​​​​​​​कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने धनबाद पहुंचे दिनेश बावरा:कहा- सेवा छोड़ सुख भोगने वाली सत्ता पाने के लिए बिना मेल की शादी कर रहे हैं

तेजी से बदलते डिजिटल दौर में, जहां भावनाएं स्टेटस अपडेट बन गई हैं, वहां कविता की जगह कहां है, यह सवाल आज जरूरी हो गया है। अपने शब्दों से समाज की नब्ज पकड़ने वाले कवि दिनेश बावरा ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि बदलाव के लिए सच्ची सोच और ईमानदार नेतृत्व की जरूरत है। अगर युवा जागरूक हों और अपनी आवाज बुलंद करें, तो देश में सच्चे परिवर्तन की शुरुआत हो सकती है। पेश है धनबाद में एक कवि सम्मेलन में पहुंचे दिनेश बावरा से बातचीत के अंश। ​बिहार चुनाव के दौरान राजनीतिक परिदृश्य को कैसे देखते हैं ? सत्ता से सेवा की जगह सुख शब्द जुड़ जाता है, खींचतान बढ़ जाती है, तब जो हाल होता है वही हाल आज बिहार के साथ पूरे देश में हैं। सेवा छोड़ सुख भोगने वाली सत्ता पाने के लिए बिना मेल की शादी कर रहे हैं। चुनाव के दौरान बिहार के वर्तमान राजनैतिक हालात का झारखंड की राजनीति पर क्या असर हो सकता है? यहां की सरकार का वहां पर तकरार, साहब हैं लाचार। यहां जो जिसके साथ था, वहां वह उसके साथ नहीं रहा, वहां जिसे जिसके साथ होना चाहिए वह उसके साथ नहीं। झारखंड में जिन राजनैतिक दलों ने सत्ता सुख के लिए गठबंधन किया, बिहार में सीट मांगने पर उसमें एक पार्टी को गठबंधन की कमजोर पड़ी गांठ खोल बंधन मुक्त कर दिया। हर दौर में कविता विरोध और बदलाव की आवाज रही है, आज यह भूमिका कितनी बची है? कविता की भूमिका में कबीर, निराला के साथ आज का दौर भी है। कविता हर दौर में भूमिका निभाती है, कविता के बिना जीवन अधूरा है। मोबाइल और रील के नए जमाने में भी कविता लोगों के दिलों में है, या स्क्रॉल के नीचे दब गई है? मोबाइल ने प्रभावित किया है। जब किताब पढ़ते हैं तो आप पहले भूमिका फिर कवि को जानते हैं उसके बाद कविता पढ़ते हैं। रील में सीधे कविता पर आ जाते हैं, इसको ध्यान में देख हम लंबी कविता से बच रहे हैं। यह दौर जल्द ही बदलेगा। क्या कवियों की भावनाएं भी लाइक्स और व्यूज के बीच कहीं खोती जा रही हैं? ऐसा नहीं है, डिजिटल दौर कई तरह से प्रभावित करते हैं। श्रोताओं की भागीदारी हमारी कविता में बढ़ी है, वह कविता सुन उसमें कई सुधार करते हैं, अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं। क्या कविता युवाओं के लिए एक्शन का मंत्र बन सकती है? कविता दिल की सबसे सच्ची भाषा है, इसका युवाओं के जीवन में बहुत महत्व है। युवा इश्क करेगा, प्रेम करे या जीवन में और कुछ भी करे कविता उसे सुंदर बनाती है, गहरा असर छोड़ती है। आज युवा कविता को पहले से ज्यादा महसूस करता है। कुमार विश्वास हों व कोई और कवि, युवा छात्र-छात्राएं, इंजीनियर, डॉक्टर सबसे अधिक उन्हें सुनते हैं। जाकिर खान जैसे कई स्टैंड अप कॉमेडियन भी कविताएं सुनाने लगे हैं। कविता लिखने की प्रेरणा कहां से लेते हैं? कविता लिखने की प्रेरणा समाज की विसगंतियों, कुरीतियों, राज करने वाले सत्ताधारियों के झूठेपन से और प्रकृति से मिलती है। ईश्वर का आभार कि मुझे यह शक्ति दी, जनता का मनोरंजन के साथ उन्हें जागरूक और सचेत भी करता हूं। झारखंड के लोगों को अपनी कविता के माध्यम से क्या कहेंगे? झारखंड को प्रकृति से कोयला और अन्य खनिजों के साथ जल, जंगल और जमीन भरपूर मिला है। पर दुनिया में बढ़ते जलसंकट को देखते हुए कहूंगा - न सोना, न चांदी, न बंगला, न कार छोड़ जाइए, आने वाली पीढ़ी प्यासा न मरे, इतना सा पानी मेरे मालिक, मेरे सरकार छोड़ जाइए।

Oct 30, 2025 - 12:06
