आज मातृनवमी है, पितृ पक्ष में नवमी तिथि को मातृ नवमी के रूप में जाना जाता है। इस खास दिन पर विशेष रूप से दिवंगत माताओं और परिवार की अन्य महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है। मातृ नवमी पर किए गए तर्पण और पिंडदान से मातृ आत्माओं की शांति होती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है, तो आइए हम आपको मातृनवमी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जानें मातृनवमी व्रत के बारे में
हिन्दू धर्म में मातृनवमी का खास महत्व है। इस दिन श्राद्ध करने से दिवंगत आत्माओं को शांति मिलती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है। पूर्वजों का सम्मान करने और धार्मिक कर्तव्य निभाने के लिए इस दिन विशेष पूजा-पाठ और कर्मकांड किए जाते हैं। मातृनवमी पितृपक्ष की एक अत्यंत पावन तिथि है, जो हमारे दिवंगत मातृ पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करने का अवसर देती है। इस दिन किए गए श्राद्ध से न केवल उनकी आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि हमारे परिवार और वंश की समृद्धि भी होती है। शास्त्रों में माना गया है कि यदि किसी महिला की मृत्यु किसी भी माह के कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुई हो या फिर उनकी सही मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, तो उनके श्राद्ध के लिए यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन परिवार की दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध करने की परंपरा है। पितृ पक्ष का हिंदू धर्म में खास महत्व है। पितृ पक्ष के दौरान लोग दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करते हैं। पंडितों के अनुसार पितृ पक्ष में पूर्वज धरती पर आते हैं। इस दौरान किए गए कर्मकांड से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं, जिससे घर में सुख-शांति बनी रहती है।
पितृपक्ष में मातृनवमी है खास
पितृपक्ष की नवमी तिथि पर उन महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है जिनके पति उनके जीवित रहते हुए ही निधन हो गए हों। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिन माताओं, बहनों या बेटियों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, उनका श्राद्ध भी इस दिन करना शुभ माना जाता है। इस दिन किया गया श्राद्ध माता-पिता को प्रसन्न करता है और वंश तथा कुल की वृद्धि का कारण माना जाता है।
मातृनवमी श्राद्ध का महत्व
मातृनवमी का श्राद्ध विशेष रूप से मातृ पक्ष के लिए समर्पित होता है। इस दिन किए गए श्राद्ध से माता-पिता की आत्मा प्रसन्न होती है और आशीर्वाद देती है। इससे उनकी आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि जो व्यक्ति मातृ नवमी का श्राद्ध करता है, उसके जीवन में कभी ममता और स्नेह की कमी नहीं होती। मातृ नवमी श्राद्ध विशेष रूप से मृत माताओं के लिए किया जाता है। यह पितृ पक्ष की नवमी तिथि को संपन्न होता है। यदि किसी महिला की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, तब भी उनका श्राद्ध इस दिन किया जा सकता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस श्राद्ध से परिवार पर मातृशक्ति का आशीर्वाद बना रहता है और सुख-समृद्धि बढ़ती है। इसके अलावा, जिन पितरों की मृत्यु किसी भी महीने की नवमी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध भी इसी दिन किया जाता है।
मातृनवमी के दिन ये करें
पंडितों के अनुसार मातृ नवमी के दिन श्राद्ध के साथ-साथ दान-पुण्य अवश्य करें। इस दिन विवाहित महिलाओं को सुहाग सामग्री देना शुभ माना जाता है। बुजुर्ग महिलाओं को उपहार भी दे सकते हैं। एक ब्राह्मण दंपत्ति को भोजन कराना चाहिए। पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं और अपनी दिवंगत माताओं व बहनों को याद करें। इस दिन गाय, कुत्ते, चींटी, मछली और कौवे को भोजन और पानी देना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार इन जीवों को अर्पित भोजन हमारे पूर्वजों तक पहुंचता है और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करता है।
मातृनवमी के दिन इस मुहूर्त पर करें श्राद्ध
हिंदू पंचाग के अनुसार, मातृ नवमी का श्राद्ध 15 सिंतबर दिन सोमवार को किया जाएगा। मातृ नवमी के दिन किसी पवित्र घाट पर जाकर दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध करना चाहिए। दाहिने हाथ में कुशा लेकर दिवंगत महिलाओं के नाम का तर्पण करें। इसके बाद उन्हें पिंडदान अर्पित करें। श्राद्ध के खाने का एक हिस्सा कौवे, गाय या कुत्ते के लिए अलग से निकालकर रख दें। इसके बाद पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें और गरीब ब्राह्मण को सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा दें।
इस दिन श्राद्ध के लिए सबसे शुभ समय सुबह 11:51 बजे से दोपहर 12:41 बजे तक है, जिसे कुतुप मुहूर्त कहा जाता है. इसके बाद दोपहर 12:41 बजे से 01:30 बजे तक रौहिण मुहूर्त है, जो भी श्राद्ध के लिए शुभ माना जाता है. दोपहर 01:30 बजे से 03:58 बजे तक अपराह्न काल मुहूर्त है, इस समय भी श्राद्ध किया जा सकता है।
मातृनवमी तिथि पर ऐसे करें श्राद्ध
सबसे पहले पितरों का ध्यान करें और उनका स्मरण करें। तिल, जौ, गुड़ और आटे से बने पिंड को जल में अर्पित करें। जल में तिल, कूशा और जल लेकर तर्पण दें। इसे तीन बार करना शुभ माना जाता है। पितरों के लिए विशेष भोजन बनाएं और इसे कौआ, गाय, कुत्ता आदि जीवों को अर्पित करें। यह माना जाता है कि इन जीवों को भोजन देने से पितरों को तृप्ति मिलती है। श्राद्ध के समय ब्राह्मणों को भोजन कराना और दक्षिणा देना भी जरूरी होता है। जरूरतमंदों को दान देना श्राद्ध के फल को बढ़ाता है।
माताओं के श्राद्ध के नियम भी है खास
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें। कुश, जौ, तिल और जल से तर्पण करें। चावल, जौ और काले तिल को मिलाकर पिंड बनाएं और दिवंगत माताओं को अर्पित करें। श्राद्ध का भोजन तैयार करें, जिसमें खीर, पूरी, सब्जी, दाल आदि शामिल होती है। इस भोजन को सबसे पहले कौवे, गाय, कुत्ते और देवताओं के लिए निकालें। पितरों को भोजन अर्पित करने के बाद, ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें। श्राद्ध के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और अन्य वस्तुओं का दान करें।
मातृनवमी के दिन अवश्य करें यह काम
किसी भी श्राद्ध पूजन में तुलसी का विशेष महत्त्व है। इसीलिए मातृ नवमी के दिन तुलसी पूजन अवश्य करना चाहिए। इसके साथ ही पितरों से जुड़े किसी भी कार्य में तांबे के बर्तन का प्रयोग करें। किसी महिला का अपमान न करें। ऐसा मातृ नवमी के दिन ही नहीं बल्कि अपने दैनिक जीवन में भी करें। ऐसा करने से आपको शुभ फल की प्राप्ति होगी। यदि सम्भव हो तो मातृ नवमी के दिन जरूरतमंद सुहागन महिलाओं को सुहाग का सामान जैसे लाल साड़ी, चूड़ियां, सिंदूर आदि चीजों का दान करें। घर पर आए किसी भी व्यक्ति को खाली हाथ न भेजें और उन्हें भोजन अवश्य कराएं।
- प्रज्ञा पाण्डेय