पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के बेटे कासिम खान ने दावा किया है कि उनके पिता को "मौत की कोठरी में पूर्ण अंधकार और शून्य पारदर्शिता" में रखा गया है। कासिम खान का कहना है कि पिछले कई सप्ताह से “ना कोई फ़ोन कॉल, ना कोई मुलाक़ात, ना ही कोई सबूत कि वो ज़िंदा हैं। मेरे और मेरे भाई का उनसे कोई संपर्क नहीं हो पाया है।” कासिम खान का आरोप है कि 845 दिनों से हिरासत में चल रहे इमरान खान को पिछले छह हफ्तों से अकेले पृथक-कोठरी में बंद किया गया है। उनकी बहनों को भी अदालत के आदेश होने के बावजूद मुलाक़ात की अनुमति नहीं दी जा रही है। कासिम ने आगे कहा कि शहबाज़ शरीफ़ सरकार और “उसके आकाओं” को “कानूनी, नैतिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा।” उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से “तत्काल हस्तक्षेप” करते हुए ‘प्रूफ ऑफ लाइफ’ की मांग करने की अपील की।
उधर, इमरान खान की बहन नूरीन नियाज़ी ने भी कहा है कि “यह पाकिस्तान का सबसे अंधकारमय दौर है।” उनके अनुसार, इमरान को लगातार कठोर परिस्थितियों में रखा जा रहा है और परिवार से संपर्क पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि जेल मैनुअल के अनुसार किसी कैदी को चार दिन से ज़्यादा आइसोलेशन में नहीं रखा जा सकता, लेकिन इमरान को पहले भी तीन हफ्तों तक पूरी तरह अंधेरे में रखा गया था और वही दोहराया जा रहा है।
नूरीन नियाज़ी का कहना है कि परिवार को चार सप्ताह से मिलने नहीं दिया गया है और जेल के बाहर महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों के साथ अभूतपूर्व दुर्व्यवहार हुआ है। उन्होंने कहा कि “लोगों को बेरहमी से पीटा जा रहा है… यह हालात हिटलर के दौर जैसी दमनकारी स्थिति की याद दिलाते हैं।” उन्होंने चेतावनी दी कि जनता का गुस्सा “अब फटने के करीब” है। उन्होंने साथ ही कटाक्ष करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उन्हें कोई उम्मीद नहीं दिखाई देती क्योंकि “हमारे तानाशाहों के विदेशी समर्थक बहुत मजबूत हैं।''
दूसरी ओर पाकिस्तान सरकार की ओर से प्रधानमंत्री के राजनीतिक सलाहकार राणा सनाउल्लाह और कई वरिष्ठ पीटीआई नेताओं ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि “इमरान खान बिल्कुल ठीक हैं और उनके साथ कुछ भी गलत नहीं हुआ है।” वहीं, पीटीआई ने फिर भी इमरान से मिलने की मांग की है, क्योंकि उन्हें तीन हफ्तों से न परिवार से मिलने दिया गया है और न वकीलों से। हम आपको बता दें कि अगस्त 2023 से जेल में बंद इमरान 14 साल की सज़ा काट रहे हैं।
इस बीच, संयुक्त राष्ट्र के उप-प्रवक्ता फरहान हक़ ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान से स्पष्ट रूप से मांग की है कि इमरान खान के मानवाधिकार और विधिक अधिकारों का सम्मान किया जाए। राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में निष्पक्षता और पारदर्शिता आवश्यक है।
देखा जाये तो इमरान खान की गिरफ़्तारी और जेल में उनके साथ व्यवहार का मुद्दा अब केवल पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति भर नहीं रह गया है, यह दक्षिण एशिया में लोकतंत्र की परिभाषा, संवैधानिक व्यवस्था की विश्वसनीयता और मानवाधिकारों की वास्तविक स्थिति पर गहरा प्रश्नचिह्न बन चुका है। इस समय जो रिपोर्टें सामने आ रही हैं— चाहे वह कासिम खान और नूरीन नियाज़ी के दावे हों, या जेल के बाहर पीटीआई समर्थकों पर दमन, वे पाकिस्तान के राजनीतिक तंत्र की असलियत को बेनक़ाब करती हैं। किसी भी लोकतांत्रिक देश में यह अस्वीकार्य है कि एक पूर्व प्रधानमंत्री को ‘सबूत-ए-ज़िंदगी’ के सवालों तक पहुंचा दिया जाए। अगर वास्तव में सब कुछ ठीक है, तो सरकार और जेल प्रशासन इस तरह के बुनियादी अधिकारों यानि मुलाक़ात, कानूनी सहायता और स्वास्थ्य संबंधी पारदर्शिता से क्यों डर रहे हैं?
यह केवल इमरान खान का मामला नहीं है, बल्कि पाकिस्तान के संस्थानों का सामूहिक चरित्र-परिचय है। जब किसी देश में विपक्षी आवाज़ों के लिए जगह सिकुड़ने लगती है, मीडिया को नियंत्रित किया जाता है, न्यायपालिका दबाव महसूस करती है और नागरिकों को पुलिस-बल के सामने असुरक्षित छोड़ दिया जाता है तो यह संकेत होता है कि राष्ट्र लोकतांत्रिक संकट में है। बीते कुछ वर्षों में पाकिस्तान की राजनीति में जो अस्थिरता, संस्थागत संघर्ष और फौजी प्रभाव बढ़ा है, उसने नागरिक शासन को लगभग खोखला बना दिया है। लोगों पर अत्यधिक बल प्रयोग, महिलाओं और बुज़ुर्गों पर हिंसा और सप्ताहों तक पूरी तरह संचार-विहीन कैद, ये सब किसी सशक्त लोकतंत्र के लक्षण नहीं हैं।
सरकार का यह कहना कि “सब ठीक है”, अपने आप में पर्याप्त नहीं है। यदि सब ठीक है तो अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की चिंताओं का जवाब पारदर्शी निरीक्षण, स्वतंत्र मेडिकल रिपोर्ट और परिवार/कानूनी मुलाक़ातों की पुनर्बहाली के माध्यम से दिया जाना चाहिए। इस पूरे प्रकरण में एक गहरी विडंबना भी छिपी है कि पाकिस्तान आज जिस दमनकारी राजनीतिक ढांचे में फंसता जा रहा है, वह वही ढांचा है जिसे कभी सभी दलों ने अलग-अलग समय में बढ़ावा दिया है। सत्ता में रहते हुए संस्थागत सुधार कोई नहीं करता और जब व्यवस्था उनके ख़िलाफ़ होती है, तब वह अचानक दमनकारी प्रतीत होने लगती है। बहरहाल, इमरान खान को लेकर फैली अफ़वाहें, ‘प्रूफ ऑफ लाइफ’ की मांग और संयुक्त राष्ट्र का हस्तक्षेप, ये सब संकेत हैं कि पाकिस्तान एक गंभीर विश्वसनीयता संकट में है।