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​​​​​​​कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने धनबाद पहुंचे दिनेश बावरा:कहा- सेवा छोड़ सुख भोगने वाली सत्ता पाने के लिए बिना मेल की शादी कर रहे हैं
तेजी से बदलते डिजिटल दौर में, जहां भावनाएं स्टेटस अपडेट बन गई हैं, वहां कविता की जगह कहां है, यह सवाल आज जरूरी हो गया है। अपने शब्दों से समाज की नब्ज पकड़ने वाले कवि दिनेश बावरा ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि बदलाव के लिए सच्ची सोच और ईमानदार नेतृत्व की जरूरत है। अगर युवा जागरूक हों और अपनी आवाज बुलंद करें, तो देश में सच्चे परिवर्तन की शुरुआत हो सकती है। पेश है धनबाद में एक कवि सम्मेलन में पहुंचे दिनेश बावरा से बातचीत के अंश। ​बिहार चुनाव के दौरान राजनीतिक परिदृश्य को कैसे देखते हैं ? सत्ता से सेवा की जगह सुख शब्द जुड़ जाता है, खींचतान बढ़ जाती है, तब जो हाल होता है वही हाल आज बिहार के साथ पूरे देश में हैं। सेवा छोड़ सुख भोगने वाली सत्ता पाने के लिए बिना मेल की शादी कर रहे हैं। चुनाव के दौरान बिहार के वर्तमान राजनैतिक हालात का झारखंड की राजनीति पर क्या असर हो सकता है? यहां की सरकार का वहां पर तकरार, साहब हैं लाचार। यहां जो जिसके साथ था, वहां वह उसके साथ नहीं रहा, वहां जिसे जिसके साथ होना चाहिए वह उसके साथ नहीं। झारखंड में जिन राजनैतिक दलों ने सत्ता सुख के लिए गठबंधन किया, बिहार में सीट मांगने पर उसमें एक पार्टी को गठबंधन की कमजोर पड़ी गांठ खोल बंधन मुक्त कर दिया। हर दौर में कविता विरोध और बदलाव की आवाज रही है, आज यह भूमिका कितनी बची है? कविता की भूमिका में कबीर, निराला के साथ आज का दौर भी है। कविता हर दौर में भूमिका निभाती है, कविता के बिना जीवन अधूरा है। मोबाइल और रील के नए जमाने में भी कविता लोगों के दिलों में है, या स्क्रॉल के नीचे दब गई है? मोबाइल ने प्रभावित किया है। जब किताब पढ़ते हैं तो आप पहले भूमिका फिर कवि को जानते हैं उसके बाद कविता पढ़ते हैं। रील में सीधे कविता पर आ जाते हैं, इसको ध्यान में देख हम लंबी कविता से बच रहे हैं। यह दौर जल्द ही बदलेगा। क्या कवियों की भावनाएं भी लाइक्स और व्यूज के बीच कहीं खोती जा रही हैं? ऐसा नहीं है, डिजिटल दौर कई तरह से प्रभावित करते हैं। श्रोताओं की भागीदारी हमारी कविता में बढ़ी है, वह कविता सुन उसमें कई सुधार करते हैं, अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं। क्या कविता युवाओं के लिए एक्शन का मंत्र बन सकती है? कविता दिल की सबसे सच्ची भाषा है, इसका युवाओं के जीवन में बहुत महत्व है। युवा इश्क करेगा, प्रेम करे या जीवन में और कुछ भी करे कविता उसे सुंदर बनाती है, गहरा असर छोड़ती है। आज युवा कविता को पहले से ज्यादा महसूस करता है। कुमार विश्वास हों व कोई और कवि, युवा छात्र-छात्राएं, इंजीनियर, डॉक्टर सबसे अधिक उन्हें सुनते हैं। जाकिर खान जैसे कई स्टैंड अप कॉमेडियन भी कविताएं सुनाने लगे हैं। कविता लिखने की प्रेरणा कहां से लेते हैं? कविता लिखने की प्रेरणा समाज की विसगंतियों, कुरीतियों, राज करने वाले सत्ताधारियों के झूठेपन से और प्रकृति से मिलती है। ईश्वर का आभार कि मुझे यह शक्ति दी, जनता का मनोरंजन के साथ उन्हें जागरूक और सचेत भी करता हूं। झारखंड के लोगों को अपनी कविता के माध्यम से क्या कहेंगे? झारखंड को प्रकृति से कोयला और अन्य खनिजों के साथ जल, जंगल और जमीन भरपूर मिला है। पर दुनिया में बढ़ते जलसंकट को देखते हुए कहूंगा - न सोना, न चांदी, न बंगला, न कार छोड़ जाइए, आने वाली पीढ़ी प्यासा न मरे, इतना सा पानी मेरे मालिक, मेरे सरकार छोड़ जाइए।