटरनेट और तकनीकी दिक्कतें भी बनी बाधा प्रशासनिक सुस्ती के साथ ही तकनीकी ढाँचे की कमियाँ भी अभियान की असफलता का कारण बनी हैं। झुंझुनूं के कई ग्रामीण इलाकों में अभी भी इंटरनेट नेटवर्क कमजोर है। किसानों ने शिकायत की कि मोबाइल एप बार-बार हैंग हो जाता है या डेटा अपलोड नहीं होता। इससे परेशान होकर किसान आधा-अधूरा सर्वे छोड़ देते हैं। राजस्व विभाग के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि गिरदावरी एप में बार-बार तकनीकी गड़बड़ी आती है—"डेटा सेव नहीं होता, कभी सर्वर डाउन रहता है, तो कभी लोकेशन नहीं पकड़ता।" कई किसानों के पास एंड्रॉइड मोबाइल न होने और बिजली की समस्या भी भाग लेने में बाधा बन रही है। पारदर्शिता का उद्देश्य कागजों तक सीमित ई-गिरदावरी का मुख्य उद्देश्य किसानों की फसल का पूरा रिकॉर्ड ऑनलाइन दर्ज करना था, जिससे फसल बीमा, आपदा राहत और अन्य कृषि योजनाओं में पारदर्शिता लाई जा सके। इन आंकड़ों से यह पता चलता कि किस किसान ने कौन सी फसल बोई है और अनुमानित उत्पादन कितना होगा। लेकिन विभागीय स्तर पर न तो किसानों को पर्याप्त प्रशिक्षण मिला और न ही कोई विशेष मुहिम चलाई गई। नतीजा यह है कि पारदर्शिता का यह उद्देश्य अब तक केवल कागजों तक सीमित है और ई-गिरदावरी का आंकड़ा लगातार पिछड़ रहा है। संयुक्त निदेशक कृषि विभाग डॉ. राजेंद्र लाम्बा ने बताया कि अब तक जिले के लगभग 20 हजार किसानों ने ई-गिरदावरी की है। उन्होंने कहा, “हमारा प्रयास है कि किसान खुद एप के माध्यम से अपनी फसलों की गिरदावरी करें। इसके लिए विभागीय टीमों को सक्रिय किया गया है।”