प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 4-5 दिसंबर 2025 को भारत की राजकीय यात्रा करेंगे। इस दौरान वह 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। यात्रा के दौरान राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति की समीक्षा करेंगे। साथ ही दोनों नेता ‘विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ को और मजबूत करने की रूपरेखा तय करेंगे तथा क्षेत्रीय-वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करेंगे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी पुतिन का स्वागत करेंगी और उनके सम्मान में भोज का आयोजन करेंगी।
हम आपको बता दें कि रक्षा सहयोग इस शिखर वार्ता का मुख्य केंद्र रहने वाला है। भारत द्वारा पाँच और S-400 ट्रायंफ वायु-रक्षा स्क्वाड्रन खरीदने की योजना तथा पहले से तैनात S-400 प्रणालियों के लिए बड़ी संख्या में सतह-से-वायु मिसाइलों की खरीद से जुड़े मुद्दे इन वार्ताओं में प्रमुख रूप से शामिल होंगे। हालाँकि, भारतीय वायुसेना द्वारा दो-तीन स्क्वाड्रन रूसी सु-57 पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान लेने पर अभी निर्णय लंबित है। दरअसल रूस इन विमानों को अमेरिकी F-35 लाइटनिंग-II के विकल्प के रूप में जोरदार तरीके से प्रस्तावित कर रहा है, लेकिन भारतीय वायुसेना भविष्य में स्वदेशी AMCA स्टेल्थ फाइटर (2035 तक) के आने को देखते हुए अभी किसी एक विकल्प पर नहीं पहुँची है।
हम आपको यह भी बता दें कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली कैबिनेट सुरक्षा समिति पहले बैच के 84 सु-30MKI विमानों के 63,000 करोड़ रुपये के आधुनिकीकरण को मंज़ूरी देने वाली है। यह उन्नयन भारत में ही होगा, किंतु रूस इसमें तकनीकी सहयोग देगा। आधुनिकीकरण के बाद ये विमान आने वाले 30 वर्षों तक उन्नत हवाई युद्ध क्षमता से लैस रहेंगे। रक्षा खरीद में भारत को रूस और अमेरिका दोनों के साथ संतुलन साधना पड़ रहा है। अमेरिका, पिछले 15 वर्षों में भारत को 26 अरब डॉलर के रक्षा उपकरण बेच चुका है। इसके अलावा, हाल ही में 113 GE-F404 इंजन की खरीद और नौसेना के लिए MH-60R हेलीकॉप्टरों के फॉलो-ऑन सपोर्ट पैकेज को भी मंजूरी दी गयी है।
वहीं, रूसी पक्ष ने आश्वासन दिया है कि 2018 में खरीदे गए पाँच S-400 स्क्वाड्रनों में से शेष दो स्क्वाड्रन नवंबर 2026 तक भारत को दे दिए जाएँगे, जो यूक्रेन युद्ध के कारण विलंबित थे। भारत ने लगभग 10,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त S-400 मिसाइलों की खरीद को मंजूरी दे दी है, जिनकी मारक क्षमता 120 से 380 किमी तक है। ये मिसाइलें पाकिस्तान के साथ हालिया तनाव में उपयोग किए गए मौजूदा भंडार की पूर्ति तथा भविष्य की रणनीतिक तैयारी के लिए खरीदी जा रही हैं। भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ़ मार्शल ए.पी. सिंह ने S-400 को ‘गेमचेंजर’ बताते हुए कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इस प्रणाली ने F-16 और JF-17 श्रेणी के कम से कम पाँच पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों को 314 किमी की दूरी से मार गिराया, जो अब तक की रिकॉर्ड ‘लॉन्गेस्ट किल’ है।
देखा जाये तो रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की यह भारत यात्रा ऐसे समय हो रही है, जब वैश्विक भू-राजनीति में तेज़ी से बदलाव आ रहे हैं। अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा अपने चरम पर है, यूक्रेन युद्ध ने यूरोप की सुरक्षा संरचना को अस्थिर कर दिया है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक तनाव नई ऊँचाइयों पर पहुँचा है। ऐसे में भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन का न केवल द्विपक्षीय, बल्कि वैश्विक सामरिक परिप्रेक्ष्य में भी बड़ा महत्व है।
हम आपको बता दें कि भारत की विदेश नीति का केंद्रीय सिद्धांत ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ है यानि न तो पूर्ण अमेरिकी धुरी, न ही किसी एक शक्ति पर निर्भरता। रूस दशकों से भारत का विश्वसनीय रक्षा साझेदार रहा है। भारत के लगभग 60–70% सैन्य प्लेटफॉर्म रूसी मूल के हैं। इसलिए S-400, सु-30MKI अपग्रेड, मिसाइल तकनीक, पनडुब्बी सहयोग, और अंतरिक्ष साझेदारी जैसे क्षेत्रों में रूस से सहयोग भारत की सुरक्षा रणनीति की रीढ़ बने हुए हैं।
इसके अलावा, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान S-400 की अभूतपूर्व क्षमता ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत की वायु-रक्षा में यह प्रणाली कितनी निर्णायक है। पाकिस्तान या चीन, दोनों के विरुद्ध संभावित दो मोर्चा चुनौतियों के बीच पाँच और S-400 स्क्वाड्रनों की मांग भारत की दीर्घकालिक सुरक्षा योजना का संकेत है। साथ ही रूस का भारत में MRO सुविधा स्थापित करना आत्मनिर्भरता और लॉजिस्टिक सुरक्षा को और मजबूत करेगा।
इसके अलावा, आज जब रूस पश्चिमी प्रतिबंधों से घिरा है और एशिया की ओर रणनीतिक झुकाव बढ़ा रहा है, भारत-रूस संबंध केवल रक्षा या ऊर्जा तक सीमित नहीं हैं। यह यात्रा कई स्पष्ट संदेश भी देती है। जैसे- दोनों देशों के बीच उच्चतम स्तर पर नियमित वार्ता अंतरराष्ट्रीय दबावों के बावजूद साझेदारी की मजबूती दिखाती है। साथ ही S-400, MRO सुविधा, सु-30MKI अपग्रेड और संभावित सु-57 वार्ता भारत की सैन्य तैयारी के निर्णायक तत्व हैं। इसके अलावा, रूस भारत को एक स्थिर, स्वतंत्र और विश्वसनीय साझेदार के रूप में देखता है, जो चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच संतुलन प्रदान कर सकता है।
बहरहाल, राष्ट्रपति पुतिन की यह भारत यात्रा भारत की सैन्य क्षमता, भू-राजनीतिक स्थिति और सामरिक स्वायत्तता को मजबूत करने वाली महत्वपूर्ण घटना है। S-400 और सु-30MKI उन्नयन जैसे मुद्दे भारत की तत्काल सुरक्षा जरूरतों से जुड़े हैं, जबकि सु-57 और AMCA जैसे विषय भविष्य की वायु-रणनीति को आकार देंगे। भारत इस यात्रा के माध्यम से दुनिया को संदेश दे रहा है कि वह किसी एक शक्ति का “सहयोगी” नहीं, बल्कि स्वतंत्र, आत्मविश्वासी और बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था का सक्रिय निर्माता है।